वेद मंत्रों द्वारा जलाधिवास, फलाधिवास और फूलाधिवास में जुटे श्रद्धालु

11 को मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा और खुलेगा मंदिर का द्वार

अशोक झा, सिलीगुड़ी: सेवक रोड स्थित नॉर्थ सिटी सोसाइटी में नव निर्मित मंदिर में भगवान शिव शंकर, राधा कृष्ण, मां दुर्गा और बाबा बजरंग बली की प्रतिमा का प्राण प्रतिष्ठा की जा रही है। प्राण प्रतिष्ठा में मुख्य यजमान सीताराम डालमिया सपत्नी मौजूद है। उनके साथ सोसाइटी के अन्य यजमान भी सहयोगी बने हुए है। प्रतिष्ठा समारोह में दूसरे दिन मंत्रों द्वारा जलाधिवास, फलाधिवास और फूलाधिवास प्रक्रिया का आज दूसरा दिन है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां मौजूद है। बताया गया कि नई मूर्ति स्थापना से पूर्व प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। बिना प्राण प्रतिष्ठा के मूर्ति केवल पत्थर के टुकड़े से अधिक नहीं होती। प्राण प्रतिष्ठा कर मूर्ति में प्राण डाले जाते हैं अर्थात उसे जीवित किया जाता है, जिसके दर्शन मात्र से फल की प्राप्ति होती है। वह कहते हैं कि जब कारीगर द्वारा मूर्ति बनाई जाती है, तो वह सामान्य मूर्ति के सिवा कुछ नहीं होती है, लेकिन जब उसे मंदिर में स्थापित किया जाता है और मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है, तब वह पूजनीय होती है।जलाधिवास, फलाधिवास और फूलाधिवास जरूरी है। उन्होंने कहा कि इसके लिए शुभ मुहूर्त से तीन दिन पहले से अनुष्ठान शुरू हो जाते हैं। सबसे पहले मूर्ति के नीचे वास्तु रखा जाता है। इसके उपरांत तीन दिन तक मंत्रों द्वारा जलाधिवास, फलाधिवास और फूलाधिवास कराया जाता है। जिसमें जल, फल, फूल से मूर्ति को वास करवाया जाता है। तब जाकर मूर्ति में मंत्रों द्वारा प्राण डाले जाते हैं और फिर वह सजीव की तरह मनोकामना पूरी करने वाली हो जाती है। इस दौरान प्रतिमा को विभिन्न पवित्र नदियों के जल से स्नान कराया जाता है। नवीन वस्त्र धारण कर बीज मंत्रों के उच्चारण से मूर्ति को उसके स्थान पर स्थापित किया जाता है और प्रतिमा की आंखों पर बंधी पट्टी खोली जाती है। अस्य श्री प्राण प्रतिष्ठा मंत्रस्य ब्रम्हा विष्णु महेश्वरा: ऋषयः। ऋग्यजु: सामानि छंदांसि। क्रियामय वपु: प्राण शक्ति देवता। ऐं बीजम्‌। ह्रीँ शक्ति:। क्रीँ कीलम्‌। प्राण प्रतिष्ठापने विनियोगः।
ऋष्यादि न्यास: ॐ ब्रम्हा विष्णु महेश्वरा: ऋषिभ्यो नमः शिरसि।
ऋग्यजुः सामच्छन्देभ्यो नमः मुखे।
प्राणशक्त्यै नमः ह्रदये।ऐँ बीजाय नमः लिँगे।
ह्रीँ शक्तये नमः पादयोः।क्रीँ कीलकाय नमः सर्वाँगेषु।
कर न्यास: ॐ अं कं खं गं घं ङं आं पृथिव्यप्तेजो वाय्वाकाशात्मने अंगुष्ठाभ्यां नमः।ॐ इं चं छं जं झं ञं ईँ शब्दस्पर्श रुप-रस-गंधात्मने तर्जनीभ्यां नमः।ॐ उं टं ठं डं ढं णं ऊं त्वक्‌ चक्षुः श्रोत्र जिह्वाघ्राणात्मने मध्यमाभ्यां नमः।ॐ एं तं थं दं धं नं ऐँ वाक्‌ पाणि पाद पायूपस्थात्मने अनामिकाभ्यां नमः।
ॐ ओँ पं फं बं भं मं औँ वचनादान गति विसर्गा नंदात्मने कनिष्ठिकाभ्यां नमः।ॐ अं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं अः मनो बुद्धयहंकार चित्त विज्ञानात्मने करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः।
हृदयादि न्यास।ॐ अं कं खं गं घं ङं आं पृथिव्यप्तेजो वाय्वाकाशात्मने हृदयाय नमः।ॐ इं चं छं जं झं ञं ईँ शब्दस्पर्श रुप-रस-गंधात्मने शिरसे स्वाहा।ॐ उं टं ठं डं ढं णं ऊं त्वक्‌ चक्षुः श्रोत्र जिह्वाघ्राणात्मने शिखायै वषट्‌।ॐ एं तं थं दं धं नं ऐँ वाक्‌ पाणि पाद पायूपस्थात्मने कवचाय हुं।ॐ ओँ पं फं बं भं मं औँ वचनादान गति विसर्गा नंदात्मने नेत्रत्रयाय वौषट्‌।
ॐ अं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं अः मनो बुद्धयहंकार चित्त विज्ञानात्मने अस्त्राय फट्‌।ॐ ऐँ इति नाभिमारभ्य पादान्तं स्पृशेत्‌।ॐ ह्रीँ इति हृदयमारभ्य नाभ्यन्तम्‌ स्पृशेत। ॐ क्रीँ इति मस्तकमारभ्य हृदयांतं च स्पृशेत।ध्यान: रक्ताम्भोधिस्थ पोतोल्लसदरुण सरोजाविरुद्धा कराब्जैः,
पाशं कोदण्ड भिक्षुद्‌भवमथ गुण मप्यं अत्य कुशं पँच बाणान्‌।
बिभ्राणांसृक्कपालं त्रिनयन लसिता पीन वक्षोरुहाढ्‌याः,
देवी बालार्क वर्णा भवतु सुखकरी प्राणशक्तिः परा नः॥
राणशक्तिः परा नः॥प्राण प्रतिष्ठा मंत्र : ॐ आं ह्रीँ क्रौँ यं रं लं वं शं षं सं हं सः सोऽहम्‌ प्राणा इह प्राणाः।
ॐ आं ह्रीँ क्रौँ यं रं लं वं शं षं सं हं सः जीव इह जीव स्थितः।
ॐ आं ह्रीँ क्रौँ यं रं लं वं शं षं सं हं सः सर्वेंद्रियाणि इह सर्वेंद्रियाणि।वाङ्‌मनस्त्वक्‌ चक्षुः श्रोत्र जिह्वा घ्राण वाक्प्राण पाद्‌पायूपस्थानि इहैवागत्य सुखं चिरं तिष्ठंतु स्वाहा।
ॐ (15 बार) मम देहस्य पंचदश संस्काराः सम्पद्यन्ताम्‌ इत्युक्त्वा।
विधि- जिस विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा करना हो पहले उसका षोडषोपचार पूजन करें फिर हाथ मे जल लेकर संकल्प करें फिर उपरोक्त विधि से प्राण प्रतिष्ठित करें फिर षोडषोपचार पूजन करें इस प्रकार प्राण प्रतिष्ठा सम्पन्न होगा।

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