संदेशखाली: सरकार बैकफुट पर, मां,माटी और मानुष दे रहा सीएम को चुनौती
17 साल बाद बीजेपी नंदीग्राम जैसा जमीनी आंदोलन खड़ा करने की कोशिश में
कोलकाता : संदेशखाली की घटना को लेकर पश्चिम बंगाल सरकार बैकफुट पर है। बंगाल में राजनीतिक हिंसा का दौड़ कभी वाम दलों के शासनकाल के दौरान देखने को मिलता था। सिंगूर और नंदीग्राम ये दो ऐसे कंधे हैं जिन पर चढ़कर एक जमाने में ममता बनर्जी ने तीन दशकों के वामपंथी शासन को उखाड़ फेंका था।लेकिन अब संदेशखाली की घटना ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा है।
पूर्व टीएमसी सांसद और भाजपा नेता दिनेश त्रिवेदी ने बंगाल के संदेशखाली में मौजूदा स्थिति और तत्कालीन वाम मोर्चा शासन के दौरान नंदीग्राम में हुई हिंसा के बीच समानता बताई। कहा जाता है कि उत्पीड़न होने पर पुलिस उत्पीड़न पक्ष से ही जस्टिस मांगने को कहती नजर आती थी। संदेशखाली का प्रसंग, पॉलिटिक्ल वायलेंस, ममता बनर्जी का स्टैंड व आयोग की रिपोर्ट तमाम मामलों का निचोड यहां आने के बाद मिल जाएगा। गवर्नर सीवी आनंदबोस उत्तर 24 परगना जिले के संदेशखाली में जमीन हड़पने और महिलाओं के यौन उत्पीड़न के मामले में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। पश्चिम बंगाल पुलिस ने मुख्य आरोपियों में एक शिब प्रसाद हाजरा को गिरफ्तार किया है। एक और सख्त कार्रवाई करते हुए सरकार ने दक्षिण बंगाल के एडीजी और बारासात के डीआईजी को हटा दिया है। सूत्रों के मुताबिक सिद्धिनाथ गुप्ता दक्षिण बंगाल के एडीजी थे। तबादले के केवल 17 दिन बाद उनका दोबारा तबादला कर दिया गया। हालांकि, मुख्यमंत्री सचिवालय ने इसे रूटीन तबादला बताया है। उनकी जगह सुप्रतिम सरकार को दक्षिण बंगाल का एडीजी नियुक्त किया गया है।सुप्रतिम सरकार राज्य पुलिस यातायात और सड़क सुरक्षा के एडीजी और आईजीपी थे। गौरतलब है कि संदेशखाली घटना के बाद उन्हें इलाके में भेजा गया था। वहीं, बारासात के डीआईजी सुमित कुमार को भी शनिवार को हटा दिया गया है। उनकी जगह मालदा रेंज के डीआईजी आईपीएस भास्कर मुखर्जी को लाया गया। वर्तमान में डीआईजी के पद पर कार्यरत सुमित कुमार को डीआईजी सुरक्षा के पद पर भेजा गया है। एडीजी बंगाल भी बदले: अशोक कुमार प्रसाद एडीजी बंगाल एसटीएफ ने अथर्व की जगह ली। आधिकारिक सूचना के मुताबिक कोलकाता पुलिस के संयुक्त सीपी मुख्यालय, संतोष पांडे को बल का अतिरिक्त सीपी III बनाया गया, जबकि कोलकाता पुलिस एसटीएफ के संयुक्त सीपी, वी सोलोमन नेसाकुमार को शहर पुलिस का अतिरिक्त सीपी-IV नामित किया गया।कोलकाता पुलिस के संयुक्त सीपी (स्थापना) मीराज खालिद को संयुक्त सीपी (मुख्यालय) बनाया गया, जबकि सैयद वकार रजा को संयुक्त सीपी (अपराध) के रूप में नामित किया गया। इसके अलावा राहुल डे को कोलकाता पुलिस एसटीएफ इकाई का नया डीसी बनाया गया है। बता दें कि पुलिस ने उत्तम सरदार और शिबप्रसाद (शिबू) हाजरा के खिलाफ सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के प्रयास की दो धाराएं जोड़ी हैं। हालात की संवेदनशीलता को देखते हुए शनिवार को राज्यपाल ने कहा कि महिलाएं डरी हुई महसूस कर रही हैं और वे शिकायत दर्ज कराने के लिए 033-22001641 डायल करके राजभवन के ‘पीस रूम’ से संपर्क कर सकती हैं। आलम ये चल रहा है कि हर कोई सिर्फ संदेशखाली जाना चाहता है। बीजेपी को वहां पहुंचना है, कांग्रेस को पीड़ितों से मुलाकात करनी है और मीडिया का कैमरा भी अब उस गांव में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुका है। संदेशखाली में इस समय जो कुछ भी हो रहा है, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की राजनीति के लिए एकदम भी मुफीद नहीं कहा जा सकता। जो ममता मां..माटी और मानुष वाले नारे के साथ बंगाल की सत्ता में आई थीं, अब वही ‘मां, वहीं माटी और वही मानुष सीएम को चुनौती दे रहा है। टीएमसी के 13 साल के कार्यकाल में पहली बार ऐसा होता दिख रहा है जब किसी गांव से महिलाओं ने ममता बनर्जी और उनकी पार्टी के खिलाफ इस स्तर पर बगावत की हो। इस समय संदेशखाली में महिलाओं का प्रदर्शन होता तो दिख रहा है, लेकिन उस पर होने वाली राजनीति ज्यादा खतरनाक है। अगर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस पूरे मामले को संघ की साजिश करार दिया है तो वहीं दूसरी तरफ कुछ टीएमसी नेताओं ने मर्यादा की सारी हदें लांग दी हैं। कुणाल घोष ने मीडिया से बात करते हुए कहा था कि संदेशखाली की जो आदिवासी महिलाएं हैं, उन्हें तो उनकी शारीरिक बनावट और रंग की वजह से आसानी से पहचाना जा सकता है। लेकिन जो महिलाएं टीवी पर आकर शिकायत कर रही हैं, वो सारी तो गोरी हैं। तो क्या वो महिलाएं आदिवासी थीं, पिछड़े समाज से थे और क्या वे संदेशखाली की ही थीं?अब ऐसे बयान ममता बनर्जी की मुश्किलें बढ़ाने का काम करने वाले हैं। लोकसभा चुनाव की 42 सीटें बंगाल से निकलती हैं, वहां भी ग्रामीण वोटर तो एक अहम भूमिका निभाता है। संदेशखाली भी 24 परगना जिले में पड़ता है और काफी ग्रामीण इलाका है। यहां का जो जातीय समीकरण है, वो भी ममता की मुश्किलें बढ़ा सकता है। संदेशखाली में 70 फीसदी के करीब हिंदू हैं, वहीं 30 फीसदी मुसलमान है। वहीं जातियों में बात करें तो एससी समाज के 30.9% लोग हैं, वहीं एसटी वर्ग से 25.9% लोग आते हैं। अब ये समीकरण बीजेपी को आसानी से ममता पर तुष्टीकरण का आरोप लगाने में मदद करता है। केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान लगातार ‘हिंदू महिलाएं’ बोलकर संबोधित भी किया है। ये बताने के लिए काफी है कि पहले ही ध्रुवीकरण के जाल में फंसे बंगाल में बीजेपी अब क्या करने वाली है। अब बीजेपी को तो पता है कि वो क्या कर रही है, लेकिन शायद ममता बनर्जी भूल गई हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए। इस संवेदनशील मामले में सीएम द्वारा जिस प्रकार से आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति की गई है, जिस तरह से उनकी पार्टी ने इस मामले को बढ़ाने का काम किया है, वो बताता है कि इतिहास खुद को दोहरा रहा है। 14 मार्च, 2007 की तारीख बंगाल की राजनीति में अपनी अमिट छाप छोड़ चुकी है। नंदीग्राम में 14 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था। ये तो सरकारी नंबर था, आधिकारिक आंकड़ा था, स्थानीय बताते हैं कि 100 से ज्यादा लोग तो गायब हो गए थे। ये उस वक्त की बात है जब बंगाल में लेफ्ट का राज था, बुद्धदेब भट्टाचार्य मुख्यमंत्री थे। नंदीग्राम के बारे लोग ज्यादा नहीं जानते थे, ऐसा कोई विकास भी नहीं हुआ था कि उसकी चर्चा की जाती। लेकिन फिर तब के सीएम बुद्धदेब भट्टाचार्य ने ऐलान किया कि इंडोनेशिया का सलीम ग्रुप नंदीग्राम में केमिकल हब बनाएगा। किसानों की जमीन तक उन्हें देने की बात हो गई। यही भूमि अधिग्रहण विवाद बाद में नंदीग्राम में एक आंतरिक युद्ध का कारण बना जहां पर एक तरफ अगर ममता बनर्जी और विरोध करने वाले नंदीग्राम के निवासी रहे, तो वहीं दूसरी तरफ पुलिस फोर्स और लेफ्ट का ताकतवर कैडर। दोनों के बीच में कई मौकों पर झड़प हुईं, मौतें हुईं, लेकिन सरकार झुकने को तैयार नहीं दिखी। तब भी एक ग्रामीण इलाके से न्याय की पुकार सुनाई दी थी, लेकिन लेफ्ट की सरकार ने उसे अनसुना कर दिया। ऐसा अनसुना किया कि एक मौके पर इसी क्लैश को लेकर तब के सीएम ने कहा था कि उन्हें उनकी भाषा में ही जवाब दिया जा रहा है। वो बयान दिखा रहा था कि बुद्धदेब को नंदीग्राम की स्थिति का जरा भी अंदाजा नहीं था, वे लोगों के गुस्से को समझ ही नहीं पाए थे। उस एक चूक ने अगर ममता बनर्जी को नेता के रूप में और मजबूत किया तो वहीं दूसरी तरफ लेफ्ट के बंगाल मुक्त का रास्ता भी साफ किया। उस समय एक तस्वीर काफी वायरल होती थी जिसमें ममता बनर्जी स्कूटर पर बैठकर नंदीग्राम की ओर जाती हैं। ऐसा उन्हें इसलिए करना पड़ा था क्योंकि नंदीग्राम में लेफ्ट की सरकार ने ऐसी तालाबंदी कर दी थी कि विपक्ष का कोई नेता वहां पहुंच नहीं पा रहा था। लेकिन तब ममता ने स्कूटर पर सवार होकर, टूटी सड़कों से गुजरते हुए वहां तक का रास्ता तय किया। अब उस घटना के 17 साल बाद इतिहास के पन्ने फिर वैसा ही रुख करते दिख रहे हैं। अब ममता सरकार चला रही हैं और विरोध प्रदर्शन कर रही बीजेपी नंदीग्राम जैसा जमीनी आंदोलन खड़ा करने की कोशिश कर रही है। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने खुद ममता की तरह बाइक पर सवाल होकर संदेशखाली जाने की कोशिश की। बड़ी बात ये है कि जिस तरह से उस आंदोलन के दौरान ममता घायल हुईं, वैसा ही नजारा सुकांत मजूमदार के साथ भी देखने को मिला। यानी कि इस संघर्ष की कड़ियां 17 साल पुरानी उस घटना से मेल खा रही हैं। लेकिन शायद संदेशखाली का ये संदेश अभी तक ममता नहीं समझ पा रही हैं?पुलिस को भी जिस तरह से अभी हैंडल किया जा रहा है, जिस तरह से सभी को वहां जाने से लगातार रोका जा रहा है, ये भी बताने के लिए काफी है कि दाल में कुछ नहीं पूरी दाल ही काली है। यहां भी जानकार ममता प्रशासन का एक फेलियर मानते हैं। अगर सरकार को इतना भरोसा है कि कुछ गलत नहीं हुआ है, अगर सरकार मानकर चल रही है कि ये संघ की साजिश है, उस स्थिति में तो सभी को वहां जाने दिया जाना चाहिए,अपने आप सबकुछ स्पष्ट हो जाएगा। लेकिन जिस तरह विपक्षी नेताओं को वहां जाने से रोका जा रहा है, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने खुद ही इसे एक बड़ा चुनावी मुद्दा बना दिया है।संदेशखली कहने को एक छोटा सा क्षेत्र है, लेकिन वहां कि महिलाओं की आवाज अब पूरा देश सुन रहा है। बंगाल को लेकर पहले तो सिर्फ ये धारणा थी कि यहां की सियासत में खून है, लेकिन अब जब आम महिलाएं ही सड़क पर उतर सत्ता में बैठे लोगों पर आरोप लगा रही हैं, ये स्थिति बदल सकती है। एनसीआरपी का ही आंकड़ा कहता है कि महिला अपराध के मामले में पश्चिम बंगाल देश के टॉप पांच राज्यों में शामिल है। इसके ऊपर बंगाल की अपराध दर 70 फीसदी से ज्यादा है जो राष्ट्रीय दर को भी पार करती है।अब इन आंकड़ों के बीच ममता बनर्जी का रवैया संदेशखाली घटना को और ज्यादा चर्चा में लाता है। ये वहीं ममता बनर्जी हैं जो विपक्ष में रहते हुए तुरंत जनता के बीच में पहुंच जाया करती थीं। किसी को भी दर्द होता, ममता का हाथ सबसे पहले उनके ऊपर आता था। ये सही बात है कि तब उन्हें लेफ्ट को उखाड़ फेंकना था, लेकिन ये भी उतना ही सच है कि ममता की जमीन से जुड़ी नेता की छवि कई साल पुरानी है। लेकिन वर्तमान में जब संदेशखाली कोलकाता से सिर्फ 70 किलोमीटर के करीब दूर है, ममता बनर्जी से वहां एक बार भी क्यों नहीं जाया गया?महिलाओं के खिलाफ इतने बड़े अत्याचार के आरोप लग गए, लेकिन ममता को वहां जाना ठीक नहीं लगा? जानकार तो मानते हैं कि अगर वे ग्राउंड पर जातीं तो इससे उल्टा टीएमसी के पक्ष में ही संदेश जाता। लेकिन अभी तो सीएम द्वारा ही संदेशखाली के संदेश को गलत तरह से समझा गया है। इसी वजह से जिस मुद्दे पर सभी को एकजुट होकर महिलाओं को न्याय दिलवाने पर फोकस करना चाहिए था, सभी सिर्फ राजनीति से प्रेरित बयान दे रहे हैं, समीकरण साधने के लिए रणनीति बना रहे हैं और आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। रिपोर्ट अशोक झा