राजनीति में युवाओं की भागेदारी ही कर पाएगा राष्ट्रीय पुनर्निर्माण

– लोकसभा चुनाव को लेकर विधार्थी परिषद पहुंच उतरा मैदान में
सिलीगुड़ी: राष्ट्रीय पुनर्निर्माण है। छात्रशक्ति ही राष्ट्रशक्ति होती है। राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के लिए छात्रों में राष्ट्रवादी चिंतन को जगाना ही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का मूल उद्देश्य है। देश की युवा छात्र शक्ति का यह प्रतिनिधि संगठन है। इसकी मूल अवधारणा राष्ट्रीय पुनर्निर्माण है। स्लोगन – ज्ञान, शील, एकता – परिषद् की विशेष0ता राष्ट्रवादी छात्रों के इस संगठन की हर वर्ष देशव्यापी सदस्यता होती है। देश के सभी विश्वविद्यालयों और अधिकांश कॉलेजों में परिषद की इकाईयां हैं। अधिकांश छात्र संघों पर परिषद का ही अधिकार है। संगठन का मानना है कि आज का छात्र कल का नागरिक है। हर वर्ष होने वाले प्रांतीय और राष्ट्रीय अधिवेशनों के द्वारा नई कार्यसमिति गठित होती हैं और वर्ष भर के कार्यक्रमों की घोषणा होती है। यह एकमात्र संगठन है जो शैक्षणिक परिवार की अवधारणा में विश्वास रखता है और इसी कारण परिषद के अध्यक्ष पद पर प्रोफेसर हीं चुने जाते हैं।
यही कारण है कि सभी प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा युवाओं को रिझाने के हरसंभव प्रयास किये जा रहे हैं। दरअसल युवा मतदाताओं की मुखरता ही चुनाव परिणामों में परिलक्षित होती है। साफ है कि लोकसभा के पिछले दो चुनावों में युवा मतदाताओं का रुझान नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के प्रति रहा है। हालांकि मजे की बात यह है कि जिन प्रदेशों में क्षेत्रीय दलों की सरकार रही हैं उन प्रदेशों के युवाओं ने क्षेत्रीय पार्टी को अधिक तरजीह दी है। इससे यह तो नहीं कहा जा सकता कि युवा केवल भाजपा के साथ ही है अपितु युवाओं का रुझान नेशनल और स्टेट पॉलिटिक्स को लेकर अलग-अलग देखा जाता रहा है। हालांकि यह भी इंट्रेस्टिंग है कि कोई भी दल पिछले चुनावों में समग्र रूप से 50 फीसदी मत का आंकड़ा नही छू पाये हैं। दूसरी ओर आजादी के 75 साल बाद भी लाख जतन के बावजूद 33 प्रतिशत मतदाताओं को हम मतदान केन्द्र तक ले जाने में सफल नहीं हो पाए हैं। तस्वीर का एक पहलू यह भी है कि साक्षरता से भी इसका कोई सीधा संबंध इस मायने में नहीं है कि बिहार की साक्षरता दर बढ़ने के बावजूद मतदान प्रतिशत में दो फीसदी की गिरावट देखी गई है। यह तो एक मिसाल मात्र है। पर दो बातें साफ हो जाती हैं कि युवा और महिला मतदाताओं ने मतदान के प्रति पहल की है और इसमें भी कोई संदेह नहीं कि 2009 और 2014 के चुनावों में महिलाओं और युवाओं के अधिक वोट भाजपा को मिले हैं। जहां तक दुनिया के देशों के लोकतंत्र की बात है इंडोनेशिया में जितने कुल मतदाता हैं उससे ज्यादा मतदाता तो हमारे यहां 18 से 29 वर्ष की आयु के हैं। फिर 26 से 35 वय के मतदाता भी युवाओं की श्रेणी में ही आते हैं। दुनिया के चार सबसे बड़े मतदाता वाले देशों के कुल मतदाताओं से भी अधिक मतदाता हमारे देश में है। इस साल 18 वीं लोकसभा के लिए 98.6 करोड़ मतदाता मतदान में हिस्सा लेंगे जबकि यूरोपीय यूनियन में 40 करोड़, इंडोनेशिया में 20.4 करोड़, अमेरिका में 16 करोड़ और पाकिस्तान में 12.8 करोड़ मतदाता हैं। खैर यह तो अलग बात हुई पर लोकसभा के पिछले दो चुनावों के परिणामों से साफ हो गया है कि युवाओं ने जिस पर भरोसा जताया उसी की सरकार बनी। मजे की बात यह है कि युवाओं और महिलाओं का यह भरोसा ही नई सरकार खासतौर से भारतीय जनता पार्टी की सरकार को मजबूती प्रदान करने में अधिक रहा। चुनाव आयोग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 18 वीं लोकसभा के चुनाव में 543 सीटों के लिए 96.8 करोड़ मतदाता अपने मताधिकार का उपयोग करेंगे। इनमें एक करोड़ 82 लाख नए मतदाता हैं तो 47.15 महिला मतदाता व 49.7 करोड़ पुरुष मतदाता हैं। 17 वीं लोकसभा के चुनावों में जहां करीब 1.5 करोड़ नए मतदाता या पहली बार मतदान करने वाले मतदाता थे वहीं 18 वीं लोकसभा के चुनावों में 1.82 करोड़ नए मतदाता पहलीबार मताधिकार का उपयोग करेंगे।

दूसरी और गत लोकसभा चुनाव में युवा मतदाताओं को दो हिस्सों 18 से 25 वर्ष व 26 से 35 वर्ष के दो वर्गों में युवाओं को बांटते हुए मतदान प्रतिशत का विश्लेषण किया गया और मजे की बात यह कि युवाओं के दोनों ही वर्ग के युवाओं ने भाजपा को कांग्रेस की तुलना में बड़े अंतर से पसंद किया। 2019 के लोकसभा चुनाव में 18 से 25 आयु वर्ग के 44 प्रतिशत युवाओं ने भरतीय जनता पार्टी को वोट दिए वहीं 26 से 35 आयु वर्ग के 46 फीसदी युवा मतदाताओं ने भाजपा पर विश्वास जताया। मजे की बात यह है कि दोनों ही आयुवर्ग के मतदाताओं में 26-26 प्रतिशत मतदाताओं ने कांग्रेस पर भरोसा जताया तो 28 से 30 प्रतिशत तक युवाओं का भरोसा अन्य दलों पर रहा। पर कांग्रेस और भाजपा के बीच युवाओं के भरोसे का अंतर कोई छोटा मोटा नहीं बड़ा अंतर रहा है और यही कारण रहा कि भाजपा या यों कहें कि नरेन्द्र मोदी अधिक मजबूत होकर उभरे। 2019 के मत रुझानों से यहां यह बात भी साफ हो जानी चाहिए, चाहे युवा हो या महिला या नए मतदाता तीनों ही श्रेणी में कांग्रेस की तुलना में बीजेपी को अधिक समर्थन मिला है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि 2024 का चुनाव जिसका बिगुल बज चुका है और पहले चरण के लिए नामांकन का काम पूरा हो गया है और दूसरे चरण के लिए नामांकन प्रगति पर है, ऐसे में कोई भी राजनीतिक दल हो उसे युवाओं-महिलाओं को केन्द्रित चुनाव कैंपेन चलाना ही होगा। चुनाव घोषणा पत्रों में इस तरह के एजेंडे रखने होंगे जिससे युवा मतदाता प्रभावित हो सके। भाजपा जहां 370 और 400 पार की बात कर रही है, वहीं कांग्रेस और कहने को तो इंडी, क्योंकि अभी इनमें आपसी तालमेल पूरी तरह से नहीं बैठा है, वह भाजपा को सत्ता से बाहर करने के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रहे हैं। कम्युनिस्ट पार्टियां पिछले कुछ सालों से लगातार अपना जनाधार खोते हुए हाशिये पर जा रही है ऐसे में भाजपा या नरेन्द्र मोदी को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाना किसी दिवास्वप्न से अधिक नहीं लग रहा है। एक बात और अब राजनीतिक दलों को यह समझ लेना चाहिए कि आज का युवा काफी परिपक्व हो गया है और वह रेवड़ियों के झांसे में नहीं आने वाला है ऐसे में कोई ठोस रणनीति ही युवाओं को प्रभावित कर सकेगी। इसलिए साफ समझ लेना चाहिए कि युवाओं के वोट आगामी लोकसभा की तस्वीर बनाएंगे और इसके लिए राजनीतिक दलों को युवाओं को अपनी और आकर्षित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़नी होगी। राजनीतिक दलों को घिसे पिटे राजनीतिक एजेंडा और बिन्दुओं से हटकर यदि सरकार बनानी है तो ठोस रणनीति बनानी होगी। चुनावी बॉण्ड, बेरोजगारी, ईडी-आईटी का उपयोग, प्यार और नफरत और न्याय और अन्याय की बातें अधिक सिरे चढ़ने वाली नहीं लगती है। राजनीतिक दलों के थिंक टैंकों को इस ओर खासतौर से युवाओं को अपने पक्ष में करने के उपायों को सामने लाना ही होगा। इसमें कोई दोराय नहीं कि 18 वीं लोकसभा की चाबी पूरी तरह से युवाओं के हाथ में हैं और युवाओं को अपनी और करके ही सत्ता की सीढ़ी पार हो सकती हैं। रिपोर्ट अशोक झा

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