राशन घोटाला की राशि पहुंच रही थी बंगाल में मंत्री के ससुराल तक

कोलकाता: बंगाल के राशन घोटाले में भ्रष्टाचार की राशि एक हजार करोड़ रुपये के करीब पहुंच सकती है। ईडी सूत्रों ने दावा किया है कि घोटाले में गिरफ्तार पूर्व खाद्य मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक व उनके करीबी चावल मिल मालिक बाकिबुर रहमान से पूछताछ और तलाशी से जो जानकारियां सामने आई है, उससे रकम इतनी अधिक होने की संभावना है। बंगाल के राशन घोटाले में भ्रष्टाचार की राशि एक हजार करोड़ रुपये के करीब पहुंच सकती है। ईडी सूत्रों ने दावा किया है कि घोटाले में गिरफ्तार पूर्व खाद्य मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक व उनके करीबी चावल मिल मालिक बाकिबुर रहमान से पूछताछ और तलाशी से जो जानकारियां सामने आई है, उससे रकम इतनी अधिक होने की संभावना है। पश्चिम बंगाल में करोड़ों रुपये के राशन वितरण घोटाले की जांच कर रहे प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को कुछ खास सुराग मिले हैं। पता चला कि गिरफ्तार मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक की सास और साले के बैंक खाते का इस्तेमाल कथित घोटाले की आय को इधर से उधर करने के लिए किया गया था। इससे पहले ईडी ने मंत्री की पत्‍नी और बेटी के बैंक खातों का भी इसी काम के लिए इस्तेमाल किए जाने की जानकारी दी थी। सूत्रों ने कहा कि केंद्रीय एजेंसियों को यह भी विशिष्ट सुराग मिले हैं कि फंड डायवर्जन के लिए अपने बैंक खातों का उपयोग करने के अलावा, मंत्री की सास और साले को 10 शेल कॉर्पोरेट संस्थाओं में से तीन में कुछ समय के लिए निदेशक बनाया गया था।
जिन कंपनियों में मंत्री के ससुराल वालों को एक निश्चित अवधि के लिए निदेशक बनाया गया था, वे मुख्य रूप से कोलकाता के व्यवसायी बकीबुर रहमान से जुड़े थे, जो राशन वितरण मामले में ईडी द्वारा गिरफ्तार किए जाने वाले पहले व्यक्ति थे।
तीन संदिग्ध कॉर्पोरेट संस्थाएं जहां मंत्री की सास और बहनोई निदेशक थे, वे हैं श्री हनुमान रियलकॉन प्राइवेट लिमिटेड, ग्रेसियस इनोवेटिव प्राइवेट लिमिटेड और ग्रेसियस क्रिएशन प्राइवेट लिमिटेड।।ईडी के निष्कर्षों के अनुसार, इन तीन संस्थाओं को फंड डायवर्जन के एकमात्र उद्देश्य से सीमित समय के लिए जारी किया गया था। रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज (आरओसी) के रिकॉर्ड के अनुसार, श्री हनुमान रियलकॉन और अन्य दो संस्थाएं बंद हो चुकी हैं। ईडी के निष्कर्षों के अनुसार, घोटाले की 23 करोड़ रुपये की आय तीन फर्जी कॉर्पोरेट संस्थाओं के जरिए डायवर्ट किया गया था। जैसा कि ईडी ने अनुमान लगाया है, ये भुगतान 2011 के अंत तक शुरू हो गए थे और 2021 की शुरुआत तक जारी रहे। इस अवधि के दौरान, निवर्तमान वन मंत्री ज्योतिप्रिय मलिक, जो वर्तमान में मामले के सिलसिले में न्यायिक हिरासत में हैं, ने खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री के रूप में कार्य किया था। वर्तमान में, पश्चिम बंगाल में लगभग 21 हजार 500 राशन दुकानें संचालित हो रही हैं।अनियमितताओं के एक दूसरे पहलू के बारे में भी जानकारी मिली है जिसमें फर्जी राशन दुकानों की एक श्रृंखला के बारे में पता चला है। सूत्रों ने कहा कि ईडी ने 300 ऐसी दुकानों की पहचान की है, जिनके राशन लाइसेंस केवल कागजों पर थे और उनकी कोई भौतिक उपस्थिति नहीं थी। ईडी अधिकारियों का मानना है कि इन फर्जी संस्थाओं के माध्यम से केंद्र सरकार से खरीदी गई आवश्यक खाद्य वस्तुएं खुले बाजार में प्रीमियम कीमतों पर बेची गईं जो सीधे आरोपित व्यक्तियों के पास गईं। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए आवंटन का एक हिस्सा खुले बाजार में बेचने के लिए भेज दिया गया और दूसरा, फर्जी किसान सहकारी समितियों के माध्यम से न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम कीमत पर बाजार के लिए खरीदा गया धान फिर से खुले बाजार में प्रीमियम मूल्य पर बेच दिया गया। चार अनियमितताओं की पहचान के साथ, ईडी का अनुमान है कि घोटाले की कुल राशि एक हजार करोड़ रुपये को पार कर जाएगी। हर माह चार हजार रुपये की दी गई रिश्वत
सूत्रों के मुताबिक, राज्य की करीब 21,300 राशन दुकानों में से ज्यादातर के मालिकों (चाहे वह भ्रष्टाचार में शामिल हों या नहीं) को राज्य खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के उच्च अधिकारियों को प्रति माह बतौर रिश्वत 4,000 रुपये देने के लिए मजबूर किया गया था। इसके बदले उन्हें अपनी दुकान चालू रखने व खुले बाजार में राशन सामग्री बेचने की छूट मिली हुई थी।
यह भुगतान 2011 के अंत तक शुरू हो गया था और 2021 की शुरुआत तक जारी रहा। इस अवधि के दौरान वसूली गई रकम 700 करोड़ रुपये से कम नहीं होगी। इस अवधि के दौरान ज्योतिप्रिय मल्लिक ने खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री के रूप में कार्य किया था।
राशन सामग्री बेचकर जुटाए गए करीब 200 करोड़ रुपये
जांचकर्ताओं का अनुमान है कि 300 से ज्यादा फर्जी राशन दुकानों के नाम पर खुले बाजार में राशन सामग्री बेचकर करीब 200 करोड़ रुपये जुटाए गए हैं। यह राशि सीधे आरोपितों के पास गई। धान खरीद के मामले में भी फर्जी किसानों के नाम पर बैंक खाते खोलकर सब्सिडी मूल्य के कम से कम 100 करोड़ रुपये निकाले गए हैं। @ रिपोर्ट अशोक झा

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