समृद्धि की कामना का लोकपर्व कोजागरा आज, मिथलांचल के लोगों में पच्चीसी खेलने की परंपरा – कोजागरा की रात जुआ खेलने की है परंपरा


अशोक झा, सिलीगुड़ी: शरद पूर्णिमा का सनातन धर्म में काफी महत्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन समुद्र मंथन से देवी लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ था। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि आसमान से अमृत की बूंदें बरसती हैं। कोजागरा त्योहार बंगाल और बिहार का एक बड़ा त्योहार है। इस बार कोजागरा का त्योहार 16 अक्टूबर 2024 यानी शरद पूर्णिमा के दिन रात में 11:42 पर शुरू होगी और 12:32 के बीच होगी।ये त्योहार काफी खास माना जाता है क्योंकि इस दिन गृहलक्ष्मी की पूजा होती है। सनातन धर्म में धन से अधिक समृद्धि का महत्व है. बुधवार की शाम बिहार खासकर मिथिला के घर-घर में मां अन्नपूर्णा की पूजा होगी. इसके लिए तैयारी पूरी कर ली गयी है। अश्विनी कुमारों ने च्यवन ऋषि को आरोग्य और औषधि की जानकारी कोजागरा पूर्णिमा के दिन ही दिया था। हजारों साल बाद भी वही ज्ञान आज परंपरा के रूप में संचित है। अश्विनी कुमार देव-चिकित्सक और आरोग्य के दाता हैं, जबकि शरद पूर्णिमा का पूर्ण चंद्र अमृत का स्रोत है। इसलिए मान्यता है कि कोजागरा पूर्णिमा की स्निग्ध-धवल चांदनी से अमृत बरसती है, जिसके सेवन से स्वास्थ्य में वृद्धि होती है। वैवाहिक जीवन में माधुर्य और प्रेम भर जाता है। कहते हैं कि यही कारण है कि इस पूर्णिमा की रात में घरों की छत पर खीर रखा जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से चंद्रमा का अमृत-अंश खीर में समा जाता हैं, जिसके सेवन करने से आरोग्य लाभ होता है।
आश्विन माह की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाने वाले पर्व कोजगरा में मुख्य रूप में लक्ष्मी(लखि) के अन्नपूर्णा रूप की पूजा होती है. साथ ही घर में आयी नयी विवाहिता को सामाजिक स्तर पर आशिर्वाद दी जाती है, जिसे मिथिला में चुमाओन कहा जाता है. कोजागरा की रात नवविवाहित दंपती का चुमाओन करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इस परंपरा का निर्वहन आज भी पूरी सिद्दत के साथ की जाती है। मखाना बांटने की है परंपरा: परंपरा के अनुसार कोजागरा के दिन नवविवाहित दंपती को मखाना, मिठाई, चूरा, दही, नये वस्त्र सहित अन्य भोजन सामग्री उपहार स्वरूप दिया जाता है. चुमाओन के बाद मखाना बांटने की परंपरा है. फिर ससुराल से आये भोजन सामग्री लोगों को खिलाकर पर्व का समापन किया जाता है. कोजागरा को लेकर बाजार में मखाना की मांग बढ़ने के साथ कीमत में भी काफी इजाफा हुआ है. फिर भी लोग पर्व की रस्म पूरा कारने के लिए जमकर मखाना की खरीदारी करते दिखे. इस दिन पुरैन(कमल का पत्ता) पर भेंट (कमल के बीज का चावल) का भात और मखाने की खीर देवी की अर्पित किया जाता है।मां लक्ष्मी की होती है आराधना: कोजागरा की रात हर घर में श्रद्धा के साथ मां अन्नपूर्णा की पूजा-अर्चना की जाती है। कहा जाता है कि कोजागरा की रात देवी अन्नपूर्णा की आराधना से घर में कभी अन्ना का संकट पैदा नहीं होता है। श्रद्धा व निष्ठापूर्वक उनकी पूजा-अर्चना करने से घर में सुख-समृद्धि और शांति आती है. इसी भावना से मिथिला समेत बिहार और बंगाल में घर घर देवी अन्नपूर्णा की आराधना की जाती है। मान्यता है कि जिस घर में आश्विन माह की पूर्णिमा तिथि को मां अन्नपूर्णा की पूजा होती है, उस घर में कभी अन्न का संकट नहीं होता है. उस घर का कोई कभी भूख से नहीं सोता है। इस दिन लोग मां लक्ष्मी की पूजन के साथ घर आई नई बहू की भी पूजा करते हैं और नवविवाहित जोड़े को आशीर्वाद देते हैं। इस त्योहार में मखाने का अपना खास महत्व है और इससे कई सारी चीजें बनाई जाती हैं। तो आइए जानते हैं इस त्योहार से जुड़ी छोटी-बड़ी बातें विस्तार से।कोजगरा क्यों मनाया जाता है: कोजगरा पूजा पश्चिम बंगाल, असम, ओडिशा और बिहार का लोक त्योहार है। दरअसल, इस त्योहार के पीछे मान्यता ये है कि इस दिन माता लक्ष्मी पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं। इसलिए इस दिन लोग व्रत करते हैं और फिर माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं। इस दौरान माता लक्ष्मी के अन्नपूर्णा रूप की पूजा होती है और लोग अपने घर की नई बहू की भी पूजा करते हैं और परिवार नवविवाहित जोड़े को आशीर्वाद देता है।मखाना बांटने की है परंपरा: मखाना बांटने की परंपरा मिथिला से शुरू हुई है। मिथिला में ये परंपरा तब से शुरू हुई जब से भगवान राम के घर इस दिन माता सीता के घर से भार यानी उपहार के रूप में मखाना भेजा गया। भारतीय पौराणिक कथाओं और धार्मिक अनुष्ठानों में, मखाना को शुभ माना जाता है और ये लक्ष्मी फल है क्योंकि ये समुद्र से लक्ष्मी के साथ अवतरित हुआ है।मानो देवी भी पृथ्वी पर आनंद की अनुभूति हेतु चली आती हैं. शास्त्रों के अनुसार आश्विन पूर्णिमा की रात जगत की अधिष्ठात्री मां लक्ष्मी जब वैकुंठ धाम से पृथ्वी पर आते समय देखती है कि उनका भक्त जागरण कर रहा है या नहीं इसी कारण रात्रि जागरण को कोजागरा कहा गया है। नव विवाहित दंपती लेते हैं समृद्ध दाम्पत्य का आशीर्वाद : मान्यता है कि आश्विन पूर्णिमा की रात पूनम की चांद से अमृत की वर्षा होती है. मान्यता है कि जो रात भर जागता है वहीं अमृत पान भी करता है. उसके घर ही समृद्धि वास करती है. खास कर नव विवाहित वर अपने विवाह के पहले वर्ष में इस समृद्धि को प्राप्त करें, इसका वो अपने बड़े बुजुर्ग से आशीर्वाद लेते हैं, जिसे मिथिला में चुमाउन कहा जाता है। ऐसा करने पर उनका दाम्पत्य जीवन सुखद बना रहता है। इसी कामना को लेकर यह लोकपर्व पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है।भेंट का चावल और मखाना का खीर से लगता है भोग: कोजागरा जिसे बंगाल में लखि पूजा कहा जाता है, इसमें मुख्य रूप से लक्ष्मी के विभिन्न रूपों का पूजन होता है. कमल के पन्ने जिसे पुरैन कहते हैं, उसपर कौमुदी के बीज भेंट का भात (चावल) और मखान का खीर मां अन्नपूर्णा को भोग लगाया जाता है. कोजागरा के दिन धन से अधिक अन्न का महत्व होता है. लोग सोना और चांदी के सिक्के की पूजा कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, लेकिन मुख्य रूप से दौलत का अर्थ अन्न की समृद्धि से है न कि धन की समृद्धि से. ऐसी मान्यता है कि कोजागरा की रात अमृत वर्षा होती है, ऐसे में लोग आंगन या छत पर दही को पूरी रात रखते हैं और सुबह उस दही को अमृत मानकर खाते हैं।
आज की रात जमकर खेलते है पचैसी, तास, लूडो या फिर चौसा:
कोजागरा की रात जुआ खेलने की परंपरा है। घर-घर लोग पचैसी, तास, लूडो या फिर चौसा खेलते हैं। चांदी के कौड़ी से भाभी के साथ चौसा (पच्चीसी) खेलने के पीछे का कारण आज भी रहस्य बना हुआ है। इस दौरान देवर भाभी के बीच हास परिहास भी चलते रहता है. कहा जाता है कि कोजागरा के दिन जुआ खेलने से साल भर धन की कमी नहीं होती है।अन्य दिनों में चाहे जुआ खेलना जितना भी बुरा माना जाता हो, लेकिन आज की रात जुआ खेलने की परंपरा लोग निभाने से पीछे नहीं रहते।
मखाना और बतासा के दाम में हुई बढ़ोतरी: कोजागरा को लेकर मखाना और बतासा सहित अन्य सामान के दाम में बढ़ोतरी हो गई है. भेंट का चावल तो पटना जैसे शहर के बाजार में मिलता ही नहीं है. मखाना भी इस साल 12 सौ से 14 सौ रुपये प्रति किलो मिल रहा है। वहीं बतासा 300 से 600 रुपये किलो, लड्डू 300 रुपये किलो, दही 250 रुपये किलो मिल रहा है। वहीं कोजागरा में पान का महत्व देखते हुए 300 रुपये ढ़ोली तो सुपाड़ी 800 रुपये किलो तक हो गया है। लोगों का कहना है कि महंगाई के कारण अब पर्व त्योहार मनाना भी मुश्किल होता जा रहा है।

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