पढ़िए नब्बे के दशक की चर्चित फ़िल्म ‘दिल का क्या कसूर‘ के आगे पीछे की कहानी
आज शनिवार है….. पढ़िए नब्बे के दशक की चर्चित फ़िल्म ‘दिल का क्या कसूर‘ के आगे पीछे की कहानी
निर्माता मुकेश दुग्गल ने अपने मित्र के बेटे पृथ्वी को लेकर 1992 में एक फिल्म बनाई। जिसका नाम था ‘दिल का क्या कसूर‘। साजन के सफल निर्देशक और कैमरामैन लारेंस डिसूजा तथा संगीतकार नदीम श्रवण के संगीत से सजी इस फिल्म के गाने ‘इसमे दिल का कसूर’ ‘दिल जिगर नजर क्या है’ ‘गा रहा हूं इस महफिल में’ ‘मेरा सनम सबसे प्यार है’ तथा ‘मिलने की तुम कोशिश करना, वादा कभी न करना’ बेहद हिट हुए। परदे पर अरुण की भूमिका निभाने वाले अभिनेता पृथ्वी को लोगों ने पसंद भी किया पर नई नवेली अभिनेत्री दिव्या भारती के सौंदर्य के चलते पृथ्वी का अभिनय कमजोर पड़ गया।
इसके बाद फिर किसी निर्माता निर्देशक ने पृथ्वी को अपनी फिल्म में मुख्य भूमिका में लेने की कोशिश नहीं की। फिल्मों के अभाव के चलते पृथ्वी सेंकड रोल लेने को मजबूर हो गये और उन्होनेे राहुल राय की ‘दिलवाले कभी न हारे(1992), अजय देवगन की प्लेटफार्म (1993), अक्षय कुमार की इक्के पे इक्का (1994), तथा पांडव (1995) फिल्म करने के बाद दो चार और फिल्में साइन की। पर उनका वो क्रेज फिर नहीं लौटा जो दिल का क्या कसूर में देखने को मिला था। फिल्म के रिलीज के बाद बेहद हैंडसम पृथ्वी के चर्चे मीडिया में खूब हुए। लड़कियां उनकी दीवानी थी । देवानन्द की तरह लड़कियां उनकी गाड़ी के आगे भी लेट जाती थी।
यहां तक कि ‘दिल का क्या कसूर’ के बाद पूरी दुनिया में उनके शोज हुए। पर एक कांटेक्ट के कारण उनको धीरे-धीरे फिल्में मिलना भी बंद हो गयी। बेहद धीर गंभीर और शालीन स्वाभाव वाले पृथ्वी फिल्मी दुनिया की राजनीति भी नहीं समझ सके जिसके चलते उनका कैरियर डूबने लगा। वह फिल्मी दुनिया से हताश होकर अचानक गायब हो गए। 2003 में वह फिल्म नाइफ में दिखाई दिए। इसके बाद 2008 में फिल्म जिम्मी में कैरेक्टर रोल में दिखाई दिए। पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। इन दिनों वह अपने व्यवसाय में तल्लीन रहते हैं और अपने एक बेटे और पत्नी के साथ मुम्बई में शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे हैं। @ श्रीधर अग्निहोत्री की कलम से साभार