कल से अग्रेजों के बनाए तीन कानून से होगी मुक्ति, बंगाल में विरोध
अशोक झा, सिलीगुड़ी: भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम ब्रिटिश काल के क्रमश: भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम का स्थान लेंगे। तीन नए आपराधिक कानून 1 जुलाई, 2024 से लागू हो रहे हैं, यानी सोमवार (1 जुलाई) से देश में नए कानून लागू होंगे। तीनों नए कानून वर्तमान में लागू ब्रिटिश काल के भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और 1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने वाले हैं।।तीनों नए कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम कहे जाएंगे, जो क्रमश: भारतीय दंड संहिता (1860), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (1898) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (1872) का स्थान लेंगे।।कानूनों में प्रभावी होने के साथ ही इनमें शामिल धाराओं का क्रम भी बदल जाएगा। आइये जानते हैं आईपीसी की कुछ अहम धाराओं के बदलाव के बारे में? नए कानून में इन्हें किस क्रम में रखा गया है? वे पहले किस स्थान पर थीं? पहले जानते हैं कि भारतीय न्याय संहिता में क्या बदला है?
भारतीय दंड संहिता में 511 धाराएं थीं, लेकिन भारतीय न्याय संहिता में धाराएं 358 रह गई हैं। संशोधन के जरिए इसमें 20 नए अपराध शामिल किए हैं, तो 33 अपराधों में सजा अवधि बढ़ाई है। 83 अपराधों में जुर्माने की रकम भी बढ़ाई है। 23 अपराधों में अनिवार्य न्यूनतम सजा का प्रावधान है। छह अपराधों में सामुदायिक सेवा की सजा का प्रावधान किया गया है।
अब जानते हैं अहम धाराओं में बदलाव
धारा 124: आईपीसी की धारा 124 राजद्रोह से जुड़े मामलों में सजा का प्रावधान रखती थी। नए कानूनों के तहत ‘राजद्रोह’ को एक नया शब्द ‘देशद्रोह’ मिला है यानी ब्रिटिश काल के शब्द को हटा दिया गया है। भारतीय न्याय संहिता में अध्याय 7 में राज्य के विरुद्ध अपराधों कि श्रेणी में ‘देशद्रोह’ को रखा गया है।
धारा 144: आईपीसी की धारा 144 घातक हथियार से लैस होकर गैरकानूनी सभा में शामिल होना के बारे में थी। इस धारा को भारतीय न्याय संहिता के अध्याय 11 में सार्वजनिक शांति के विरुद्ध अपराध की श्रेणी में रखा गया है। अब भारतीय न्याय संहिता की धारा 187 गैरकानूनी सभा के बारे में है।
धारा 302: पहले किसी की हत्या करने वाला धारा 302 के तहत आरोपी बनाया जाता था। हालांकि, अब ऐसे अपराधियों को धारा 101 के तहत सजा मिलेगी। नए कानून के अनुसार, हत्या की धारा को अध्याय 6 में मानव शरीर को प्रभावित करने वाले अपराध कहा जाएगा।धारा 307: नए कानून के अस्तित्व में आने से पहले हत्या करने के प्रयास में दोषी को आईपीसी की धारा 307 के तहत सजा मिलती थी। अब ऐसे दोषियों को भारतीय न्याय संहिता की धारा 109 के तहत सजा सुनाई जाएगी। इस धारा को भी अध्याय 6 में रखा गया है।धारा 376: दुष्कर्म से जुड़े अपराध में सजा को पहले आईपीसी की धारा 376 में परिभाषित किया गया था। भारतीय न्याय संहिता में इसे अध्याय 5 में महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराध की श्रेणी में जगह दी गई है। नए कानून में दुष्कर्म से जुड़े अपराध में सजा को धारा 63 में परिभाषित किया गया है। वहीं सामूहिक दुष्कर्म को आईपीसी की धारा 376 डी को नए कानून में धारा 70 में शामिल किया गया है।
धारा 399: पहले मानहानि के मामले में आईपीसी की धारा 399 इस्तेमाल की जाती थी। नए कानून में अध्याय 19 के तहत आपराधिक धमकी, अपमान, मानहानि, आदि में इसे जगह दी गई है। मानहानि को भारतीय न्याय संहिता की धारा 356 में रखा गया है।धारा 420: भारतीय न्याय संहिता में धोखाधड़ी या ठगी का अपराध 420 में नहीं, अब धारा 316 के तहत आएगा। इस धारा को भारतीय न्याय संहिता में अध्याय 17 में संपत्ति की चोरी के विरूद्ध अपराधों की श्रेणी में रखा गया है।
सीआरपीसी और साक्ष्य अधिनियम में क्या बदलाव?
दंड प्रक्रिया संहिता यानी सीआरपीसी की जगह अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता ने ले ली है। सीआरपीसी की 484 धाराओं के बदले भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में 531 धाराएं हैं। नए कानून के तहत 177 प्रावधान बदले गए हैं जबकि नौ नई धाराएं और 39 उपधाराएं जोड़ी हैं। इसके अलावा 35 धाराओं में समय सीमा तय की गई है।
वहीं, नए भारतीय साक्ष्य अधिनियम में 170 प्रावधान हैं। इससे पहले वाले कानून में 167 प्रावधान थे। नए कानून में 24 प्रावधान बदले हैं।
बंगाल में नए कानून का होगा विरोध, मनाया जायेगा काला दिवस: पश्चिम बंगाल बार काउंसिल ने केंद्र द्वारा तीन नए आपराधिक कानूनों के कार्यान्वयन के खिलाफ 1 जुलाई को ‘काला दिवस’ विरोध घोषित किया, जो भारतीय दंड संहिता, साक्ष्य अधिनियम और आपराधिक प्रक्रिया संहिता की जगह लेंगे।प्रस्ताव के अनुसार, परिषद के सदस्य 1) भारतीय न्याय संहिता, 2023 2) भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 और 3) भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 के संबंध में अपने सर्वसम्मत विचार व्यक्त करते हैं, ये तीनों अधिनियम जनविरोधी, अलोकतांत्रिक, क्रूर हैं और आम लोगों को बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ेगा, पश्चिम बंगाल बार काउंसिल ने कोई अन्य विकल्प न पाकर इन तीनों जनविरोधी अधिनियमों के खिलाफ अपना विरोध जोरदार तरीके से उठाया। वही दूसरी ओर इस कानून को लागू करने के लिए छह लाख से ज्यादा लोगों को दी गई ट्रेनिंग दी गई है। केंद्र सरकार के सूत्रों के मुताबिक राष्ट्रीय आपराधिक रिकॉर्ड ब्यूरो और पुलिस अनुसंधान ब्यूरो के साथ-साथ राष्ट्रीय सूचना संचार सेवा ने भी राज्य सरकारों के साथ मिलकर पुलिस अधिकारियों, न्यायिक अधिकारियों और इससे जुड़ी सेवाओं के सवा छह लाख से ज्यादा लोगों को नए नियमों की ट्रेनिंग दी है. बीते छह महीनों में इन प्रशिक्षु अधिकारियों को नए जमाने और तकनीक के साथ जांच के नए औजारों और सुविधाओं के साथ पुख्ता सबूत जुटाने की ट्रेनिंग सक्षम और दक्ष ट्रेनरों ने दी है।सभी राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों के न्याय और गृह विभाग, कारागारों, अभियोजन अधिकारियों, कानून के छात्रों, शिक्षा विभाग, महिला और बाल विकास विभाग, सहकारिता और ग्रामीण विकास विभाग के साथ पुलिस रिकॉर्ड से जुड़े अधिकारियों कर्मचारियों को इन संहिताओं, कानून की जटिलताओं और उनसे सरलता और सहजता से निपटने के तकनीकी स्रोतों की जानकारी और प्रशिक्षा दी गई. इस कार्य में विज्ञान प्रोद्योगिकी, संचार, पंचायती राज मंत्रालयों के विशेषज्ञों ने भी अपनी भूमिका निभाई। फोटोग्राफी से लेकर सबूत जुटाने की दी गई ट्रेनिंग: इनको बताया गया कि कैसे अपराध के स्थान की फोटोग्राफी, वीडीयोग्राफी करनी है, साक्ष्य कैसे जुटाने हैं, इनमें तकनीक के जरिए अचूक तरीका कैसा होना चाहिए, बयान दर्ज करने में भी तकनीक का प्रयोग और मानवाधिकारों का ध्यान सर्वोपरि रूप से रखने आदि का प्रशिक्षण दिया गया। इसके अलावा एनआईसी ने जो ई कोर्ट्स के लिए न्याय श्रुति, ई साक्ष्य और ई समन जैसे मोबाइल ऐप विकसित किए हैं उनके सहजता और कुशलता से इस्तेमाल की भी ट्रेनिंग दी गई. इन सबके लिए विकसित कोर्स के ढाई सौ से ज्यादा सत्र वेबिनार सेमिनार के जरिए आयोजित किए गए. इनमें करीब 50 हजार लोगों को प्रशिक्षित किया गया. फिर इन लोगों ने अपने सहयोगी और ग्राउंड वर्कर्स को ट्रेंड किया। जागरूकता सेमिनार से जुड़े 40 लाख से ज्यादा लोग: इन कानून और संहिताओं से जुड़े तीन प्रशिक्षण कोर्स में ही करीब ढाई लाख अधिकारियों ने नामांकन कराया है। आम नागरिकों को इन नए कानूनों के प्रति जागरूक बनाने के लिए आयोजित वेबिनार सेमिनार में 40 लाख से ज्यादा लोगों ने प्रत्यक्ष या वीसी के जरिए जुड़ कर प्रशिक्षण लिया। इसके अलावा पीआईबी और सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने भी देश के नागरिकों के लिए वार्तालाप सीरीज का आयोजन 17 बार किया।’नए कानूनों के साथ आएंगी नई चुनौतियां’: अब इनका कितना असर हुआ इसकी जानकारी तो एक जुलाई के बाद से मिलना शुरू होगी क्योंकि कानून के कई दिग्गज जानकारों ने इन संहिताओं में मौजूद गंभीर खामियों के प्रति सरकार और समाज को बताया था।सुप्रीम कोर्ट में वकील समर सिंह के मुताबिक न्यायविदों के सुझाव और अपत्तियों पर अब तक तो कोई कंक्रीट समाधान नहीं हुआ है. शायद जब आगे समस्याएं सामने आएंगी तब कुछ किया जा सके. क्योंकि नए कानूनों के साथ नई चुनौतियां भी सामने आएंगी। कानून लागू होने से पहले सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला: तीन नए आपराधिक कानून लागू होने से तीन दिन पहले मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. फिलहाल तीनों कानूनों के लागू करने पर रोक लगाने की मांग की गई है. याचिका में मांग की गई है कि सुप्रीम कोर्ट विशेषज्ञों की समिति का गठन कर इन तीनों विधि संहिताओं का विस्तृत अध्ययन कराए ताकि इनमें मौजूद दोषों का समुचित परिष्कार हो जाए. तब तक इनके क्रियान्वयन पर रोक लगाने की गुहार लगाई गई है। पिछले साल 25 दिसंबर को संसद के दोनों सदनों से पारित इन तीनों संहिताओं के विधेयक पर राष्ट्रपति ने दस्तखत कर दिए थे. लेकिन सरकार ने इनको एक जुलाई से लागू करने की अधिसूचना जारी की थी। सुप्रीम कोर्ट में अंजली पटेल और छाया मिश्रा ने यह जनहित याचिका दायर की है। रिपोर्ट अशोक झा