मणिपुर हिंसा के बीच नौ मेइती चरमपंथी समूहों पर प्रतिबंध लगाया, ज्यादातर मणिपुर में सक्रिय
सिलीगुड़ी: मणिपुर में जारी हिंसा के बीच केंद्र सरकार ने मैतेई समुदाय से जुड़े कुछ कट्टरपंथी संगठनों पर बैन लगा दिया है। सरकार ने ट्रैक रिकॉर्ड देखते हुए पीपल लिबरेशन आर्मी, यूनाइटेड नेशनल फ्रंट, मणिपुर पीपल आर्मी पर पांच साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया है। केद्रीय गृह मंत्रालय ने मणिपुर में जनजातीय संघर्ष के बीच चर्चा में आए मैतेई समुदाय से जुड़े होने का दावा करने वाले तीन संगठनों को गैरकानूनी करार दिया है। गृह मंत्रालय की तरफ से जारी अधिसूचना में बताया गया कि मैतेई चरमपंथी संगठनों-पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) और इसकी राजनीतिक शाखा, रिवोल्यूशनरी पीपुल्स फ्रंट (आरपीएफ), यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यूएनएलएफ) और इसकी सशस्त्र शाखा मणिपुर पीपुल्स आर्मी (एमपीए) अगले पांच साल के लिए प्रतिबंधित संगठन होंगे। गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत इन्हें ‘गैरकानूनी संघ’ घोषित कर दिया गया। सरकार का मानना है कि ये संगठन मणिपुर में सुरक्षा बलों, पुलिस और नागरिकों पर हमलों व हत्याओं में शामिल हैं। साथ ही ये देश की संप्रभुता और अखंडता के लिए खतरा हैं। गृह मंत्रालय की ओर से जिन मेइती संगठनों को गैरकानूनी घोषित किया गया है, वे इस प्रकार से हैं- पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) और इसकी राजनीतिक शाखा रिवोल्यूशनरी पीपुल्स फ्रंट (RPF), यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (UNLF) और इसकी सशस्त्र शाखा मणिपुर पीपुल्स आर्मी (MPA), पीपुल्स रिवोल्यूशनरी पार्टी ऑफ कांगलेईपाक (PREPAK) और इसकी सशस्त्र शाखा रेड आर्मी, कांगलेइपाक कम्युनिस्ट पार्टी (KCP) और इसकी सशस्त्र शाखा ‘रेड आर्मी’, कांगलेई याओल कनबा लुप (KYKL), समन्वय समिति और एलायंस फॉर सोशलिस्ट यूनिटी कांगलेइपक (ASUK) और उनके सभी गुट विंग और फ्रंट। ये प्रतिबंध सोमवार से अगले 5 साल तक लागू रहेंगे। मणिपुर को स्वतंत्र राष्ट्र बनाना संगठनों का मकसद होम मिनिस्ट्री के मुताबिक, इन संगठनों का घोषित टारगेट सशस्त्र संघर्ष से मणिपुर को भारत से अलग करके स्वतंत्र राष्ट्र बनाना रहा है। इसे लेकर ये राज्य के स्थानीय लोगों को अलगाववाद के लिए उकसाते रहे हैं। नोटिफिकेशन में कहा गया, ‘केंद्र सरकार की राय है कि मेइती चरमपंथी संगठन भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिए हानिकारक गतिविधियों में शामिल हैं। वे अपना मकसद हासिल करने के लिए सशस्त्र साधनों को जुटाते हैं। ये संगठन मणिपुर में सुरक्षा बलों, पुलिस और नागरिकों पर हमले करते हैं और उसकी हत्याओं को अंजाम देते हैं। संगठनों के लिए धन इकट्ठा करने की खातिर आम नागरिकों को डराने-धमकाने, जबरन वसूली और लूटपाट के कृत्यों में शामिल रहे हैं। जनता की राय को प्रभावित करने और उनकी सुरक्षा के नाम पर विदेशी स्रोतों से संपर्क बनाना भी इनका काम है। हथियारों, गोला-बारूद की गुप्त खरीद और ट्रेनिंग के लिए इन्होंने पड़ोसी देशों में शिविर भी बनाए हैं।’ मणिपुर की जातीय हिंसा में 180 से अधिक लोगों की मौत
गौरतलब है कि मणिपुर में 3 मई को जातीय हिंसा भड़कने के बाद से सितंबर में कुछ दिनों को छोड़कर मोबाइल इंटरनेट पर प्रतिबंध लगा हुआ है। राज्य में मेइती समुदाय की ओर से अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने की मांग का विरोध हुआ था। इसे लेकर पहाड़ी जिलों में आदिवासी एकजुटता मार्च के आयोजन के बाद जातीय हिंसा भड़क गई, जिसमें अब तक 180 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। मणिपुर की आबादी में मेइती समुदाय की हिस्सेदारी लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं। वहीं, नगा और कुकी जैसे आदिवासी समुदायों की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत है और वे ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं। @रिपोर्ट अशोक झा