महाकुंभ 2025: संगम में डुबकी लगाने भक्तों की टोली रवाना

 

-कहा, मानो तो गंगा मां है ना मानो तो बहता पानी, संगम में स्नान यानि जीवन में अमरत्व का मुंहमांगा वरदान

अशोक झा, सिलीगुड़ी: महाकुंभ 2025 का आयोजन तीर्थराज प्रयाग की पावन धरती पर होने वाला है। माघ महीने के इस महोत्सव में देश-विदेश के श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। इसके अलावा ईश वंदना में जुटे संत, महात्माओं का भी यहां जमघट लगा हुआ है।
श्रद्धालु गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती के पवित्र संगम में अपने तन-मन को पावन करते हैं। हजारों की संख्या में श्रद्धालु या तो पहुंच गए है, हजारों जा रहे है और हजारों जाने वाले है। वहां जाने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि संगम के तट पर डुबकी लगाने का यह सौभाग्य इस जन्म में तो नहीं मिलने वाला है। क्योंकि महाकुंभ 144 वर्ष बाद फिर आयेगा। उतने दिनों तक बच पाना संभव ही नहीं है। गंगा के संबंध में कहते है कि मानो टोया गंगा मां है ना मानो तो बहता पानी। गंगा-यमुना-सरस्वती की धारा से पवित्र है प्रयाग:इस प्रयाग की पवित्रता और इसकी पारंपरिकता आज भी अक्षुण्ण बनी हुई है। यह वही वैदिक और पौराणिक काल का तीर्थ प्रयागराज है, जहां गंगा और यमुना के पवित्र संगम में स्नान करनेवाले मनुष्य मोक्ष-मार्ग के अधिकारी होते हैं. पुराणों में तो यह भी कहा गया है कि, जो लोग अपने शरीर का यहां पर विसर्जन करते हैं, वे अमतत्व को प्राप्त करते हैं. इसका उल्लेख सबसे पहले ऋग्वेद के में हुआ है।सिन्धुत्तमे सरिते यत्र संगमे तत्राप्लुतासो दिवमुत्पतन्ति, ये वेऽत विश्वजनि धीरास्ते जनासोऽमृतत्वं भजन्ते..(ऋग्वेद, खंड, 10/75/1)शतपथ ब्राह्मण ग्रंथ में गंगा की महिमा का वर्णन: इसी बात को ‘शतपथ ब्राह्मण’ और अधिक स्पष्ट तरीके से सामने रखता है और कहता है कि, उत्तर वैदिक काल में भारत राजाओं ने इसी गंगा और यमुना के संगम में स्नान किया था. यह वही प्रयाग है, जहां ब्रह्माजी ने सर्वप्रथम यज्ञों का अनुष्ठान किया था. इन्हीं यज्ञों के संपन्न होने के कारण इस क्षेत्र को प्रयाग नाम मिला. ‘महाभारत के वन पर्व’ में इसका उल्लेख भी हुआ है, लेकिन प्रयागराज की महिमा सिर्फ उसकी पवित्र भूमि के कारण नहीं है, बल्कि इसकी महिमा को और अधिक बढ़ाती हैं मां गंगा. गंगा नदी की युगों से बहती अविरल धारा अपने साथ कई वरदानों की लहर लेकर बह रही है।देवी गंगा को मिले हैं कई वरदान: देवी और मां के रूप में प्रतिष्ठित गंगा सिर्फ देवलोक से उतरने के कारण ही पवित्र नहीं कहलाईं बल्कि उनके साथ ऋषियों और मुनियों के वरदान भी जुड़े हैं. मान्यता है कि देवी को मिले ये वरदान उनमें स्नान करने वाले लोगों को भी मिल जाते हैं. हिमालय की गोद से निकलने के बाद उत्तर के मैदानों को सींचती हुई गंगा जब बंगाल की खाड़ी में गिरती है तो इस सफर के दौरान लोक आस्था उन्हें कई नामों से पुकारती है. यह नाम गंगा के जल की पवित्रता को और अधिक बढ़ाते हैं। क्यों जरूरी है गंगा स्नान?: गंगा स्नान का महत्व इसलिए भी है ताकि मनुष्य पानी की तरह सरलता और तरलता की को सीखे.उसका सारा अभिमान नदी की धारा के साथ बह जाए और जब वह घाट से बाहर निकलकर सामाजिक जीवन में पहुंचे तो एक उत्कृष्ट मनुष्य बनकर पहुंचे. गंगा की यही शिक्षाएं उनके नाम से जुड़ी हैं. जानिए, लोक कथाओं और पुराणों के आधार पर गंगा को किस-किस नाम से पुकारा गया है।पहले ब्रह्मकन्या कहलाईं, फिर पंडिता पड़ा नाम: गंगा नदी का एक नाम ब्रह्मकन्या है। परमपिता ब्रह्मा के कमंडल का जल गंगा जल ही है. उन्होंने सबसे पहले गंगा को शुचिता का वरदान दिया. सप्तऋषियों के आशीर्वाद पाने के बाद गंगा पंडिता कहलाईं. इस तरह उनका नामकरण हुआ और वह पंडितों व ज्ञानियों के समान ही पूज्य मानी गईं। इसीलिए गंगा जल से आचमन किया जाना श्रेष्ठ माना जाता है। विष्णुपदी और जटाशंकरी भी हैं गंगा के नाम
भगवान विष्णु के चरणों से निकलने के कारण वह विष्णुपदी कहलाईं. उनका यह नाम वैकुंठ में है. इसके बाद वह देवलोक को पवित्र करने पहुंचीं तो देवनदी कहलाईं. स्वर्गलोक में उन्हें सुरतरंगिणी भी कहा जाता है. यहां इसी नदी के जल से आचमन और शुद्धि होती है।शिव जी ने जटा में किया था धारण: धरती पर अवतरण के समय उन्हें भगवान शिव ने अपनी जटाओं में बांध लिया. इसलिए गंगा जटाशंकरी बन गईं. शिव की कृपा से धरती पर अवतरण हुईं तो शिवाया कहलाईं और लोगों के कल्याण का वरदान मिला तो कल्याणी बन गईं. गंगा नदी को महाभारत में कई जगह कल्याणी कहकर पुकारा गया है. महाभारत में गंगा का जीवंत स्वरूप सामने आता है, जहां वह शांतनु की पत्नी और भीष्म की माता थीं।हिमानी-भागीरथी और मंदाकिनी: हिमालय पर्वत ने अपनी गोद में उन्हें आश्रय दिया और संतान की तरह प्रेम किया तो वह हिमानी बन गईं. हिमालय की सभी पुत्रियां हिमानी कहलाती हैं. यह नाम पार्वती का भी है. भगीरथ के प्रयास से देवी का अवतरण हुआ तो उन्हें भागीरथी नाम मिला. यही भागीरथी जब मंद-मंद आगे बढ़ती हैं तो मंदाकिनी कहलाती हैं।जाह्नवी नाम कैसे मिला, जानिए कथा: हिमालय की गोद से उतरते हुए गंगा नदी आगे ब़ढ़ रही थीं. ऋषिकेश के पास पवित्र तीर्थ पर जह्नु ऋषि तपस्या कर रहे थे. गंगा के वेग से उनके आश्रम उजड़ गए. ऋषि ने इससे क्रोधित होकर गंगा को पी लिया. जब भगीरथ ने क्षमा याचना की तो ऋषि ने कान के रास्ते गंगा को मार्ग दिया. तब गंगा ने भी नतमस्तक होकर कहा कि मुझे पुत्री मानकर क्षमा करें, तब ऋषि ने गंगा को जाह्नवी नाम दिया।त्रिपथगा और पाताल गंगा भी है नाम: गंगा नदी को त्रिपथगा कहा जाता है. गंगा तीन रास्तों पर आगे बढ़ती हैं. कहते हैं कि महादेव ने जब उन्हें जटा से मुक्त किया तो वह तीन धाराओं में बंट गई. एक धारा स्वर्ग में, एक धारा भगीरथ के पीछे और एक धारा पाताल में चली गई. यही धारा पातालगंगा भी कहलाती है।मुख्या और उत्तर वाहिनी:भारत की मुख्य नदी होने के कारण मुख्या भी गंगा नदी का एक नाम है. हरिद्वार से फर्रुखाबाद, कन्नौज, कानपुर होते है गंगा नदी इलाहाबाद पहुंचती हैं. इसके बाद काशी में गंगा नदीं एक वलय लेती हैं और उत्तर दिशा की ओर दोबारा बढती हैं. इसलिए गंगा यहां पर उत्तर वाहिनी कहलाती हैं। बिहार राज्य को सींचते हुए गंगा बंगाल में प्रवेश करती हैं।मेघना-हुगली भी हैं गंगा के ही नाम: बंगाल में गंगा की एक धारा का नाम मेघना है. उन्हें यह नाम मेघों जैसी गर्जना वाली धाराओं के कारण मिला है। यहां से होते हुए दक्षिणेश्वर में मां काली को प्रणाम करते हुए गंगा शांत और मंथर गति से आगे बढ़ रही होती हैं। उनके किनारे पर बसे इस शहर का नाम है हुगली। इसलिए गंगा को भी हुगली नदी कहा जाता है. इसके बाद गंगा बंगाल की खाड़ी में गिर जाती हैं। यही स्थल गंगा सागर बन जाता है।

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