मुख्यमंत्री के लिए विधायकों में नहीं बन पाई सहमति, मणिपुर में लगा राष्ट्रपति शासन

संवैधानिक संकट के कारण राष्ट्रपति शासन लगाया गया

बांग्लादेश बोर्डर से अशोक झा: मणिपुर में जारी राजनीतिक उथल-पुथल के बीच राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया है। भाजपा सांसद संबित पात्रा ने इस पर बयान देते हुए कहा कि विधानसभा भंग नहीं हुई है, बल्कि यह “सस्पेंडेड एनिमेशन” में है।पूर्वोत्तर भारत के जातीय हिंसा से ग्रस्त मणिपुर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया है। गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया है कि राष्ट्रपति ने राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर और राज्य की परिस्थितियों की जानकारी के आधार पर संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाया है। मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच हिंसा के चलते कानून-व्यवस्था की स्थिति गंभीर बनी हुई है। राज्य के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने चार दिन पहले मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।मणिपुर के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के तीन दिन बाद भी एन बीरेन सिंह के उत्तराधिकारी पर कोई सहमति नहीं बन पाई। संविधान के अनुच्छेद 174(1) के अनुसार राज्य विधानसभाओं को अपनी अंतिम बैठक के छह महीने के भीतर बुलाना अनिवार्य है। मणिपुर में पिछला विधानसभा सत्र 12 अगस्त, 2024 को आयोजित किया गया था। इस वजह से बुधवार को इसकी अगली बैठक की समय सीमा तय थी। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। राष्ट्रपति शासन की यह घोषणा तब हुई है जब लगातार ऐसी ख़बरें आ रही थीं कि मणिपुर में सीएम पद के लिए बीजेपी में इसलिए सहमति नहीं बन पा रही है क्योंकि पार्टी में अंदर ही अंदर असंतोष है।माना जा रहा है कि पार्टी में इसी असंतोष की वजह से मुख्यमंत्री बीरेन सिंह को रविवार शाम को राज्यपाल को अपना इस्तीफ़ा सौंपना पड़ा था। सहयोगी कॉनराड संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी द्वारा समर्थन वापस लेने के बावजूद बीजेपी के पास पर्याप्त संख्या है, लेकिन ऐसी संभावना थी कि राज्य में नेतृत्व में बदलाव की मांग करने वाले विधायक फ्लोर टेस्ट की स्थिति में पार्टी व्हिप की अवहेलना कर सकते थे। रिपोर्टं हैं कि पार्टी में अपने ख़िलाफ़ बने माहौल को देखते हुए संभावित संकट को टालने के लिए ही बीरेन सिंह ने केंद्रीय नेतृत्व से विचार-विमर्श करने के बाद पद छोड़ दिया। राष्ट्रपति शासन शुरू में चार से पांच महीने के लिए लगाया जा सकता है और सीएम के लिए सर्वसम्मति से उम्मीदवार मिलने तक इसे बढ़ाया जा सकता है। राष्ट्रपति शासन को हर बार छह महीने तक बढ़ाया जा सकता है।कुछ दिन पहले ही बीजेपी के एक विधायक ने कहा था कि राष्ट्रपति शासन को विस्तार देने से बीजेपी की छवि ख़राब होगी। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार विधायक ने कहा था, ‘विधानसभा में हमारे 60 में से 37 विधायक हैं। हमारे सहयोगी एनपीएफ़ और एनपीपी के पास कुल 11 विधायक हैं। हमारे पास पूर्ण बहुमत है। सरकार को राज्य भाजपा को चलाना है। इस लिहाज से न तो कोई राजनीतिक संकट है और न ही कानून-व्यवस्था की स्थिति पिछले कई महीनों से बदतर है।’ अगले मुख्यमंत्री को लेकर अभी तक कोई फैसला नहीं हो सका है। भाजपा के पूर्वोत्तर प्रभारी संबित पात्रा लगातार बैठकें कर रहे हैं, लेकिन किसी चेहरे को लेकर सहमति नहीं बन पा रही है। पात्रा बीते 2 दिनों से भाजपा विधायकों के अलावा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की सहयोगी पार्टियों संग बैठकें कर रहे हैं। इस बीच राज्य में राष्ट्रपति शासन लगने का खतरा भी मंडरा रहा है। मुख्यमंत्री के लिए इन नामों पर चर्चा: रिपोर्ट्स के मुताबिक, अगले मुख्यमंत्री के लिए 5 नामों पर चर्चा हो रही हैं। इनमें सत्यव्रत सिंह, राधेश्याम सिंह, मंत्री वाई खेमचंद सिंह, विश्वजीत सिंह और बसंत कुमार सिंह शामिल हैं। प्रभारी पात्रा ने इन सभी संभावित चेहरों से अलग-अलग मुलाकात भी की है। मणिपुर के भाजपा विधायक सपाम केबा और के इबोम्चा ने कहा कि राज्य के नए मुख्यमंत्री के बारे में फैसला पार्टी का शीर्ष नेतृत्व ही करेगा। राष्ट्रपति शासन लगने की पूरी-पूरी संभावना: संविधान के अनुच्छेद 174 (1) के मुताबिक, राज्यों की विधानसभा की 2 बैठकों के बीच में 6 महीने से ज्यादा का अंतर नहीं होना चाहिए।मणिपुर विधानसभा के संदर्भ में ये संवैधानिक समय सीमा आज खत्म हो रही है। विधानसभा सत्र 10 फरवरी से शुरू होने वाला था, लेकिन नहीं हो सका। अभी तक किसी ने सरकार बनाने का दावा भी पेश नहीं किया है। ऐसे में राष्ट्रपति शासन की संभावना बढ़ गई है। कांग्रेस ने उठाए सवाल?कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा, “आज मणिपुर विधानसभा के संवैधानिक रूप से अनिवार्य सत्र की आखिरी बैठक का आखिरी दिन है। मणिपुर के राज्यपाल संवैधानिक रूप से अनिवार्य सत्र के लिए विधानसभा को न बुलाकर अनुच्छेद 174(1) का उल्लंघन क्यों कर रहे हैं? सत्र को इसलिए रद्द कर दिया गया, क्योंकि भाजपा उस मुख्यमंत्री का उत्तराधिकारी नियुक्त नहीं कर सकी, जिसके खिलाफ कांग्रेस अविश्वास प्रस्ताव लाने वाली थी और जिसे इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा।” क्यों नहीं हो पा रहा है मुख्यमंत्री का चयन?दरअसल, मणिपुर में भाजपा विधायकों के बीच ही मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर असमंजस की स्थिति है। एन बीरेन सिंह के इस्तीफा देने से पहले भी पार्टी के विधायक उनके खिलाफ आवाज उठा रहे थे।इसके अलावा जातिगत समीकरण भी अगले मुख्यमंत्री के चयन में बाधा बन रहे हैं।11 फरवरी को भाजपा प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल अजय कुमार भल्ला से मुलाकात जरूर की थी, लेकिन बताया जा रहा है कि इसमें सरकार गठन को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई। 9 फरवरी को बीरेन सिंह ने दिया था इस्तीफा9 फरवरी को बीरेन सिंह ने इस्तीफा दे दिया था। उसी दिन वे गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिले थे। मणिपुर में कुकी और मैतेई समुदाय के बीच जारी हिंसा को रोकने में नाकामी की वजह से बीरेन विपक्ष के निशाने पर थे। अपने इस्तीफे में बीरेन ने केंद्र सरकार से मणिपुर में क्षेत्रीय अखंडता बनाए रखने, घुसपैठ पर नकेल कसने, निर्वासन नीति तैयार करने और ड्रग्स के खिलाफ कदम उठाने की अपील की थी।

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