पटना के गुलबी घाट पर मशहूर लोकगायिका शारदा सिन्हा पंचतत्व में विलीन


बिहार बंगाल सीमांत से अशोक झा: पटना के गुलबी घाट पर गुरुवार को मशहूर लोकगायिका शारदा सिन्हा पंचतत्व में विलीन हो गईं। सुबह करीब 10.30 बजे पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। बेटे अंशुमन सिन्हा ने मुखाग्नि दी।उनके अंतिम संस्कार में पूर्व केन्द्रीय मंत्री अश्विनी चौबे और पूर्व सांसद रामकृपाल यादव समेत बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे।अंतिम यात्रा में शामिल हुआ प्रशंसकों का हुजूम: इससे पहले शारदा सिन्हा का पार्थिव शरीर पटना के राजेंद्र नगर स्थित उनके घर से गुलबी घाट के लिए रवाना हुआ। गायिका शारदा सिन्हा के घरवालों ने उनके पार्थिव शरीर को कंधा दिया। अंतिम यात्रा में परिजनों के अलावा शारदा सिन्हा के प्रशंसक मौजूद रहे।अंतिम विदाई के दौरान शारदा सिन्हा अमर रहें और छठि मइया जय के नारे लगाए गए। पांच नवंबर को हुआ था निधन: शारदा सिन्हा निधन दिल्ली के एम्स अस्पताल में 5 नवंबर को हुआ था। छठ महापर्व के पहले दिन शारदा सिन्हा ने रात करीब 9 बजकर 20 मिनट पर अंतिम सांस ली थी छठ महापर्व के तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसी दिन शारदा सिन्हा पंचतत्व में विलीन हो गयी. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शारदा सिन्हा का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ कराने की घोषणा की थी।उन्होंने पटना के जिलाधिकारी को इसके लिए सभी आवश्यक व्यवस्था कराने का निर्देश दिया था।अंत्येष्टि कार्यक्रम में शारदा सिन्हा के परिजन, मित्र सहित कई राजनेता भी शामिल थे। शारदा सिन्हा को उनके प्रशंसकों और परिवारजनों ने भावभीनी विदाई दी। बेटे अंशुमान ने अर्थी को दिया कंधा पटना के राजेंद्र नगर स्थित आवास से शारदा सिन्हा की अंतिम यात्रा गुलबी घाट के लिए रवाना हुई। अंतिम यात्रा में उनके बेटे अंशुमान ने भावपूर्ण श्रद्धांजलि देते हुए अर्थी को कंधा दिया। इस मौके पर उनके शुभचिंतक, चाहने वाले और क्षेत्रीय राजनीतिक हस्तियां भी शामिल हुईं। बीजेपी के पूर्व सांसद रामकृपाल यादव समेत अन्य लोग उन्हें अंतिम विदाई देने पहुंचे, जिससे माहौल अत्यधिक भावुक हो गया। अंतिम यात्रा में लोगों की आंखों में आंसू और दिलों में थीं यादें पूर्व सांसद रामकृपाल यादव भी ने कहा कि उनकी कला और साधना हमारे समाज के सांस्कृतिक धरोहर के रूप में हमेशा जीवित रहेगी। उनके साथ ही कई चाहने वालों और शुभचिंतकों ने भी शारदा जी के योगदान को याद करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी। अंतिम यात्रा में लोगों की आंखों में आंसू और दिलों में यादें थीं। शारदा सिन्हा ने अपने सुमधुर गीतों से सिर्फ बिहार ही नहीं बल्कि पूरे भारत में लोक संगीत को एक नई पहचान दी। उनके द्वारा गाए गए गीतों में बिहार की संस्कृति और लोक परंपरा की महक झलकती थी, जो अब उनकी अनुपस्थिति में भी लोगों के दिलों में गूंजते रहेंगे।उन्होंने ‘छठी मैया आई ना दुआरिया’, ‘कार्तिक मास इजोरिया’, ‘द्वार छेकाई’, ‘पटना से’, और ‘कोयल बिन’ जैसे कई गीत गाए। इनके अलावा बॉलीवुड की कई फिल्मों में भी उन्होंने गाने गाए हैं, जिनमें ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर- टू’ का ‘तार बिजली’, ‘हम आपके हैं कौन’ का ‘बाबुल’ और ‘मैंने प्यार किया’ का ‘कहे तो से सजना’ जैसे गाने शामिल हैं। शारदा सिन्हा ने भोजपुरी, मैथिली और मगही भाषाओं में लोकगीत गाए थे और उन्हें पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया था।शारदा सिन्हा साल 2017 से मल्टीपल मायलोमा से जूझ रही थीं और कुछ महीने पहले ही उनके पति का निधन हुआ था। उनके परिवार में एक बेटा और एक बेटी हैं। जिनके लिए ये वक्त बेहद मुश्किल है, दो महीने पहले पिता और मां का निधन उनके लिए गहरे सदमे से कम नहीं है।शारदा सिन्हा के संगीत का सफर: शारदा सिन्हा का जन्म 1 नवंबर 1952 को बिहार के सुपौल जिले में हुआ था। बचपन से ही उन्हें संगीत का बहुत शौक था, उन्होंने पंचगछिया घराने के प्रख्यात ख्याल गायक पंडित रघु झा से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली थी। इसके बाद उन्होंने ख्याल गायक पंडित सीताराम हरि दांडेकर से ट्रेनिंग ली, जो एक बेहतरीन गायक थे और इसके बाद शारदा सिन्हा ने पन्ना देवी से संगीत की शिक्षा दीक्षा ले ली।शास्त्रीय संगीत में की थी पीएचडी: पन्ना देवी मलिका-ए-गजल बेगम अख्तर की समकालीन थीं और ठुमरी और दादरा की प्रतिपादक थीं। शारदा होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत-गायन में मास्टर डिग्री और पीएचडी भी की थी। उन्हें 2000 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 1991 में पद्म श्री और 2018 में पद्म भूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है। शारदा सिन्हा का पहला मैथिली गीत “दुलारुआ भैया” 1971 में आया था जिसे काफी पसंद किया गया।सोशल मीडिया पर रहती थीं एक्टिव: शारदा सिन्हा अपने फैंस के साथ सोशल मीडिया पर गाने और वीडियो शेयर किया करती थीं। वह यूट्यूब पर भी एक्टिव रहती थीं और वहां उनके 75,000 सब्सक्राइबर हैं, इसके अलावा इंस्टाग्राम पर उनकी अच्छी फैन फॉलोइंग है। उनके निधन से 3,29,000 फॉलोवर्स हैं। बता दें कि भारत सरकार की सांस्कृतिक राजदूत के तौर पर वह मॉरीशस, जर्मनी, बेल्जियम और हॉलैंड सहित कई देशों में परफॉर्म कर चुकी हैं।शारदा सिन्हा 1980 के दशक में ऑल इंडिया रेडियो से जुड़ी थीं। उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो के संगीत समारोहों और सांस्कृतिक समारोहों के जरिए देशभर में परफॉर्म किया। सिन्हा ने चार दशकों से अधिक समय तक महिला महाविद्यालय, समस्तीपुर (एल.एन.एम.यू. दरभंगा) बिहार के संगीत विभाग में भी काम किया। इन सालों में, उन्हें पद्म पुरस्कारों के अलावा विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। इनमें राष्ट्रीय देवी अहिल्या सम्मान, बिहार कला पुरस्कार, बिहार रत्न, भोजपुरी रत्न, मिथिला विभूति सम्मान शामिल हैं।

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