बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने जमात-ए-इस्लामी व इस्लामी छात्र शिविर से प्रतिबंध हटाया, भारत के लिए बढ़ा खतरा

बांग्लादेश बॉर्डर से अशोक झा: बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने बुधवार को दक्षिणपंथी जमात-ए-इस्लामी और इसकी छात्र इकाई इस्लामी छात्र शिविर से प्रतिबंध हटा दिया। पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपने शासन के खिलाफ राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शनों के दौरान उस पर प्रतिबंध लगा दिया था।।गृह मंत्रालय ने एक गजट अधिसूचना जारी कर पार्टी और उसके सभी संबद्ध संगठनों पर लगे प्रतिबंध को तत्काल प्रभाव से वापस ले लिया। बंगाली में जारी अधिसूचना में कहा गया है कि प्रतिबंध हटाया जा रहा है क्योंकि बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी और उसके संबद्ध संगठनों की “आतंकवाद और हिंसा” के कृत्यों में संलिप्तता का कोई विशेष सबूत नहीं मिला है। इसमें आगे कहा गया कि अंतरिम सरकार का मानना ​​है कि बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी और उसके सहयोगी संगठन “किसी भी आतंकवादी गतिविधियों” में शामिल नहीं हैं।पूर्व प्रधान मंत्री शेख हसीना के पद छोड़ने और भारत आने से चार दिन पहले उनकी सरकार ने 1 अगस्त को जारी एक कार्यकारी आदेश के माध्यम से पार्टी और उसके संबद्ध संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया था। हसीना की सरकार ने जमात पर हिंसक विरोध प्रदर्शन में शामिल होने का आरोप लगाया था। जमात-ए-इस्लामी पर कट्टरपंथी होने, भारत विरोधी होने और हिंदुओं पर अत्याचार में शामिल होने का आरोप भी है।हालांकि जमात-ए-इस्लामी पार्टी शफीकुर रहमान ने कहा है कि बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पर हमलों में उनकी पार्टी शामिल नहीं थी और उन्होंने अपनी पार्टी की नकारात्मक छवि के लिए “दुर्भावनापूर्ण” मीडिया अभियान को जिम्मेदार माना है। रहमान ने उन आरोपों का भी खंडन किया कि उनकी पार्टी बांग्लादेश में भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल थी। उन्होंने भारत से कहा कि अगर कोई सबूत है तो वह पेश करे। बांग्लादेश में जमात कार्यकर्ताओं द्वारा हिंदुओं पर हमले के आरोपों को लेकर पूछे गए एक सवाल का जवाब देते हुए रहमान ने आरोपों को “निराधार” बताया। बांग्लादेश में इस समय ‘हिफाजत-ए-इस्लाम’ कट्टरपंथी मुसलमानों का सबसे बड़ा संगठन बन चुका है. बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हुई हिंसा और मंदिरों पर हुए हमलों में भी इस संगठन का नाम आया है. यह संगठन साल 2021 में पीएम मोदी की बांग्लादेश यात्रा का भी विरोध कर चुका है।शेख हसीना के पीएम रहते बांग्लादेश भारत का दोस्ताना पड़ोसी था। भारत बांग्लादेश पर राष्ट्रीय सुरक्षा और सीमा पार कूटनीति के मामलों में भरोसा कर सकता था। अब यहां बढ़े कट्टरपंथ ने नई चुनौती पेश की है। भारत के ‘चिकन नेक’ को भी खतरा है।शेख हसीना के शासन के समय बांग्लादेश हिंदू अल्पसंख्यकों के लिए अपेक्षाकृत सुरक्षित था। वे हमेशा जमात-ए-इस्लामी जैसे कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों से खतरे में रहते थे। बांग्लादेश में बदली राजनीतिक स्थिति वहां रहने वाले अल्पसंख्यकों के लिए मौत और विनाश लेकर आई। अगर बांग्लादेश में कट्टरपंथी तत्व हावी रहे तो यह भारत के लिए संकट हो सकता है।
भारत ने बांग्लादेश को दिलाई थी आजादी: बांग्लादेश को आजादी दिलाने में भारत की भूमिका सिर्फ भू-राजनीतिक रणनीति के चलते नहीं थी। पाकिस्तानी सेना द्वारा किए गए अत्याचारों के चलते यह नैतिक रूप से जरूरी हो गया था। बंगाली स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए पाकिस्तानी सेना ने नरसंहार किया था। मार्च से दिसंबर 1971 तक लगभग 3 लाख बंगालियों की हत्या की गई। 2-4 लाख बंगाली महिलाओं के साथ रेप किया गया। लाखों लोगों को घर छोड़कर भागना पड़ा, जिससे 20वीं सदी का सबसे बड़ा शरणार्थी संकट पैदा हो गया। भारत की सेना की मदद से बांग्लादेश नया देश बना।पाकिस्तानी सेना का साथ देकर बलिदानों की विरासत को धोखा दे रहे लोग: अब 2024 में बेहद दुखद स्थिति नजर आती है। पाकिस्तानी सेना और आईएसआई बांग्लादेश में भारत विरोधी एजेंडा चला रही है। बंगाली आबादी का एक वर्ग उनके समर्थन में है। वे देश को मिली आजादी और इसे हासिल करने के लिए किए गए बलिदानों की विरासत को धोखा दे रहे हैं।उपद्रवियों ने पाकिस्तानी सेना द्वारा भारतीय सैनिकों के सामने आत्मसमर्पण करने वाली प्रतिमा को तोड़ दिया। इंदिरा गांधी सांस्कृतिक केंद्र में तोड़फोड़ की गई। बांग्लादेश के राष्ट्रपिता शेख मुजीबुर रहमान की प्रतिमा को अपवित्र कर गिराया गया। शेख हसीना के इस्तीफे के बाद हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा हुई। हिंदुओं के घर, कारोबार और मंदिर बर्बाद किए गए। बांग्लादेश में ISI और जमात-ए-इस्लामी द्वारा सरकार चलाए जाने की संभावना है। ऐसे में भारत को भयावह वास्तविकता का सामना करना पड़ रहा है। भारत को पाकिस्तान के साथ-साथ पूर्वी हिस्से में बांग्लादेश पर भी नजर रखनी होगी। बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच गठबंधन हुआ तो अस्थिरता का एक नया मोर्चा खुल सकता है। इससे सीमा पार आतंकवाद, अवैध हथियारों की तस्करी और भारत के संवेदनशील पूर्वोत्तर राज्यों में कट्टरपंथी तत्वों की घुसपैठ को बढ़ावा मिल सकता है।भारत के ‘चिकन नेक’ पर भी हो सकता है खतरा: भारत के लिए रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण सिलीगुड़ी कॉरिडोर (जिसे अक्सर ‘चिकन नेक’ के नाम से जाना जाता है) पर भी खतरा हो सकता है। यह कॉरिडोर भारत की मुख्य भूमि को उसके पूर्वोत्तर क्षेत्रों से जोड़ता है। इसके चलते क्षेत्र में भारत को सैन्य और खुफिया संसाधनों को लगाना होगा।समय ऐसा है कि भारत को सावधानी से कदम बढ़ाना होगा। हमें अपनी सीमाओं को मजबूत करने के साथ ही कूटनीतिक चैनलों को ताकत देनी होगी। भारत को ढाका में पाकिस्तान समर्थित सरकार के साथ दीर्घकालिक रणनीतिक मुकाबले के लिए तैयारी करनी चाहिए।शेख हसीना की सेक्लुर नीतियों का यह संगठन घोर विरोधी रहा है, क्योंकि बांग्लादेश में यह सरिया कानून लागू कराना चाहता है. बांग्लादेश की अंतरिम सरकार में संगठन से जुड़े अबुल फैयाज मोहम्मद खालिद हुसैन धार्मिक मामलों के सलाहकार हैं. दैनिक भास्कर ने ‘हिफाजत-ए-इस्लाम’ के वाइस प्रेसिडेंट मुहिउद्दीन रब्बानी से बात की है. रब्बानी भारत में देवबंद से पढ़े हैं, यह संगठन अहमदिया मुसलमानों को भी काफि मानता है।शेख मुजीबुर रहमान की सभी मूर्तियां तोड़नी चाहिए- कट्टरपंथी: रब्बानी ने बताया कि उनका संगठन इस्लाम की हिफाजत के लिए और दीन की शिक्षा लोगों तक पहुंचाने के लिए इंटरनेशनल लेवर पर काम करता है. सगंठन चाहता है कि बांग्लादेश में इस्लामी निजाम कायम हो और लोगों को इंसाफ मिले. रब्बानी ने कहा कि देश में मूर्ति का निर्माण नहीं होना चाहिए, जिन मूर्तियों को बनाया गया है, उन सबको सरकार को तोड़ देना चाहिए. फिलहाल, कैमरे के सामने रब्बानी ने कहा कि मंदिरों की मूर्तियों को नहीं तोड़ना चाहिए. रब्बानी ने कहा कि शेख मुजीबुर रहमान की देशभर में बनी सभी मूर्तियों समेत देश की सभी मूर्तियों को तोड़ देना चाहिए।भारत के हिंदुओं से अपील: कट्टरपंथी संगठन ने कहा कि हमें संगीत और कला बिल्कुल पसंद नहीं है, इसलिए निजामी शासन में ये नहीं चलेगा. महिलाओं को हिजाब के अंदर रहना चाहिए. रब्बानी ने भारत के हिंदुओं से अपील करते हुए कहा कि जैसे हम बांग्लादेश में मंदिरों की सुरक्षा कर रहे हैं, वैसे ही आप भारत में मुसलमानों और उनके धर्म की रक्षा करें. संगठन ने देश की अंतरिम सरकार को लेकर कहा कि अभी तो यह नई-नई बनी है, देखते हैं क्या करती है. हम नई सरकार चुनकर लाएंगे, उसका देश पर शासन होगा। तख्तापलट के बाद भी बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ लगातार हिंसा हो रही हैं. हिंदुओं पर कट्टरपंथियों का कहर जारी है। कट्टरपंथियों का ‘उगाई गैंग’ एक्टिव हो गया है, वो हिंदुओं से उनकी जमीन, दुकान जान के बदले मुगल शासक औरंगजेब की तरह ‘जजिया टैक्स’ मांग रहे हैं। उनसे औरंगजेब की तरह जजिया टैक्स वसूला जा रहा है. बांग्लादेश में बचे हुए हिंदुओं से अब कट्टरपंथी जमात प्रोटेक्शन मनी मांग रहे हैं. फिरौती मांग रहे है। मकान-दुकान न जलाने के लिए मांगा जा रहा पैसा:हिंदुओं से उनकी जमीन, मकान और दुकानें को ना जलाने के लिए पैसा मांगा जा रहा है. इसके लिए कट्टरपंथियों ने बाकायदा रेट तय कर दिए है. संदेश दे दिया गया है कि अगर अपनी जमीन बचानी है तो पांच लाख टका दो वरना जिंदगी भी जाएगी और जमीन तो जाएगी ही। बांग्लादेश की आबादी में तकरीबन 8 प्रतिशत हिंदू हैं. हिंदुओं के खिलाफ हिंसा के 250 से ज्यादा मामले दर्ज किए जा चुके हैं और 5 हिंदुओं की मौत की पुष्टि भी हो चुकी है. हिदुओं की बस्ती जलाई जा रही है। हिंदू महिलाओं को निशाना बनाया जा रहा है और जो हिंदू बचे है. उनसे अब वसूली की जा रही है. बांग्लादेश में हिंदुओं से जजिया टैक्स यानी प्रोटेक्शन मनी की उगाही को लेकर हमने उन लोगों से भी बात की, जिन्होंने बांग्लादेश में लंबा समय बिताया है। भारतीय उपमहाद्वीप में धर्म के नाम पर गैर मुस्लिमों से पैसा वसूलने का पुराना इतिहास रहा है। इस इतिहास में एक बड़ा चैप्टर है मुगल बादशाह औरंगजेब से जुड़ा हुआ। किन मुस्लिम सुल्तानों के राज में हुआ हिंदुओं पर अत्याचार: सबसे पहले दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर बैठे अलाउद्दीन खिलजी ने गैर मुस्लिमों पर जजिया कर लगाया था. 1389 में जब कश्मीर में सिकंदर बुतकशिन का राज आया तो उसने भी गैर मुस्लिमों पर टैक्स लगा दिया जो जजिया जैसा ही था. इसी दौर में गुजरात के एक हिस्से पर राज करने वाले अहमद शाह ने भी गैर मुस्लिमों के मजहब के आधार पर टैक्स लगाया था। मुगल सल्तनत के मजबूत होने के बाद अकबर ने जजिया की प्रथा को खत्म किया गया लेकिन 1679 में औरगंजेब ने दोबारा जजिया कर को लागू कर दिया था। अब यही जजिया टैक्स बांग्लादेश के हिंदुओं पर भी थोप दिया गया है। यानी प्रोजेक्शन मनी के साथ ही साथ कट्टरपंथियों की हिंसा भी हिंदुओं का जीना मुश्किल कर रही है। ठाकुरगांव में कट्टरपंथियों ने एक हिंदू परिवार को निशाना बनाने के लिए हमला किया था। इस परिवार के घर में आग लगा दी गई थी लेकिन आग दूसरे घरों और स्थानीय मंदिर तक फैल गई थी। चौबीस घंटों के अंदर ऐसी ही एक और तस्वीर सामने आई बांग्लादेश के दिनाजपुर जिले से, जहां रात के अंधेरे में कट्टरपंथियों ने हिंदू आबादी वाले एक गांव में आग लगा दी। लोगों के घर और खेत खलिहान फूंक दिए गए. हैरान करने वाली बात ये थी कि इन हिंदुओं की मदद के लिए ना पुलिस आई और ना ही फायर ब्रिगेड. अल्पसंख्यक हिंदुओं को खुद ही सुलगते शोलों से दो दो हाथ करने पड़े। हैरानी में हैं बांग्लादेश के हिंदू: हिंसा प्रभावित हिंदू अब तक ये स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं कि जिन लोगों के साथ उन्होंने हफ्ते भर पहले राजनीतिक बदलाव की खुशी मनाई थी. वही आज उनकी जान के शत्रु बने बैठे हैं।
बांग्लादेशी हिंदुओं की इसी पीड़ा को लेकर भारत के नागरिक भी चिंतित हैं। देश के अलग अलग शहरों में मार्च निकाले जा रहे हैं. बांग्लादेश की हालत को लेकर खुद पीएम मोदी ने अंतरिम प्रधानंत्री मोहम्मद यूनुस से बात की है। लेकिन एक ऐसा देश है. उस देश के कुछ ऐसे काले किरदार हैं। जो बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों को अपनी कामयाबी मान रहे हैं।ऐसा ही एक जहरीला चेहरा है पाकिस्तान में लश्कर का आतंकी, जिसका नाम है आमिर हमजा। उसके जहरीले बोल ये बताने के लिए काफी हैं कि बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ वही गुट, वही लोग हिंसा कर रहे हैं। जिनकी सोच में पाकिस्तान का टेरर डीएनए आज भी मौजूद है. बांग्लादेश में अत्याचारों के शिकार हिंदुओं के अधिकार की मांग लेकर आज दिल्ली में भी मार्च निकाला गया। इस मार्च को नाम दिया गया था नारी शक्ति मार्च।
दिल्ली में निकाला गया नारी शक्ति मार्च: इस मार्च को नारी शक्ति फोरम ने आयोजित किया था. इस मार्च में सैकड़ों लोग शामिल हुए थे. मार्च मंडी हाउस से शुरु हुआ था और जंतर मंतर पर जाकर खत्म हुआ. मार्च में बीजेपी सांसद बांसुरी स्वराज, जेएनयू की वाइस चांसलर शांति श्री जैसे चेहरे शामिल हुए. इस मार्च की थीम रखी गई थी हिंदू लाइव्स मैटर्स. बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद से लगातार स्थानीय हिंदू कट्टरपंथियों के निशाने पर हैं।।सिर्फ दिल्ली ही नहीं देश के अलग अलग शहरों में बांग्लादेश के अल्पसंख्यक हिंदुओं के समर्थन में प्रदर्शन और मार्च हो रहे हैं।

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