मैथिली साहित्य के सुविख्यात साहित्यकार पंडित गोविंद झा का 102 वर्ष की आयु में निधन
सिलीगुड़ी: बंगाल बिहार सीमांचल के मैथिल और संस्कृत के मूर्धन्य विद्वान पंडित यशोधर झा को गुजरे अभी 1 वर्ष भी नहीं हुआ की फिर एक बार मैथिली साहित्य के सुविख्यात साहित्यकार पंडित गोविंद झा का 102 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनके निधन से पूरा साहित्य जगत शोकाकुल है। निधन की खबर से बंगाल बिहार सीमावर्ती क्षेत्र में शोक की लहर है। बिहार की इस अपूरणीय क्षति पर बिहार सरकार के मंत्री संजय कुमार झा ने भी दु:ख व्यक्त किया है। पत्रकार अशोक झा, रत्नेश्वर झा , अमित झा रेल से सेवा निवृत स्टेशन प्रबंधक प्रेम नंदन झा, तपन झा, अरुण झा आदि ने कहा की मैथिली साहित्य में उनका योगदान भुलाया नहीं जा सकता। एक नंबर वार्ड सिलीगुड़ी के पार्षद संजय पाठक, विद्यापति मंच के अधिकारी विनोद झा, पंकज झा, बबीता झा, और पदाधिकारी ने दु: ख व्यक्त किया है।
उन्होंने दिवंगत पंडित गोविंद झा के निधन को मैथिली साहित्य को कभी न पूरी की जाने वाली क्षति बताया है। उन्होंने अपनी पीड़ा प्रकट करते हए कहा कि श्रीहरि से प्रार्थना है कि दिवंगत पुण्यात्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दें और उनके शोकाकुल परिजनों को संबल प्रदान करें। संजय झा ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर लिखा, ओह! मैथिली साहित्य के युग पुरुष को विनम्र श्रद्धांजलि। साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित मैथिली के वरिष्ठ साहित्यकार पंडित गोविन्द झा जी के निधन से मैथिली जगत को अपूरणीय क्षति पहुंची है। वरिष्ठ पत्रकार अशोक झा ने कहा की मधुबनी जिले के ईसहपुर गांव में 10 अक्टूबर 1923 को जन्मे श्रद्धेय गोविंद झा जी ने पिछले दिनों अपने जीवन की शतकीय पारी पूरी की थी, लेकिन उनकी लेखनी अनवरत चल रही थी। संजय झा ने आगे लिखा, मैथिली के साथ-साथ हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, बांग्ला, नेपाली सहित कई भाषाओं के विद्वान श्रद्धेय गोविंद झा जी ने 80 से अधिक किताबें लिखीं। कथा संग्रह ‘सामाक पौती’ के लिए 1993 में उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया। बिहार सरकार के राजभाषा विभाग से सेवानिवृत्त पंडित झा ने बसात, रूक्मिणीहरण, लोढ़ानाथ जैसे बहुचर्चित नाटकों की रचना कर मैथिली में एक नये अध्याय की शुरुआत की। आपने मैथिली शब्दकोश का निर्माण भी किया, जो कल्याणी कोष के नाम से ख्यात है. साहित्य जगत के ऐसे मनीषी का जाना अत्यंत दु:खद है। विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित हुए पंडित गोविंद झा
बता दें कि पंडित गोविंद झा को साहित्य अकादमी का मूल और अनुवाद का पुरस्कार 1993 में प्राप्त हुआ था। फादर कमिल बुल्के पुरस्कार 1988 में मिला था। वर्ष 2008 में उन्हें प्रबोध साहित्य सम्मान, रांची से विश्वंभर सााहित्य सम्मान भी मिला. चेतना समिति से ताम्रपत्र दिया गया था। राजभाषा विभाग में अनुवाद पदाधिकारी और मैथिली अकादमी में उप निदेशक पद से रिटायर हुए थे। पंडित गोविंद झा की पारिवारिक पृष्ठभूमि
मैथिली और संस्कृत के विद्वान पंडित गोविंद झा का जन्म 10 अगस्त, 1922 को बिहार के मधुबनी जिला के इसहपुर (सरिसब-पाही) नामक एक संभ्रांत और विद्वानों से भरे-पूरे गांव में हुआ. इनका पैतृक परिवार संस्कृत वांग्मय में संपूर्ण रूप से रचा बसा परिवार था. पंडित गोविंद झा के पिता महा वैयाकरण पंडित दीनबंधु झा स्वयं संस्कृत और मैथिली के पारगामी विद्वान माने जाते थे. उनके पैतृक परिसर का मिथिला के शिक्षा एवं साहित्य-संस्कृति में उल्लेखनीय योगदान था।
पंडित गोविंद झा की उपलब्धियों की गिनती नहीं
पंडित गोविंद झा के 102 वर्ष के जीवनकाल में 75 वर्षों से अधिक का लेखन काल रहा। पंडित गोविंद झा ने 3 उपन्यास, 3 कथा-संग्रह, 7 नाटक, एक कविता संग्रह, 6 आलोचनात्मक निबंध संग्रह, दो जीवनी-विनिबंध, 13 भाषा-ग्रंथ, 4 कोष-ग्रंथ, 8 संपादित-ग्रंथ, 8 अनुवाद सहित बिब्लियोग्रैफी ऑफ इंडियन लिटरेचर (मैथिली प्रभाग) और इनसाइक्लोपीडिया ऑफ इंडियन लिटरेचर के निर्माण में भी अपना योगदान दिया. इस प्रकार इन्होंने 56 पुस्तकों की रचना की।
पंडित गोविंद झा के योगदान से आह्लादित साहित्य जगत
साहित्य लेखन में गोविंद झा ने कथा, कविता, नाटक आदि रचना में समकालीन मिथिला के सामाजिक-सांस्कृतिक शैक्षणिक कुरीतियों-पाखंडों को बड़ी ही निर्ममता के साथ उजागर किया था. वहीं, उपन्यास लेखन में मिथिला के इतिहास-प्रसिद्ध नायकों को स्थान दिया। इतिहास लेखन में भी इनका महत्वपूर्ण योगदान है। शब्दकोश निर्माण के क्रम में इन्होंने मैथिली सहित हिंदी, अंग्रेजी, बांग्ला, नेपाली, अवहट्ट, प्राकृत आदि भाषाओं के लिए भी प्रशंसनीय कार्य किए। उनके बताए मार्ग पर चलकर आगे बढ़ना हो उनके निधन पर सच्ची श्रद्धांजलि होगी। @ रिपोर्ट अशोक झा