काशी तमिल संगममः सांस्कृतिक धारा में सराबोर हुए काशीवासी
काशी तमिल संगममः
वाराणसी। बृहस्पतिवार को सांस्कृतिक संध्या की शुरुआत मुख्य अतिथि प्रख्यात लेखक व पत्रकार नारायणन वी. मालन के संबोधन से हुई। उन्होंने तमिलनाडु की संस्कृति एवं विविधता को भारतीय समाज को एकजुट करने के सूत्र के रूप में बताया। सांस्कृतिक प्रस्तुतियों की शुरुआत प्रो. के. शशि कुमार, संकाय प्रमुख, मंच कला संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, द्वारा प्रस्तुत भजनों के साथ हुई। उन्होंने 4 भजनों की प्रस्तुति कर सांस्कृतिक संध्या में भक्ति भाव का संचार किया। इनमें उनका स्वलिखित गीत जय गंगे भी शामिल था।
कार्यक्रम की अगली कड़ी में कलाईमामणि श्री मुथूचंद्र ने थोलपवी कोथू कठपुतली नृत्य का प्रदर्शन कियाय़ इस प्रस्तुति में रामायण के लंका काण्ड की सुन्दर प्रस्तुति की गई, जिसे दर्शकों से भरपूर उत्साहवर्धन व सराहना मिली।
एस. जेवियर जयकुमार ने माता काली की स्तुति में एक लोकगीत की प्रस्तुति की जो की तमिलनाडु के सभी मंदिरों व प्रमुख त्योहारों में गाया जाता है।
शास्त्रीय नृत्य भरतनाट्यम की प्रस्तुति सुप्रसिद्ध कलाकार कलाईमामणि प्रिया मुरली ने की। प्रस्तुति में नृत्य मुद्राओं व भाव-भंगिमाओं से दर्शक अभिभूत दिखे।
कार्यक्रम की आख़िरी कड़ी में तमिलनाडु की दुर्लभ कला कारागम का प्रदर्शन कलाईमामणि यू. पार्वती द्वारा किया गया। वे इस नृत्य को करने में पिछले 30 वर्षों से पारंगत है तथा उनके बच्चे भी इस परंपरा को आगे ले जाने में उनका सहयोग करते हैं। इस नृत्य में सर के ऊपर कलश लेकर संतुलन बनाने की कला सम्मिलित है।