आज सीएम ममता करेंगी गोरखा टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन (जीटीए) की बैठक

13 को चौरास्ते पर करेंगी सरस मेला का उद्घाटन

अशोक झा, दार्जिलिंग: लोकसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पहली बार दार्जिलिंग दौरे पर हैं। मुख्यमंत्री 11 नवंबर की शाम को दार्जिलिंग पहुंच गई। यहां वह 14 नवंबर तक रहेंगी। इस दौरान मुख्यमंत्री वहां कई सरकारी कार्यक्रमों में हिस्सा लेंगी। जानकारी के अनुसार, मुख्यमंत्री के दौरे में सबसे महत्वपूर्ण दिन 12 नवंबर है, क्योंकि उस दिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपराह्न करीब साढ़े तीन बजे गोरखा टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन (जीटीए) और पहाड़ी क्षेत्र के विभिन्न विकास बोर्डों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक करेंगी। इस दौरान मुख्यमंत्री जीटीए प्रतिनिधियों के साथ अलग से बैठक करेंगी। साथ ही वह दार्जिलिंग और कालिम्पोंग के जिला प्रशासनिक अधिकारियों से भी मुलाकात करेंगी। इसके बाद वाले दिन 13 नवंबर को मुख्यमंत्री दार्जिलिंग चौरस्ता पर राज्य के पंचायत व ग्रामीण विकास विभाग की ओर से आयोजित कार्यक्रम में शामिल होंगी। मुख्यमंत्री का गुरुवार को सिलीगुड़ी लौटने का कार्यक्रम है। वहीं, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी शुक्रवार को कोलकाता लौटेंगी और यहां लौटते ही राजारहाट में आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लेंगी।
13 को दार्जिलिंग चौरस्ता पर सरस मेला का उद्घाटन करेंगी सीएम: वहीं, राज्य सरकार के पंचायत व ग्रामीण विकास विभाग की ओर से अब दार्जिलिंग में भी सरस मेला का आयोजन किया जायेगा। 13 नवंबर को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस सरस मेला का उद्घाटन करेंगी। दार्जिलिंग चौरस्ता पर यह मेला लगातार 11 दिनों तक चलेगा, जहां राज्य के विभिन्न हिस्सों से आये हस्तशिल्पी भाग लेंगे और उत्पादों को बेचने के लिए प्रदर्शनी लगायेंगे गौरतलब है कि राज्य के पंचायत व ग्रामीण विकास की ओर से साॅल्टलेक में प्रत्येक वर्ष सरस मेला का आयोजन किया जाता है। यह पहली बार है, जब दार्जिलिंग शहर में भी इसका आयोजन किया जा रहा है। पश्चिम बंगाल सरकार ने सरस मेले के जरिये राज्य के हस्तशिल्पियों के काम को देश-विदेश के पर्यटकों के सामने उजागर करने का लक्ष्य रखा गया है।
15 को बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती समारोह में शामिल होंगी ममता मुख्यमंत्री: सीएम ममता बनर्जी का शुक्रवार को कोलकाता लौटने का कार्यक्रम है। महानगर लौटते ही वह राजारहाट स्थित आदिवासी भवन में बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में शामिल होंगी। राज्य सरकार की ओर से बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती पर 15 से 21 नवंबर तक सभी जिलों में बिरसा मुंडा दिवस मनाया जायेगा।
लोकसभा चुनाव बाद पहली बार दार्जिलिंग दौरे पर जा रही हैं सीएम: इस बार लोकसभा चुनाव में भी दार्जिलिंग सीट पर तृणमूल कांग्रेस की हार हुई थी। हालांकि, तृणमूल कांग्रेस ने उत्तर बंगाल में कूचबिहार सीट भाजपा से छीन ली है और पार्टी ने राज्य के अन्य क्षेत्रों में काफी अच्छा प्रदर्शन किया है। लोकसभा चुनाव बाद मुख्यमंत्री का यह पहला दार्जिलिंग दौरा है। ऐसे में उनका यह दौरा राजनीतिक तौर पर काफी अहम है। इस बार पहाड़ में लंबित तीन नगरपालिकाओं के चुनाव में उनकी पार्टी की स्थिति पर भी चर्चा हो सकती है। मुख्यमंत्री के इस दौरे को लेकर पहाड़ी क्षेत्र में रहने वाले लोगों में उत्साह का माहौल है। बंगाल में छह विधानसभा सीटों के लिए उपचुनावों में भारतीय जनता पार्टी पूरी शक्ति के साथ सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस को चुनौती देने का प्रयास कर रही है। इन उपचुनावों का दौर आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, कोलकाता में एक प्रशिक्षु डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के कारण बदले हुए राजनीतिक और सामाजिक परिवेश में हो रहा है। भाजपा के लिए यह उपचुनाव ममता बनर्जी के प्रति राज्य में बढ़ती सत्ता-विरोधी लहर को भुनाने का भी एक अवसर है। भाजपा की रणनीति का आकलन भी इन उपचुनावों में किया जाएगा, जहां विधानसभा में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी के रणनीतिक कौशल का परीक्षण भी देखने को मिलेगा। इन छह विधानसभा सीटों में सभी सीटें स्थानीय विधायकों के सांसद चुने जाने के कारण खाली हुई हैं, जिनमें से पांच सीटों पर तृणमूल कांग्रेस और एक सीट पर भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इस चुनावी दौड़ में आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल की घटना का भी मतदाताओं पर असर देखने को मिलेगा। यह उपचुनाव अलीपुरद्वार जिले के मदारीहाट, कूच बिहार जिले के सीताई, उत्तर 24 परगना जिले के नैहाटी और हरोआ, बांकुड़ा जिले के तलडांगरा, और पश्चिम मेदिनीपुर जिले के मेदिनीपुर विधानसभा क्षेत्रों में हो रहे हैं।
फुटबॉल क्लबों का विवादित समर्थन: चुनाव के दौरान, कोलकाता के तीन प्रसिद्ध फुटबॉल क्लबों के पदाधिकारियों द्वारा नैहाटी विधानसभा सीट से तृणमूल उम्मीदवार सनत डे को समर्थन देने के कारण विवाद खड़ा हो गया है। भाजपा नेता सुवेंदु अधिकारी ने इस मुद्दे को गंभीरता से उठाते हुए इसे “निर्लज्ज राजनीतिक समर्थन” करार दिया और केंद्रीय खेल मंत्री मनसुख मंडाविया को मामले का संज्ञान लेने के लिए पत्र भी लिखा है। इस समर्थन को तृणमूल कांग्रेस की कमजोरी के रूप में भी देखा जा रहा है।कांग्रेस और वाम दलों की अस्तित्वहीन भूमिका: इन उपचुनावों में मुख्य मुकाबला भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच है, जबकि कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टियों और अन्य छोटे दलों की कोई चर्चा नहीं हो रही है। इसका कारण भी स्पष्ट है – 2021 के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और वामपंथी दलों के गठबंधन के बावजूद, ये दल अपना जनाधार बचाने में असफल रहे हैं। विधानसभा चुनाव में यह गठबंधन इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) के जरिए एक सीट जीत पाया, जो उनके लिए ही लाभकारी साबित हुई।हालांकि, कांग्रेस-वाम गठबंधन को कोई खास फायदा मिलता नहीं दिखा। विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और आईएसएफ के गठबंधन के बावजूद कांग्रेस पार्टी शून्य सीटों पर सिमट गई, जबकि पिछले विधानसभा में कांग्रेस के पास 44 सीटें थीं और वह मुख्य विपक्षी दल थी। कांग्रेस पार्टी के अब्दुल मन्नान राज्य में विपक्ष के नेता रहे, लेकिन वर्तमान विधानसभा में कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला। वहीं, माकपा का भी इस गठबंधन के बावजूद खाता नहीं खुल पाया, जबकि उनके पास पिछली विधानसभा में 26 सीटें थीं। लोकसभा चुनावों में भी कांग्रेस और वाम दलों का गठबंधन असफल साबित हुआ। कांग्रेस को लाभ के बदले हानि उठानी पड़ी और वाम दलों का खाता भी राज्य में नहीं खुल सका। कांग्रेस की हार का सबसे बड़ा झटका तब लगा, जब बहरामपुर के पांच बार के सांसद अधीर रंजन चौधरी चुनाव हार गए। इस हार के बारे में कहा जाता है कि यह गांधी परिवार और ममता बनर्जी की मिली-जुली साजिश का परिणाम था, क्योंकि गांधी परिवार राहुल गांधी का कद बढ़ाना चाहता था, वहीं ममता बनर्जी का व्यक्तिगत विरोध अधीर रंजन चौधरी के खिलाफ था।
सागरदिघी उपचुनाव और कांग्रेस की अस्थायी सफलता:2023 में, पश्चिम बंगाल में कांग्रेस को थोड़े समय के लिए एक राहत तब मिली, जब तृणमूल कांग्रेस के विधायक के निधन के कारण सागरदिघी विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ। मुस्लिम बहुल इस सीट पर कांग्रेस की जीत ने कुछ नई राजनीतिक संभावनाओं को जन्म दिया। कांग्रेस ने तृणमूल के उम्मीदवार को हराकर सागरदिघी उपचुनाव जीता, लेकिन विधायक बायरन बिस्वास ने चुनाव जीतने के 100 दिनों के भीतर ही ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने का निर्णय लिया। यह कदम उस समय उठाया गया जब कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन का हिस्सा थे, और ममता बनर्जी ने सुनिश्चित किया कि कांग्रेस का विधानसभा में प्रतिनिधित्व समाप्त हो।कांग्रेस का वर्तमान संकट:वर्तमान में पश्चिम बंगाल सहित पांच राज्यों – पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, दिल्ली, नागालैंड और सिक्किम में कांग्रेस का कोई विधायक नहीं है। कांग्रेस पार्टी के लिए यह स्थिति गंभीर चिंता का विषय है, क्योंकि यह राज्य विधानसभा में पूरी तरह से अप्रभावी हो चुकी है। कांग्रेस के पास इन राज्यों में अपने खोए जनाधार को वापस लाने की कोई स्पष्ट रणनीति नहीं है।

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