सावन का पहला सोमवार, कड़ी सुरक्षा में हर गौरी मंदिर में लगेगा भक्तों का रेला

आज सावन का पहला सोमवार, कड़ी सुरक्षा में हर गौरी मंदिर में लगेगा भक्तों का रेला
जलाभिषेक के साथ खीर पुड़ी का प्रसाद कर रहे ग्रहण
अशोक झा, सिलीगुड़ी: इस वर्ष का सावन बेहद खास माना जा रहा है। महादेव का प्रिय महीना सावन आज 22 जुलाई से शुरू हो रहा है। सिलीगुड़ी से मात्र 58 किलोमीटर दूर बिहार के ठाकुरगंज स्थित है गौरी मंदिर में सावन के पहले सोमवारी को भक्तो का मेला और रेला चल रहा है। यहां सोमवार को बड़ी संख्या में शिव भक्त कांवर लेकर जलाभिषेक करने आ रहे है। पुलिस की ओर से मंदिर के अंदर से बाहर तक सुरक्षा के बंदोबस्त किया जा रहा है। जलाभिषेक के बाद मंदिर प्रांगण में खीर पुड़ी का प्रसाद वितरण किया जा रहा है। मंदिर के अंदर और बाहर सुरक्षा के इंतजाम किए गए है। पंडित अभय झा के अनुसार ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस साल सावन में ग्रह-नक्षत्रों से कई दुर्लभ संयोग बनने वाले हैं। इसलिए इस बार का सावन अत्यंत खास है। पंचांग के अनुसार, इस बार सावन में चार शुभ संयोग बनने वाले हैं। वैदिक पंचांग के अनुसार, तकरीबन 72 साल बाद इस बार के सावन मास में अद्भुत संयोग देखने को मिलेगा। इस बार सावन का महीना सोमवार से शुरू होने वाला है। इस बार सावन में 5 सोमवार का खास संयोग: इस बार सावन की समाप्ति भी सोमवार को ही होगा। सावन के महीने में 5 सोमवार का खास संयोग बनने जा रहा है। ऐसे में पूरे 29 दिनों तक भक्तों को शिवजी कृपा पाने का खास अवसर प्राप्त होगा। इस बार सोमवार का शुभारंभ 22 जुलाई को सुबह 5 बजकर 37 मिनट पर सर्वार्थ सिद्धि योग में होगा। इसके अलावा इस दिन प्रति और आयुष्मान योग का भी खास संयोग बनेगा। सावन में कैसे करें शिवजी की पूजा: सावन मास के पहले दिन सोमवार का भी खास संयोग बन रहा है। ऐसे में इस दिन सुबह स्नान करने के बाद साफ कपड़े पहनकर व्रत का संकल्प लें। व्रत का संकल्प हाथ में पवित्र जल, फूल, अक्षत लेकर करें। इसके बाद पंचामृत और गंगाजल से भगवान शिव का अभिषेक करें। साथ ही भगवान शिव की विधिवत पूजा करें।पूजन के दौरान भगवान शिव को फूल, बेलपत्र, गंगाजल, चंदन, अक्षत, भांग के पत्ते, धतूरा और धूप-दीप इत्यादि अर्पित करें। शिवजी के समक्ष घी का दीपक जलाएं. चूंकि, सावन का आरंभ सोमवार से हो रहा है इसलिए उस दिन सोमवार व्रत-कथा का पाठ करें या उसे सुनें। पूजन के दौरान ओम् नमः शिवाय मंत्र का जाप करें. पूजन के अंत में भगवान शिव की आरती करें। शिव जी को क्या ना चढ़ाएं: सावन के दौरान या कभी भी भगवान शिव को केतकी और केवड़े के फूल अर्पित नहीं किए जाते हैं।ऐसे में इस बात का ध्यान रखें।सावन में शिवलिंग पर लाल रंग के फूल को अर्पित करना निषेध है। शिवजी की पूजा में उन्हें तुलसी के पत्ते अर्पित नहीं किए जाते हैं. इसलिए सावन के दौरान भी इस बात का खास ख्याल रखें। शिवलिंग पर हल्दी चढ़ाने की मनाही है. शिवलिंग पर हल्दी चढ़ाने की परंपरा नहीं है. इसलिए पूजन सामग्री के तौर पर भी इसको शामिल ना करें।शिवलिंग पर क्या चढ़ाना है उचित: सावन के दौरान शिवलिंग पर जल, गंगाजल, बेलपत्र, कच्चा दूध, पंचामृत, अक्षत, चंदन, कपूर, इत्यादि चढ़ाए जा सकते हैं. इन चीजों को भगवान शिव की पूजा के लिए उचित माना गया है। ऐसे में हम आपको बिहार के देवघर के बारे में बताते है। इस मंदिर का इतिहास महाभारत काल और कवि गुरु रविन्द्र नाथ टैगोर के परिवार से जुड़ा है। कहा तो यह भी जाता है कि ठाकुरगंज काशी के तर्ज पर बाबा भोले के त्रिशूल पर विराजमान है। सर्प रूपी समुद्री तल से 67 फिट से अधिक की ऊंचाई पर यह बसा हुआ है। इसे नाग डीह भी कहा जाता है।इस मंदिर में आने वाले किभी भी भक्त की झोली खाली नहीं जाती है। सावन में जहां देवघर में बाबा बैद्यनाथ मंदिर में कांवर लेकर जाने वाले भक्तों की तैयारी अभी से शुरू हो गई है वही बिहार का बाबाधाम कहे जाने वाले ठाकुरगंज हर गौरी मंदिर में भी शिव भक्तों के आने को लेकर तैयारी की जा रही है। यहां की गंगा कहे जाने वाले महानंदा नदी से या फिर नेपाल के भक्त मेंची नदी से जलभर कर कांवर लाते है। हर गौरी मंदिर ठाकुरगंज नगर पंचायत के वार्ड नंबर 12 के ढिबड़ीपाड़ा में स्थापित है। सावन के प्रत्येक सोमवार को प्रसिद्ध श्री हरगौरी मंदिर को अनोखे अंदाज में सजाया जाएगा। इस मंदिर का इतिहास है अनोखा: सिलीगुड़ी से मात्र 60 किलोमीटर दूर किशनगंज जिले के ठाकुरगंज में हरगौरी मंदिर का इतिहास बेहद रोचक है, जहां आस पास पांडवों के कई स्थल आज भी मौजूद हैं। यहीं 123 वर्ष पूर्व रविन्द्रनाथ ठाकुर के वंशजों ने हरगौरी मंदिर की स्थापना की थी। यह बिहार के अलावा बंगाल, असम, नेपाल और भूटान के श्रद्धालुओं के आस्था का केन्द्र है। सालाें भर इस मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ होती है पर सावन में इसकी छटा कुछ अलग ही निराली होती है। मंदिर के पुरोहित जयंत गांगुली के अनुसार ठाकुरगंज का पुराना नाम कनकपुर था, जिसे रविंद्र नाथ टैगोर के वंशज ज्योनिन्द्र मोहन ठाकुर ने खरीदी थी। उसके बाद इसका नाम ठाकुरगंज रखा गया। कहते है कि इतिहास है कि 1897 में उनके परिवार द्वारा पूर्वोत्तर कोण में पाण्डव काल के भग्नावशेष की खुदाई क्रम में कई शिवलिंग मिले। इसमें एक जाे एक फुट काले पत्थर का था। शिवलिंग पर आधे हिस्से में भगवान शिव और आधे हिस्से में मां पार्वती अंकित है। इन मूर्तियों को कोलकोता लेकर टैगोर पैलेश में रखा गया। इसी बीच परिवार को स्वप्न आया कि इस शिवलिंग को जहां से लाया गया है वहां स्थापित करों। हरगौरी मंदिर और खुदाई में प्राप्त हरगौरी शिवलिंग: स्वप्न में निर्देश के बाद 1957 में हुई थी स्थापना: ठाकुर परिवार इसे कलकत्ता में स्थापित करना चाहते थे, लेकिन स्वप्न में निर्देश मिलने के बाद बांग्ला संवत 21 माघ 1957 को एक टीन के घर में ठाकुर परिवार द्वारा इसकी स्थापना यहां की गई। चार फरवरी 1901 से हरगौरी मंदिर में पूजा -अर्चना विधिवत रूप से शुरु हुई। इस बात की पुष्टि स्वर्गीय पंडित यशोधर झा द्वारा लिखित हर गौरी मंदिर नमक पुस्तक में भी वर्णित है। ठाकुर परिवार द्वारा नियुक्त पुरोहित भोलानाथ गांगुली के वंशज आज भी मंदिर में पूजा-अर्चना कराते आ रहे हैं, जिसे हरगौरी धाम के नाम से जाना जाता है। स्वर्गीय गणपत रामजी अग्रवाल, सुधीर लाहिड़ी, भूतपूर्व आपूर्ति निरीक्षक रूदानंद झा के प्रयास से इस मंदिर के भव्य रूप का सपना साकार हुआ। 2001 चार फरवरी को मंदिर के सौ वर्ष पूर्ण होने पर स्वर्गीय सुशील अग्रवाल ने स्वर्गीय निरंजन मोर के देखरेख में
मंदिर का जीर्णोद्धार और शताब्दी समारोह कराया।
कोई खाली हाथ नहीं गया इस मंदिर से: 123 वर्ष पुरानी हरगौरी मंदिर से आजतक कोई भक्त खाली हाथ नहीं गया। ठाकुरगंज नगर में स्थित हरगौरी में भक्तों की इतनी आस्था है कि नेपाल, बंगाल संग अन्य प्रदेशों के लोग सावन माह में हरगौरी मंदिर में आते हैं। सावन माह के प्रत्येक सोमवार को हरगौरी मंदिर का विशेष श्रृंगार किया जाता है। इसके अलावा भक्तों के जलाभिषेक के लिए विशेष व्यवस्था की जाती है। सावन के प्रत्येक सोमवार को बाबा और माता पार्वती की विशेष पूजा-अर्चना के साथ रात्रि भर विशेष भजन कीर्तन का आयोजन किया जाता है।

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