बांग्लादेश अशांति के पीछे ग्रेटर बांग्लादेश को आकार देना तो नही?

इस्लामिक बांग्लास्तान' में बांग्लादेश, बंगाल, बिहार-झारखंड के कुछ हिस्से और नेपाल-म्यांमार के कुछ क्षेत्रों को मिलाने की साजिश

बांग्लादेश अशांति के पीछे ग्रेटर बांग्लादेश को आकार देना तो नही?
– इस्लामिक बांग्लास्तान’ में बांग्लादेश, बंगाल, बिहार-झारखंड के कुछ हिस्से और नेपाल-म्यांमार के कुछ क्षेत्रों को मिलाने की साजिश
– मुस्लिम बढ़ती आबादी को कहा जा रहा है मुस्लिम पट्टी
बांग्लादेश बॉर्डर से अशोक झा: बांग्लादेश के कट्टरपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामी को लेकर एक बड़ा दावा किया जा रहा है। बताया जा रहा है कि यह संगठन अब अखंड बांग्लादेश बनाने की साजिश कर रहा है। 9 अगस्त को जमात-ए-इस्लामी के इस प्लान के बारे में एक विस्तृत रिपोर्ट सुरक्षा एजेंसियों के हाथ लगी है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि ‘इस्लामिक बांग्लास्तान’ में बांग्लादेश, पश्चिम बंगाल, बिहार-झारखंड के कुछ हिस्से और नेपाल-म्यांमार के कुछ क्षेत्रों को मिलाने की साजिश रची जा रही है। दावा किया जा रहा है कि जमात-ए-इस्लामी गजवा-ए-हिंद (भारत के खिलाफ जंग) के मकसद को पूरा करने में जुटा है, लिहाज़ा उसकी नज़र भारत के उन राज्यों पर है जो बांग्लादेश बॉर्डर के करीब हैं। तो इसलिए हाइजैक किया था आंदोलन?: दरअसल बांग्लादेश हिंसा और शेख हसीना सरकार के तख्तापलट में भी इस संगठन का नाम सामने आया था. बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी पर हिंदू विरोधी हिंसा के आरोप लगते रहे हैं. 1971 में जब बांग्लादेश अलग देश बना तो जमात-ए-इस्लामी ने इसका विरोध किया था. वह अब भी पाकिस्तान समर्थक माना जाता है यही वजह है कि उसे ISI का गुर्गा भी कहा जाता है। बांग्लादेश में शेख हसीना की सत्ता जाते ही अचानक हिंदुओं के खिलाफ हमले बढ़ गए, कहा जा रहा है कि इस्लामिक बांग्लास्तान बनाने के लिए ही जमात-ए-इस्लामी ने बांग्लादेश के आरक्षण विरोधी आंदोलन को पूरी तरह से हाईजैक कर लिया। सोशल मीडिया में ग्रेट बांग्लादेश के नाम पर कुछ ऐसे नक्शे वायरल होने लगे जिसमें बांग्लादेश-बंगाल समेत भारत के कुछ राज्यों के हिस्से भी शामिल हैं।
भाजपा नेता ने उठाया सवाल: वहीं बीजेपी नेता बाबूलाल मरांडी ने भी इस पत्रिका की रिपोर्ट को शेयर करते हुए साज़िश का शक जताया है। बांग्लादेशी भारत के पहचान पत्र बनाकर सस्ते दरों पर काम करने के लिए आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। इससे पूर्वोत्तर के लोगों के सामने रोटी का संकट उत्पन्न हो गया है और वे भारत के बड़े शहरों की और रुख करने को मजबूर हो रहे हैं। पूर्वोत्तर के मूल लोगों की आर्थिक स्थिति के बिगड़ने और सांस्कृतिक बिखराव से वह पूरा इलाका भारत से कट रहा है, यहीं नहीं इसका फायदा उठाकर अलगाववादी ताकतों ने अपना प्रभाव जमा लिया है। पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई ने बांग्लादेश के आतंकी संगठन हूजी से मिलकर असम, मिजोरम, मेघालय और मणिपुर को इस्लामिक कट्टरतावाद से जोड़ने में काफी सफलता हासिल कर ली है। भारत की सबसे लंबी सीमा रेखा बंगलादेश के साथ लगती है और इसका फायदा उठाकर पूर्वोत्तर के रास्ते भारत को आतंकवाद आयातीत किया जा रहा है। इसमें घुसपैठ, तस्करी, मदरसों का जाल और नकली मुद्रा का अवैध कारोबार शामिल है।
आईएसआई की बांग्लादेश के हूजी से सांठगांठ
लेफ्टिनेंट जनरल एस.के.सिन्हा ने राष्ट्रपति से यह भी कहा था कि, वृहत बांग्लादेश के सपने को साकार होने की रणनीति से समूचे पूर्वोत्तर के देश से अलग होने का खतरा पैदा हो गया है। यदि ऐसा हो गया तो यह रणनीतिक और आर्थिक तबाही मचाने वाला होगा। साल 4096 किलोमीटर लंबी भारत बांग्लादेश सीमा भौगोलिक और सांस्कृतिक जटिलताओं के कारण भारत के लिए सबसे बड़ा सुरक्षा संकट रही है। इसका फायदा पाकिस्तान की खुफियां एजेंसी आईएसआई खूब उठाती है और कई इलाकों में भारत के विरुद्ध विद्रोही संगठनों को आश्रय और प्रशिक्षित करके भारत पर हमले करने के लिए प्रेरित करती है। उनका ध्यान खासतौर पर ऐसे समूहों के लिए होता है जो भारत के सीमा प्रान्तों में विभाजन करना चाहते हैं। पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई ने बांग्लादेश के आतंकी संगठन हूजी से मिलकर असम,मिजोरम,मेघालय और मणिपुर को इस्लामिक कट्टरतावाद से जोड़ने में काफी सफलता हासिल कर ली है। भारत की सबसे लंबी सीमा रेखा बंगलादेश के साथ लगती है और इसका फायदा उठाकर पूर्वोत्तर के रास्ते भारत को आतंकवाद आयातित किया जा रहा है। इसमें घुसपैठ, तस्करी, मदरसों का जाल और नकली मुद्रा का अवैध कारोबार शामिल है।एनडीएफबी के अलगाववादी नेता और उपाध्यक्ष धीरेन बोरो और महासचिव गोविंदा बासु मैत्री को सुरक्षा एजेंसियों ने साल 2002-2003 में पकड़ा था। इन्होंने खुलासा किया था कि पूर्वोत्तर के कई आतंकी संगठनों को आईएसआई पाकिस्तान में ट्रेनिंग देती है और उन्हें ढाका से पाकिस्तान ले जाया जाता है। जाहिर है पाकिस्तान में आतंकियों को जिस उच्च स्तर की आतंकी ट्रेनिंग दी जाती है, उसका प्रभाव हम पूर्वोत्तर के कई आतंकी हमलों की भयावहता में देख चुके हैं। साल 2008 में असम में हुए सिलसिलेवार बम विस्फोट हों या साल 2014 में बोडो अलगाववादियों के द्वारा असम के सोनितपुर और कोकराझार ज़िले में 52 आदिवासियों को मार डालने की घटना, इसकी साजिश के तार आईएसआई से ही जुड़ते हैं। बांग्लादेश के हालात और कट्टरपंथियों का खतरनाक मंसूबा झारखंड के साथ-साथ पूरे देश के लिए भी बेहद संवेदनशील है। उन्होंने कहा कि झारखंड में जिस तरह से अचानक से बांग्लादेशी मुसलमानों की आबादी बढ़ी है, उससे ऐसा लगता है कि कांग्रेस और जेएमएम भी कट्टरपंथियों के मकसद को पूरा करने में लगे हुए हैं। इससे पहले बीजेपी नेता निशिकांत दुबे ने भी झारखंड के संथाल परगना मुसलमानों की बढ़ती आबादी का मुद्दा उठाया था। उन्होंने बंगाल और बिहार के कुछ हिस्सों को मिलाकर केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग की थी। जमात-ए-इस्लामी क्या है?: जमात-ए-इस्लामी की स्थापना अविभाजित भारत में हुई थी। साल 1941 में इस्लामी धर्मशास्त्री मौलाना अबुल अला मौजुदी ने इस संगठन की स्थापना की थी।भारत के विभाजन के बाद जमात-ए-इस्लामी भी कई धड़ों में बंट गया और तभी जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश, जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान जैसे अलग-अलग संगठन बने। बांग्लादेश की राजनीति में इस संगठन का खासा प्रभाव माना जाता है। यह कट्टर संगठन न तो 71 के मुक्ति संग्राम को मानता है और न ही शेख मुजीबुर्रहमान इसके लिए नायक हैं। बांग्लादेश हिंसा के दौरान इसी संगठन के लोगों पर मुजीबुर्रहमान की मूर्ति तोड़ने का आरोप लगा था। यह युवाओं को बरगलाकर उनका इस्तेमाल अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षाओं के लिए करना चाहता है। जमात-ए-इस्लामी के वाइस प्रेसिडेंट सैयद मोहम्मद ताहिर ने बातचीत में कहा कि बदलाव के बाद नए हालात में जमात-ए-इस्लामी देश में सकारात्मक भूमिका निभाएगा।हम देश में कानून-व्यवस्था सही करने की दिशा में काम करेंगे. हम लोगों को नए सिरे से खड़ा होने के लिए मोटिवेट करेंगे। हम अपने नए बांग्लादेश में देश के समाज के सभी लोगों के साथ सद्भाव बनाए रखने और भ्रष्टाचार मुक्त देश का गठन करने की कोशिश करेंगे। भारत में इस समय यह चर्चा चल रही है कि जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश में इस्लामिक स्टेट और ग्रेटर बांग्लादेश बनाने की रणनीति पर काम कर रहा है, इस सवाल पर अब्दुल्ला मोहम्मद ताहिर ने कहा कि यह पूरी तरह से प्रोपेगैंडा है। जमात ऐसा बिल्कुल नहीं सोचता है, उसने कभी भी ऐसा नहीं सोचा, साथ ही वह ऐसा करना पसंद नहीं करता।

देश मुस्लिम षड्यंत्रकारियों द्वारा उत्तर भारत में एक मुस्लिम पट्टी/गलियारा तैयार करने की योजना है, ताकि बांग्लादेश और पाकिस्तान को आपस में जोड़ा जा सके। यह गलियारा बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और हरियाणा होते हुए पाकिस्तान से जा मिलेगा। इस गलियारे में मुस्लिम आबादी बढ़ाने हेतु घुसपैठियों को लाकर बसाने का काम योजनाबद्ध ढंग से किया जा रहा है। बांग्लादेश से असम में आए मुस्लिम घुसपैठियों के खिलाफ वहां चले जन आंदोलन के बाद इस्लामिक षड्यंत्रकारियों ने उन्हें बंगाल, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में भेजना शुरू किया। बंगाल में शासकीय एवं भाषायी अनुकूलता के कारण उनका विरोध न होना तो समझ में आता है, पर उत्तर प्रदेश में इस षड्यंत्र की अनदेखी क्यों हुई, यह समझ से परे है।
कुछ वर्ष पहले जब पश्चिमी उत्तर प्रदेश विशेषकर कैराना से हिंदुओं के पलायन की बात उठी, तो वोट के सौदागरों ने उसका खंडन किया। सच्चाई यह है कि विगत जनगणना में कैराना में हिंदू जनसंख्या वृद्धि दर राष्ट्रीय से आधा यानी 9.19 प्रतिशत तथा मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि हिंदू से तीन गुना यानी 29.81 प्रतिशत थी। एक अनुमान के मुताबिक, 2001-2011 के बीच बंगाल से करीब 35 लाख हिंदुओं का पलायन हुआ है।उत्तर प्रदेश में मुस्लिम घुसपैठ और हिंदुओं के पलायन के बाद अब हिंदुओं को मुसलमान बनाने के षड्यंत्र का भी पर्दाफाश हो गया है। इसके तार पाकिस्तान के साथ ही अन्य मुस्लिम देशों से भी जुड़ रहे हैं। इस्लामिक ताकतें घुसपैठ और हिंदू पलायन के साथ प्रस्तावित गलियारे में आतंकवाद को भी बढ़ावा दे रही हैं। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ नेपाल के रास्ते उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल में सक्रिय है। जून 2000 में आई एक रिपोर्ट ने भारत-नेपाल सीमा पर तेजी से बन रहे मदरसों और मस्जिदों से सावधान रहने की चेतावनी दी थी। ये मदरसे और मस्जिदें ऐसी जगहों पर बनाई जा रही हैं, जहां से भारत की सामरिक तैयारियों पर न केवल नजर रखी जा सके, बल्कि अपने आकाओं के इशारे पर राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में भी डाला जा सके।ग्रेटर बांग्लादेश की साजिश कई दशक से : बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति और कट्टरपंथी इस्लामिक ताकतों से जूझती प्रधानमंत्री शेख हसीना का अलग ईसाई राष्ट्र बनाने की साजिश का दावा और उसको सफल न होने देने की कसम का घटनाक्रम भले ही राजनीतिक नजर आता हो। लेकिन इससे भारत के उत्तर पूर्व की जनसांख्यिकी स्थिति और भौगोलिक चुनौतियों को लेकर चिंताएं अचानक बढ़ गई हैं। बांग्लादेश से ज्यादा संख्या में ईसाई भारत में रहते है और उत्तर पूर्व के कई राज्यों में उनका बाहुल्य है। यह भी दिलचस्प है कि भारत की चिंता अलग ईसाई राष्ट्र को लेकर कभी नहीं रही बल्कि असल चुनौती उस वृहत बांग्लादेश के सपने की है जिसके मूल में बांगलादेश के कट्टरपंथी है। विश्‍लेषकों का कहना है कि भारत को ईसाई राज्‍य नहीं बल्कि वृहत बांग्‍लादेश से खतरा है। बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति और कट्टरपंथी इस्लामिक ताकतों से जूझती प्रधानमंत्री शेख हसीना का अलग ईसाई राष्ट्र बनाने की साजिश का दावा और उसको सफल न होने देने की कसम का घटनाक्रम भले ही राजनीतिक नजर आता हो। लेकिन इससे भारत के उत्तर पूर्व की जनसांख्यिकी स्थिति और भौगोलिक चुनौतियों को लेकर चिंताएं अचानक बढ़ गई हैं। बांग्लादेश से ज्यादा संख्या में ईसाई भारत में रहते है और उत्तर पूर्व के कई राज्यों में उनका बाहुल्य है। यह भी दिलचस्प है कि भारत की चिंता अलग ईसाई राष्ट्र को लेकर कभी नहीं रही बल्कि असल चुनौती उस वृहत बांग्लादेश के सपने की है जिसके मूल में बांगलादेश के कट्टरपंथी हैं। दरअसल, वृहत बांग्लादेश की चुनौती का सबसे पहले जिक्र भारतीय थल सेना के डिप्टी चीफ़ ऑफ स्टॉफ रहे लेफ्टिनेंट जनरल एसके सिन्हा ने किया था। वह जम्मू- कश्मीर और असम के राज्यपाल भी रहे हैं। साल 1997 में असम के राज्यपाल रहते उन्होंने एक रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौपी थी, जिसमें लिखा था, ‘बांग्लादेश से लगातार कई दशकों से हो रहे भारी संख्या में अवैध प्रवास से देश का जनसंख्या स्वरूप ही बदलता जा रहा है। इसने दो तरफा खतरे को जन्म दिया है। एक तो इससे असम के लोगों की अपनी पहचान खतरे में पड़ गई है, दूसरी इससे राष्ट्रीय सुरक्षा पर भी खतरा मंडराने लगा है। समय-समय पर गठित होने वाली केंद्र और राज्य सरकारों में से किसी ने भी इस चुनौती को गंभीरता से नहीं लिया। सिन्हा की चिंता में असम के सरहदी इलाकों में अचानक बढ़ती मुस्लिम जनसंख्या थी जिसका जिक्र जुल्फिकार अली भुट्टो ने अपनी किताब मिथ ऑफ इंडिपेंडेंस में भी किया है।भुट्टो ने लिखा था, ‘भारत के साथ हमारा विवाद कश्मीर समस्या पर ही नहीं, असम में मुस्लिम बाहुल्य जिले हैं, जिन्हें विभाजन के समय पाकिस्तान को दिया जाना चाहिए था, लेकिन उन जिलों को भारत में शामिल करके गलती की गई है। पूर्वी पाकिस्तान से असम में घुसपैठ का सिलसिला साल 1947 से लगातार चल रहा है। साल 1971 में पाकिस्तान सेना के बंगालियों पर अत्याचार से यह समस्या और ज्यादा गहरा गई। इस समय देश से कही ज्यादा असम के एक परिवार में औसतन 5.5 सदस्य है। इसके कारण राज्य की बेरोजगारी दर बहुत बढ़ गई है। यहीं नहीं जनसंख्या घनत्व 340 से बढ़कर वर्तमान में 400 तक पहुंच गया है। साल 2001 से 2011 के बीच असम के बरपेटा, बोंगईगांव, नगांव, ग्वाल पाड़ा, कछार, धेमाजी, मोरीगांव, करीमगंज, हेला कांडी जैसे सीमावर्ती जिलों में अधिकांश इलाकों में मुस्लिम जनसंख्या का प्रतिशत 25 से 30 प्रतिशत तक बढ़ गया है।देश के उत्तर पूर्व के सबसे बड़े राज्य असम में रहने वाले भारतीय नागरिक अपने भौतिक संसाधनों पर बांग्लादेशियों के कब्जे और रोजगार की खत्म होती अवस्थाओं से बेहद नाराज हैं। यह नाराजगी धीरे-धीरे अलगाव और पृथकतावाद तक पहुंच गई है। असम में घुसपैठ के कारण आदिवासियों के सामने सांस्कृतिक, आर्थिक और जातीय पहचान का संकट उत्पन्न हो गया और इसी कारण वहां अलगाववादी संगठन उल्फा अस्तित्व में आया जो बाद में सियासी दल असम गण परिषद के रूप में सत्ता तक भी पहुंच बनाने में कामयाब रहा। संविधान के अनुच्छेद 39 ख और ग में यह साफ तौर पर निर्देशित किया गया है कि राज्य अपनी नीति का क्रियान्वयन इस प्रकार करेगा की जिससे भौतिक संसाधनों पर स्वामित्व और नियंत्रण का बंटवारा उचित तरीके से हो।

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