अंबुबाची मेला 22 से, 26 को खुलेगा भक्तों के लिए मंदिर का द्वार

जब माता मासिक धर्म में होती हैं तो यहां पर अंबुवाची मेला लगता है


– देश विदेश के अघोड़ी और तांत्रिकों का शुरू हुआ जमावड़ा
– एक ऐसा मंदिर जहां मूर्ति नहीं योनि की होती है पूजा, प्रसाद में मिलते है खून से रंगे वस्त्र
अशोक झा, सिलीगुड़ी: आर्यावर्त यानी भारत आस्था, भक्ति और अध्यात्म का देश है। यहां प्राचीन काल से ही मंदिर पूजा और आराधना के लिए विशेष केंद्र रहे हैं। इन मंदिरों में कई मंदिर ऐसे हैं, जो अपने चमत्कारों और रहस्यों के लिए प्रसिद्ध हैं। मंदिर के पुजारी मिहिर शर्मा बताते है कि पौराणिक मान्यता के अनुसार जब सती के मृत्यु के बाद महादेव उनके शरीर को लेकर भ्रमण कर रहे थे। तब भगवान विष्णु ने माता सती के शरीर को काटकर अंग भंग कर दिया। माता सती के अंग जिन स्थानों पर गिरे वहां- वहां पर शक्तिपीठ बन गए। ऐसी मान्यता है कि नीलांचल पर्वत पर माता सती के योनि का अंग भाग गिरा था। वहां पर कामख्या देवी शक्तिपीठ की स्थापना हो गई। मां की योनि गिरकर एक विग्रह में बदल गई। वह विग्रह आज भी उस मंदिर में उपस्थित है। उस कुंड से आज भी मां रजस्वला होती है। असम के गुवाहाटी में मौजूद कामख्या देवी मंदिर बेहद ही रहस्यमयी है। यहां पर देवी की कोई भी मूर्ति नहीं है। माता के 52 शक्तिपीठों में से एक इस मंदिर मंदिर में माता के योनि स्वरूप का पूजन किया जाता है। इस मंदिर को तांत्रिक और अघोरियों का गढ़ कहा जाता है। यह मंदिर असम की राजधानी से 10 किमी दूर नीलांचल पर्वत पर है। कामख्या मंदिर में एक कुंड है, जो हमेशा फूलों से ढका हुआ रहता है। ऐसी मान्यता है कि 22 जून से 25 जून तक यह मंदिर बंद रहता है। इस दौरान माता मासिक धर्म से होती हैं।bइन 3 दिनों में माता के दरबार में एक सफेद कपड़ा रखा जाता है, जो इन 3 दिनों में लाल हो जाता है। यह कपड़ा अम्बुवाची वस्त्र कहलाता है। भक्तों को यह प्रसाद स्वरूप भी दिया जाता है। इस मंदिर के तीन बार दर्शन करने मात्र से व्यक्ति सांसरिक बंधनों से मुक्त हो जाता है। जब माता मासिक धर्म में होती हैं तो यहां पर अंबुवाची मेला लगता है। इस दौरान मंदिर में किसी को भी जाने की इजाजत नहीं होती है। कोई भी पुरुष वहां नहीं जा सकता है। मनोकामना पूरी होने के बाद भक्त यहां पर कन्या भोज कराते हैं। यहां पर कुछ लोग जानवरों की बलि देते हैं। यहां इस बात का ध्यान रखा जाता है कि यहां पर मादा जानवरों की बलि वर्जित है।।कामाख्या मंदिर सभी शक्तिपीठों का महापीठ माना जाता है।रहस्यों से भरा है कामाख्या मंदिर: इस मंदिर में देवी दुर्गा या मां अम्बे की कोई मूर्ति या चित्र आपको दिखाई नहीं देगा। वल्कि मंदिर में एक कुंड बना है जो की हमेशा फूलों से ढ़का रहता है। इस कुंड से हमेशा ही जल निकलता रहतै है। चमत्कारों से भरे इस मंदिर में देवी की योनि की पूजा की जाती है और योनी भाग के यहां होने से माता यहां रजस्वला भी होती हैं। मंदिर से कई अन्य रौचक बातें जुड़ी है। तो आइए जानते है। मंदिर धर्म पुराणों के अनुसार माना जाता है कि इस शक्तिपीठ का नाम कामाख्या इसलिए पड़ा क्योंकि इस जगह भगवान शिव का मां सती के प्रति मोह भंग करने के लिए विष्णु भगवान ने अपने चक्र से माता सती के 51 भाग किए थे जहां पर यह भाग गिरे वहां पर माता का एक शक्तिपीठ बन गया और इस जगह माता की योनी गिरी थी, जोकी आज बहुत ही शक्तिशाली पीठ है। यहां वैसे तो सालभर ही भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन दुर्गा पूजा, पोहान बिया, दुर्गादेऊल, वसंती पूजा, मदानदेऊल, अम्बुवासी और मनासा पूजा पर इस मंदिर का अलग ही महत्व है जिसके कारण इन दिनों में लाखों की संख्या में भक्त यहां पहुचतें है।
यहां लगता है अम्बुवाची मेला: हर साल यहां अम्बुबाची मेला के दौरान पास में स्थित ब्रह्मपुत्र का पानी तीन दिन के लिए लाल हो जाता है। पानी का यह लाल रंग कामाख्या देवी के मासिक धर्म के कारण होता है। फिर तीन दिन बाद दर्शन के लिए यहां भक्तों की भीड़ मंदिर में उमड़ पड़ती है। आपको बता दें की मंदिर में भक्तों को बहुत ही अजीबो गरीब प्रसाद दिया जाता है।दूसरे शक्तिपीठों की अपेक्षा कामाख्या देवी मंदिर में प्रसाद के रूप में लाल रंग का गीला कपड़ा दिया जाता है। कहा जाता है कि जब मां को तीन दिन का रजस्वला होता है, तो सफेद रंग का कपडा मंदिर के अंदर बिछा दिया जाता है। तीन दिन बाद जब मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं, तब वह वस्त्र माता के रज से लाल रंग से भीगा होता है। इस कपड़ें को अम्बुवाची वस्त्र कहते है। इसे ही भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है।पशुओं की दी जाती है बलि: मनोकामना पूरी करने के लिए यहां कन्या पूजन व भंडारा कराया जाता है। इसके साथ ही यहां पर पशुओं की बलि दी जाती ही हैं। लेकिन यहां मादा जानवरों की बलि नहीं दी जाती है।काली और त्रिपुर सुंदरी देवी के बाद कामाख्या माता तांत्रिकों की सबसे महत्वपूर्ण देवी है। कामाख्या देवी की पूजा भगवान शिव के नववधू के रूप में की जाती है, जो कि मुक्ति को स्वीकार करती है और सभी इच्छाएं पूर्ण करती है।मंदिर परिसर में जो भी भक्त अपनी मुराद लेकर आता है उसकी हर मुराद पूरी होती है। इस मंदिर के साथ लगे एक मंदिर में आपको मां का मूर्ति विराजित मिलेगी। जिसे कामादेव मंदिर कहा जाता है। माना जाता है कि यहां के तांत्रिक बुरी शक्तियों को दूर करने में भी समर्थ होते हैं। हालांकि वह अपनी शक्तियों का इस्तेमाल काफी सोच-विचार कर करते हैं। कामाख्या के तांत्रिक और साधू चमत्कार करने में सक्षम होते हैं। कई लोग विवाह, बच्चे, धन और दूसरी इच्छाओं की पूर्ति के लिए कामाख्या की तीर्थयात्रा पर जाते हैं।कामाख्या मंदिर तीन हिस्सों में बना हुआ है। पहला हिस्सा सबसे बड़ा है इसमें हर व्यक्ति को नहीं जाने दिया जाता, वहीं दूसरे हिस्से में माता के दर्शन होते हैं जहां एक पत्थर से हर वक्त पानी निकलता रहता है।माना जाता है कि महीनें के तीन दिन माता को रजस्वला होता है। इन तीन दिनो तक मंदिर के पट बंद रहते है। तीन दिन बाद दुबारा बड़े ही धूमधाम से मंदिर के पट खोले जाते है। रिपोर्ट अशोक झा

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