उगते सूर्य को अर्घ्य देकर हुआ लोक आस्था का महापर्व छठ का समापन
अशोक झा, सिलीगुड़ी: हर व्रत और त्योहारों का महत्व होता हैं इसमें ही बिहार- बंगाल के सबसे बड़े छठ व्रत का समापन आज हो गया है। आज उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के साथ चार दिनों के कठिन व्रत समापन हुआ है। छठ के आखिरी दिन सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण किया गया है। इसी के साथ चार दिवसीय छठ महापर्व का समापन हो गया।घाट पर बंटें ठेकुआ प्रसाद
तोरवा छठ घाट पर प्रतिवर्ष की भांति इस साल भी छठ पूजा समिति की ओर ठेकुआ प्रसाद का वितरण किया जाएगा। बता दें कि सूर्य उपासना के इस महापर्व की अद्वितीय विशेषता है कि यह संपूर्ण भक्ति और संकल्प के साथ मनाया जाता है। यह पर्व न केवल पारिवारिक समृद्धि के लिए होता है, बल्कि जीवन की सभी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए भी मनाया जाता है और इसमें स्त्री और पुरुष समान रूप से भाग लेते हैं।फलों से सजा बाजार, नदी जगमग: व्रतियों ने छठ पूजा के प्रसाद और फल को एक बांस की टोकरी, जिसे दउरा कहा जाता है। देवकारी में रखकर नदी पहुंचे थे। जहां पूजा प्रारंभ किया। सूप में नारियल, पांच प्रकार के फल, और अन्य पूजन सामग्री रखी हुई थी जिसे घर के सदस्य अपने सिर पर रखकर श्रद्धा से छठ घाट पर लेकर पहुंचे थे। साथ में ढोल ताशे और बैंठ बाजे के साथ पारंपारिक गीत गाए गए। वहीं आकर्षक लाइट से शाम को शहर के विभिन्न नदियों और पोखर जगमग नजर आया। इधर सुबह बाजार फलों व पूजन सामग्री से सजा रहा।
भारी वाहनों का प्रवेश प्रतिबंधित: महानंदा, भाटदाला सालडाला, मेंची छठ घाट क्षेत्र में भारी वाहनों का प्रवेश आठ नवंबर की सुबह 11 बजे तक पूरी तरह प्रतिबंधित रहा।
हल्के वाहन, जैसे दुपहिया और कार को आने दिया जा रहा था।
घाट पर यह दृश्य भीघाट पर अपनी जगह सुरक्षित करने सुबह से व्रती पहुंच गए थे। सुबह छह बजे से दुकानें सजने लगी थी शाम को गजब का नजारा। खाने-पीने के स्टाल के साथ बच्चों के खिलौने व सहायता केंद्र। सीसीटीवी से की गई निगरानी, पुलिस व निगम का पुख्ता इंतजाम। फायर बिग्रेट व जिला प्रशासन की पूरी टीम,कलेक्टर भी पहुंचे थे।छठ महापर्व का समापन : शुक्रवार को छठ महापर्व का अंतिम और चौथा है। इस अवसर पर व्रती उगते सूर्य को अर्ध्य दें रहे, जो छठ पूजा का अंतिम अनुष्ठान माना जाता है। माना जाता है कि उगते सूर्य को अर्ध्य देने से परिवार में सुख-समृद्धि और शांति का वास होता है। आज सुबह से ही घाटों पर भक्तों की भारी भीड़ देख गई। जहां श्रद्धालु भगवान सूर्य को जल चढ़ाकर अपना उपवास पूरा किया। छठ पर्व की पवित्रता और श्रद्धा से भरपूर इस अवसर पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं। भगवान सूर्य और छठी मैया को समर्पित छठ पर्व का चौथा और आखिरी दिन उषा अर्घ्य के रूप में मनाया गया। छठ पूजा के चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया गया।छठ की शुरुआत नहाय-खाय से होती है। इसके बाद दूसरे दिन खरना होता है। तीसरा दिन संध्या अर्घ्य होता है और चौथे दिन को ऊषा अर्घ्य के नाम से जाना जाता है। कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन छठ पूजा की जाती है। यह पूजा भगवान सूर्य और उनकी पत्नी ऊषा को समर्पित होती है।ऊषा अर्घ्य का महत्व : छठ पूजा का अंतिम और आखिरी दिन ऊषा अर्घ्य होता है. इस दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद छठ के व्रत का पारण किया जाता है. इस दिन व्रती महिलाएं सूर्योदय से पहले नदी के घाट पर पहुंचकर उदित होते सूर्य को अर्घ्य देती हैं. इसके बाद सूर्य भगवान और छठ मैया से संतान की रक्षा और परिवार की सुख-शांति की कामना करती हैं. इस पूजा के बाद व्रती कच्चे दूध, जल और प्रसाद से व्रत का पारण करती हैं।ऊषा अर्घ्य का मुहूर्त : ऊषा अर्घ्य आज दिया जा रहा है. ऊषा अर्घ्य का मुहूर्त आज सुबह 6 बजकर 38 मिनट पर रहेगा। ऊषा अर्घ्य के दिन इन बातों का रखें ध्यान: सूर्य देव को अर्घ्य देते समय अपना चेहरा हमेशा पूर्व दिशा की ओर ही रखें। सूर्य देव को अर्घ्य देने के लिए हमेशा तांबे के पात्र का ही प्रयोग करें। सूर्य देव को अर्घ्य देते समय जल के पात्र को हमेशा दोनों हाथों से पकड़े।।सूर्य को अर्घ्य देते समय पानी की धार पर पड़ रही किरणों को देखना बहुत ही शुभ माना जाता है।अर्घ्य देते समय पात्र में अक्षत और लाल रंग का फूल डालना न भूलें। छठ पूजा की कथा: छठ पर्व से जुड़ी कथा के अनुसार बताया जाता है कि, राजा प्रियव्रत की कोई संतान नहीं थी जिसके चलते वह बेहद ही परेशान और दुखी रहा करते थे. एक बार महर्षि कश्यप ने राजा से संतान प्राप्ति के लिए यज्ञ करने को कहा। महाराज जी की आज्ञा मानकर राजा ने यज्ञ कराया जिसके बाद राजा को एक पुत्र हुआ भी लेकिन दुर्भाग्य से वो बच्चा मृत पैदा हुआ। इस बात को लेकर राजा और रानी और उनके और परिजन और भी ज्यादा दुखी हो गए. तभी आकाश से माता षष्ठी आई।राजा ने उनसे प्रार्थना की और तब देवी षष्ठी ने उनसे अपना परिचय देते हुए कहा कि, ‘मैं ब्रह्मा के मानस पुत्री षष्ठी देवी हूं।मैं इस विश्व के सभी बालकों की रक्षा करती हूं और जो लोग निसंतान हैं उन्हें संतान सुख प्रदान करती हूं.’ इसके बाद देवी ने राजा के मृत शिशु को आशीष देते हुए उस पर अपना हाथ फेरा जिससे वह तुरंत ही जीवित हो गया. यह देखकर राजा बेहद ही प्रसन्न हुए और उन्होंने देवी षष्ठी की आराधना प्रारंभ कर दी. कहा जाता है कि इसके बाद ही छठी माता की पूजा का विधान शुरू हुआ।तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ने कहा कि वह धर्म और जाति के आधार पर लोगों के विभाजन को रोकने के लिए अपनी जान तक कुर्बान करने को तैयार हैं। उन्होंने कहा कि भारत में लोग चाहे किसी भी धर्म, जाति और पंथ के हों, एकसाथ रहते हैं। कोई भी व्यक्ति दूसरों से श्रेष्ठ नहीं है।
ममता बनर्जी ने छठ पूजा के अवसर पर कोलकाता में कहा, ‘ऐसे लोग हैं जो लोगों के बीच विभाजन पैदा करना चाहते हैं। लेकिन, मैं वह नहीं चाहती। मैं अपनी जान तक देने को तैयार हूं लेकिन कोई विभाजन नहीं होने दूंगी। हर धर्म की अपनी विशेषताएं हैं। मैंने किसी धर्म के खिलाफ कभी नहीं बोला।’ मुख्यमंत्री ने कहा कि यह भारत है जहां सभी धर्मों, जातियों और पंथ के लोग साथ रहते हैं। कोई भी श्रेष्ठ या निम्न नहीं है। भले ही वह ब्राह्मण, एससी (अनुसूचित जाति), एसटी (अनुसूचित जनजाति) या किसी अन्य धार्मिक समूह का क्यों न हो। हम इस एकता को खत्म नहीं होने देंगे।छठ पूजा के अवसर पर 2 दिन का अवकाशटीएमसी चीफ ने कहा, ‘बंगाल में, यह परंपरा आजादी के समय से है। देश के स्वाधीनता संघर्ष में सर्वाधिक योगदान देने के मामले में पंजाब के बाद बंगाल का ही स्थान है।’ पश्चिम बंगाल सरकार ने छठ पूजा के अवसर पर सभी कार्यालयों में 2 दिन के अवकाश की घोषणा की है। मालूम हो कि छठ पूजा के अवसर पर श्रद्धालुओं ने उगते सूर्य को शुक्रवार को ‘अर्घ्य’ दिया। इस मौके पर देश के अलग-अलग हिस्सों में नदी के घाटों पर भारी भीड़ नजर आई। खासकर महिला श्रद्धालु काफी उत्साहित दिखीं और सूर्य देव की पूजा-अर्चना की गई।