बजट के बहाने नीति आयोग के बैठक का बहिष्कार, विपक्ष बताए इससे किसका होगा नुकसान सरकार

नई दिल्ली विपक्ष का आरोप है कि आम बजट में गैर एनडीए शासित राज्यों की अनदेखी की गई है. इस कारण वे इस बजट के विरोध में इस बैठक का बहिष्कार करेंगे. इसमें तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश, पंजाब सहित तमाम विपक्ष शासित राज्य शामिल हैं।इन गैर एनडीए शासित राज्यों का कहना है कि मोदी सरकार ने सत्ता में बने रहने के लिए इस बजट में केवल बिहार और आंध्र प्रदेश पर विशेष ध्यान दिया गया. अन्य राज्यों की मांगों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. गौरतलब है कि कर्नाटक की कांग्रेस सरकार पहले ही केंद्र सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुकी है. राज्य सरकार ने ‘मेरा कर मेरा अधिकार’ अभियान भी चलाया था. उसने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा है कि केंद्र सरकार संघीय ढांचे की भावनाओं के अनुरूप राज्य को उचित सहायता नहीं दे रही है।
क्या बैकफुट पर मोदी सरकार? सबसे बड़ा सवाल यह है कि विपक्ष के मुख्यमंत्रियों द्वारा बैठक का बहिष्कार करने का असर क्या होगा? इस सवाल पर आने से पहले हमें नीति आयोग को थोड़ा समझना होगा. दरअसल, केंद्र में 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जब भाजपा की सरकार बनी थी उसके बाद 2015 में नीति आयोग की स्थापना की. नीति आयोग यानी नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया है. इसकी स्थापना योजना आयोग को भंग कर की गई. योजना आयोग का काम केंद्र और राज्य की सरकारों को देश की जरूरत के हिसाब तमाम योजनाएं बनाने में वित्त मंत्रालय और भारत सरकार का सहयोग करना था. लेकिन, मोदी सरकार ने इसे खत्म कर जो नीति आयोग बनाई उसका काम मुख्य रूप से एक थिंक टैंक का हो गया।नीति आयोग अब सरकार के विभिन्न क्रार्यक्रमों और नीतियों के बारे में इनपुट्स उपलब्ध करवाता है. इसका बजट निर्माण या सरकार के वित्तीय कामकाज में कोई हस्तक्षेप नहीं होता. नीति आयोग का मकसद भारत सरकार और राज्यों को एक मंच उपलब्ध करवाना है. यहां पर सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश एक साथ बैठकर राष्ट्रीय हित में नीतियों के निर्माण को लेकर अपनी बात रखते हैं.
नीति आयोग की बैठक: प्रधानमंत्री इस आयोग के अध्यक्ष होते हैं. उनकी अध्यक्षता में हर साल इसकी गवर्निंग काउंसिल की बैठक होती है. केंद्रीय सचिवालय की ओर से जारी एक आदेश के तहत इस काउंसिल की स्थापना की गई है. इसमें सभी राज्यों के मुख्यमंत्री, केंद्र शासित प्रदेशों के उपराज्यपाल और प्रशासक सदस्य हैं. अब तक इस गवर्निंग काउंसिल की आठ बैठकें हो चुकी हैं. इस बैठक में कोऑपरेटिव फेडरलिज्म, विभिन्न सेक्टरों, विभागों से जुडे़ विषयों और संघीय मुद्दों पर चर्चा होती है. बैठक का मकसद राष्ट्रीय विकास के एजेंडे को आगे बढ़ाना है।बहिषकार से क्या होगा?: कुल मिलाकार नीति आयोग कोई संवैधानिक संस्था नहीं है. इसकी बैठक में कोई मुख्यमंत्री शामिल होने के लिए बाध्य नहीं है. नीति आयोग केंद्र और राज्य सरकारों के लिए एक कंसल्टेंसी एजेंसी के रूप में काम करता है. ऐसे में विपक्ष के मुख्यमंत्रियों के भाग नहीं लेने से इसकी सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा. हां, इतना जरूर है कि इसमें वे राज्य अपनी बात नहीं रख पाएंगे. कुल मिलाकर यह पूरी तरह से एक राजनीतिक मसला है. इसमें भाग लेने या न लेने से किसी की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा। बीती बैठक से भी दूर थे कई सीएम: 2023 में गवर्निंग काउंसिल की हुई आठवीं बैठक से भी कई मुख्यमंत्री गायब थे. उसमें पश्चिम बंगाल की सीएम ममत बनर्जी, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल, पंजाब के सीएम भगवंत मान, बिहार के सीएम नीतीश कुमार, तेलंगाना के तत्कालिन सीएम केसीआर, राजस्थान के तत्कालिन सीएम अशोक गहलोत और केरल के सीएम पिनारयी विजयन के नाम शामिल हैं। बजट में गैर बीजेपी शासित राज्यों की अनदेखी का आरोप लगाते हुए 27 जुलाई को प्रस्तावित नीति आयोग की बैठक का बहिष्कार का ऐलान कर दिया गया है। ऐसे में इस बात की आशंका गहराने लगी है कि क्या मानसून सत्र में जनता से जुड़े मुद्दों पर सार्थक चर्चा होगी या फिर हंगामे में पूरा सत्र यूं ही निकल जाएगा। गौरतलब है कि कर्नाटक की कांग्रेस सरकार पहले ही केंद्र सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुकी है। राज्य सरकार ने मेरा कर मेरा अधिकार अभियान चलाया था। उसने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा कि केंद्र सरकार संघीय ढांचे की भावनाओं के अनुरूप राज्य को उचित सहायता नहीं दे रही है।27 जुलाई को होनी है बैठक: कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने एक्स पर पोस्ट करते हुए कहा कि बजट को संघीय ढांचे के खिलाफ बताया। इसके साथ ही ऐलान किया कि नीति आयोग की होने वाली बैठक का कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री की बहिष्कार करेंगे। कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों में तेलंगाना के रेवंत रेड्डी, कर्नाटक के सिद्धारमैया और हिमाचल प्रदेश के सुखविंदर सिंह सुक्खू शामिल हैं। उन्होंने कहा कि इस साल के बजट के माध्यम से इसकी अवधारणा को नष्ट कर दिया गया है। अधिकांश राज्यों के साथ पूरी तरह से भेदभाव किया गया है। आपको बता दें कि 27 जुलाई को नीति आयोग की बैठक होनी है। सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को बुलाया गया है। लेकिन कांग्रेस शासित राज्यों के सीएम इसमें शामिल नहीं होंगे। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के घर पर हुई बैठक में ये फैसला लिया गया। इसके अलावा एमके स्टालिन और हेमत सोरेन ने भी बैठक में शामिल होने से इनकार किया है। आप शासित राज्य पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान भी इस बैठक में नहीं आएंगे। दीदी के मन में क्या है: विपक्ष भले ही बजट को लेकर सवाल उठा रहा है लेकिन उसकी मुहिम को ममता बनर्जी के रुख से तगड़ा झटका लगना तय माना जा रहा है। साथ ही कहा जा रहा है कि नीति आयोग की बैठक को लेकर इंडिया गठबंधन में दो फाड़ की स्थिति भी नजर आ रही है। पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी अलग राह अपना सकती हैं। सूत्र बता रहे हैं कि वो नीति आयोग की बैठक में शामिल होंगी और वो 26 जुलाई को दिल्ली पहुंचेंगी। कहा जा रहा है कि वो पीएम मोदी से मिलेंगी भी और बंगाल के लिए सरकार से फंड जारी करने की मांग भी करेंगे। टीएमसी का तर्क ये है कि वो कांग्रेस के साथ हर मुद्दे पर खड़े नहीं रहेगी। कुछ मुद्दों पर समर्थन है लेकिन इंडिया ब्लॉक के कांग्रेस और लेफ्ट के खिलाफ चुनाव लड़कर जीता है। कहीं न कहीं टीएमसी का स्टैंड अलग होगा। ममता कई मुद्दों पर अलग लाइन लेती रही हैं। इंडिया ब्लॉक के साथ रहती हैं कभी अलग राह पकड़ती हैं।
क्या है नीति आयोग: नीति आयोग की स्थापना 1 जनवरी 2015 को योजना आयोग के स्थान पर एक नई संस्था के रूप में की गई थी। इसमें सहकारी संघवाद की भावना से प्रतिध्वनित करते हुए अधिकतम शासन और न्यूनतम सरकार की परिकल्पना को साकार करने के लिए नीचे से ऊपर के दृष्टिकोण पर जोर दिया गया है। ये एक सलाहकार थिंक टैंक के रूप में कार्य करता है तथा व्यापक विशेषज्ञता वाले लोगों को इसका सदस्य बनाता है। इसके पास नीतियां लागू करने का अधिकार नहीं है। नीति आयोग के पास धन आवंटित करने का भी अधिकार नहीं है। हाल ही में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्थान (नीति आयोग) का पुनर्ठन किया है। जिसमें चार पूर्णकालिक सदस्य और 15 केंद्रीय मंत्री पदेन सदस्य या विशेष आमंत्रित सदस्य होंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नीति आयोग के अध्यक्ष बने रहेंगे। तथा अर्थशास्त्री सुमन के बेरी नीति आयोग के उपाध्यक्ष बने रहेंगे। वैज्ञानिक वीके सारस्वत, कृषि अर्थशास्त्री रमे चंद, बाल रोग विशेषज्ञ वीके पॉल और मैक्रो अर्थशास्त्री अरविंद विरमानी भी सरकारी थिंक टैंक के पूर्णकालिक सदस्य बने रहेंगे। नीती आयोग के 5 मुख्य उद्देश्य : राज्यों के साथ सतत आधार पर संरचित समर्थन पहलों और तंत्रों के माध्यम से सहकारी संघवाद को बढ़ावा देना, ये स्वीकार करते हुए कि मजबूत राज्य ही मजबूत राष्ट्र बनाते हैं। ग्राम स्तर पर विश्वसनीय योजनाएं तैयार करने के लिए तंत्र विकसित करना तथा इन्हें सरकार के उच्चतर स्तरों पर उत्तरोतर एकीकृत करना।
समाज के उस वर्गों पर विशेष ध्यान देना जो आर्थिक प्रगति से पार्यप्त लाभ न मिलने के जोखिम में हैं। प्रमुख हितधारकों एवंम राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय समानवितचारधारा वाले थिंक टैंकों के साथ साथ शैक्षिक और नीति अनुसंधान संस्थानों के बीच साझेदारी को प्रोत्साहित करना और सलाह प्रदान करना। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों, अन्य भागीदारों के सहयोगी समुदाय के माध्यम से ज्ञान, नवाचार और उद्यमशीलता सहायता प्रणाली का निर्माण करना। नीति आयोग की बैठक: प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष होते हैं और उनकी अध्यक्षता में हर साल इसकी गवर्निंग काउंसिल की बैठक होती है। केंद्रीय सचिवालय की ओर से जारी एक आदेश के अनुसार ही काउंसिल की स्थपना की गई है। इसमें सभी राज्यों के सीएम, केंद्र शासित प्रदेशों के उपराज्यपाल और प्रशासक सदस्य हैं। अब तक गवर्निंग काउंसिल की आठ बैठकें हो चुकी हैं। इस बैठक में कोऑपरेटिव फेडरलिज्म, विभिन्न सेक्टरों, विभागों से जुड़े विषयों और संघीय मुद्दों पर चर्चा होती है। विपक्ष के बहिष्कार क्या होगा असर: नीति आयोग कोई संवैधानिक संस्था नहीं है। इसकी बैठक में कोई मुख्यमंत्री शामिल होने के लिए बाध्य नहीं है। नीति आयोग केंद्र और राज्य सरकारों के लिए एक कंसल्टेंसी एजेंसी के रूप में काम करताहै। ऐसे में विपक्षी दलों के कुछ मुख्यमंत्रियों की तरफ से इसमें भाग नहीं लेने से इसकी सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा। लेकिन ये जरूर है कि वो इसमें अपने राज्य की बात को इस मंच पर नहीं रख पाएंगे। साल 2023 की बैठक से भी कई सीएम रहे थे नदारद
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में साल 2023 में मई के महीने में बुलाई गई नीति आयोग की बैठक से आम आदमी पार्टी के दिल्ली के अरविंद केजरीवाल और पंजाब के भगवंत मान, पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करने वाली ममता बनर्जी, जनता दल-यूनाइटेड के बिहार के नीतीश कुमार, भारत राष्ट्र समिति से तेलंगाना के के चंद्रशेखर राव और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम से तमिलनाडु के एमके स्टालिन शामिल थे। राजस्थान के तत्कालिन सीएम अशोक गहलोत और केरल के सीएम पिनारयी विजयन भी इस बैठक में शामिल नहीं हुए थे। रिपोर्ट अशोक झा

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