दीपावली में बंगाल में काली पूजा का विशेष महत्व, 4000 से अधिक स्थानों पर हो रही पूजा
सुरक्षा व्यवस्था होगी चाक चौबंद, असामाजिक तत्वों पर पैनी नजर
अशोक झा, कोलकाता: दिवाली का त्योहार पूरे देश में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। हर राज्य में दिवाली की पूजा भी अलग-अलग तरह से होती है। लेकिन इस दिन बंगाल में मां काली की पूजा की जाती है।
यहां दिवाली को काली पूजा के नाम से जाना जाता है। बंगाल में इस दिन का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिवाली पर आधी रात को मां काली की विधिवत पूजा करने पर व्यक्ति के जीवन सभी दुख और संकट दूर होते हैं। इसके अलाव शत्रुओं का नाश होता है और जीवन में सुख-समृद्धि भी आती है। सिलीगुड़ी पुलिस कमिश्नरेट के तहत 600 पूजाएं आयोजित होती है। जबकि बंगाल की बात करे तो 4000 से अधिक काली पूजा पंडाल में प्रतिमाएं स्थापति की जाती है। सिलीगुड़ी के पुलिस कमिश्नर सी. सुधाकर ने काली पूजा की तैयारी के लिए एक बैठक की। सिलीगुड़ी में 600 से ज़्यादा काली पूजाएँ आयोजित की जानी हैं। डिप्टी कमिश्नर और एसीपी समेत पुलिस अधिकारी इसमें शामिल हुए। इसका उद्देश्य सुरक्षा सुनिश्चित करना और किसी भी तरह की घटना को रोकना है। अतिरिक्त सुरक्षा के लिए जगह-जगह पुलिस अधिकारी तैनात किए जाएँगे।
बंगाल में क्यों होती है काली पूजा?: बंगाल में दिवाली के दिन मां काली की पूजा करने को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार, एक बार चंड- मुंड और शुंभ- निशुंभ आदि दैत्यों का अत्याचार बहुत बढ़ गया था। जिसके बाद उन्होंने इंद्रलोक तक पर कब्जा करने के लिए देवताओं से युद्ध शुरू कर दिया। तब सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे और उनसे दैत्यों से छुटकारा पाने के लिए प्रार्थना की। भगवान शिव ने माता पार्वती के एक रूप अंबा को प्रकट किया। माता अंबा ने इन राक्षसों का वध करने के लिए मां काली का भयानक रूप धारण किया और अत्याचार करने वाले सभी दैत्यों का वध कर दिया। उसके बाद अति शक्तिशाली दैत्य रक्तबीज वहां आ पहुंचा।रक्तबीज एक ऐसा दैत्य था जिसके रक्त की एक बूंद जमीन पर गिरते ही उस रक्त से एक नया राक्षस पैदा हो जाता था, इसीलिए उसे रक्तबीज कहा गया। मां काली ने रक्त बीज का वध करने और दूसरे रक्तबीज का जन्म होने से रुकने के लिए अपनी जीभ बाहर निकाली और अपनी तलवार से रक्तबीज पर वार किया और उसका रक्त जमीन पर गिरे, उसके पहले ही वे उसे पीने लगीं। इस तरह रक्तबीज का वध हुआ लेकिन मां काली का क्रोध शांत नहीं हुआ। वे संहार की ही प्रवृत्ति में रहीं। मां काली के इस स्वरूप को देखकर ऐसा लग रहा था कि अब सारी सृष्टि का ही संहार कर देंगी। जैसे ही भगवान शिव को इसका आभास हुआ तो वे चुपचाप मां काली के रास्ते में लेट गए। मां काली भगवान शिव का ही अंश हैं इसीलिए उन्हें अर्धनारीश्वर भी कहा जाता है। उन्हें अनंत शिव भी कहा जाता है क्योंकि उनकी थाह कोई लगा ही नहीं सकता।जब मां काली आगे बढ़ीं तो उनका पैर शिवजी की छाती पर पड़ा। अनंत शिव की छाती पर पैर पड़ते ही मां काली चौंक पड़ीं क्योंकि उन्होंने देखा कि यह तो साक्षात भगवान शिव हैं। उनका क्रोध तत्काल खत्म हुआ और उन्होंने संसार के सभी जीवों को आशीर्वाद दिया। इसलिए कार्तिक मास की अमावस्या को मां काली की पूजा की जाती है। मां काली की पूजा विधि: मां काली की पूजा करने के लिए सुबह स्नान कर व्रत का संकल्प लें।. देवी काली की मूर्ति या चित्र को पूजा स्थल पर रखें, और इसे लाल या काले कपड़े से सजाएं. मां काली का आह्वान करें और उन्हें पूजा में आमंत्रित करें. देवी की मूर्ति पर जल, दूध, और फूल अर्पित करें.सिंदूर, हल्दी, कुमकुम, और काजल चढ़ाएं। मां काली को फूलों की माला पहनाएं. सरसों का तेल का दीपक जलाएं और कपूर से आरती करें। धूप या अगरबत्ती जलाकर मां काली के सामने रखें.मिठाई, फल, और नैवेद्य मां को अर्पित करें। ॐ क्रीं काली” या “क्रीं काली” का जाप करें। यह मंत्र मां काली को बहुत प्रिय हैं। उसके बाद मां काली की कपूर से आरती कर पूजा संपन्न करें।