टूट गया आरएसएस उतर बंगाल का ध्रुवतारा “केपी दा”

अलविदा कहने से पहले सैकड़ों श्रद्धालुओं को स्पेशल ट्रेन से अयोध्या किया विदा

– कोरोना में हजारों की जान बचाने वाले को नहीं मिल पाया बचाने वाला हाथ

अशोक झा

सिलीगुड़ी: उत्तर बंगाल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के “ध्रुवतारा” के रूप में चर्चित कुलक्षेत प्रसाद अग्रवाल ऊर्फ केपी दा आज हमारे बीच नहीं रहे।
संघ प्रमुख मोहन भागवत हो या कोई केंद्रीय नेता सभी उन्हें केपी दा के नाम से ही बुलाते थे। कुल क्षेत्र प्रसाद अग्रवाल सिलीगुड़ी के वरिष्ठ स्वयंसेवक, अध्यक्ष उत्तर बंग सेवा भारती,विभाग संघचालक का दायित्व पालन किया। उनके निधन की खबर से बंगाल ही नहीं सीमावर्ती बिहार और नेपाल तक में शोक की लहर दौड़ गई है। केपी दा की उम्र 85 वर्ष थी। इस उम्र में भी वे देश सेवा के लिए संघ और उनसे जुड़ी संगठनों के विस्तार के लिए अंतिम समय तक करते रहे।
ऐसे हुआ आज स्वर्गवास:
आज 5.2.2024 सोमवार दिन के 2:30 बजे न्यू जलपाईगुड़ी रेलवे स्टेशन से अयोध्या के लिए विशेष ट्रेन रवाना करने के लिए संघ और उत्तर बंग सेवा भारती पदाधिकारियों और स्वयंसेवकों के साथ स्टेशन पर मौजूद थे। श्रद्धालुओं को ट्रेन से विदा करते हुए जय श्री राम के नारा लगाते हुए सभी को विदा किया।उसी समय अचानक उनकी तबीयत बिगड़ी और वह कुर्सी पर बैठ गए। देखते ही देखते वे अचेत हो गए और जबतक उन्हें डॉक्टर को दिखाया तो वे सभी को छोड़ बैकुंठ सिधार गए थे।
कोविद-19 में हजारों लोगों को जान बचाने वाले बने थे केपी दा
कोविद-19 की विभीषिका में जब लोग घर में दुबके रहते थे।उस समय केपी दा कोविद-19 से बचने के लिए होम्योपैथिक की दवा मंगा मंगा कर लोगों के बीच घर-घर जाकर बांटते रहे थे। वे मुक्त में लोगों तक ह्यूमैनिटी बढ़ाने के लिए लगभग 2 लाख से अधिक लोगों तक पहुंचे थे। कोलकोता में दवा नही मिलने पर अपने रिश्तेदार से उत्तर प्रदेश से उसे मंगाते थे। हजारों की जान बचाने वाले को आज अंतिम समय में कोई बचाने वाला हाथ नहीं मिल पाया। पिछले महीना 20 जनवरी को मयूर स्कूल में क्रिकेटर सुरेश रैना के कार्यक्रम में अपने पोता के साथ पहुंचे थे। वहां पहुंचने पर उन्होंने मेरे साथ ही बैठे थे। चीर परिचित अंदाज में कहा था झाजी इस उम्र में क्या हम इस क्रिकेटर से क्या काम यंग है। मैने कहा था एकदम नहीं केपी दा आप तो युवाओं के लिए प्रेरणा है। डेढ़ वर्ष पूर्व उनकी पत्नी का देहांत हो गया था। उसके बाद भी उनका समय और घर का मुख्यद्वार हमेशा संघ से जुड़े लोगों के लिए खुले हुए थे। विहिप के प्रवक्ता सुशील रामपुरिया ने कहा कि उनका निधन संघ के लिए बहुत बड़ी क्षति है। वह प्रचारक नहीं थे किंतु प्रचारक के तरह हमेशा उपलब्ध रहते थे। सीताराम डालमिया ने कहा की केपी दा हमलोगों को ऐसे छोड़ देंगे उम्मीद नहीं था। उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे। वे रामभक्तों को भेज खुद ही राम के शरण में चले गए। रिपोर्ट अशोक झा

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