आज देश मना रहा है बाल वीर दिवस, सिलीगुड़ी में दुर्गा वाहिनी निकालेगी रैली

भरेगी हिन्दू रक्षा के संकल्प के साथ हुंकार, सुरक्षा होगी चाक चौबंद

अशोक झा, सिलीगुड़ी :आज जहां भारत मंडपम में वीर बाल दिवस’ पर आयोजित कार्यक्रम में पीएम मोदी हिस्सा लेंगे।वही सिलीगुड़ी में वीर बाल दिवस के अवसर पर धर्म रक्षा दिवस के शुभ अवसर पर आज दुर्गा वाहिनी द्वारा रैली निकाली जाएगी। यह रैली रामकृष्ण मैदान,
पानीटंकी मोड, सिलीगुड़ी से दिन के 3 बजे निकली जाएगी जो नगर की परिक्रमा करेंगी।इस दिवस को सिख समुदाय में बड़े उत्साह से मनाया जाता है। यह दिन न केवल सिख धर्म के अनुयायियों के लिए बल्कि सभी भारतीयों के लिए प्रेरणादायक है। साहिबजादों की वीरता बलिदान को याद करते हुए इस दिन विशेष कार्यक्रम सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। बताया गया कि गुरु गोबिंद सिंह जी के वीर सपूत, धर्म की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले साहिबजादे जोरावर सिंह जी एवं फतेह सिंह जी के बलिदान दिवस पर उनके बलिदान हमें मातृभूमि और धर्म के प्रति समर्पित रहने की प्रेरणा देता है। पीएम की इस घोषणा के बाद से सिख समुदाय में खुशी की लहर है। ‘वीर बाल दिवस’ पर एक सिख महिला ने बताया कि हम पीएम मोदी का आभार जताते हैं कि जिन्होंने इस दिन को वीर बाल दिवस के तौर पर मनाने की घोषणा की। इससे दुनिया को, खासकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, बहादुर साहिबजादों की उनकी वीरता और उनके बलिदान के बारे में पता चलेगा। दसवें सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह के चार बेटे थे: अजीत सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह। 1699 में, उन्होंने अपने बेटों के साथ खालसा पंथ की स्थापना की। 1705 तक, पंजाब मुगल शासन के अधीन था, और उन्होंने गुरु गोबिंद सिंह को पकड़ने की कोशिश की। जोरावर सिंह और फतेह सिंह को सरहिंद के मुगल गवर्नर वजीर खान ने पकड़ लिया था। उन्हें इस्लाम अपनाने पर सुरक्षा देने की पेशकश की गई थी, लेकिन उन्होंने अपना धर्म छोड़ने से इनकार कर दिया। अपने विश्वासों पर अडिग रहने के कारण आखिरकार उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया। इस दौरान गुरु गोबिंद सिंह जी के परिवार को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उनके एक भरोसेमंद सेवक गंगू के विश्वासघात के कारण उन्हें पकड़ लिया गया। 1699 में गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की। बाबा अजीत सिंह और बाबा जुझार सिंह पहले ही मुगलों के खिलाफ लड़ाई में शहीद हो चुके थे। इस बीच, नवाब वजीर खान ने माता गुजरी और उनके छोटे बेटों को भयंकर यातनाएं दीं। धर्म परिवर्तन के लिए दबाव डाले जाने के बावजूद वे अपने धर्म पर अडिग रहे।

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