मयूर स्कूल के उद्घाटन के लिए सिलीगुड़ी पहुंच जगतगुरु अविमुक्तेश्वरानंद जी महाराज
सिलीगुड़ी: मयूर स्कूल सिलीगुड़ी के भव्य व दिव्य उद्घाटन के लिए जगत गुरु शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद जी महाराज कड़ी सुरक्षा के बीच सिलीगुड़ी पहुंचे। उनका बागडोगरा एयरपोर्ट पर भव्य स्वागत डालमिया परिवार के द्वारा किया गया। उन्होंने कहा कि इस पुण्य भूमि में शिक्षा के मंदिर का उद्घाटन करने पहुंचने पर सुखद अनुभूति हो रहा है। हिमालय की गोद में बसे इस शहर में मयूर स्कूल जो नाम के साथ अपनी दिव्यता और भव्यता के साथ बच्चों के सुखद भविष्य को आगे बढ़ाएगा। इससे अच्छी और क्या बात हो सकती है।
कौन हैं अविमुक्तेश्वरानंद जी ?
15 अगस्त 1969 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का जन्म हुआ। इनका मूल नाम उमाशंकर है। इनके स्वर्गवासी माता-पिता का नाम पंडित राम सुमेर पांडेय और माता अनारा देवी है। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद प्राथमिक शिक्षा प्रतापगढ़ में ही हुई लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए 9 साल की उम्र में परिवार की सहमति के बाद वह गुजरात चले गए। यहां धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज के शिष्य ब्रह्मचारी रामचैतन्य के सानिध्य में गुरुकुल में संस्कृत शिक्षा ग्रहण की।
22 साल तक स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य रहे
फिर इन्हें काशी में स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी का सानिधय प्राप्त हुआ. यहां उन्होंने दंडी दीक्षा ली. गुजरात की द्वारका-शारदा पीठ और उत्तराखंड की ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के ब्रह्मलीन होने के बाद अविमुक्तेश्वरानंद को ज्योतिष पीठ के नए शंकराचार्य बने।
गंगा सेवा अभियान से लेकर मंदिर बचाओ अभियान तक रही अहम भूमिका: स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने गंगा सेवा अभियान यात्रा काशी से निकाली। 2015 में संतों पर लाठी चार्ज के विरोध में अन्याय प्रतिकार यात्रा निकाली थी। वाराणसी में मंदिर तोड़े जाने के विरोध में उन्होंने मंदिर बचाओ आंदोलन निकालकर उन्होंने देश भर के सनातन हिंदुओं को जागृत किया था।
2003 में बने दंडी संन्यासी
उन्हीं की प्रेरणा से नव्यव्याकरण विषय से काशी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में आचार्य पर्यंत अध्ययन किया। इस दौरान छात्र राजनीति में भी सक्रिय रहे। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में छात्रसंघ के महामंत्री पद पर चुने गए। 15 अप्रैल, 2003 को उमाशंकर को दंड संन्यास की दीक्षा देकर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती नाम दे दिया गया। केदारघाटी स्थित श्रीविद्यामठ की पूरी कमान संभालते आ रहे है। रिपोर्ट अशोक झा