अद्भुत संयोग: बाबा विश्वकर्मा पूजा, अनंत पूजा और गणेश विसर्जन 17 को
अशोक झा, सिलीगुड़ी: भगवान विष्णु काे अतिप्रिय अनंत चतुर्दशी का व्रत व पूजा व श्री श्री 108 बाबा विश्वकर्मा पूजा व गणपति विसर्जन भी 17 सितंबर को ही होगा। पंडित अभय झा ने कहा की मान्यता है कि बाबा विश्वकर्मा इस ब्रह्मांड के रचयिता हैं। माना जाता है कि पूरे श्रद्धा, विधि-विधान के साथ बाबा की पूजा-अर्चना की जाए तो जीवन एवं घर में उन्नति व व्यापार में आने वाली कठिनाई दूर होकर धन-संपदा आने लगती है। उन्होंने बताया कि भगवान विष्णु को अति प्रिय अनंत पूजा के दिन भगवान विष्णु के सहस्त्रनाम का पाठ करना अति शुभ माना जाता है. अनंत की 14 गांठों को 14 लोकों का प्रतीक माना जाता है। कथा के अनुसार अनंत भगवान ने सृष्टि के आरंभ में 14 लोक तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भू, भुव:, स्व:, जन, तप, सत्य, मह की रचना की थी। इन लोकों के पालन एवं रक्षा करने के लिए स्वयं भी 14 रूपों में प्रकट हुए थे। अनंत चतुर्दशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने एवं अनंत फल देने वाला होता है। वहीं अनंत डोर की हर गांठ की भगवान विष्णु के नामों से पूजा की जाती है। पहले अनंत, फिर पुरुषोत्तम, ऋषिकेश, पद्मनाभ, माधव, बैकुंठ, श्रीधर, त्रिविक्रम, मधुसूदन, वामन, केशव, नारायण, दामोदर एवं गोविंद की पूजा होती है।वैदिक पंचांग के अनुसार इस साल अनंत चतुर्दशी का व्रत 17 सितंबर 2024 को रखा जाएगा और इसी दिन गणेश विसर्जन भी किया जाता है। कब मनाई जाएगी अनंत चतुर्दशी? इस साल भद्र माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि 16 सितंबर 2024 को दोपहर 3:10 से प्रारंभ होकर 17 अगस्त 2024 मंगलवार को सुबह 11 बजकर 44 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार अनंत चतुर्दशी 17 सितंबर को मनाई जाएगी। इसी दिन गणेश जी का विसर्जन किया जाएगा। अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। गणेश विसर्जन का शुभ मुहूर्त सुबह 9:11 से दोपहर 1: 47 तक है। गणेश विसर्जन का दोपहर का मुहूर्त दोपहर 3:19 से 4:51 तक है।
महाभारत के दौरान पांडवों ने राज्य वापसी के लिए की थी अनंत की पूजा: अनंत चतुर्दशी का व्रत प्राचीन काल से रखा जा रहा है महाभारत के दौरान पांडवों ने भी अपना राज्य वापस पाने के लिए यह व्रत रखा था. अगर आप भी अनंत चतुर्दशी व्रत रख रहे हैं तो पूजा के दौरान व्रत कथा जरूर पढ़ें।
अनंत चतुर्दशी व्रत कथा: पौराणिक कथा के अनुसार सुमंत नामक ऋषि की पत्नी दीक्षा ने एक पुत्री को जन्म दिया. उस पुत्री का का सुशीला रखा गया. लेकिन कुछ समय बात ही सुशीला की मां दीक्षा का देहांत हो गया और बच्ची के पालन पोषण के लिए ऋषि ने तय किया कि वे दूसरी शादी करेंगे। ऋषि ने दूसरा विवाह कर लिया। लेकिन वह महिला स्वभाव से कर्कश थी। सुशीला बड़ी हो गई और उसके पिता ने कौण्डिनय नामक ऋषि के साथ उसका विवाह कर दिया. ससुराल में भी सुशीला को सुख नहीं था. कौण्डिन्य के घर में बहुत गरीबी थी। एक दिन सुशीला और उसके पति ने देखा कि लोग अनंत भगवान की पूजा कर रहे हैं. पूजन के बाद वे अपने हाथ पर अनंत रक्षासूत्र बांध रहे हैं। सुशीला ने यह देखकर व्रत के महत्व, पूजन के बारे में पूछा। इसके बाद सुशीला ने भी व्रत करना शुरू कर दिया। सुशीला के दिन फिरने लगे और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होने लगा। लेकिन सुशीला के पति कौण्डिन्य को लगा कि सब कुछ उनकी मेहनत से हो रहा है। एक बार अनंत चतुर्दशी के दिन, जब सुशीला अनंत पूजा कर घर लौटी तक उसके हाथ में रक्षा सूत्र बंधा देखकर उसके पति ने इस बारे में पूछा। सुशीला ने विस्तार पूर्वक व्रत के बारे में बताया और कहा कि हमारे जीवन में जो कुछ भी सुधार हो रहा है, वह अनंत चतुर्दशी व्रत का ही नतीजा है। कौण्डिन्य ऋषि ने कहा कि यह सब मेरी मेहनत से हुआ है और तुम इसका पूरा श्रेय भगवान विष्णु को देना चाहती हो। ऐसा कहकर उसने सुशीला के हाथ से धागा उतरवा दिया। भगवान इससे नाराज हो गए और कौण्डिन्य पुन: दरिद्र हो गया. फिर एक दिन एक ऋषि ने कौण्डिन्य को बताया कि उसने कितनी बड़ी गलती की है। कौण्डिन्य से उसने उपाय पूछा ऋषि ने बताया कि लगातार 14 वर्षों तक यह व्रत करने के बाद ही भगवान विष्णु तुम पर प्रसन्न होंगे. कौण्डिन्य ने ऋषिवर के बताए मार्ग का अनुसरण किया और सुशीला व पूरे परिवार की आर्थिक स्थित सुधर गई। ऐसा कहा जाता है कि वनवास जाने के बाद पांडवों ने भी अनंत चतुर्दशी का व्रत रखा था, जिसके बाद उनके सभी कष्ट मिट गए थे और उन्हें कौरवों पर विजय मिली थी। यह व्रत करने के बाद सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के दिन भी सुधर गए थे।