सैरसपाटा : नईदिल्ली से अमेरिका की 17 घंटे की उड़ान में सुंदरकांड का पाठ ईयरफोन लगाकर कई बार सुना फिर हिंदी फिल्म थप्पड़ देखा और कैसा रहा काशी के पत्रकार आशुतोष पाण्डेय का अनुभव पढ़े यह यात्रा वृतांत
सैरसपाटा: रोचेस्टर की डायरी: आमुख 3
नईदिल्ली से अमेरिका की उड़ान में अभी कई घंटे बाकी थे। एयरपोर्ट पर बाहर रहने का कोई औचित्य नहीं था । सोचा अंदर चलकर एयरपोर्ट ही तब तक घूमते हैं। गेेट से घुसने से पहले हमारा टिकट और पासपोर्ट चेक किया गया। अब हमारे पास बोर्डिंग पास मिल गया था। अगला चरण अपने सामान को जमा कराने का था। लाइन में लगकर सामान का वजन कराया और टोकन लेकर आगे बढ़ जाए ।
इसी क्रम में तलाशी की प्रक्रिया भी चली, जिसमें पर्स, मोबाइल, जूता, बेल्ट तक उतार कर रखना पड़ा । यहां पर हैंड बैग में रखा ब्लेड सुरक्षाकर्मियों ने निकलवा दिया और कूड़ेदान में फेंक दिया। मुझे लगा कि कोई और सामान फेंकना न पड़ जाए । पर संयोग से ऐसा हुआ नहीं। अगले चरण में इमीग्रेशन काउंटर पर पहुंच गए । यहां टिकट, पासपोर्ट चेक करने के बाद मुहर लगा दी गई। यानी अब हम भारत से बाहर जाने के लिए स्वतंत्र हैं । इतना सब करने के बाद भी काफी समय शेष था । हमें हाल में बैठने के लिए कहा गया । यहां उपाध्याय जी के घर से लाया गया खाना खत्म किया । एक- दो लोगों से फोन पर बातचीत भी की । एयरपोर्ट पर ढेर सारी दुकानें हैं पर सामान सस्ते नहीं हैं। कुछ समय वहां घूमकर बिताया। उड़ान से करीब डेढ़ घंटे पूर्व विमान यात्रियों के लिए रनवे पर आ गया था। 30 – 40 मिनट में सभी यात्रियों को उनकी सीटों तक पहुंचा दिया गया। गेट पर एयर होस्टेस ने हमारा स्वागत किया । पत्नी की सीट ठीक खिड़की से सटी हुई और उसके बगल में मेरी थी । यद्यपि खिड़की का कोई फायदा नहीं था , क्योंकि रात में ही सफर का अधिकतर हिस्सा तय होना था । जहाज उड़ने से पूर्व बताया गया कि हमारे पायलट , सह पायलट और एयर होस्टेस कौन हैं। कितने घंटे की यात्रा है। खाना और नाश्ता कितनी बार मिलेगा। साधानियां भी बताई गईं। जैसे ऑक्सीजन की समस्या होने पर क्या करना चाहिए। साथ ही जहाज के उड़ने के लिए तैयार होने की जानकारी देते हुए सीट बेल्ट बांधने और मोबाइल को एरोप्लेन मोड में रखने के लिए कहा गया।
इसके कुछ मिनटों बाद विमान रनवे पर दौड़ता नजर आया । अगले 5- 10 मिनट बाद जहाज पर्याप्त ऊंचाई पर पहुंच चुका था । अब कई महीनों बाद अपने प्यारे देश के दर्शन होंगे। आधे घंटे बाद यात्रियों को भोजन परोसना शुरू हो गया। जहाज में 90 प्रतिशत भारतीय थे , लेकिन मेरे जैसे शाकाहारी शायद कम ही थे।
शाकाहारी यात्रियों के लिए सीमित व्यंजन होते हैं, जबकि नॉनवेज में अधिक प्रकार मिल जाते हैं । मुझे संदेह था कि शाकाहारी के नाम पर भी तालमेल हो सकता है । इसलिए मैंने सौ फ़ीसदी प्योर वेज पर बल दिया। जो भोजन सामने आया उसमें एक पराठा, चावल , उड़द की दाल, सलाद , चटनी (पैकेट) शामिल था। पानी की बोतल अलग से मिली थी। खाने के बाद लाइट बुझा दी गई। साढे. 16 घंटे की लगातार उड़ान मेरे लिए किसी तपस्या से कम नहीं था। समय काटने के लिए कई तरह के उपाय जरूरी थे। सीट के सामने लगे पॉकेट में कई पत्रिकाएं थीं। लेकिन उनको उलटने- पलटने की इच्छा नहीं हुई । विमान में सुरक्षा के उपायों पर भी एक पुस्तिका थी, किंतु उस पर भी मैंने गौर नहीं किया । अब तक मेरे बगल का युवा सहयात्री सोने लगा था। पत्नी भी कभी सोती तो कभी सामने स्क्रीन पर पिक्चर देखने लगती । मैंने सबसे पहले स्क्रीन पर विमान की स्थिति देखी । जहाज पाकिस्तान के ऊपर उड़ता नजर आया । मैंने इयरफोन निकाला और मोबाइल पर सुंदरकांड सुनने लगा। क्योंकि उड़ते जहाज में मुझे नींद नहीं आ रही थी। इस तरह 1 घंटे से ज्यादा निकल गया । अंधेरे में पढ़ने की कोई खास गुंजाइश नहीं थी । सुनना अथवा देखना ही संभव था। एक बार फिर स्क्रीन की तरफ ध्यान लगाया । सर्च करने पर हिंदी फिल्म थप्पड़ दिखाई पड़ी। मुझे लगा यह अलग तरह की सकती है। इसलिए देखने लगा । फिल्म पसंद आई। स्त्री-पुरुष के बीच होने वाले सामाजिक भेदभाव को चुस्त पटकथा के जरिए बड़ी खूबसूरती से फिल्माया गया था । इस तरह यात्रा के तीन घंटे और निकल गए ।
अंतरराष्ट्रीय विमान में टॉयलेट कई सारे होते हैं । पहली हवाई यात्रा में तो मैंने टॉयलेट का इस्तेमाल नहीं किया था। लेकिन इस बार तो मजबूरी ही थी । वहां जाने से पूर्व मन में यह भी ख्याल आया कि मुझे दरवाजा खोलना और बंद करना ही नहीं आया तो मेरा अनाड़ीपन जाहिर हो जाएगा। पहली बार तो कोई परेशानी नहीं हुई परंतु एक बार सच में गेेट खोलने में अड़चन महसूस हुई।
तब एक विदेशी ने अपनी सीट से उठकर मेरी मदद की। सीट पर लगातार बैठे रहना भी कम परेशानी वाला नहीं था । पैर जैसे सुन्न होने लगते । तब हम उठकर सीटों के बीच गलियारे में टहलने लग जाते । मुझे तो ट्रेन में टहलना इससे अधिक सुविधाजनक लगता है।
चूंकि ज्यादातर लोग सो रहे थे इसलिए बात करने का भी कोई अवसर नहीं था । जहाज में पीछे की तरफ किचिन होता है । वहां भी कुछ वक्त गुजारने की सोची।
खाने का सामान कहां रखा जाता है और उनको कैसे निकाल कर दिया जाता है । कोई सामान मैंने मांंगना चाहा , तो एयर होस्टेस ने कहा आगे मेज पर तमाम चीजें रखी हुई हैं। जो वहां ना हो वह मांग सकते हैं।
मेज पर कई तरह की नमकीन, कोल्ड ड्रिंक, बिस्किट , पानी की बोतल , आदि रखी हुई थी। अंतरराष्ट्रीय उड़ान में खाने – पीने की चीजों का अलग से कोई पैसा नहीं लगता है। क्योंकि यह सब टिकट में ही जुड़ा रहता है।
पीने पर याद आया कि कई लोग जहाज की लंबी यात्रा में ड्रिंक करना पसंद करते हैं । शायद उम्दा ब्रांड की शराब ऐसी यात्राओं का मजा बढ़ा देती हो और थकान भी कम कर देती होगी ।
यात्रा के कई घंटे बीत चुके थे फिर भी कई बाकी थे । सामने स्क्रीन पर सर्च किया तो जहाज यूरोप के आसमान पर नजर आया । मार्ग के नक्शे के अनुसार पास में कभी लंदन तो तभी रोम नजर आ रहा था । एक बार फिर ईयर फोन का सहारा लिया और हनुमान चालीसा सुनने लगा । यह मेरे लिए पावर सेंटर जैसा अनुुभव था। इसी क्रम में गायत्री मंत्र सुनकर मन की तरंगों को ऊर्जावान बनाने का प्रयत्न किया ।
पूरी यात्रा के दौरान दो बार नाश्ता परोसा गया । जिनमें चाय , कॉफी, कोल्ड ड्रिंक, नमकीन के पैकेट , जूस, चॉकलेट , बिस्किट आदि थे। अमेरिकी जहाज में पारले बिस्किट देख कर अच्छा लगा। क्योंकि हमारे यहां कुछ लोग इस ब्रांड को पसंद नहीं करते हैं । लंबी हवाई यात्रा के अभ्यस्त समय का सदुपयोग सोने में ज्यादा करते हैं। यह सुझाव मुझे भी दिया गया था कि यात्रा के पहले सोने की जरूरत नहीं है ।
तथापि मैंने शायद ही 2 घंटे से ज्यादा की नींद ली हो । स्क्रीन पर जहाज की लोकेशन फिर चेक किया तो वह लंबे समय से समुद्र पर उड़ता दिखाई पड़ा । संभवत कई घंटे लगते हैं। अब समझ में आया कि अमेरिका को सात समुंदर पार देेश क्यों कहा जाता है ।
काफी समय से आंखें खिड़की के बाहर सिर्फ अंधकार ही देख रही थीं। जब पत्नी ने जहाज के नीचे बादलों के टुकड़े दिखाए तो मुझे एहसास हुआ कि शायद अब सुबह होने वाली है।
कुछ वक्त और व्यतीत हो गया। आसमान पर मेरी नजर टिकी हुई थी। धीरे-धीरे आकाश पर लाली भी दिखने लगी , जिसे देखने के लिए काफी समय से मेरी आंखें उत्सुक थीं।
आसमान पूरी तरह साफ नजर आने लगा था। अब मुझे शिकागो पहुंचने की जल्दी हो गई । प्रतीक्षा का अंत हुआ और काफी समय से शांत चल रहे जहाज के वातावरण में शिकागो कुछ ही देर में पहुंचने की घोषणा की गई ।
इसी के साथ बेल्ट पुन: बांध लेने की हिदायत भी दी। जहाज भी धीरे-धीरे जमीन की तरह उतरने लगा। अब तक पानी, पहाड़ ,जंगल , मकान आदि दिखने लगे थे । आखिर वह समय भी आया जब रनवे पर दौड़ने के बाद जहाज रुक गया।
अब हम अमेरिका में हैं , यह सोचकर ही शरीर में स्फूर्ति आ गई । शिकागो के समयानुसार सुबह के 7:30 बज रहे थे । दरवाजे से बाहर निकलते समय सभी क्रू मेंबर हमें विदा करने के लिए गेेट पर थे ।
माइक से यह भी सुनाई पड़ा कि यूनाइटेड से सफर करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद । साथ ही एक बार फिर यूनाइटेड से यात्रा लिए आग्रह भी किया गया । अन्य यात्रियों का अनुसरण करते हुए हम बाहर निकल आए । यहां भी कई औपचारिकताएं पूरी करनी थीं। एक फार्म भरना पड़ा , जिसमें यह जानकारी देनी थी कि हम अमेरिका में कब तक रहेंगे, वापसी कब होगी, किस तरह का सामान लाए हैं , डालर के रूप में कितनी मुद्रा हमारे पास है। हमें जाना कहां है और किसके यहां रुकना है । उससे हमारा क्या संबंध है आदि।
पासपोर्ट पर यहां भी मुहर लगाई गई। अर्थात निर्धारित अवधि तक अमेरिका में रहने के लिए अधिकृत हो गए । कस्टम की औपचारिकताएं लाइन में लगकर पूरा किया । एयरपोर्ट पर बिटिया ऋतंभरा और दामाद देवेश जी ने हमारा गर्मजोशी से स्वागत किया नन्हे रिवांश के साथ।
रोचेस्टर की उड़ान लगभग 6 घंटे बाद थी । यह समय हमें एयरपोर्ट पर बिताना था । लेकिन हम एयरपोर्ट के बाहर निकाल आए और आसपास के इलाके में घूमते रहे । फोटोग्राफी की। वीडियो बनाया और शिकागो की सर्द हवाओं का अनुभव किया।
रोचेस्टर की अगली उड़ान 1:15 घंटे से कुछ ज्यादा की थी । रोचेस्टर शिकागो की तरह अधिक चहल-पहल वाला नहीं था । कुछ समय बाद सामान लेकर आराम से एयरपोर्ट से बाहर आ गए । लेकिन घर तक पहुंचने में 20 मिनट और खर्च हो गए।
क्रमश: …..