महाशिवरात्रि का व्रत आज, निकलेगी बाबा की बारात

– सृष्टि के आरंभ में आज के ही दिन मध्यरात्रि में भगवान शिव ब्रह्मा से रुद्र के रूप में प्रकट हुए
– गृहस्थ जीवन में रहने वाले लोग महाशिवरात्रि को शिव की विवाह वर्षगांठ के रूप में मनाते सिलीगुड़ी:
हर साल फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का व्रत किया जाता है। हिन्दू पुराणों के अनुसार इसी दिन सृष्टि के आरंभ में मध्यरात्रि में भगवान शिव ब्रह्मा से रुद्र के रूप में प्रकट हुए थे। इसीलिए इस दिन को महाशिवरात्रि कहा जाता है। वैसे तो शिव प्रेमी प्रत्येक शिवरात्रि को भगवान की पूजा और व्रत आदि का धार्मिक कृत्य संपन्न करते हैं तथापि महाशिवरात्रि समस्त भारत, नेपाल और बांग्लादेश सहित सभी उन देशों में हर्षोल्लास से मनाई जाती है जहां-जहां शिव भक्त हैं। सिलीगुड़ी के चांद मुनि मंदिर में तीन दिवसीय मेला का आयोजन होगा। विश्व हिंदू परिषद की ओर से कैप लगाया जाएगा। इसमें भक्तो के लिए सुबह 6 बजे से शाम तक सभी प्रकार की सेवा उपलब्ध रहेगी।
पुराणों के अनुसार महाशिवरात्रि को ही अग्निलिंग से इस सृष्टि का आरम्भ हुआ था। पुराणों के अनुसार इस दिन श्रीशिव और मां पार्वती का विवाह हुआ था। इस दिन शिव भक्त पूरे उत्साह से व्रत रखते हैं और शिव-गौरी की पूजा करते हैं। समुद्र मन्थन की कथा: ₹समुन्द्र मंथन देवों और दानवों द्वारा एक सम्मिलित उद्योग था जिसका प्रमुख उद्देश्य अमृत प्राप्ति था। जब समुन्द्र मंथन हुआ तो सर्वप्रथम हलाहल नामक विष निकला। हलाहल विष इतना तीव्र था कि उसकी गंध से ही देवताओं और दानवों के शरीर जलने लगे। अतः सभी ने मिलकर श्रीशिव से याचना की। तब शिव ने हलाहल को अपनी हथेली पर रखा और उसका पान कर लिया। परन्तु किसी अनहोनी की आशंका के कारण माता पार्वती ने विष को श्रीशिव के कण्ठ में रोक लिया। जिसके कारण कण्ठ नीला पड़ गया। हलाहल विष के बाद समुन्द्र मंथन में अमृत से पूर्व 12 दूसरे रत्न भी निकले। कामधेनु गाय, उच्चैश्रवा, ऐरावत हाथी, कौस्तुभ मणि, कल्पवृक्ष, रंभा, देवी लक्ष्मी, वारूणी, चंद्रमा, पारिजात पुष्प-वृक्ष, पांचजन्य शंख, धन्वन्तरि और अंत में अमृत की प्राप्ति हुई। चूंकि हलाहल विष के प्रभाव को नष्ट करने के लिए श्रीशिव रात्रि भर जागते रहे और देवताओं ने उनकी भक्ति में लीन होकर रात्रि पर्यन्त आनन्दित होकर संगीत और नृत्य के द्वारा श्रीशिव को प्रसन्न करने की कोशिश की। प्रातः विष का प्रभाव नष्ट हो गया और श्रीशिव ने सभी देवताओं को अपने आशीर्वाद से शोभित किया। माना जाता है कि यह फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि थी। इसलिए इस दिन को श्रीशिव को प्रसन्न करने का सौभाग्य सभी भक्तजन करते हैं और इसदिन निराहार रह कर अपने आराध्य को प्रसन्न करने की चेष्टा करते हैं। यद्यपि फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि के उत्सव के संबंध में पुराणों और शास्त्रों में और भी बहुत से कथाएं और धारणाएं प्रचलन में हैं। लेकिन विषपान की घटना जनमानस में अधिक लोकप्रिय है। कब है शिवरात्रि: अंग्रेजी दिनांक 8 मार्च को फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि है। इसी तिथि को प्रति वर्ष महाशिवरात्रि का व्रत रखा जाता है। इस चतुर्थदशी तिथि का आरम्भ 8 मार्च को रात्रि करीब 10 बजे होगा। और चतुर्दशी तिथि अगले दिन 9 मार्च को सायं 6 बजकर 15 मिनिट तक रहेगी। इसलिए इस वर्ष महाशिवरात्रि का व्रत 8 मार्च को रखना चाहिए। श्रीशिव की पूजा प्रदोष काल में करने का विधान है। हालांकि 8 मार्च 2024 को सूर्योदय के समय त्रयोदशी तिथि है लेकिन प्रदोष काल में चतुर्दशी तिथि से व्रत का 8 मार्च को ही रखा जाना चाहिए।शिवरात्रि के प्रसंग को हमारे वेद, पुराणों में बताया गया है कि जब समुद्र मन्थन हो रहा था उस समय समुद्र में चौदह रत्न प्राप्त हुए। उन रत्नों में हलाहल भी था। जिसकी गर्मी से सभी देव दानव त्रस्त होने लगे। तब भगवान शिव ने उसका पान किया। उन्होंने लोक कल्याण की भावना से अपने को उत्सर्ग कर दिया। इसलिए उनको महादेव कहा जाता है। जब हलाहल को उन्होंने अपने कंठ के पास रख लिया तो उसकी गर्मी से कंठ नीला हो गया। तभी से भगवान शिव को नीलकंठ भी कहते हैं। शिव का अर्थ कल्याण होता है। जब संसार में पापियों की संख्या बढ़ जाती है तो शिव उनका संहार कर लोगों की रक्षा करते हैं। इसीलिए उन्हें शिव कहा जाता है।यौगिक परम्परा में इस दिन और रात को इतना महत्व इसलिए दिया जाता है क्योंकि यह आध्यात्मिक साधक के लिए जबरदस्त संभावनाएं प्रस्तुत करते हैं। आधुनिक विज्ञान कई चरणों से गुजरने के बाद आज उस बिंदु पर पहुंच गया है। जहां वह प्रमाणित करता है कि हर वह चीज जिसे आप जीवन के रूप में जानते हैं। पदार्थ और अस्तित्व के रूप में जानते हैं। जिसे आप ब्रह्मांड और आकाशगंगाओं के रूप में जानते हैं। वह सिर्फ एक ही ऊर्जा है। जो लाखों रूपों में खुद को अभिव्यक्त करती है। माना जाता है की इस दिन भगवान शंकर और माता पार्वती का विवाह हुआ था। इस दिन लोग व्रत रखते हैं और भगवान शिव की पूजा करते है। महाशिवरात्रि का व्रत रखना सबसे आसान माना जाता है। इसलिये बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सभी इस दिन व्रत रखते हैं। महाशिवरात्रि के व्रत रखने वालों के लिये अन्न खाना मना होता है। इसलिये फलाहार किया जाता है। राजस्थान में व्रत के समय गाजर, बेर का फलाहार किया जाता है। लोग मन्दिरों में भगवान शिव की पूजा करते हैं व उन्हे आक, धतूरा चढ़ाते हैं। भगवान शिव को विशेष रूप से भांग का प्रसाद लगता है। इस कारण इस दिन काफी जगह शिवभक्त भांग घोट कर पीते हैं। पुराणों में कहा जाता है कि एक समय शिव-पार्वती कैलाश पर्वत पर बैठे थे। पार्वती ने प्रश्न किया कि इस तरह का कोई व्रत है जिसके करने से मनुष्य आपके धाम को प्राप्त कर सके ? तब उन्होंने यह कथा सुनाई थी कि प्रत्यना नामक देश में एक व्यक्ति रहता था, जो जीवों को बेचकर अपना भरण पोषण करता था। उसने सेठ से धन उधार ले रखा था। समय पर कर्ज न चुकाने के कारण सेठ ने उसको शिवमठ में बन्द कर दिया। संयोग से उस दिन फाल्गुन बदी चतुर्दशी थी। वहां रातभर कथा, पूजा होती रही जिसे उसने भी सुना। अगले दिन शीघ्र कर्ज चुकाने की शर्त पर उसे छोड़ा गया। उसने सोचा रात को नदी के किनारे बैठना चाहिये। वहां जरूर कोई न कोई जानवर पानी पीने आयेगा। अतः उसने पास के बील वृक्ष पर बैठने का स्थान बना लिया। उस बील के नीचे एक शिवलिंग था। जब वह पेड़ पर अपने छिपने का स्थान बना रहा था उस समय बील के पत्तों को तोडकर फेंकता जाता था जो शिवलिंग पर ही गिरते थे। वह दो दिन का भूखा था। इस तरह से वह अनजाने में ही शिवरात्रि का व्रत कर ही चुका था। साथ ही शिवलिंग पर बेल-पत्र भी अपने आप चढ़ते गये। एक पहर रात्रि बीतने पर एक गर्भवती हिरणी पानी पीने आई। उस व्याध ने तीर को धनुष पर चढ़ाया किन्तु हिरणी की कातर वाणी सुनकर उसे इस शर्त पर जाने दिया कि सुबह होने पर वह स्वयं आयेगी। दूसरे पहर में दूसरी हिरणी आई। उसे भी छोड़ दिया। तीसरे पहर भी एक हिरणी आई उसे भी उसने छोड़ दिया और सभी ने यही कहा कि सुबह होने पर मैं आपके पास आऊंगी। चौथे पहर एक हिरण आया। उसने अपनी सारी कथा कह सुनाई कि वे तीनों हिरणियां मेरी स्त्री थी। वे सभी मुझसे मिलने को छटपटा रही थीं। इस पर उसको भी छोड़ दिया तथा कुछ और भी बेल-पत्र नीचे गिराये। इससे उसका हृदय बिल्कुल पवित्र, निर्मल तथा कोमल हो गया। प्रातः होने पर वह बेल-पत्र से नीचे उतरा। नीचे उतरने से और भी बेल पत्र शिवलिंग पर चढ़ गये। अतः शिवजी ने प्रसन्न होकर उसके हृदय को इतना कोमल बना दिया कि अपने पुराने पापों को याद करके वह पछताने लगा और जानवरों का वध करने से उसे घृणा हो गई। सुबह वे सभी हिरणियां और हिरण आये। उनके सत्य वचन पालन करने को देखकर उसका हृदय दुग्ध सा धवल हो गया और वह फूट-फूट कर रोने लगा। योगियों और संन्यासियों के लिए यह वह दिन है जब शिव कैलाश पर्वत के साथ एकाकार हो गए थे। यौगिक परम्परा में शिव को ईश्वर के रूप में नहीं पूजा जाता है। बल्कि उन्हें प्रथम गुरु, आदि गुरु माना जाता है। जो योग विज्ञान के जन्मदाता थे। कई सदियों तक ध्यान करने के बाद शिव एक दिन वह पूरी तरह स्थिर हो गए। उनके भीतर की सारी हलचल रुक गई और वह पूरी तरह स्थिर हो गए। वह दिन महाशिवरात्रि था। इसलिए संन्यासी महाशिवरात्रि को स्थिरता की रात के रूप में देखते हैं। महाशिवरात्रि आध्यात्मिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण है। इस रात धरती के उत्तरी गोलार्ध की स्थिति ऐसी होती है कि इंसान के शरीर में ऊर्जा कुदरती रूप से ऊपर की ओर बढ़ती है। इस दिन प्रकृति इंसान को अपने आध्यात्मिक चरम पर पहुंचने के लिए प्रेरित करती है। गृहस्थ जीवन में रहने वाले लोग महाशिवरात्रि को शिव की विवाह वर्षगांठ के रूप में मनाते हैं। सांसारिक महत्वाकांक्षाएं रखने वाले लोग इस दिन को शिव की दुश्मनों पर विजय के रूप में देखते हैं। महाशिवरात्रि का पर्व हमारे जीवन में ईश्वरीय शक्ति के महत्व को दिखलाता है। हमें भगवान शिव के द्वारा मानव जाति तथा सृष्टि के कल्याण के लिए विषपान जैसे असीम त्याग को प्रदर्शित करता है। यह दिन हमें इस बात की याद दिलाता है कि यदि हम अच्छे कर्म करेंगे और ईश्वर के प्रति श्रद्धा रखेंगे तो ईश्वर भी हमारी रक्षा अवश्य करेंगे। लोगों का मानना है कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव हमारे निकट होते हैं और इस दिन पूजा-अर्चना तथा रात्रि जागरण करने वालों को उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। कई लोग इस दिन दान करते हैं तथा गरीबों को खाना खिलाकर भगवान शिवजी से अपनी सुखी जीवन के लिए प्रार्थना करते है। श्री शिव की प्रसन्नता के लिए क्या करें: महाशिवरात्रि के लिए प्रातः सूर्योदय से पहले उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर शिव मंदिर में या घर में ही श्रीशिव के समक्ष व्रत का संकल्प लें। व्रत के कई तरीके हैं। किसी व्रत में एक समय भोजन किया जाता है। किसी में केवल फलाहार किया जाता है और किसी में श्रीशिव की पूजा से पूर्व निर्जल रह कर भी संकल्प लिया जाता है। आप अपने स्वास्थ्य के अनुसार संकल्प लें। श्रीशिव बहुत ही कृपालु हैं, इसलिए मानसिक श्रद्धा से व्रत रखना आवश्यक है। भगवान श्रीशिव को भांग, धतूरा, बेलपत्र, जायफल आदि प्रिय है। इसलिए इनको पूजा में अवश्य शामिल करें। यदि उपरोक्त चीजें उपलब्ध नहीं हो तो मदार के पुष्प से भी शिव की पूजा की जा सकती है।शिवरात्रि के व्रत और पूजा के लाभ: श्री शिव को एक आदर्श पति के तौर पर माना जाता है। इसलिए कुंवारी कन्याओं को अवश्य ही महाशिवरात्रि का व्रत करना चाहिए। वैसे भी सात सोमवार तक लगातार श्रीशिव की पूजा और उपासना करने से सगाई-विवाह के संबंध में आ रही अड़चनों का निवारण होता है। जिन विवाहित जोड़ों को वैवाहिक जीवन में कलह, विचार वैमनस्य जैसी परेशानी हो तो भी इस व्रत से उसका निवारण हो जाता है। इसके लिए सोमवार को 2 मुखी रूद्राक्ष गले में धारण करना चाहिए। धन संबंधी समस्याओं के लिए भी श्रीशिव की उपासना और पूजा से लाभ होता है। स्वास्थ्य संबंधी परेशानी से मुक्ति के लिए श्रीशिव के महामृत्युंजय मंत्र के सवा लाख जाप करने से समस्या से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। रिपोर्ट अशोक झा

Back to top button