एक देश और एक विधान का मंत्र देने वाले डॉ. श्याम प्रसाद मुखर्जी की आज भी उनकी मौत का रहस्य सिर्फ रहस्य बनकर रह गया
डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी को भारतीय राजनीति और समाज में उनके दूरदर्शी दृष्टिकोण और समय से आगे की सोच के लिए जाना जाता है। उनके जीवन और कार्यों ने दिखाया कि वे न केवल अपने समय के मुद्दों को समझते थे, बल्कि भविष्य की चुनौतियों और अवसरों का भी गहरा ज्ञान रखते थे। देश और समाज के लिए तुष्टिकरण की राजनीति कितना नुकसान पहुंचा सकती है, इसको हमारे कई दार्शनिक समाजसेवियों ने दशकों पहले समझ लिया था। एक देश और एक विधान का मंत्र देने वाले डॉ. श्याम प्रसाद मुखर्जी ने इसके लिए मिसाल पेश की। स्वतंत्र भारत की पहली सरकार ने तुष्टिकरण की नीति पर चलना शुरू किया तो डॉ. मुखर्जी ने कैबिनेट से इस्तीफा देकर भारतीय जनसंघ की स्थापना की। आज उनकी पुण्य तिथि मनाई जा रही है।आज केंद्र में भाजपा की लगातार तीसरी बार सरकार बनी है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के हाथों में देश की बागडोर है। इसके पीछे डॉ मुखर्जी की ही नीति और सोच है। आज उनका बलिदान दिवस है। हम और आप उन्हें अपने अपने तरीके से श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं। हमें पता है कि आजादी मिलने के बाद बनी पहली केंद्र सरकार से डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के मतभेद देखने को मिले थे, जब तत्कालीन नेहरू सरकार ने भारत के संविधान में जबरन अनुच्छेद 370 जोड़कर देश की संप्रभुता और सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करने का प्रयास किया था। अखंड भारत के समर्थक डॉ. मुखर्जी ने कांग्रेस की तुष्टीकरण नीति का विरोध किया। लेकिन आज भी उनकी मौत का रहस्य सिर्फ रहस्य बनकर रह गया है। सियासतदानों का एक धड़ा श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत को साजिश मानता है। जबकि दूसरा उनकी मौत को प्राकृतिक बताता रहा है। मौत की असल वजह क्या रही? यह किसी को नहीं पता, लेकिन उनकी मौत किन परिस्थितियों में हुई और मौत से पहले क्या हुआ? ये जान लेना बेहद ज़रूरी है।
23 जून 1953 को जनसंघ के संस्थापक और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी की रहस्यमयी परिस्थितियों में मौत हो गई थी। मौत प्राकृतिक थी या फिर इसके पीछे कोई साजिश थी ये समझने के लिए एक बार फिर हम आपको इतिहास के उस कालखंड में ले चलेंगे जहां पहुंचकर आप यह ख़ुद तय कर सकें।
370 के मुखर विरोधी थे मुखर्जी: श्यामा प्रसाद मुखर्जी को जनसंघ के संस्थापक और कांग्रेस अध्यक्ष के अलावा जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 का मुखर विरोधी होने के नाते भी जाना जाता है। उनकी इच्छा थी कि जम्मू-कश्मीर में भी अन्य राज्यों की तरह समान कानून रहें। कश्मीर को भी देश के हिस्से की तरह देखा जाए। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने नेहरू सरकार पर तुष्टिकरण का आरोप लगाते हुए कहा था कि इस देश में दो विधान, दो निशान और दो प्रधान नहीं चलेंगे। नेहरू की नीतियों का किया विरोध:इसी विरोध के चलते नेहरू कैबिनेट में शामिल श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने त्यागपत्र देने के बाद वह कश्मीर के लिए निकल पड़े। मुखर्जी कश्मीर कूच के जरिए जवाहर लाल नेहरू की नीतियों को चुनौती दे रहे थे। उनका सवाल था कि अपने ही देश के एक हिस्से में जाने के लिए इजाज़त की ज़रूरत क्यों पड़ती है? लेकिन 11 मई 1953 को कश्मीर में एंट्री करते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उस समय वहां शेख अब्दुल्ला की सरकार थी। दो समर्थकों के साथ गिरफ्तार किए गए श्यामा प्रसाद मुखर्जी को पहले श्रीनगर सेंट्रल जेल ले जाया गया बाद में वहां से शहर के एक कॉटेज में स्थानांतरित कर दिया गया। 19 जून की रात बिगड़ी तबीयत: कॉटेज में 1 महीने से ज्यादा कैद रहे मुखर्जी की सेहत लगातार बिगड़ने लगी। 19 व 20 जून की रात किए गए चेक-अप में पता चला कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी को प्लूराइटिस हो गया है। इससे पहले भी साल 1937 और 1944 वो इस बीमारी का शिकार हो चुके थे। जिसके बाद डॉ. अली मोहम्मद ने उन्हें स्ट्रेप्टोमाइसिन का इंजेक्शन दे दिया। कहा जा रहा है कि मुखर्जी ने डॉ. अली को बताया था कि स्ट्रेप्टोमाइसिन उन्हें शूट सूट नहीं करती है। ऐसा उनके फैमिली डॉ. का मानना है। लेकिन इसके बावजूद अली ने उन्हें इंजेक्शन दे दिया।22 जून को क्रिटिकल हुई कंडीशन: तारीख थी 22 जून 1953, श्यामा प्रसाद मुखर्जी को सांस लेने में तकलीफ होने लगी। उन्हें कॉटेज से हॉस्पिटल में शिफ्ट किया गया जहां पता चला कि मुखर्जी को हार्ट अटैक आया है। उसके बाद 23 जून की तड़के राज्य सरकार ने उनके निधन की घोषणा कर दी। इलाज के दौरान मुखर्जी की नर्स रही राजदुलारी टिकू ने कहा कि सांस लेने में तकलीफ से जूझ रहे मुखर्जी ने डॉ. जगन्नाथ ज़ुत्शी को बुलाया था। जुत्शी ने नाजुक हालत देखते हुए डॉ. अली को तलब किया था।
मौत से देश में मचा हंगामा: डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की हिरासत में हुई मौत से पूरे देश में हंगामा मच गया। राजनीति और समाज से जुड़े कई सियासत दानों ने मौत की निष्पक्ष जांच की मांग की। श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मां जोगमाया देवी ने भी पं. नेहरू को पत्र लिखकर जांच का आग्रह किया। लेकिन नेहरू ने उन्हें जवाब में लिखा कि मुखर्जी की मौत प्राकृतिक थी, ऐसा कोई कारण नहीं है कि जांच करवाई जाए।
सवाल, जो आज भी सवाल हैं: श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत के बाद कई तरह के सवाल उठे। पहला सवाल यह था कि उन्हें श्रीनगर जेल से ट्रांसफर कर कॉटेज में क्यों कैद रखा गया। दूसरा यह कि मुखर्जी करीब एक महीने तक बीमार रहे उन्हें पहले अस्पताल क्यों नहीं ले जाया गया? तीसरा और सबसे बड़ा सवाल कि डॉ. अली मोहम्मद ने उन्हें आपत्ति के बाद भी स्ट्रेप्टोमाइसिन क्यों दी? ये सवाल शायद सवाल ही रहेंगे। क्योंकि मुख़र्जी की मौत को एक लंबा वक्त गुज़र चुका है। रिपोर्ट अशोक झा