गुर्दे में बना रहे पथरी, छोटे बच्‍चों के लिए खतरनाक होता है फास्‍ट फूड और कोल्‍ड ड्रिंक?

सिलीगुड़ी: आज विश्व किडनी दिवस है। पैकेटबंद नमकीन, कोल्ड ड्रिंक, फास्ट फूड और अन्य चटपटे खानपान से छोटे बच्चों के गुर्दों में पथरी बन रही है। इनमें नमक-मीठा ज्यादा होने से गुर्दे में जमा हो रहा कैल्शियम पथरी बना रहा है, जो एक बार ऑपरेशन के बाद भी दोबारा बन जा रही है। शहर के यूरोलॉजी कंसल्टेंट व सर्जन डॉ. समर्थ अग्रवाल से बात करने का मौका मिला। डॉक्टर अग्रवाल शहर के आनंद लोक और महाराजा अग्रसेन हास्पिटल में अपनी सेवा दे रहे है। उन्होंने कहा की कई बार ऐसा होता है कि किडनी संबंधी कोई रोग हो जाता है लेकिन नॉर्मल लक्षण होने के कारण अधिकतर उन्हें इग्नोर कर देते हैं। लेकिन समय के साथ ये आपकी किडनी के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं। ऐसे में किडनी डायलिसिस या फिर ट्रांसप्लांट की नौबत आ जाती है। ऐसे में जरूरी है कि समय रहते किडनी को बीमारी को पहचान लिया जाएं। ऐसे में कुछ मेडिकल टेस्ट कारगर साबित हो सकते हैं। हेल्थ एक्सपर्ट के अनुसार, 30 से 40 की उम्र में हर एक व्यक्ति को साल में एक बार किडनी संबंधी कुछ टेस्ट अवश्य करना चाहिए, जिससे संभावित समस्याओं के बारे में समय रहते पता करके उसका उपचार कर सकते हैं। आइए विश्व किडनी दिवस के मौके पर जानें उन टेस्ट के बारे में जिन्हें 30 साल की उम्र के बाद अवश्य करा लेना चाहिए। ब्लड प्रेशर टेस्ट : उच्च रक्तचाप (हाइपरटेंशन) किडनी की बीमारी का एक प्रमुख कारण है। नियमित रक्तचाप जांच से उच्च रक्तचाप की शीघ्र पहचान करने में मदद मिल सकती है, क्योंकि अक्सर इसके कोई लक्षण नहीं होते हैं। लगातार हाई ब्लड प्रेशर रहने से समय बीतने के साथ किडनी को नुकसान हो सकता है, जिससे क्रोनिक किडनी रोग जैसी स्थितियां पैदा हो सकती हैं। सीरम क्रिएटिनिन टेस्ट : सीरम क्रिएटिनिन मांसपेशियों के चयापचय द्वारा सृजित और गुर्दे द्वारा फ़िल्टर किया गया एक अपशिष्ट उत्पाद है। रक्त में सीरम क्रिएटिनिन का ऊंचा स्तर गुर्दे द्वारा खराब कार्यप्रणाली करने का संकेत दे सकता है। एक साधारण रक्त परीक्षण सीरम क्रिएटिनिन स्तर को माप सकता है और गुर्दे की कार्यप्रणाली का आकलन कर सकता है। अनुमानित ग्लोमेरुलर निस्पंदन दर : ईजीएफआर सीरम क्रिएटिनिन के स्तर, आयु, लिंग और नस्ल पर आधारित एक गणना है। इसमें यह अनुमान मिलता है कि किडनी रक्त से अपशिष्ट पदार्थों को किस तरह फ़िल्टर कर रहे हैं। कम ईजीएफआर किडनी की कार्यक्षमता में कमी का संकेत देता है और किडनी का रोग होने का संकेत दे सकता है।यूरिनलिसिस: यूरिनलिसिस में किडनी के स्वास्थ्य के विभिन्न मार्गों, जैसे प्रोटीन, रक्त और अन्य असामान्यताओं के लिए मूत्र के नमूने का परीक्षण करना शामिल है। प्रोटीनुरिया (यूरीन में प्रोटीन की उपस्थिति) और हेमाट्यूरिया (यूरीन में रक्त) किडनी की क्षति के सामान्य लक्षण हैं और अंतर्निहित गुर्दे की बीमारी का संकेत दे सकते हैं।यूरिन एल्ब्यूमिन-टू-क्रिएटिनिन अनुपात : एसीआर एक विशिष्ट परीक्षण है जो मूत्र में एल्ब्यूमिन (एक प्रकार का प्रोटीन) और क्रिएटिनिन के अनुपात को मापता है। इसका उपयोग मूत्र में थोड़ी मात्रा में प्रोटीन (माइक्रोएल्ब्यूमिन्यूरिया) का पता लगाने के लिए किया जाता है, जो कि किडनी के डैमेज का प्रारंभिक संकेत हो सकता है। उन लोगों के लिए ज्यादा जो मधुमेह या उच्च रक्तचाप से ग्रस्त है। किडनी इमेजिंग: अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन या एमआरआई जैसे इमेजिंग परीक्षण, गुर्दे और यूरीन मार्ग की विस्तृत छवियां सृजित कर सकते हैं। ये परीक्षण संरचनागत असामान्यताओं, किडनी की पथरी, सिस्ट, ट्यूमर या अन्य बीमारियों की पहचान करने में मदद कर सकते हैं, जो किडनी के कार्य को प्रभावित कर सकते हैं। आनुवंशिक परीक्षण कराते हैं। पॉलीसिस्टिक किडनी रोग या एलपोर्ट सिंड्रोम जैसे रोग किडनी के लिए हानिकारक हो सकते हैं। अगर किडनियों की फिल्‍टर करने की क्षमता कम हो जाए तो, शरीर में व्‍यर्थ पदार्थ खतरनाक स्‍तर तक एकत्र हो जाते हैं, और रक्‍त में रसायनों का संतुलन गड़बड़ा जाता है, जो घातक होता है. बच्चों का शरीर विकसित हो रहा होता है, ऐसे में उनके सभी अंगों और तंत्रों जिसमें किडनियां भी शामिल हैं ठीक तरह से काम करना बहुत जरूरी है।क्यों बीमार हो रही हैं बच्चों की किडनियां?: खानपान की गलत आदतें-आजकल के बच्चों में पैकेज फूड्स और जंक फूड्स का सेवन बहुत बढ़ गया है. इनमें कई ऐसे तत्व होते हैं जो बच्चों की किडिनियों को सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं। नमकीन स्नैक्स-छोटे-छोटे पैकेट्स में मिलने वाले नमकीन स्नैक्स में बहुत अधिक सोडियम होता है. सोडियम किडनियों से पानी को बाहर निकालता है, जिससे किडनियों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है। इससे किडनियां कमजोर हो जाती हैं और उनके बीमार होने का खतरा बढ़ जाता है।जंक फूड्स-जंक फूड्स में अक्सर बहुत अधिक सोडियम, चीनी, एमएसजी होते हैं. ये सभी चीजें बच्चों की किडनियों को नुकसान पहुंचा सकती हैं. एमएसजी जैसे अजिनोमोटो चायनीज़ फूड्स में बहुत इस्तेमाल होता है और आजकल के बच्चों को चायनीज़ खाना बहुत पसंद है. अजिनोमोटो मोनोसोडियम ग्लुटामेट होता है. इनके सेवन से पानी का इनटेक बढ़ जाता है जिससे यूरीन अधिक मात्रा में पास करनी पड़ती है. इससे किडनियों पर दबाव बढ़ता है और उनकी सामान्य कार्यप्रणाली प्रभावित होती है। डिहाइड्रेशन- बच्चों को पर्याप्त मात्रा में पानी और दूसरे तरल पदार्थों की जरूरत होती है. अक्सर पढ़ाई के बोझ या खेलने में व्यस्त होने के कारण बच्चे पानी पीना भूल जाते हैं. इससे शरीर में डिहाइड्रेशन बढ़ता है जिससे किडनियों का स्वास्थ्य प्रभावित होता है। मोटापा-हमारे देश के बच्चों में बढ़ता मोटापा एक गंभीर समस्या है. भारत के लगभग 15 प्रतिशत बच्चों का वजन सामान्य से अधिक है या वो मोटापे के शिकार हैं. वर्तमान में हमारे यहां के 1 करोड़ 44 लाख बच्चे मोटापे का शिकार हैं. 2025 तक यह संख्या बढ़कर 1 करोड़ 70 लाख तक हो जाएगी. मोटापे के कारण क्रॉनिक किडनी डिसीज सहित किडनी से संबंधित दूसरी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। अनुवांशिक कारण- अनुवांशिक कारण भी बच्चों की किडनियों को बीमार बनाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं, जिनके बच्चों के परिवारों में किडनियों से संबंधित समस्याओं के मामले होते हैं उनके लिए खतरा बढ़ जाता है. इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ नेफ्रोलॉजी के अनुसार विश्व की 10 प्रतिशत जनसंख्या किडनियों से संबंधित मामूली या गंभीर समस्याओं से जूझ रही है. ऐसे में बच्चों के लिए भी रिस्क बढ़ रहा है।इन लक्षणों को गंभीरता से लें माता-पिता-बच्चे नासमझ होते हैं, इसलिए माता-पिता को उनके स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना चाहिए. अगर निम्न लक्षण दिखें तो माता-पिता को तुरंत सतर्क हो जाना चाहिए। अगर बच्चे का शारीरिक विकास अपने हमउम्र बच्चों के समान नहीं है।बच्चा बहुत दुबला-पतला है, उसका वज़न सामान्य से कम है। सुबह उठने पर चेहरे और पैरों पर सूजन दिखाई देना।
पेशाब में जलन या पेशाब का रंग बदल जाना।पेशाब करने में अधिक समय लगाना। पेट में दर्द। भूख न लगना। थकान। किडनियों को स्वस्थ्य रखने की टिप्स। माता-पिता को चाहिए की वो बच्चों को अच्छी आदतें अपनाने के लिए प्रेरित करें, इससे न केवल उनकी किडनियां ठीक तरह से काम करेंगी बल्कि उनका समग्र स्वास्थ्य बेहतर बनेगा। उन्हें अनुशासित जीवनशैली का पालन करने के लिए प्रेरित करें; नियत समय पर सोना, जागना और खाना। बच्चों को घर का बना सादा और पोषक खाना दें, उन्हें प्रोसेस्ड फूड्स, फिज्जी ड्रिंक्स और जंक फूड्स से दूर रखें। घर की चहार दीवारी में बंद न रखें, बाहर निकलकर दोस्तों के साथ खेलने दें। उनके वज़न पर नज़र रखें, हम उम्र बच्चों से वज़न कम या ज्यादा होने को गंभीरता से लें।पर्याप्त मात्रा में पानी और दूसरे तरल पदार्थों का सेवन करने के लिए कहें। रिपोर्ट अशोक झा

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