बारूद के ढेर पर बैठा है बंगाल, पटाखे की अवैध फैक्ट्रियों में बनता है मौत का सामान

बारूद के ढेर पर बैठा है बंगाल, पटाखे की अवैध फैक्ट्रियों में बनता है मौत का सामान
– इलाके में चल रहे हैं इस तरह से 40 से 50 छोटे-छोटे कारखाने ,अप्रैल से लेकर दिसंबर तक बढ़ जाती है पटाखों की मांग
कोलकाता: अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से घिरा बंगाल बारुद के ढेर पर बैठा है। दीपावली को लेकर अवैध और प्रतिबंधित पटाखों की धर पकड़ की जा रही है। लेकिन आश्चर्य की बात है कि बंगाल में अवैध फाटक का फैक्ट्री के आड़ में चल रहे अवैध राष्ट्रीय विरोधी गतिविधियों पर नकेल नहीं कसा जा रहा है। बंगाल के सभी चुनाव में भाजपा के शीर्ष नेताओ यहां तक कि
प्रधानमंत्री द्वारा कहां जाता रहा है कि बंगाल में अब रोजी रोजगार के लिए उद्योग धंधा बंद करवाए गए है और बम बंदूक के कारखाने तैयार किया जा रहे हैं। यह कथन सत्य भी प्रतीत होता है। पटाखे की अवैध फैक्ट्रियों में समय-समय पर होने वाले विस्फोटों को लेकर प्रशासन सवालों के घेरे में आता रहा है। कालीपूजा और दीपावली के समय प्रशासन कानून के पालन के नाम पर लोगों को तेज ध्वनि वाले पटाखे फोड़ने से रोकता है। पटाखे की अवैध फैक्ट्रियों में समय-समय पर होने वाले विस्फोटों को लेकर प्रशासन सवालों के घेरे में आता रहा है। कालीपूजा और दीपावली के समय प्रशासन कानून के पालन के नाम पर लोगों को तेज ध्वनि वाले पटाखे फोड़ने से रोकता है। बंगाल में इन दिनों अवैध पटाखा कारखाने मौत का सबब बनते जा रहे हैं।. हाल ही में महानगर से करीब 35 किलो दूर स्थित उत्तर 24 परगना जिले के दत्तपुकुर थानांतर्गत नीलगंज के मोशपोल इलाके में एक अवैध पटाखा कारखाने में हुए विस्फोट में नौ लोगों की जान चली गयी थी और कई लोगों की जिंदगी को तबाह कर दिया था। कई लोग अब भी उस घटना को नहीं भूल पा रहे हैं। हालांकि यह कोई पहली घटना नहीं थी, बल्कि ऐसे कई अवैध पटाखा कारखानों में विस्फोट की घटना हो चुकी है और कई लोगों की जान भी जा चुकी है। बंगाल में इन दिनों ऐसे पटाखे कारखाने मौत का सबब बनते जा रहे हैं। स्थानीय लोगों और आईएसएफ नेता नौशाद सिद्दीकी ने कहा कि ”सट्टेबाजी की आड़ में यहां बम बनाये गये। सभी मंत्रियों और पुलिस को अपने हिस्से का पैसा यहीं से मिलता था। घटना की जांच एनआईए से कराने की जरूरत है। उसके बाद भी प्रशासन की नींद नहीं खुली है। घटना के बाद ही खुलती है प्रशासन की नींद : हर बार घटना के बाद ही प्रशासन की नींद खुलती है और अभियान चलाये जाते हैं, लेकिन कुछ दिनों तक यह अभियान जारी रहने के बाद फिर जस की तस पहले जैसे ही अवैध पटाखा कारखाने धीरे-धीरे चोरी-छिपे चलने लगते हैं और फिर किसी दिन थोड़ी-सी लापरवाही लोगों की जान ले लेती है। यह हाल सिर्फ उत्तर 24 परगना के बारासात के दत्तपुकुर में ही नहीं, बल्कि राज्य के दक्षिण 24 परगना, पूर्व मेदिनीपुर, पश्चिम मेदिनीपुर, मालदा समेत कई जिलों में सुदूर ग्रामीण अंचलों में ऐसे अवैध पटाखों के कारखाने हैं, जहां काम करनेवाले मजदूरों की थोड़ी-सी लापरवाही के कारण बड़ी घटना हो जाती है और जान गवां बैठते हैं।
पिछले कुछ सालों में अवैध पटाखा कारखानों में हुईं घटनाओं पर एक नजर
20 अक्तूबर 2014 : बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले में एक अवैध पटाखा कारखाने में विस्फोट के साथ-साथ आग लग गयी थी और दो लोगों की मौत हो गयी थी।
6 मई 2015 : पश्चिम मेदिनीपुर के पिंगला में अवैध पटाखा कारखाने में विस्फोट की घटना हुई थी, जिसमें 12 लोगों की मौत हुई थी. इस घटना ने अवैध पटाखा कारखाने को लेकर सवाल खड़ा कर दिया था।
14 सितंबर 2016 : हावड़ा जिले के बागनान में पटाखा कारखाने में विस्फोट हुई थी, जिसमें एक वृद्धा की जान चली गयी थी। 20 सितंबर 2016 : दक्षिण 24 परगना में अवैध पटाखा कारखाने में विस्फोट से भीषण आग लग गयी थी, जिसमें आस-पास क्षेत्र में भी काफी नुकसान हुआ था, हालांकि किसी की मौत नहीं हुई थी। 17 अक्तूबर 2016 : उत्तर 24 परगना जिले के नीलगंज के जगन्नाथपुर में अवैध पटाखा कराखाने में विस्फोट की घटना में 13 साल के एक मासूम की मौत हुई थी। 25 सितंबर 2017 : उत्तर 24 परगना जिले के आमडांगा में पटाखा कारखाने में विस्फोट हुई थी, जिसमें 20 लोग झुलस कर बुरी तरह से घायल हो गये थे. इलाके में हड़कंप मच गया था।14 जुलाई 2017 : दक्षिण 24 परगना के चंपाहाटी में पटाखा कारखाने में विस्फोट की घटना हुई थी, जिसमें एक की मौत हुई थी और तीन लोग गंभीर रूप से घायल हो गये थे।07 अक्तूबर 2018 : दक्षिण 24 परगना जिले के सोनापुर में पटाखा फैक्टरी में आग लग गयी थी, जिसमें एक की मौत हुई थी, जबकि 12 लोग बुरी तरह से घायल हुए थे।03 जनवरी 2020 : उत्तर 24 परगना जिले के नैहाटी में अवैध पटाखे कारखाने में आग लगी थी, जिसमें पांच लोगों की मौत हुई थी। 01 दिसंबर 2021 : दक्षिण 24 परगना के नोदाखाली में पटाखा कारखाने में विस्फोट की घटना हुई थी, जिसमें तीन लोगों की जान गयी थी।20 मार्च 2022 : दक्षिण 24 परगना जिले के महेशतला में पटाखा कारखाने में विस्फोट में तीन लोगों की मौत हो गयी थी।दिसंबर 2022 : पूर्व मेदिनीपुर के भूपतिनगर में पटाखा फैक्टरी में विस्फोट हुआ था, जिसमें तीन लोगों की मौत हुई थी। 16 मई 2023 : पूर्व मेदिनीपुर के एगरा में अवैध पटाखा फैक्टरी में विस्फोट से इलाका दहल उठा था. 12 लोगों की मौत हुई थी. घटना से हड़कंप मच गया था। 22 मई 2023 : दक्षिण 24 परगना जिले के बजबज में अवैध पटाखा कारखाने में विस्फोट में तीन लोगों की मौत हुई थी।23 मई 2023 : मालदा जिले के इंग्लिशबाजार में अवैध पटाखा कारखाने में विस्फोट के साथ आग लग गयी थी, जिसमें दो लोगों की मौत हो गयी थी और दो लोग घायल हो गये थे।पटाखों के कारखाने में महिलाएं भी करती है काम: बंगाल के सुदूर ग्रामीण अंचलों में खासकर अवैध पटाखों के कारखाने चोरी-छिपे चलाये जाते हैं, जहां दो वक्त की रोटी के लिए जान हथेली पर लेकर महिलाएं भी काम करती हैं. इन कारखानों में किशोर और मजदूर भी बड़ी संख्या में काम करते हैं और थोड़ी सी लापरवाही के कारण कई बार बड़े धमाके, तो अगलगी जैसी घटनाओं में उन्हें अपनी जान गवानी पड़ती है. इनमें उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना के साथ-साथ पश्चिम मेदिनीपुर, पूर्व मेदिनीपुर समेत कई जिलों में ऐसे अवैध पटाखा कारखानों के ठिकाने हैं, जहां अवैध तरीके से पटाखा कारखाने चलाये जाते हैं।अवैध पटाखा कारखाने में विस्फोट की घटनाएं बढ़ती जा रही है। इन कारखानों में काम करने के लिए गरीब व मुफलिसी में जिंदगी गुजारनेवाले लोग मजबूर होकर दो वक्त की रोटी के लिए यहां काम करते हैं. इसका जीता-जागता उदाहरण हाल ही में दत्तपुकुर स्थित नीलगंज में अवैध पटाखा कारखाने में विस्फोट की घटना. इसमें नौ लोगों की जान चली गयी थी, जिसमें कई बाहरी मजदूर, तो कई किशोर भी थे, तो कई आस-पास के घरों की महिलाएं भी थीं, जो जख्मी हुई थीं. यही नहीं, दत्तपुकुर के नीलगंज के उक्त अवैध पटाखा कारखाने में विस्फोट की घटना से छह माह पहले भी उस अंचल में पटाखा कारखाने में विस्फोट की घटना हुई थी।
प्रति माह करखाने में काम करके आठ से दस हजार रुपये कमा लेता है परिवार: सात साल पहले 17 अक्तूबर 2016 को कोलकाता से दूर उत्तर 24 परगना जिले के बारासात के नीलगंज के जगन्नाथपुर इलाके में एक अवैध पटाखा कारखाने में पटाखे तैयार करने के दौरान ही विस्फोट में 13 साल से मासूम राहुल दास की मौत हो गयी थी. वहां आज भी कई किशोर और महिलाएं ऐसे अवैध पटाखा कारखानों में काम करते है. दत्तपुकुर के नीलगंज के मोशपोल इलाके की राबिया बीबी नाम की एक महिला, जो कभी उसी कारखाने में काम करती थी. विस्फोट के कारण ही हाथ झुलस गये थे, जिसके निशान अभी भी उसके हाथों पर मौजूद हैं. स्थानीय अली हुसैन ने बताया कि एक परिवार पूरे दिन काम करके प्रति माह आठ से दस हजार रुपये कमा लेता है, जिस कारण लोग इस अवैध धंधे में लिप्त रहते हैं. हालांकि पुलिस की सक्रियता से अभी कमा है।पटाखा विस्फोट मेंघायल होने पर इलाज के लिये नहीं जाते है अस्पताल: उन्होंने बताया कि कारखाने से जुड़े लोग बारूद व पटाखा बनाने के मैटेरियल उसके घर दे जाते थे, वह उसे घर पर ही बनाती थी. एक दिन अचानक उसके हाथ में ही पटाखा विस्फोट हो गया था, जिससे उसके हाथ जल गये, लेकिन वह अस्पताल नहीं गयी. डर से घर पर ही इलाज कराती रही. उसका कहना है कि यहां ऐसे कई अवैध पटाखा कारखाने हैं, जहां 100 पटाखे बांधने पर 110 रुपये मिलते हैं और इस काम में इलाके की महिलाओं से लेकर किशोर भी जुड़े हैं. अब यह काम घर-घर एक लघु उद्योग की तरह फैल चुका है. लेकिन मोशपोल में अवैध पटाखा कारखाने में विस्फोट की घटना के बाद फिलहाल थोड़ा थमा है।बाहरी क्षेत्र के दैनिक मजदूर के आकर करते है काम : दत्तपुकुर के स्थानीय लोगों ने बताया कि यहां ज्यादातर घरों के लोग इस पेशे से जुड़े हैं, जो पटाखे तैयार करते हैं. कारखाने से बारूद व मसाला लेकर पटाखे तैयार करके वापस देते हैं, इसके बदले में उन्हें पैसे मिलते हैं. आलू बम व उससे भी छोटे पटाखे बनाये जाते हैं. अधिकतर महिलाओं के साथ ही किशोर भी इस पेशे में हैं, जो इस अंचल का लघु उद्योग जैसा बन गया है. इलाके के सैकड़ों लोग और बाहरी क्षेत्र के दैनिक मजदूर के आकर काम करते हैं, जो बिना किसी सुरक्षा उपाय के ही इस गतिविधि में संलग्न रहते हैं. दत्तपुकुर की घटना के बाद पता चला कि वहां करीब सौ स्थानीय महिलाएं पटाखों की पैकिंग के काम से जुड़ी थीं।स्थानीय लोगों ने साफ तौर पर कहा है कि इलाके में इस तरह से 40 से 50 छोटे-छोटे कारखाने चल रहे हैं, जहां मासूम बच्चों के साथ-साथ गरीब मजदूर और महिलाएं काम करती हैं. वे अपने ही बच्चों को स्कूलों की छुटि्टयों के दिनों में पटाखा बनाने के काम में लगा देते हैं. उन्हें मजदूरी के तौर पर पटाखे बांधने के हिसाब से पैसे मिलते हैं. ऐसी अवैध पटाखा फैक्ट्रियों के कारण ही हर साल दो तीन लोगों की जान चली जाती है. सिर्फ दत्तपुकुर ही नहीं बल्कि पूर्व मेदिनीपुर जिले के एगरा इलाके में भी ऐसे ही लोग अवैध पटाखा बनाने के कारखानों से जुड़े हैं। जानकारी के मुताबिक, स्थानीय लोगों का मानना है कि अप्रैल-मई से लेकर अक्तूबर-दिसंबर तक पटाखों की भारी मांग बढ़ जाती है, जिस कारण से इन अवैध पटाखा कारखानों के मालिक इसकी तैयारी में जुट जात हैं. कम समय में ताबड़तोड़ प्रोडक्शन कैसे हो, इसकी जुगत में लग जाते हैं. जिन कारणों से दुर्गापूजा-कालीपूजा व त्योहार से पहले अक्सर घटनाएं होती हैं। रिपोर्ट अशोक झा

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