डॉक्टर हेडगेवार पुण्यतिथि : जिन्होंने राष्ट्र सेवा को ही बताया सर्वोपरि सेवा
देश की सेवा के लिए जीवन को कर दिया था समर्पित
राष्ट्र सेवा को बताया था सर्वोपरि: डॉक्टर हेडगेवार की प्रेरणादायी बातों को आज भी याद किया जाता है और उन्होंने राष्ट्र सेवा को ही सर्वोपरि सेवा बताया था। इसके साथ ही उन्होंने हिंदू समाज को संगठित और जागृत करने पर भी जोर दिया था। उनका कहना था कि संघ का काम व्यक्तियों को जोड़ने का है, तोड़ने का नहीं। इसके साथ ही उन्होंने अपने भीतर अच्छे संस्कार पैदा करने पर जोर दिया था क्योंकि उनका मानना था कि अच्छे संस्कारों के बिना देशभक्ति की भावना पैदा नहीं हो सकती। अंग्रेजी हुकूमत से नफरत करने वाले डॉक्टर हेडगेवार का निधन 21 जून,1940 को हुआ था। डॉक्टर हेडगेवार का जन्म 1 अप्रैल, 1889 को नागपुर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनके पूर्वज तत्कालीन आंध्र प्रदेश के कंडकुर्ती गांव के थे। देश की मौजूदा सियासत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हमेशा चर्चा में बना रहता है। भारतीय जनता पार्टी की मजबूती में भी संघ की बड़ी भूमिका मानी जाती रही है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी। उन्होंने 27 सितंबर 1925 को नागपुर में विजयदशमी के दिन संघ की स्थापना की थी। वे एक प्रसिद्ध चिकित्सक और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पहले सरसंघ चालक थे। अंग्रेजी हुकूमत से नफरत करने वाले डॉक्टर हेडगेवार का निधन 21 जून,1940 को हुआ था। हेडगेवार की पुण्यतिथि पर उनसे जुड़े एक प्रकरण का जिक्र करना जरूरी है। अपने निधन से पहले एक उन्होंने एक ऐसी चिट्ठी लिखी थी जिसे बाद में खोला गया था। इस चिट्ठी में लिखी बातों को पढ़कर संघ में सारे लोग हैरान रह गए थे।
कम उम्र में हो गया था माता-पिता का निधन: डॉक्टर हेडगेवार का जन्म 1 अप्रैल, 1889 को नागपुर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। डॉ.हेडगेवार के पूर्वज तत्कालीन आंध्र प्रदेश के कंडकुर्ती गांव के थे। वे शाकल शाखा के देशस्थ ब्राह्मण थे, जिनका मुख्य काम वेदों के ज्ञान को सीखना और फैलाना था। बाद में हेडगेवार का परिवार नागपुर चला आया था और यहीं पर उनका जन्म हुआ था। 13 वर्ष की आयु में ही उनके जीवन में एक बड़ी त्रासदी हुई, जब उनके माता-पिता दोनों की मृत्यु प्लेग महामारी के कारण एक ही दिन हो गई।
बचपन से ही क्रांतिकारी स्वभाव: बचपन से ही क्रांतिकारी स्वभाव के रहे डॉ. हेडगेवार अंग्रेजी हुकूमत से नफरत करते थे। उन्होंने 10 साल की उम्र में ही रानी विक्टोरिया के राज्यारोहण की 50वीं जयंती पर बांटी गई मिठाई को फेंक दिया था। उन्होंने विदेशी राज्य की खुशियां मनाने से इनकार कर दिया था। ऐसा ही एक किस्सा उनकी 16 वर्ष की उम्र से भी जुड़ा हुआ है। दरअसल, क्लास में अंग्रेजी निरीक्षक निगरानी के लिए स्कूल पहुंचा। उस वक्त उन्होंने सहयोगियों के साथ मिलकर वंदे मातरम का नारा लगाया था। उनका यह हौसला देखकर अंग्रेज निरीक्षक नाराज हो गया था जिसकी वजह से उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया था। डॉ.हेडगेवार ने पूना के नेशनल स्कूल से मैट्रिक तक की पढ़ाई पूरी की थी। बाद में उन्होंने कलकत्ता के नेशनल मेडिकल कॉलेज से पढ़ाई की थी। शुरुआत में कांग्रेस में निभाई सक्रिय भूमिका: 1919 के आसपास वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सक्रिय रूप से शामिल हो गए और उसी वर्ष कांग्रेस के अमृतसर अधिवेशन में भी भाग लिया। उन्होंने एल.वी.परांजपे के साथ मिलकर काम किया और 1920 के कांग्रेस अधिवेशन के दौरान प्रतिनिधियों के लिए आवास और भोजन के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। महाराष्ट्र में उनके भाषणों के कारण 1921 में उन्हें राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। डॉक्टर हेडगेवार को एक वर्ष तक जेल में रहना पड़ा। इस कारण की थी संघ की स्थापना: 1923 में खिलाफत आंदोलन के दौरान हुए सांप्रदायिक दंगों से हेडगेवार बहुत प्रभावित हुए। उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि कि कांग्रेस नेतृत्व ने हिंदुओं की चिंताओं को नजरअंदाज कर दिया है और उन्हें एकजुट करने के लिए एक अलग और मजबूत संगठन की स्थापना करना जरूरी है। इसी कारण उन्होंने 1925 में नागपुर में विजयदशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी। डॉक्टर साहब के जीवन पर बाल गंगाधर तिलक और विनायक दामोदर सावरकर उर्फ वीर सावरकर का गहरा प्रभाव पड़ा था। संघ की स्थापना के बाद उन्होंने इस संगठन को मजबूत बनाने के लिए काफी प्रयास किया। निधन से पहले लिखी थी हैरान करने वाली चिट्ठी: डॉक्टर हेडगेवार का निधन 21 जून 1940 को नागपुर में हुआ था। निधन से एक दिन पहले उन्होंने गुरु गोलवलकर को एक चिट्ठी सौंपी थी। यह चिट्ठी को डॉक्टर साहब के निधन के 14 दिन बाद खोली गई और इसने सभी के होश उड़ा दिए क्योंकि इस चिट्ठी के जरिए हेडगेवार ने अपना उत्तराधिकारी चुना था। इस चिट्ठी में डॉक्टर हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अगले सर संघ चालक के नाम से पर्दा उठाया था। दरअसल हेडगेवार के निधन के बाद अप्पाजी जोशी को उनका उत्तराधिकारी माना जा रहा था। किसी के भी दिमाग में गुरु गोलवरकर का नाम तक नहीं था। आखिरी चिट्ठी में हेडगेवार ने लिखा था, इससे पहले कि तुम मेरे शरीर को डॉक्टरों के हवाले करो, मैं तुमसे कहना चाहता हूं कि अब से संगठन को चलाने की पूरी जिम्मेदारी तुम्हारी होगी। गुरु गोलवलकर ने यह चिट्ठी 3 जुलाई, 1940 को संघ के तमाम बड़े नेताओं के सामने पढ़ी थी। इस चिट्ठी में डॉक्टर हेडगेवार की ओर से जताई गई इच्छा के मुताबिक गुरु गोलवलकर ने अगले सरसंघचालक के रूप में भूमिका निभाई। रिपोर्ट अशोक झा