वैदिक नारी केन्द्र का डीआईजी ने किया उद्घाटन
*वैदिक संस्कृति को अपनाने से विश्व का संघर्ष खत्म होगा*
वैदिक नारी केन्द्र का डीआईजी ने किया उद्घाटन
*वैदिक नारी की तरह शिक्षा और संस्कार को प्रगति का माध्यम बनाये*
*भारतवर्ष की उन्नति बिना वैदिक संस्कृति के सम्भव नहीं -डीआईजी अखिलेश चौरसिया*
*वाराणसी, 24 दिसम्बर।* आधुनिकता के अंधे दौड़ में भले ही विश्व के देश भौतिकता के चरम पर हो लेकिन मन की शांति और आध्यात्मिक उन्नति के साथ परिवार बचाने के लिए भारत की ओर देख रहे हैं। जिस अधिकार के लिए दुनियां की महिलाएं संघर्ष कर रही हैं और मानसिक गुलामी से मुक्ति के लिए प्रयास कर रही हैं, वह तो सहज रूप में वैदिक संस्कृति का हिस्सा था। नारियों को सम्मान, शिक्षा, संस्कार और स्वतंत्रता वैदिक संस्कृति का मूल पाठ है। भारतवर्ष में महिलाओं के माध्यम से वैदिक संस्कृति के विस्तार के लिए विशाल भारत संस्थान ने वैदिक नारी केन्द्र की स्थापना की है, जिसका शुभारंभ विशाल भारत संस्थान द्वारा आयोजित “वैदिक संस्कृति एक वैश्विक आवश्यकता : नारी के विशेष संदर्भ में” विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी के मुख्य अतिथि वाराणसी परिक्षेत्र के डीआईजी अखिलेश चौरसिया ने लमही स्थित सुभाष भवन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर एवं दीपोज्वलन कर किया। वैदिक नारी केंद्र के शुभारंभ के अवसर पर 108 महिलाओ को डीआईजी अखिलेश चौरसिया ने कम्बल देकर सम्मानित किया।
वैदिक नारी केन्द्र वैदिक परम्पराओं के अनुरूप शिक्षा, स्वास्थ्य, भोजन, संस्कार, यज्ञ और गऊ पालन को घर–घर तक पहुंचायेंगी। घरेलू महिलाओं को प्रशिक्षित किया जाएगा और घर की रसोई को औषधालय का रूप दिया जाएगा। भोजन ऐसा जो स्वास्थ्य के अनुकूल हो, न कि बीमारी बढ़ाने वाला। वैदिक नारी केन्द्र प्रतिमाह वैदिक भोजन का प्रदर्शन करेगी ताकि लोगों तक सामान्य तरीके से स्वस्थ रहने और बीमारी मुक्त होने की जानकारी मिल सके।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि डीआईजी अखिलेश चौरसिया ने कहा कि हमारी वैदिक संस्कृति हमेशा नारी के शिक्षा और सम्मान के लिए जानी जाती रही है। प्राचीन काल में अपाला, घोषा, लोपामुद्रा जैसी महान विदुषी महिलाओं ने अपनी विद्वता का धाक जमाया। प्राचीन परम्पराओं पर हमें गर्व करना चाहिये। वेदों और हमारे धर्म ग्रंथों में सब वैज्ञानिक आधार पर लिखा गया है।
विशाल भारत संस्थान शोध एवं संवाद केन्द्र की नेशनल कोऑर्डिनेटर आभा भारतवंशी ने कहा कि विश्व के देश अपने यहां की महिलाओं की स्थिति सुधारने और उनको नैसर्गिक आजादी देने के मामले में वैदिक परम्परा को अपनाएं। वैदिक युग मे स्त्रियों और पुरुषों को समान रूप से शिक्षा का अधिकार था। ऋग्वेद में अनेक सूक्तों की ऋषि स्त्रियां है। लोपामुद्रा, विश्वरा, आत्रेयी, अपाला, काक्षीवती, घोषा आदि स्त्रियां प्रसिद्ध ऋषि है।
विशाल भारत संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ० राजीव श्रीगुरुजी ने कहा कि वैदिक संस्कृति दुनियां के लिए आदर्श है। वैदिक परम्परा में बालिकाओं के शिक्षा और उपनयन संस्कार का भी प्रावधान था। सुबह उठने और भोजन तक सभी का वैज्ञानिक आधार था। जीवन के अनुशासन ने भारतवर्ष को विश्वगुरु बना दिया, जिसमें नारियों की विशेष भूमिका थी।
अध्यक्षता करते हुए रामपंथ के धर्म प्रवक्ता डॉ० कविन्द्र नारायण श्रीवास्तव ने कहा कि वैदिक सभ्यता विश्व की महानतम सभ्यता है। जो लोग इसे खत्म करना चाहते थे, आज उनका देश और समस्त मानव जाति भुगत रही है। जल संकट, पर्यावरण संकट और भोजन संकट ने जीवन को खतरे में डाल दिया है। वैदिक सभ्यता ही मानव जाति को बचा सकती है।
संगोष्ठी का संचालन विशाल भारत संस्थान की राष्ट्रीय महासचिव डॉ० अर्चना भारतवंशी ने किया एवं धन्यवाद डॉ० नजमा परवीन ने दिया।
इस कार्यक्रम में नाजनीन अंसारी, डॉ० मृदुला जायसवाल, ज्ञान प्रकाश, नौशाद अहमद, दूबे शंकर पाण्डेय, बृजेश श्रीवास्तव, शहाबुद्दीन जोसेफ, सौरभ पाठक, विद्याशंकर त्रिपाठी, सौरभ पाण्डेय, सत्यम, अलाउद्दीन भुल्लन, आकाश यादव, हितेन्द्र श्रीवास्तव, डॉ० भोलाशंकर आदि लोग मौजूद रहे।