नॉर्थ सिटी में मंदिर निर्माण मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा के लिए मंत्रोचारण के साथ पूजन प्रारंभ
11 को होगी भक्तिमय माहौल में पूजन और प्रसाद वितरण
सिलीगुड़ी: सेवक रोड स्थित नॉर्थ सिटी में निर्मित भव्य मंदिर का निर्माण यहां रहने वाले परिवार के मुखिया सीताराम डालमिया द्वारा मंत्रोचारण के साथ प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल हुए है।
प्राण प्रतिष्ठा को वेदों में दी गई है मान्यता: प्राण-प्रतिष्ठा की प्रक्रिया का वेदों में वर्णन है। मत्स्य पुराण, वामन पुराण और नारद पुराण समेत कई पुराणों में इसका विस्तार से वर्णन है। शास्त्रों और धर्माचार्यों के अनुसार, मूर्ति जिस देवता की होती है, मंत्रों द्वारा उस देवता का ही आह्वान किया जाता है और इससे मूर्ति में उस देवता की दिव्य शक्तियां समाहित हो जाती हैं। पूजा के लिए आए पंडितों ने कहा कि किसी भी मूर्ति की स्थापना के समय प्रतिमा रूप को जीवित करने की विधि को प्राण प्रतिष्ठा कहा जाता है। ऐसे में प्राण-प्रतिष्ठा का अर्थ है, जीवन शक्ति की स्थापना करना अथवा देवता को जीवन में लाना। सनातन धर्म में प्राण प्रतिष्ठा का बहुत ज्यादा महत्व है। मूर्ति स्थापना के समय प्राण प्रतिष्ठा जरूर किया जाता है। किसी भी मूर्ति की स्थापना के समय प्रतिमा रूप को जीवित करने की विधि को प्राण प्रतिष्ठा कहा जाता है। ‘प्राण’ शब्द का अर्थ है- जीवन शक्ति और ‘प्रतिष्ठा’ का अर्थ स्थापना से माना जाता है। ऐसे में प्राण-प्रतिष्ठा का अर्थ है, जीवन शक्ति की स्थापना करना अथवा देवता को जीवन में लाना।प्राण प्रतिष्ठा का महत्व: मंदिरों में जब मूर्तियां लायी जाती हैं, तो वे केवल पत्थरों की होती हैं लेकिन प्राण-प्रतिष्ठा कर उन्हें जीवंत बनाया जाता है, जिससे वे केवल मूर्तियां न रह जायें, बल्कि उनमें भगवान का वास हो। प्राण-प्रतिष्ठा के बिना कोई भी मूर्ति मंदिर में स्थापित नहीं होती है. प्राण-प्रतिष्ठा के लिए देवी या देवता की अलौकिक शक्तियों का आह्वाह्न किया जाता है, जिससे कि वो मूर्ति में आकर प्रतिष्ठित यानी विराजमान हो जाते हैं। इसके बाद वो मूर्ति जीवंत भगवान के रूप में मंदिर में स्थापित होती है। प्राण-प्रतिष्ठा के कारण ही कहा जाता है कि एक पत्थर भी ईश्वर का रूप धारण कर सकता है। कहा जाता है कि प्राण प्रतिष्ठित किये जाने के बाद खुद भगवान उस प्रतिमा में उपस्थित हो जाते हैं। हालांकि प्राण प्रतिष्ठा का अनुष्ठान के लिए सही तिथि और शुभ मुहूर्त का होना अनिवार्य होता है। बिना मुहूर्त के प्राण प्रतिष्ठा करने से शुभ फल नहीं मिलता है।प्राण प्रतिष्ठा की विधि: सबसे पहले प्रतिमा को गंगाजल या विभिन्न पवित्र नदियों के जल से स्नान कराया जाता है, फिर स्वच्छ वस्त्र से मूर्ति को पोछकर नवीन वस्त्र धारण कराया जाता है। इसके बाद प्रतिमा को शुद्ध एवं स्वच्छ स्थान पर विराजित करके चंदन का लेप लगाकर शृंगार किया जाता है। फिर बीज मंत्रों का पाठ कर प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है। इस समय पंचोपचार कर विधि-विधान से भगवान की पूजा की जाती है। अंत में आरती-अर्चना कर लोगों में प्रसाद वितरित किया जाता है।
मंत्र पूजन: मानो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं, तनोत्वरिष्टं यज्ञ गुम समिमं दधातु विश्वेदेवास इह मदयन्ता मोम्प्रतिष्ठ ।।अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च अस्यै, देवत्व मर्चायै माम् हेति च कश्चन ।।ॐ श्रीमन्महागणाधिपतये नमः सुप्रतिष्ठितो भव, प्रसन्नो भव, वरदा भव ।।प्राण प्रतिष्ठा के बाद मूर्ति रूप में उपस्थित देवी-देवता की विधि-विधान से पूजा, धार्मिक अनुष्ठान और मंत्रों का जाप किया जाता है। सीताराम डालमिया ने बताया कि आज से तीन दिनों तक वैदिक मंत्रों के साथ पूजा पाठ होगी। चौथे दिन यानी 11 को मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के साथ मंदिर को भक्तों के लिए खोल दिए जायेंगे। उन्होंने बताया कि मंदिर निर्माण कार्य में सहयोग कर रहे है रूपेश अग्रवाल, अनिल सिंघल, रवि अग्रवाल, संदीप महेश्वरी, विश्वनाथ रामपुरिया, रमेश मित्तल, विजय अग्रवाल, राजाराम, मनमोहन गुप्ता, गजानंद अग्रवाल, अरुण अग्रवाल, पुरषोत्तम अग्रवाल और महेश अग्रवाल आदि शामिल है। मंदिर निर्माण और मूर्ति स्थापना को लेकर सीताराम डालमिया ने बताया की इस सोसाइटी में 200 परिवार रहते है। किसी भी पूजा और पर्व के लिए भीड़भाड़ वाले इस शहर में परिवार के लोगों को धक्का खाना पड़ता था। सबसे पहले यहां होलिका दहन की शुरुआत की गई। अब पार्क के निकट मंदिर बनाया गया है। इस मंदिर में आराध्य भोले शंकर, राधा कृष्ण, महावली रामदूत हनुमान, मां दुर्गा की मूर्तियों को स्थापित किया जाएगा। मंदिर के गर्भगृह के बाहर माता शीतला मंदिर का भी निर्माण किया जाएगा। रिपोर्ट अशोक झा