बीएचयू गेट पर बिहार में मदरसा जलाने और पाठ्यक्रमो में साम्प्रदायिक दृष्टि से बदलाव किए जाने के ख़िलाफ़ प्रदर्शन

बिहार में मदरसा जलाने वाले और सांप्रदायिक हिंसा में संलिप्त गुंडों को तत्काल गिरफ्तार करो और सजा दो।

शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में सांप्रदायिक छेड़छाड़ बंद करो।

वाराणसी: बुधवार को बीएचयू गेट ओर बनारस के स्टूडेंट और नागरिक समाज की ओर से एक जोरदार प्रदर्शन आयोजित हुआ। बिहार में कट्टरपन्थीयों द्वारा मदरसा जलाए जाने और शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में साम्प्रदायिक ऐंगल से कांट छांट के खिलाफ ये प्रदर्शन आयोजित हुआ।
प्रदर्शन में सद्भावना जिंदाबाद। हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई आपस में हैं भाई भाई । धर्मनिरपेक्षता जिंदाबाद आदि नारे लिखे तख्तियां आकर्षण का केंद्र रहीं।

प्रदर्शन में सवाल उठाया गया कि जिन्होंने इस मदरसे को जलाया है उनकी शत्रुता क्या केवल उर्दू ज़ुबान से है ? ऐसा नही है कि सिर्फ उर्दू से ही दिक्कत है। ये विध्वंशक काम करने वाली सोच दक्षिणपंथी विचारधारा की है। धार्मिक त्योहारों और शोभा यात्राओं का सांप्रदायिकरण भाजपा-आरएसएस का राजनीतिक चलन हो चुका है। युवाओं से रोजगार छीनकर उन्हें दंगाई बनाने की घिनौनी साजिश चिंता का विषय है। अल्पसंख्यक समाज पर लगातार हमले बढ़ रहे हैं। मस्जिदों-गिरजाघरों को हिंसक भीड़ के हवाले कर दिया जा रहा है। ऐसी घटनाएं सभ्य और लोकतांत्रिक समाज के खिलाफ जाती हैं। बिहार की घटना भी इसी कड़ी का हिस्सा है जो हमें शर्मशार करती है। दक्षिणपंथी विचार धारा की पार्टी बीजेपी यूपी में सत्ता में है। केंद्र में भी बीजेपी की सरकार है। पढ़ाई का बोझ कम करने के नाम पर पाठ्यक्रम में कटौती की जा रही है। आप देखिए मध्यकालीन भारत के इतिहास में मुगल काल के सारे पाठ काट दिए गए हैं। अब 1857 की क्रांति के मुखिया बहादुर शाह जफर रहे ये बच्चे कैसे जानेंगे ? उस दौर को नही पढ़ाएंगे तो सुर तुलसी कबीर रैदास को पढ़ना समझना भी कैसे हो पाएगा ये समझ से परे है।

इसी क्रम में खबर आई है कि निराला पन्त और फिराक गोरखपुरी के पाठ भी हटाए जा रहे हैं। यंहा तक अखबारों में आ रहा है कि सुरेंद्र मोहन , गुलशन नंदा के सड़क छाप उपन्यास पढ़ने पढाने की भी बात चल रही है। तो ऐसे में ये लोग सिर्फ उर्दू विरोधी नही है। असल मे ये शिक्षा विरोधी है। ज्ञान विरोधी हैं।

बनारस की बात करें तो एक लाख से ज्यादा किताबों से भरी कारमाइकल लाइब्रेरी बनारस के बौरहवा विकास की जद में आने के कारण विस्थापित कर दी गयी। राजा शिव प्रसाद सितार ए हिन्द इस लाइब्रेरी के पहले अध्यक्ष रहे। 1872 में बनारस की पहली सार्वजनिक लाइब्रेरी थी ये। मुंशी प्रेमचंद, भारतेंदु हरिश्चंद्र, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, हजारी प्रसाद द्विवेदी समेत विद्वान पुस्तकालय हॉल की रौनक हुआ करते थे। डा. संपूर्णानंद के साथ साथ पूर्व मुख्यमंत्री कमला पति त्रिपाठी तीन दशक तक अध्यक्ष रहे थे।

इस लाइब्रेरी को धरोहर के रूप में संरक्षित करने की जरूरत थी। हमारे पुरखे इन्ही कुर्सियों में बैठे थे। इसी आलमारी को छुए थे। इसी सीढ़ी से चढ़े उतरे थे। इसे संरक्षित करने की जगह हमने विस्थापित कर दिया।

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