हिंदी दिवस: भारतीय सांस्कृतिक धरोहर के प्रतीक की भूमिका में महत्वपूर्ण हिंदी

अशोक झा

आज हिंदी दिवस है। पिछले 75 वर्षों में हिंदी ने न केवल एक भाषा के रूप में, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक धरोहर के प्रतीक के रूप में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह वह भाषा है, जिसने देश के आत्मा को प्रतिबिंबित किया है और स्वतंत्रता के बाद के भारत में सामाजिक और सांस्कृतिक एकता को सुदृढ़ किया है। तकनीकी और वैज्ञानिक प्रगति के साथ हिंदी ने परंपरा और आधुनिकता के बीच एक पुल का काम किया है। आज हिंदी न केवल भारत, बल्कि कई देशों में भी पढ़ाई और बोली जाती है। हालांकि हिंदी ने एक लंबी यात्रा तय की है, लेकिन इसके सामने आज भी कई चुनौतियां हैं। भाषाई विविधता वाले देश में सभी भाषाओं को सम्मान और महत्व देना आवश्यक है। हिंदी को बढ़ावा देने के साथ-साथ अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को भी सहेजने और संरक्षित करने की जिम्मेदारी है।भारतेंदु जी ने कभी बड़ी गहराई में उतर कर लिखा था। ‘निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल, पै निज भाषा ज्ञान के, मिटे न हिय को सूल।’ निःसंदेह है किसी भी राष्ट्र के विकास की बुनियाद उसकी निजी भाषा की श्री संपन्नता में ही निहित होती है। विदेशी भाषा ‘हिय के सूल’ की अभिव्यक्ति में समर्थ नहीं होती। हमारी निजी संस्कृति, सभ्यता, परंपरा, हर्ष, उल्लास, दर्द और व्यथा की मूल चेतना की वास्तविक अभिव्यक्ति निजी भाषा में ही संभव सकती है। इसीलिए भाषा हमारी अस्मिता की पहचान होती है जिसमें हमारे राष्ट्र का सामूहिक स्वर मुखरित होता है। जिस प्रकार राष्ट्रीय एकता अखंडता के प्रतीक स्वरूप राष्ट्रीय ध्वज राष्ट्रगीत संविधान और निश्चित भू-भाग अपरिहार्य होता है, ठीक उसी प्रकार राष्ट्र के वैविध्य को भावनात्मक एकता के सूत्र में गुंफित करने के लिए एक राष्ट्रभाषा की आवश्यकता होती है, जो व्यापक स्तर पर बोलने, सुनने, समझने, लिखने, पढ़ने और राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय संपर्क, राजकीय कामकाज तथा विभिन्न भाषा, भाषियों के मध्य विचारों के आदान-प्रदान की युक्ति मात्र ही नहीं होती वरन राष्ट्र की सामासिक संस्कृति, राष्ट्रीय स्वाभिमान और आत्म गौरव की भावना भी सृजित करती है। निसंदेह इस पृष्ठभूमि में सदियों से हिंदी राष्ट्र भाषा के गौरव के लिए सर्वथा उपयुक्त रही है।शायद यही वजह है कि हम हिंदी के भाषा के रूप में स्वीकार करने में भारत के कई कोने में हिचकिचाते रहे। जबकि, सबको पता है कि हिंदी केवल एक भाषा ही नहीं है, एक संस्कृति जीवन शैली की संरक्षक भी है। यानी हिंदी हिंदुस्तान का संबंध वैसा ही है, जैसा एक मां बेटे का होता है। हिंदी को दुनिया में तो पहचान मिल गई लेकिन यह अपनी ही सरजमीं पर उपेक्षा का शिकार रही है। वह कदम-कदम पर रूसवाईयां झेल रही है यही वजह है कि वह राष्ट्रभाषा का अपना दर्जा पाने में अब तक कामयाब नहीं हो पाई है।यूं तो सितंबर के महीने को हमने हिंदी के नाम कर दिया, लेकिन क्या कभी सोचा कि अपनी ही जमीन पर यह भाषा आज भी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। वैसे भारत जैसे बड़े भूभाग वाले देश में कहा जाता है कि कोस-कोस पर पानी बदले, चार कोस पर वाणी यानी भारत में हर एक कोस पर पानी का स्वाद बदल जाता है 4 कोस पर भाषा यानी वाणी या बोली बदल जाती है।हमने हिंदी के प्रति जो रुग्णता दिखाई उसके पीछे की सबसे बड़ी वजह यह रही कि हमने अंग्रेजी को एक मानक के रूप में स्थापित कर लिया। अंग्रेजी को बुद्धिमता से जोड़ दिया गया। हिंदी के प्रति रुग्णता तथा समूह में इसके प्रति असहजता ने इस भाषा को अपने ही परिचितों में अपरिचित बना दिया।
हिंदी उत्तर भारत की सीमा से निकलकर दक्षिण में छाने की कोशिश करती रही, लेकिन वहां तमिल, मराठी, मलयालम, तेलगु, कन्नड़ जैसी भाषाओं के बीच जाकर उसने दम तोड़ दिया। हिंदी के प्रति हम हिंदुस्तानियों में ही गर्व का बोध नहीं रहा, हमारे अंदर इस भाषा को लेकर उदासीनता व्याप्त है। इसके साथ ही आज की पीढ़ी में हिंग्लिश की स्वीकार्यता ने भी इसको बड़ा आघात पहुंचाया है। जबकि हिंदी तो वह भाषा रही है, जिसने अपने अन्य दूसरी भाषाओं के शब्दों को समेटकर अपने आप को समृद्ध बनाया है। इसके साथ ही हिंदी के शब्दों को भी कई भाषाओं ने ग्रहण किया है। हिंदी तो भाषाओं को छोड़िए बोलियों से भी शब्दों को ग्रहण करती रही है। हिंदी इस समाज की आशा है यह एक संस्कृति जीवन शैली की संरक्षक भी है। लेकिन, आज हिंदी को जनभाषा के रूप में बताना 14 सितंबर के आयोजनों तक ही सीमित रह गया है। भारत की स्वाधीन चेतना का प्रतिनिधित्व करने वाली यह भाषा स्वतंत्रता प्राप्ति के इतने वर्षों के बाद भी गहरी हीन भावना से ग्रस्त उपेक्षित रही है। हिंदी तो अपने संक्रमण के दौर से ही कभी बाहर नहीं निकल पाई है।दुनियाभर में 70 करोड़ से कहीं ज्यादा लोग हिंदी भाषा बोलते हैं। यह दुनिया में तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। ऐसे में हमने हिंदी दिवस के साथ दुनिया में इसके प्रसार के लिए 10 जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस भी मनाना शुरू किया लेकिन, हिंदी को लेकर लोगों की सोच में बदलाव आज भी संभव नहीं हो पाया।हिंदी के होते हुए आजादी के इतने सालों बाद भी हम बिना किसी राष्ट्रभाषा के अपना काम चला रहे हैं। इसके पीछे की वजह साफ है कि कोई भी भाषा तभी सशक्त होगी, जब हम इसमें रचनात्मक कल्पनाशीलता विकसित करेंगे। लेकिन, बचपन से ही हमें जब उस भाषा का बोध संस्कार नहीं दिया गया तो हमारे लिए यह मानना असंभव हो जाता है कि हिंदी हमारे लिए कितनी जरूरी है। हम हिंदी के राष्ट्रभाषा ना बनने पर अफसोस तो जताते हैं, लेकिन घर में बच्चों से हिंदी बोलते हुए कतराते हैं। जब हम खुद इस भाषा को बोलते हुए गौरवान्वित महसूस नहीं करते हैं तो फिर भला घर के बाहर समाज में हिंदी वह जगह कैसे बना सकती है? 14 सितंबर 1949 को भारतीय संविधान में हिंदी को राष्ट्रभाषा नहीं राजभाषा का दर्जा दिया गया। , यह भी महज 15 साल के लिए, लेकिन आज तक हम इसमें सफल नहीं हो पाए। तब संविधान के निर्माताओं का मानना था कि इतने विशाल देश में हिंदी को राष्ट्रभाषा बनने में समय लगेगा इसलिए इसे शुरू में राजभाषा बनाया गया। लेकिन, तब से यह राष्ट्रभाषा का दर्जा पाने के लिए छटपटाती रही। हालांकि यह तथ्य भी सही है कि हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का बीड़ा जिन नेताओं ने उठाया था, वह गैर-हिंदी भाषी लोग थे। जिनमें महात्मा गांधी, रवीन्द्र नाथ टैगोर, सी. राजगोपालाचारी, सरदार पटेल सुभाषचन्द्र बोस जैसे नाम शामिल हैं। लेकिन, आज अगर हिंदी दिवस मनाने की जरूरत आन पड़ी है तो निश्चित ही ये चिंता का विषय है क्योंकि किसी भी दिवस को तब मनाया जाता है जब वह किसी के लिए साल में एक बार आता है। हिंदी तो हमेशा से सतत प्रवाहशील रही है।हिंदी की ताकत को कमतर आंका गया, जबकि हिंदी की ताकत वही है जो हिंदुस्तान की है। हम हिंदुस्तान को तो मजबूत करते चले गए, लेकिन हिंदी को राजभाषा का भी अधिकार दिला नहीं पाए, राष्ट्रभाषा तो खैर दूर की कौड़ी थी। हां, हमने हिंदी को संपर्क की भाषा या जन भाषा बनाने में जरूर सफलता पाई है। हिंदी में तो संस्कृत से लेकर पालि, प्राकृत, अपभ्रंश यहां तक उर्दू इंग्लिश भी घुली हुई है। यानी यह उदार भाषा है। लेकिन, हमने अपनी भाषा के प्रति ही उदारता नहीं दिखाई है।
देश के साथ विदेशों में भी बोली जाती है हिंदी: भारत में तो, हमें हिंदी बोलने वाले करोड़ों लोग मिल जाते हैं। हालांकि, विदेशों में हिंदी का बोलबाला कम हो जाता है। लेकिन, यदि आपको भी ऐसा लगता है, तो ऐसा नहीं है। क्योंकि, दुनिया में ऐसे कई देश हैं, जहां आपको हिंदी भाषा बोलने वाले लोग मिल जाएंगे। इस कड़ी में हम दुनिया के ऐसे देशों के बारे में जानेंगे, जहां हिंदी भाषा बोली जाती है और यहां की आधिकारिक भाषा है। फिजी:फिजी देश को घूमने के लिए भी एक अच्छे देश के रूप में जाना जाता है। दरअसल, यह एक द्वीप है, जहां भारत से भी कई लोग पर्यटन के लिए पहुंचते हैं। ऐसे में आपको यहां काफी लोग हिंदी में संवाद करते हुए मिल जाएंगे। साल 1997 के फिजी संविधान के मुताबिक, हिंदी यहां की आधिकारिक भाषा है। नेपाल :भारत के पड़ोसी देश यानि कि नेपाल में आपको हिंदी भाषा बोलने वाले लोग मिल जाएंगे। यहां नेपाली के साथ-साथ लोग हिंदी भी बोलते हैं। एक सर्वे के मुताबिक, यहां हिंदी में बात करने वाले लोगों की संख्या करीब 80 लाख है। साल 2008 में भारत में जन्मे परमानंद झा द्वारा नेपाल के उप-राष्ट्रपति के रूप में हिंदी में शपथ ली गई थी, जिसके बाद नेपाल में बड़े स्तर पर प्रदर्शन हुआ था। ऐसे में उन्होंने कहा था कि उन्हें नेपाली में शपथ लेने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।दक्षिण अफ्रीका:दक्षिण अफ्रीका में अन्य भाषाओं के साथ-साथ हिंदी भाषा को भी विशेष दर्जा प्राप्त है। दक्षिण अफ्रीका के संविधान के मुताबिक, पैन साउथ अफ्रीका लैग्वेज बोर्ड द्वारा हिंदी भाषा को संक्षरित करने का प्रयास किया जाएगा।यूनाइटेड अरब एमिरेट्स:यहां की कोर्ट में हिंदी भाषा को तीसरी आधिकारिक भाषा के तौर पर लिया गया है। ऐसे में यहां काम करने वाले लोग लेबर कोर्ट में अपनी मातृभाषा में शिकायत दर्ज करा सकते हैं।मॉरिशस:इस देश में वैसे तो लोग मॉरिशियन क्रियोल भाषा बोलते हैं। हालांकि, संसद में अंग्रेजी और फ्रेंच भाषा का भी चलन है। साथ ही, यहां हिंदी भाषा बोलने वाले लोग भी मिल जाएंगे। संयुक्त राज्य अमेरिका :संयुक्त राज्य अमेरिका में यूं तो अंग्रेजी भाषा का ही चलन है। क्योंकि, यह यहां की पेशेवर भाषा भी है। हालांकि, यहां कई ऐसे लोग हैं, जो भारत से पहुंचे हुए हैं। यहां करीब साढ़े छह लाख लोग हिंदी भाषा बोलते हैं।बांग्लादेश:भारत के पड़ोसी देश यानि कि बांग्लादेश में आधिकारिक भाषा बांग्ला है। हालांकि, यहां आपका काम हिंदी भाषा भी बोलकर चल सकता है। ऐसे में आपको यहां हिंदी व बांग्ला दोनों ही प्रमुख भाषा के तौर पर मिलेंगी। थाइलैंड:थाईलैंड में अंग्रेजी, स्पेनिश और फ्रेंच के साथ-साथ हिंदी और भोजपुरी भी बोली जाती है। टोबेगो:टोबेगा में थाइलैंड की तरह ही है, जहां अंग्रेजी के साथ-साथ स्पेनिश, फ्रेंच व हिंदी और भोजपुरी भाषा बोली जाती है।पाकिस्तान :पाकिस्तान पहले भारत का हिस्सा हुआ करता था। यहां आपको उर्दू, पंजाबी, सिंधी, पास्तो, बलूची और अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी भाषा भी सुनने और बोलने को मिलेगी। गुयाना:गुयाना एक दक्षिणी अमेरिकी देश है, जहां भारतीय और अफ्रीकी मूल के लोग रहते हैं। ऐसे में यहां करीब 20 फीसदी से अधिक लोग हिंदी भाषा बोलते हैं।

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