आज सिलीगुड़ी में एक साथ लाखों लोग करेंगे सामूहिक गीता का पाठ
धर्मयुद्ध में निष्ठा के साथ हिस्सा लेना और विजय के लिए प्रयत्नशील रहना
अशोक झा, सिलीगुड़ी: आज लाखों लोग एक साथ एक स्वर ओर कंठ से गीता का पाठ करेंगे। पाठ स्थल काबाखाली मैदान की ओर भक्तों ओर श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ने लगी है। पूज्यपाद स्वामी प्रदीप्तानन्द जी महाराज (प्रधानाचार्य, भारत सेवाश्रम सखी, बेलडांगा),कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. जी. बी दास, श्रीमत स्वामी सर्वानंद अवधूत महाराज (महानिर्वीण मोई, कोलकाता), श्रीमत बन्धु गौरव ब्रह्मचारी(महानम समुदाय, कोलकाता), श्रीमत प्रभानंदपुरी महाराज (सुनील महाराज) (मानव सेवा मिशन, हुगली), त्रिदंडी स्वामी भक्ति निलय जनार्दन महाराज नेरोत्तम गौड़ीय मठ, सिलीगुड़ी),श्रीमत स्वामी धर्मात्मानंद महाराज (भारत सेवाश्रम संघ, सिलीगुड़ी),श्रीमत भक्तिवेदांत सज्जन महाराज (केशव गोस्वामी गौड़ीय मठ, सिलीगुड़ी), श्रीमत हिरण्मय गोस्वामी महाराज (राधाकुंड, वृन्दावन), डॉ अरुण कुमार गुप्ता (सिलीगुड़ी) ,महासचिव, प्रेममंदिर आश्रम, रिषदा, हुगली)श्रीमत निर्गुणानन्द ब्रह्मचारी, श्रीमत स्वामी विश्वात्मानंदजी महाराज (सह-अध्यक्ष), श्रीमत मोहन प्रिय आचार्य(श्रीकृष्ण प्रणामी मिशन, सिलीगुड़ी) सदी दीपिका बाईजी, (मानवतावाद हसबेला अराम, सिलीगुड़ी, पंडित विष्णु प्रसाद शास्त्री (देसा) काज़िमन छेत्री(संत निरंकारी मिशन, सिलीगुड़ी) सोनम लामा(बुद्धगुड़ा, सालुगाड़ा, सिलीगुड़ी)पूज्य प्रेमा रिम्पोछे (बुद्धसुक्षा, सालुगाड़ा, सिलीगुड़ी) गुरुचरण सिंघोरा (गुरुदार, सिलीगुड़ी), संघ के प्रान्त प्रचारक श्यामा प्रसाद राय, विश्व हिन्दू परिषद के प्रान्त सचिव लक्ष्मण बंसल, विभाग सचिव राकेश अग्रवाल, जिला उपाध्यक्ष सह प्रवक्ता सुशील रामपुरिया, श्रीनाथजी महाराज (साईं दरबार, सिलीगुड़ी) आदि अपने भक्तों के साथ उपस्थित होकर सहयोग दे रहे है। पूज्यपाद स्वामी प्रदीप्तानन्द जी महाराज ने बताया कि श्रीमद भागवत गीता में अर्जुन को बताया, कि सम्पूर्ण सृष्टि के सार एकमात्र वही हैं। उन्हीं की मर्ज़ी से यह युद्ध हो रहा है, क्योंकि धर्म की स्थापना के लिए यह युद्ध अत्यंत ज़रूरी हो चुका है। उन्होंने अर्जुन को यह भी बताया, कि मनुष्य का सबसे बड़ा और गहरा रिश्ता सिर्फ़ कर्मों से होना चाहिए। इसके अलावा जीवन के सभी रिश्तें क्षणिक हैं। इसके बाद अर्जुन के आग्रह का मान रखते हुए, उन्होंने अपना वास्तविक विशाल स्वरूप उन्हें दिखाया।प्रभु का ऐसा स्वरूप देखकर, अर्जुन को यह एहसास हो गया, कि इस धर्मयुद्ध में स्वयं धर्म की उनके साथ है। अतः, उनका कर्तव्य है इस धर्मयुद्ध में निष्ठा के साथ हिस्सा लेना और विजय के लिए प्रयत्नशील रहना। भगवान श्री कृष्ण द्वारा दिए गए जिन उपदेशों की वर्तमान में भी प्रासंगिकता झलकती हैं, वैसे ही कुछ उपदेश हैं- यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवती भारतः।
अभ्युथानम् अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥अर्थात, जब-जब इस धरती पर धर्म में ग्लानि होगी, जब भी धर्म का बंटवारा होगा, तब-तब परमात्मा अधर्म का विनाश करने हेतु धरा पर आएंगे यानी अवतार लेंगे। इसलिए मनुष्य को अधर्म की तरफ़ होने वाली आसक्ति से दूरी बनाए रखनी चाहिए।परित्राणाय साधुनां विनाशाय च दुष्कृताम्धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे॥अर्थात, भगवान श्री कृष्ण ने पार्थ से कहा, “इस धरती पर साधुओं के परित्राण और दुष्टों का विनाश करने के लिए, धर्म की स्थापना बहुत ज़रूरी है। और युग-युग में धर्म की स्थापना के लिए श्री हरि इस धरा पर अवतीर्ण अवश्य होंगे।” कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ अर्थात, भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं, “तुम्हारे कर्मों पर ही सिर्फ़ तुम्हारा अधिकार है, उससे मिलने वाले फलों पर नहीं। इसलिए फल की चिंता ना करते हुए, तुम्हें अपने कर्मों पर ध्यान लगाना चाहिए।” तभी तो प्रत्येक मनुष्य को अपने कर्मों के प्रति आसक्त रहना चाहिए, नाकि उसके फल के प्रति। नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:।न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत॥
अर्थात, मनुष्य की आत्मा को ना शस्त्रों से काटा जा सकता है और ना आग से जलाया जा सकता है। साथ ही, आत्मा कभी भी पानी और हवा से भी प्रभावित नहीं की जा सकती। इसलिए मनुष्य को सदैव, अपनी आत्मा को दृढ़ एवं शुद्ध रखना चाहिए।
भगवान श्री कृष्ण के गीता का उपदेश, हमारे समग्र जीवन यात्रा का एकमात्र सार है। गीता के इन उपदेशों से हमें भी यही सीख मिलती है, कि जीवन में कर्म से बड़ा हमारा कोई कर्तव्य नहीं है। इसलिए, हमें सदैव ही सत्कर्मों में खुद को लीन रखना चाहिए।