भारतीय संस्कृति में सम्बन्धो की ताकत है, तभी जटायु ने सीता की रक्षा में प्राण दे दिए जो भारत की संस्कृति के विरुद्ध है , वही रावण है

महिलाओं का अपमान करने वाला ही अपने सर्वनाश को आंमत्रित करता है

वाराणसी । पातालपुरी मठ में चल रहे श्रीराम कथा के तीसरे दिन पीठाधीश जगद्गुरु बालक देवाचार्य जी महाराज ने सीता हरण की मार्मिक व्याख्या की । उन संबंधों को बताते हुए भारतीय संस्कृति के उस महान दर्शन को प्रस्तुत किया जिसमें संबंधों को सर्वोपरि बताया गया है । जहां लोग एक दूसरे के लिए सोचना छोड़ दिए है ,वही रामायण ने दुनिया को संबंधों का ऐसा दर्शन दिया जिससे मानवीय संवेदना और मानवता आज तक जीवित है ।

माता सीता का हरण रावण के लिए आसान नही था इसलिए उसने संस्कृति के सबसे विश्वसनीय साधु का भेष बनाया । माता जानकी का ऐसा संस्कार जिसको सदियों तक लोगो को प्रेरणा देता रहेगा , यह जानते हुए भी की उनकी सुरक्षा के लिए लक्षमण रेखा खींची गई है , उसको पार करने से उनको भय खतरा हो सकता है ,लेकिन माता जानकी ने साधु को खाली हाथ नही जाने दिया , यह उनका संस्कार ही था । और लक्ष्मण रेखा पार करने रावण की असलियत दुनिया को बताई । नही तो वह हमेशा विद्वान कहा जाता और संसार को अपने विद्वता के अहंकार में कष्ट देता रहता । सीता मा का हरण कर रावण जब अपने पुष्पक विमान से लेकर जा रहा था ,तब उस वन में रहने वाली दृश्य और अदृश्य शक्तियां उसके डर से खामोश थी और अत्याचार को होते हुए देख रही थी । लेकिन उसी वन में पक्षी राज जटायु जी ने अपने रिश्ते को कलंकित होने से बचाने के लिए खुलेआम रावण को चुनौती दी । जटायु जी के लिए माता जटायु उनकी पुत्री की तरह थी । वे पक्षीराज थे , लेकिन अपने रिश्ते को नही भूले । पक्षीराज ने रावण को रे कहकर संबोधित किया , रावण भी सोचा की आज तक किसी मे हिम्मत आंख मिलाने की नही हुई , ये कौन है जो हमे इस तरह से बोल रहा है । रावण की ताकत और अत्याचार के सामने जटायु राज झुके नही और उससे लड़ना स्वीकार किया । एक अत्याचारी के ताकत के डर से चुप रहना भी कायरता है । अपने संबंधों के लिए जीवन कुर्बान कर देना भारत की महान संस्कृति है । जटायु जी ने माता जानकी के कष्ट को दूर करने और उनके सम्मान की रक्षा के लिए अपने जीवन की भी परवाह नही की । जटायु जी के माध्यम से आज के समाज को यह संदेश है कि किसी अत्याचारी के डर से खामोश न रहे और हर कीमत पर महिला के सम्मान की रक्षा कर अपने संस्कृति की रक्षा करे ।

भारत की महान सांस्कृतिक विरासत का अजेय उदाहरण है जटायु जी का रावण जैसे बलशाली से युद्ध और माता जानकी की मुक्ति के लिए प्रयास करते हुए स्वर्ग को प्राप्त करना ।

श्रीराम कथा में जगदीश्वर दास जी ,रामपंथ के पंथाचार्य डॉ राजीव श्रीगुरुजी , डॉ नजमा परवीन , नाज़नीन अंसारी , फरोग आलम , नगीना बेगम , सत्यम राय , संजय भारद्वाज , अमित राजभर , वीरेंद्र राजभर ,डॉ धनञ्जय यादव प्रमुख रूप से मौजूद थे ।

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