सम्मान के साथ टीएमसी से समझौता को तैयार है कांग्रेस , ममता के खेल में फंसती जा रही पार्टी

नई दिल्ली: कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने आगामी 2024 लोकसभा चुनाव की तैयारियों पर चर्चा के लिए बुधवार को पश्चिम बंगाल और ओडिशा में पार्टी नेताओं के साथ बैठक की अध्यक्षता की। बंगाल में लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस कांग्रेस के लिए सिर्फ दो सीटें छोड़ना चाहती है। ऐसी झलक तृणमूल नेता ममता बनर्जी ने दी। तृणमूल इस सीट समझौते को 31 दिसंबर तक पूरा करना चाहती है। अखिल भारतीय बैठक में ममता ने कांग्रेस नेतृत्व को ऐसा प्रस्ताव दिया। इसके बाद एआईसीसी ने प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व को दिल्ली तलब किया। अधीर के नेतृत्व में प्रदेश कांग्रेस के चार सदस्य बुधवार को बैठक में शामिल होने के लिए दिल्ली गये थे। बैठक में प्रदेश नेतृत्व ने साफ कहा कि गठबंधन सम्मानजनक शर्तों पर होना चाहिए। कांग्रेस सिर्फ दो नौ राज्यों में कुल 6 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है। अधीर चौधरी-दीपा दशमुंशी ने तृणमूल के साथ सीट समझौते पर बातचीत की जिम्मेदारी आलाकमान पर छोड़ दी है। बुधवार को दिल्ली के 24 नंबर अकबर रोड पर राज्य में तृणमूल के साथ बैठक हुई। बैठक में राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, केसी बेनुगोपाल समेत अखिल भारतीय कांग्रेस के शीर्ष नेता मौजूद रहे। प्रदेश कांग्रेस की ओर से अधीर चौधरी, दीपा दासमुंशी, नेपाल महतो, शंकर मालाकार व अन्य उपस्थित थे। बैठक दो घंटे से अधिक समय तक चली। सूत्रों के मुताबिक बैठक में ज्यादातर नेताओं ने कहा कि उन्हें तृणमूल के साथ गठबंधन पर कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन वह गठबंधन सम्मानजनक शर्तों पर होना चाहिए। राहुल गांधी को केवल दो सीटों पर सहमत नहीं होना चाहिए। प्रांतीय नेताओं को यह भी समझ आ गया कि आलाकमान राष्ट्रीय स्तर पर लोकसभा चुनाव में तृणमूल के साथ गठबंधन चाह रहा है। परिणामस्वरूप, वे आज की बैठक के लिए मानसिक तैयारी के साथ गये थे। सूत्रों के मुताबिक, राहुल की मौजूदगी में हुई बैठक में उन्होंने मांग की कि कांग्रेस को बहरामपुर और मालदा दक्षिण के अलावा कम से कम 4 और सीटों पर लड़ने का मौका मिलना चाहिए। इस संबंध में, राज्य कांग्रेस के नेता रायगंज, मालदह उत्तर, पुरुलिया और उत्तर बंगाल में एक और सीट की मांग कर रहे हैं।
लोक सभा चुनाव से पहले ममता बनर्जी ने कांग्रेस के साथ किया खेल :
दरअसल, पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने पीएम पद के दावेदार के तौर पर मल्लिकार्जुन खड़गे के नाम का प्रस्ताव रखा, और इस प्रस्ताव का समर्थन करते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि देश को पहली बार दलित प्रधानमंत्री मिल सकता है। लेकिन, कहानी केवल इतनी सी नही है और इसके सियासी मायने कुछ और हैं। राजनीतिक पंडितों की मानें, तो इस प्रस्ताव और प्रस्ताव के समर्थन ने 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्षी गठंबधन की तस्वीर साफ कर दी है। दरअसल, बैठक शुरू होने से पहले किसी को उम्मीद नहीं थी कि पीएम पद के दावेदार के तौर पर कांग्रेस के किसी नेता का नाम सामने आ जाएगा। और, अब माना जा रहा है कि इस प्रस्ताव के जरिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक तीर से पांच निशाने लगा लिए हैं।
बिना चर्चा के खड़गे का नाम? ममता का बड़ा इशारा
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी लगातार इस बात को कहती रही हैं कि अगर किसी राज्य में कोई क्षेत्रीय दल मजबूत है, तो वहां चुनावी गठबंधन में कांग्रेस खुद को पीछे रखे। यही मांग सपा प्रमुख अखिलेश यादव सहित कुछ अन्य दलों की भी है। लेकिन, कांग्रेस की तरफ से इस मुद्दे पर कभी कुछ स्पष्ट जवाब नहीं मिला। सूत्रों के मुताबिक, ममता बनर्जी के प्रस्ताव पर जहां सीएम केजरीवाल ने समर्थन किया तो किसी अन्य दल ने इस प्रस्ताव का विरोध भी नहीं किया। ऐसे में गठबंधन के घटक दलों के बीच बिना कोई चर्चा किए, मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम आगे रख, ममता बनर्जी ने साफ संदेश दे दिया है कि राज्यों में चुनावी समीकरण के मूल मुद्दे पर अगर खुलकर बात नहीं की जाएगी तो फिर गठबंधन में इसी तरह से हल्के फैसले सामने आएंगे। ममता का ये कदम कांग्रेस को एहसास दिलाने के लिए है कि अगर वो गठबंधन पर गंभीर है तो क्षेत्रीय दलों की अहमियत समझे।अखिलेश जो चाहते थे, ममता ने वो कर दिया
2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर एक सवाल लगातार बना हुआ है कि जिस बीएसपी ने 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में 12.9 फीसदी वोट शेयर हासिल किया, उसे साथ लिए बिना विपक्षी गठबंधन देश के सबसे बड़े सूबे में कैसे भाजपा से लड़ेगा। हालांकि, मायावती की तरफ से साफ कह दिया गया था कि वो इस गठबंधन का हिस्सा नहीं बनेंगी, लेकिन हाल के दिनों तक भी कांग्रेस की बैठकों में इस मुद्दे पर चर्चा जारी है और पार्टी के कुछ नेता मायावती को साथ लाना चाहते हैं।
चूंकि, 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा मिलकर चुनाव लड़े थे और जब गठबंधन कामयाब नहीं हुआ तो बहुत ही कड़वाहट के साथ दोनों अलग हो गए। ऐसे में सपा मुखिया अखिलेश यादव, जो खुद को यूपी में गठबंधन का सबसे बड़ा साझेदार मान रहे हैं, वो बीएसपी की एंट्री कैसे बर्दाश्त करेंगे? वो जानते हैं कि अगर बीएसपी बिना गठबंधन के लोकसभा चुनाव में उतरती है तो सबसे ज्यादा फायदा सपा को ही मिलने वाला है। अब उनका ये काम भी ममता बनर्जी ने अपने प्रस्ताव से कर दिया। अगर, मल्लिकार्जुन खड़गे पर सबकी सहमति बनती है तो कांग्रेस की मजबूरी होगी कि वो यूपी में मल्लिकार्जुन खड़गे की दलित छवि को भुनाने के लिए बीएसपी से टाटा-बायबाय करे।
निशाने पर नीतीश की दावेदारी?सियासी जानकारों का मानना है कि विपक्षी गठबंधन को एकजुट करने में शुरुआत से ही पूरी शिद्दत के साथ जुटे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी ममता बनर्जी ने पीएम दावेदारी के अपने इस कदम से झटका दिया है। दरअसल, मंगलवार शाम को दिल्ली में होने वाली इस बैठक से पहले ही पटना में पोस्टर लग गए थे कि ‘अगर जीत चाहिए तो फिर नीतीश चाहिए’। इससे पहले भी जेडीयू नेताओं की तरफ से पीएम पद के दावेदार के तौर पर नीतीश कुमार की पैरवी होती रही है। लेकिन, मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम, केजरीवाल के समर्थन के साथ बढ़ाकर ममता बनर्जी ने नीतीश कुमार को बिहार तक ही सीमित करने का संदेश दे दिया है। ये कहना शायद गलत ना होगा कि अब ‘इंडिया’ अलांयस के अंदर भी कई अलायंस बन चुके हैं।
जब है 2024 के रुख का अंदाजा, तो क्यों लिया जाए रिस्क!
मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे तीन हिंदी भाषी राज्यों में कांग्रेस की हार के साथ ही चर्चा छिड़ गई है कि देश में मोदी मैजिक बरकरार है और 2024 के नतीजे भी कुछ ऐसे ही रहने वाले हैं। हाल ही में कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम ने खुले तौर पर इस बात को स्वीकार किया कि 2024 की हवा भाजपा के पक्ष में है।।सियासी समझ रखने वाले मानते हैं कि क्षेत्रीय दल भले ही अपने-अपने राज्यों में कुछ हद तक भाजपा को रोक पाएं, लेकिन राष्ट्रीय पर उसे रोकना अभी संभव नहीं। ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल की जुगलबंदी इसी और इशारा करती है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को आगे कर, उसके ऊपर ठीकरा फोड़ने की तैयारी हो चुकी है।फिर से वेटिंग लिस्ट में राहुल गांधी की एंट्री
पहले हिमाचल प्रदेश और इसके बाद कर्नाटक में कांग्रेस को जीत मिली, तो पार्टी ने जोर-शोर से इस बात का प्रचार किया कि ये सब राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का नतीजा है। लेकिन, हाल ही में तीन राज्यों की हार ने राहुल गांधी के सियासी भविष्य पर फिर से सवालिया निशान लगा दिया। पहले से माना जा रहा था कि तीन राज्यों की ये हार गठबंधन में राहुल गांधी का कद कम करेगी और हुआ भी ठीक वैसा ही। ममता बनर्जी ने मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम बढ़ाया तो राहुल गांधी फिर से वेटिंग लिस्ट में चले गए। रिपोर्ट अशोक झा

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