एनडीपीएस एक्ट मामले में आरोप पत्र को छुपाकर कोर्ट से जमानत पर जांच के निर्देश
आरोपितों की जमानत रद और विभागीय जांच एक माह में पूरा करने का निर्देश
अशोक झा, सिलीगुड़ी: स्वास्थ विभाग में भ्रष्टाचार की बलि चढ़ी ट्रेनी डॉक्टर का बबाल अभी थमा ही नहीं है। आर्जिकर मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्रिसिपल संदीप घोष की गतिविधियों की जांच सीबीआई कर रही है। आंदोलन लगातार देश भर में चल रहा है। इसी बीच अब सिलीगुड़ी कोर्ट में एक बड़ा भ्रष्टाचार का मामला उजागर हुआ है। आरोप है की मोटी रकम लेकर आरोपपत्र देने के बाबजूद आरोपियों को सरकारी वकील पीपी लोक अभियोजक तन्मय मित्रा पर जमानत करवाने का मामला सामने आया है। न्यायाधीश एनडीपीएस, द्वितीय न्यायालय सिलीगुड़ी द्वारा आदेश संख्या 12 दिनांक 29 अप्रैल, 2024 के तहत आरोपी संजीत शेख उर्फ एसके और इमरान हुसैन को जमानत दी गई। गुरुवार को उच्च न्यायालय ने जानकारी मिलने के बाद आरोपितों की जमानत रद कर दी है। साथ ही इस पूरे मामले में आरोपी पीपी की जांच एक माह के अंदर डिस्ट्रिक जज को जॉच कर रिपोर्ट देने को कहा है। इस मामले में सुनवाई अब प्रिसिपल कोर्ट कोलकोता में की जाएगी। पुलिस और कोर्ट से मिली जानकारी के आधार पर माटीगाडा थाना की पुलिस ने गांजा तस्करी मामले में संजीत शेख उर्फ एसके और इमरान हुसैन को गिरफ्तार किया था। एनडीपीएस एक्ट के तहत 180 दिन यानि छः माह के अंदर आरोप पत्र दाखिल करना होता है। ऐसा करने पर आरोपितों को कोर्ट जमानत नहीं दे सकती। लेकिन अगर पुलिस आरोपपत्र नही देती है तो उसके आधार पर आरोपितों को जमानत दी जा सकती है। इसी नियम की आड़ लेकर नशा के सौदागरों की जमानत पीपी के यह कहने पर की छः माह बीत जाने पर भी आरोप पत्र नही मिला है जमानत मिल गई। यहां पीपी लोक अभियोजक तन्मय मित्रा भूल गए की इसी नियम में यह भी है की आरोपपत्र नही देने वाले अनुसंधानकर्ता को कारण बताओं नोटिस दिया जाता है। यही से सब खेल बिगड़ गया। जब अनुसंधानकर्ता को कारण पूछा गया तो उसने कहा की वह तो कोर्ट में पांच माह में आरोपपत्र दाखिल कर दिया है। उसके बाद पुलिस आरोपितों की जमानत रद करने के लिए हाईकोर्ट सर्किट बेंच पहुंची। पुलिस की जीत ही नहीं बल्कि भ्रष्टाचार का बड़ा मामला उजागर भी हुआ है। हुआ यूं कि 2024 का सीआरआर 309 पुन: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 442 और 528 और एनडीपीएस की धारा 36 बी के साथ पढ़ी जाने वाली धारा 483 (3) के अनुरूप आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 439 (2) के तहत जमानत रद्द करने के लिए एक आवेदन हाईकोर्ट सर्किट बेंच जलपाइगुड़ी में गुरुवार को सुनी गई। अधिनियम, 1985 और इस मामले में: पश्चिम बंगाल राज्य याचिकाकर्ता अदिति शंकर चक्रवर्ती, अनिरुद्ध विश्वास, नम्रता दास याचिकाकर्ता के लिए कुणालजीत भट्टाचार्य, आलोक साह विपक्षी पक्ष संख्या के लिए अभियुक्त का प्रतिनिधित्व किया गया। यह प्रस्तुत किया गया है कि नीचे दी गई अदालत की ऑर्डर शीट में इंगित किया कि आरोप पत्र वास्तव में 7 मई, 2024 को निचली अदालत में पेश किया गया था। हालाँकि, ऐसा प्रतीत होता है कि एनडीपीएस अधिनियम की धारा 21 (सी) के तहत आरोप पत्र 18 मार्च, 2024 का है। इसलिए, उक्त आरोप पत्र को पुलिस स्टेशन में अनुमोदन और अंतिम रूप मिल गया होगा। जांच अधिकारी को तुरंत आरोप पत्र दाखिल करना चाहिए था। रिकार्ड इस न्यायालय के समक्ष नहीं हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि लोक अभियोजक को पहली अप्रैल, 2024 को अपने हस्ताक्षर के तहत जांच अधिकारी से आरोप पत्र प्राप्त हुआ है। इसलिए, आरोप पत्र सीआरपीसी की धारा 173 के प्रावधानों के अनुसार प्रस्तुत किया गया था। पी.सी. और एक अप्रैल, 2024 को 158 दिनों के भीतर, यानी 180 दिनों की इस समाप्ति से काफी पहले, लोक अभियोजक को प्रस्तुत किया गया। याचिकाकर्ता को सीआरपीसी की धारा 160(2) के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत नहीं दी जा सकती थी। पी.सी. निम्न न्यायालय द्वारा लोक अभियोजक की ओर से देरी या चूक न तो जांच अधिकारी पर कलंक लगा सकती है और न ही आरोपी को डिफ़ॉल्ट जमानत का लाभ दे सकती है। न्यायाधीश एनडीपीएस, द्वितीय न्यायालय सिलीगुड़ी द्वारा आदेश संख्या 12 दिनांक 29 अप्रैल, 2024 के तहत आरोपी संजीत शेख उर्फ एसके और इमरान हुसैन को दी गई जमानत को रद्द कर दिया जाएगा। अभियुक्त को तत्काल निम्न न्यायालय के समक्ष आत्मसमर्पण करना होगा। अभियुक्त के आत्मसमर्पण न करने की स्थिति में, विशेष न्यायालय अभियुक्त व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए सभी उपाय करने का हकदार होगा। यह न्यायालय मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में गड़बड़ी से इंकार नहीं करता है। इसलिए, यह न्यायालय कानूनी सलाहकार और विद्वान महाधिवक्ता के कार्यालय को इस मामले पर गौर करने का निर्देश देता है कि जब डिफ़ॉल्ट जमानत की मांग की जा रही है तो इस मामले में लोक अभियोजक ने आरोप पत्र क्यों दाखिल नहीं किया या उसे अदालत में पेश क्यों नहीं किया। आरोपी द्वारा जिला न्यायाधीश, दार्जिलिंग इस मामले की भी जांच करेंगे कि क्या आरोप पत्र वास्तव में 29 अप्रैल, 2024 को विशेष न्यायालय, एनडीपीएस के रिकॉर्ड के साथ उपलब्ध था और इस के रजिस्ट्रार जनरल को एक रिपोर्ट सौंपेंगे। इस आदेश की प्रति प्राप्त होने की तारीख से एक महीने की अवधि के भीतर मुख्य पीठ में न्यायालय उपरोक्त टिप्पणियों के साथ, तत्काल आपराधिक पुनरीक्षण आवेदन का निपटारा कर दिया जाएगा। सभी पक्ष इस न्यायालय की आधिकारिक वेबसाइट से विधिवत डाउनलोड किए गए इस आदेश की सर्वर प्रति पर कार्रवाई करेंगे। यह मामला उजागर होने के बाद शुक्रवार को सिलीगुड़ी कोर्ट में ज्यादातर वकीलों के मुंह से एक ही बात सुनी जा रही है की अदालत में भ्रष्टाचार को लेकर वकीलों ने कई दिनों तक आंदोलन किया था। कोर्ट का कामकाज बंद रखा था। अब देखना होगा की सिलीगुड़ी कोर्ट जैसा मामले को लेकर पूरे राज्य में न्यायालय कानूनी सलाहकार और विद्वान महाधिवक्ता के कार्यालय कोई बड़ा कदम उठाते है या जांच और कारवाई तक ही यह मामला सिमट कर रह जायेगा।