रेड लाइट एरिया की महिलाएं भी गुस्से में, दुर्गा मूर्ति के लिए मिट्टी देने से किया इंकार
पूजा कमेटी के द्वारा भी अनुदान राशि नहीं लेने की होने लगी घोषणा
अशोक झा, कोलकोता: बंगाल की राजनीति का मुख्य केंद्र बिंदु है कल्ब और छात्र से जुड़े लोग। इसके अलावा बंगाल में रेड लाइट एरिया भी राजनीति में अपना मुकाम है। वही अब सभी कोलकाता के आरजीकर मेडिकल कॉलेज में ट्रेनी डॉक्टर के साथ दुष्कर्म को लेकर पूरे देश में आक्रोश है। लोग जगह-जगह विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, इस बीच खबर आ रही है देश के सबसे बड़े रेड लाइट एरिया कोलकाता के सोनागाछी इलाके की सेक्स वर्कर ने अपने आंगन की मिट्टी देने से इनकार कर दिया है, जिसका इस्तेमाल बंगाल के सबसे बड़े त्योहार दुर्गा पूजा के लिए मूर्तियां बनाने में किया जाता है। यह रुख उन्होंने कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में एक जूनियर डॉक्टर के दुष्कर्म एवं हत्या के विरोध में अख्तियार किया है। प्रदेश में देवी दुर्गा की प्रतिमाएं बनाने के लिए परंपरागत रूप से वेश्यालय की मिट्टी का उपयोग किया जाता है। इस मिट्टी को पवित्र माना जाता है।राज्य के सेक्स वर्करों की एक प्रमुख संस्था दुर्बार महिला समन्वय समिति की एक पदाधिकारी ने कहा कि इस साल हम दुष्कर्म एवं हत्या के विरोध में अपने आंगन की मिट्टी नहीं दे रहे हैं। अक्सर दुष्कर्म पीड़ितों को न्याय नहीं मिलता। अब समय आ गया है कि हम इस मामले में अपनी आवाज उठाएं और इसलिए हमने इस बार अपनी आंगन की मिट्टी देने से मना कर दिया है। पिछले कुछ दिनों में राज्य के विभिन्न रेड लाइट इलाकों की सेक्स वर्करों ने इस जघन्य अपराध के विरोध में रैलियां निकालीं। उनके प्रदर्शनों में एक आम नारा था- यदि आवश्यक हो, तो हमारे पास आओ लेकिन किसी महिला का दुष्कर्म मत करो।इसी बीच, कोलकाता की कुछ दुर्गा पूजा समितियों ने राज्य सरकार द्वारा दिए जाने वाले वार्षिक आर्थिक अनुदान को लेने से इनकार कर दिया है। इस साल अनुदान राशि को बढ़ाकर 85 हजार रुपये कर दिया गया है जबकि पिछले साल यह 70 हजार रुपये थी।उल्लेखनीय है कि 09 अगस्त को आरजी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के सेमिनार हॉल में एक प्रशिक्षु महिला डॉक्टर का शव संदिग्ध परिस्थितियों में पाया गया था।
वेश्यालय से मिट्टी मांगने की प्रथा है पुरानी: मान्यता यह है कि वेश्यावृति करने वाली स्त्रियों को समाज से बहिस्कृत माना जाता है और उन्हें एक सम्मानजनक दर्जा दिलाने के लिए इस प्रथा का चलन शुरू किया गया था। माना तो यह भी जाता है कि प्रतिमा बनाने वाला व्यक्ति भी माता के प्रति इतना समर्पित होता है कि वैश्यालय के अंगने की मिट्टी लाने के समय उसके मन में बुरे विचार नहीं आते और एक तरह से ऐसा करते हुए वह व्यक्ति अपना कमिटमेंट पूरा कर रहा होता है। इस परीक्षा से गुज़रने के बाद ही उसे प्रतिमा निर्माण करने के काबिल समझा जाता है। पहले के समय में केवल मंदिर का पुजारी ही वेश्यालय के बाहर जाकर वेश्याओं से उनके आंगन की मिट्टी मांगते थे, परंतु अब पुजारी के अलावा मूर्तिकार भी वेश्यालय से मिट्टी मांगने जाते है।