संसद सत्र के आखिरी दिन से गृहमंत्री अमित शाह जुट जाएंगे चुनावी रणनीति बनाने में

नई दिल्ली: संसद के शीतकालीन सत्र के खात्मे के साथ ही लोकसभा चुनाव की तैयारियों का आगाज होता नजर आ रहा है। 22 दिसंबर को संसद सत्र के आखिरी दिन से गृहमंत्री अमित शाह चुनावी रणनीति बनाने के लिए सांगठनिक बैठकों में जुट जाएंगे।इस क्रम में सबसे पहले गृहमंत्री 22 दिसंबर को हरियाणा के कुरुक्षेत्र में शुरू हो रहे गीता महोत्सव में हिस्सा लेने जायेंगे। दरअसल इस महोत्सव में पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जाने की योजना थी लेकिन उनकी अनुपस्थिति में गीता महोत्सव में गृहमंत्री अमित शाह हिस्सा लेंगे। उसके अगले दिन यानि 23 दिसंबर को गृहमंत्री अमित शाह, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ राष्ट्रीय पदाधिकारियों, प्रदेश अध्यक्षों और प्रदेश संगठन मंत्रियों की बैठक में दिन भर शामिल होंगे.बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने शीतकालीन सत्र के समापन के दिन यानी 22 दिसंबर को दोपहर से 23 दिसंबर की शाम तक चलने वाली 2 दिनों की राष्ट्रीय पदाधिकारी बैठक बीजेपी मुख्यालय में बुलाई है। इस बैठक का मुख्य उद्देश्य लोकसभा चुनाव 2024 के लिए रणनीति बनाने और अब तक की गई तैयारियों का जायजा लेना है। गृहमंत्री इस बैठक में 23 दिसंबर को दिन भर शामिल रहेंगे और बीजेपी के पदाधिकारियों को जीत का मंत्र देने और आगे के लिए चुनावी टास्क देने जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर मंथन करेंगे।
तैयारियों की स्थिति का लेंगे जायजा: 24 दिसंबर को गृहमंत्री अमित शाह एक दिवसीय दौरे पर पश्चिम बंगाल में रहेंगे। गृहमंत्री 24 तारीख को दिनभर बंगाल के बीजेपी पदाधिकारियों की बैठक लेंगे।उस दिन गृहमंत्री ने बंगाल के सभी संभाग के बीजेपी नेताओं को कोलकाता बुलाया है, बंगाल के स्थानीय नेताओं से दिनभर जमीनी हकीकत को जानेंगे और चुनावी रणनीति तैयार कर आगे का टास्क देंगे। 28 नवंबर को गृहमंत्री अमित शाह एक दिन के दौरे पर तेलंगाना में रहेंगे। तेलंगाना में भी अमित शाह की कोई पब्लिक रैली या सार्वजनिक कार्यक्रम नहीं है। हैदराबाद में गृहमंत्री दिन भर तेलंगाना के बीजेपी नेताओं के साथ बैठक कर वहां की स्थिति का जायजा लेंगे और आगे का टास्क देंगे।
2024 चुनाव की रणनीति पर करेंगे चर्चा: 30 दिसंबर को गृहमंत्री अमित शाह एक दिन के तमिलनाडु के दौरे पर होंगे, वहां भी संगठन की बैठक लेंगे. बीजेपी के अध्यक्ष रहते हुए गृहमंत्री ने दक्षिण भारत बीजेपी को सशक्त बनाने की रणनीति बनाई थी लेकिन 2019 में उन्हें केंद्र सरकार में भूमिका निभानी पड़ी लिहाजा वो अपनी योजना को मूर्त रूप नहीं दे सके लेकिन उसके बावजूद उन्हें दक्षिण भारत में पार्टी के प्रसार की बड़ी संभावनाएं दिखती हैं। ऐसे में गृहमंत्री दक्षिण भारत खासकर तेलंगाना, तमिलनाडु में पार्टी नेताओं से बैठक कर पहले से चल रहे पार्टी के कार्यक्रमों की समीक्षा, 2024 चुनाव के लिहाज से आगे की रणनीति पर पूरे एक दिन चर्चा करेंगे। फरवरी में जारी हो सकता है उम्मीदवारों की लिस्ट: 31 दिसंबर को गृहमंत्री एक दिन के दौरे पर गुजरात जायेंगे। वहां भी चुनावी सांगठनिक बैठक करेंगे बाद में गृहमंत्री अपने लोकसभा क्षेत्र गांधीनगर में होने वाले सांसद खेलकूद प्रतियोगिता में हिस्सा लेंगे। दिसंबर में गृहमंत्री एक दिन की यात्रा पर राजस्थान भी जा सकते हैं। राजस्थान विधानसभा चुनाव में जीत के बाद से संगठन की बैठक कर वह चाहते हैं कि पार्टी में शिथिलता ना आए बल्कि चुनावी मोमेंटम बनी रहे। कुल मिलाकर गृहमंत्री दिसंबर के बाकी बचे दिनों और जनवरी में अगले एक महीने तक देश के अलग अलग हिस्सों और प्रदेशों में जाकर लोकसभा की चुनावी तैयारियों का जायजा लेंगे और समीक्षा करेंगे। इस तरह से गृहमंत्री की हर एक प्रदेश में एक दिन बिताने और खालिस संगठन की बैठक कर जायजा लेने की योजना है। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान की तरह बीजेपी इस बार जीत की दृष्टि से कमजोर सीटों पर उम्मीदवारों के नामों की घोषणा भी लोकसभा चुनाव की घोषणा से काफी पहले यानि फरवरी में उम्मीदवारों की लिस्ट जारी करने की योजना बना रही है। भाजपा उन क्षेत्रों में कद्दावर और जिताऊ प्रत्याशी की तलाश में है, जिस संसदीय क्षेत्र में पिछले चुनाव में जदयू के प्रत्याशी विजयी रहे थे। पिछले लोकसभा चुनाव में जदयू, भाजपा और लोजपा साथ मिलाकर चुनाव लड़ी थी, जिसमें जदयू के 16 प्रत्याशी विजयी हुए थे और लोजपा के छह प्रत्याशी चुनाव जीते थे। पिछले चुनाव में एनडीए 40 में से 39 सीटों पर जीत दर्ज की थी, एक सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी विजयी हुए थे। इस स्थिति में भाजपा की नजर उन 17 संसदीय क्षेत्रों पर है जो विरोधियों के कब्जे में है। पिछले चुनाव में जदयू के हिस्से में गई सीटों पर भाजपा की ओर से कई दावेदार हैं। लेकिन, भाजपा जिताऊ उम्मीदवार की तलाश में है। जदयू पिछले चुनाव में सीतामढ़ी सीट से सुनील कुमार पिंटू को प्रत्याशी बनाई थी। पिंटू हाल ही में जिस तरह जदयू और मुख्यमंत्री के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं, ऐसे में तय है कि उनका जदयू से पत्ता साफ होगा। ऐसे में संभावना है कि वे भाजपा की ओर आ सकते हैं। एनडीए में फिलहाल लोजपा (रामविलास), राष्ट्रीय लोजपा, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा और राष्ट्रीय लोक जनता दल हैं। ऐसे में कहा जा रहा है कि भाजपा इस बार किसी भी स्थिति में अपनी सहयोगी पार्टियों के लिए ज्यादा सीट नहीं छोड़ेगी। ऐसे में भाजपा बिहार में विरोधियों के लिए मजबूत किलेबंदी की तैयारी में है। बंगाल की बात करे तो टीएमसी और कांग्रेस भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) दोनों की साझा प्रतिद्वंद्वी है, लेकिन कांग्रेस की राज्य इकाई चुनावी समझौते में शामिल होने के प्रति इच्छुक नहीं दिखाई पड़ रही है।कांग्रेस और तृणमूल दोनों ही विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के प्रमुख सहयोगी हैं और अनौपचारिक खबरों से दोनों दलों के बीच सीटों के तालमेल को लेकर बातचीत शुरू होने का संकेत मिलता है। राजनीतिक परिदृश्य में उस समय अहम बदलाव आया जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी ने तृणमूल, कांग्रेस और वाम दलों को शामिल करते हुए गठबंधन का जिक्र किया। लेकिन इस पर राज्य में माकपा और कांग्रेस की मिली-जुली प्रतिक्रिया सामने आयी।तृणमूल सूत्रों के मुताबिक, राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी कुल 42 लोकसभा सीटों में से चार सीट कांग्रेस को देने की इच्छुक है। अभी पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की दो सीटें हैं और दोनों सीटें अल्पसंख्यक बहुल जिलों मालदा और मुर्शिदाबाद में हैं।तृणमूल सांसद सौगत रॉय ने पुष्टि की, ‘हमारी पार्टी की सुप्रीमो ने कहा है कि तीनों दलों का गठबंधन संभव है। इससे अगले आम चुनाव में भाजपा से लड़ने और उसे हराने के लिए हमारी प्रतिबद्धता स्पष्ट होती है।” तृणमूल के एक वरिष्ठ नेता ने नाम उजागर नहीं करने के अनुरोध के साथ कहा कि कांग्रेस-तृणमूल गठबंधन राज्य की 42 में से 36-37 सीटों पर जीत हासिल कर सकता है और भाजपा के प्रभुत्व को चुनौती दे सकता है। भाजपा को 2019 में राज्य की 18 लोकसभा सीटों पर कामयाबी मिली थीं। बुधवार को बंगाल कांग्रेस नेतृत्व ने तृणमूल के साथ गठबंधन की संभावना पर विचार करने के लिए नयी दिल्ली में पार्टी आलाकमान से मुलाकात की। अभी राज्य में कांग्रेस का माकपा के साथ गठबंधन है और कांग्रेस नेतृत्व तृणमूल के साथ गठबंधन को लेकर सतर्क रहता है। दोनों दलों ने 2001 और 2011 का विधानसभा चुनाव और 2009 का लोकसभा चुनाव गठबंधन में लड़ा है। 2011 में, कांग्रेस-तृणमूल गठबंधन ने पश्चिम बंगाल में 34 साल पुराने वाम मोर्चा शासन को हरा दिया था। दोनों दलों के गठबंधन का इतिहास असंतोष से भरा रहा है और कांग्रेस ने तृणमूल पर पिछले चुनावों में उन्हें पर्याप्त सीटें नहीं देने का आरोप लगाया है। वरिष्ठ कांग्रेस नेता अब्दुल मन्नान ने जोर दिया, ‘अगर पार्टी हमें तृणमूल के साथ गठबंधन के लिए कहती है, जिसने राज्य में कांग्रेस को बर्बाद कर दिया है, तो हम उनके निर्देशों का पालन करेंगे।’ पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रदीप भट्टाचार्य ने अविश्वास की बात को स्वीकार किया, लेकिन साझा प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ एकजुट होने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा, ‘यह विधानसभा चुनाव नहीं है, यह संसदीय चुनाव है जहां हमें किसी भी कीमत पर भाजपा को हराना होगा।”मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने तृणमूल के साथ गठबंधन की किसी भी संभावना से इनकार किया है। पार्टी के राज्य सचिव मोहम्मद सलीम ने पीटीआई-भाषा से कहा, ”बंगाल में तृणमूल के साथ कोई गठबंधन नहीं हो सकता क्योंकि वह भरोसेमंद नहीं है। और जहां तक कांग्रेस की बात है तो यह उन्हें स्पष्ट करना है कि वह किसके साथ गठबंधन चाहती है।’ बंगाल में टीएमसी कांग्रेस
हालांकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) दोनों की साझा प्रतिद्वंद्वी है, लेकिन कांग्रेस की राज्य इकाई चुनावी समझौते में शामिल होने के प्रति इच्छुक नहीं दिखाई पड़ रही है। कांग्रेस और तृणमूल दोनों ही विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के प्रमुख सहयोगी हैं और अनौपचारिक खबरों से दोनों दलों के बीच सीटों के तालमेल को लेकर बातचीत शुरू होने का संकेत मिलता है। राजनीतिक परिदृश्य में उस समय अहम बदलाव आया जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी ने तृणमूल, कांग्रेस और वाम दलों को शामिल करते हुए गठबंधन का जिक्र किया। लेकिन इस पर राज्य में माकपा और कांग्रेस की मिली-जुली प्रतिक्रिया सामने आयी।तृणमूल सूत्रों के मुताबिक, राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी कुल 42 लोकसभा सीटों में से चार सीट कांग्रेस को देने की इच्छुक है। अभी पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की दो सीटें हैं और दोनों सीटें अल्पसंख्यक बहुल जिलों मालदा और मुर्शिदाबाद में हैं।तृणमूल सांसद सौगत रॉय ने पुष्टि की, ‘हमारी पार्टी की सुप्रीमो ने कहा है कि तीनों दलों का गठबंधन संभव है। इससे अगले आम चुनाव में भाजपा से लड़ने और उसे हराने के लिए हमारी प्रतिबद्धता स्पष्ट होती है।” तृणमूल के एक वरिष्ठ नेता ने नाम उजागर नहीं करने के अनुरोध के साथ कहा कि कांग्रेस-तृणमूल गठबंधन राज्य की 42 में से 36-37 सीटों पर जीत हासिल कर सकता है और भाजपा के प्रभुत्व को चुनौती दे सकता है। भाजपा को 2019 में राज्य की 18 लोकसभा सीटों पर कामयाबी मिली थीं। बुधवार को बंगाल कांग्रेस नेतृत्व ने तृणमूल के साथ गठबंधन की संभावना पर विचार करने के लिए नयी दिल्ली में पार्टी आलाकमान से मुलाकात की। अभी राज्य में कांग्रेस का माकपा के साथ गठबंधन है और कांग्रेस नेतृत्व तृणमूल के साथ गठबंधन को लेकर सतर्क रहता है। दोनों दलों ने 2001 और 2011 का विधानसभा चुनाव और 2009 का लोकसभा चुनाव गठबंधन में लड़ा है। 2011 में, कांग्रेस-तृणमूल गठबंधन ने पश्चिम बंगाल में 34 साल पुराने वाम मोर्चा शासन को हरा दिया था। दोनों दलों के गठबंधन का इतिहास असंतोष से भरा रहा है और कांग्रेस ने तृणमूल पर पिछले चुनावों में उन्हें पर्याप्त सीटें नहीं देने का आरोप लगाया है। वरिष्ठ कांग्रेस नेता अब्दुल मन्नान ने जोर दिया, ‘अगर पार्टी हमें तृणमूल के साथ गठबंधन के लिए कहती है, जिसने राज्य में कांग्रेस को बर्बाद कर दिया है, तो हम उनके निर्देशों का पालन करेंगे।’ पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रदीप भट्टाचार्य ने अविश्वास की बात को स्वीकार किया, लेकिन साझा प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ एकजुट होने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा, ‘यह विधानसभा चुनाव नहीं है, यह संसदीय चुनाव है जहां हमें किसी भी कीमत पर भाजपा को हराना होगा।”मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने तृणमूल के साथ गठबंधन की किसी भी संभावना से इनकार किया है। पार्टी के राज्य सचिव मोहम्मद सलीम ने पीटीआई-भाषा से कहा, ”बंगाल में तृणमूल के साथ कोई गठबंधन नहीं हो सकता क्योंकि वह भरोसेमंद नहीं है। और जहां तक कांग्रेस की बात है तो यह उन्हें स्पष्ट करना है कि वह किसके साथ गठबंधन चाहती है। रिपोर्ट अशोक झा

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