धूमधाम से मनाया जा रहा बैसाखी का पर्व आज के ही दिन खालसा पंथ की स्थापना हुई
बैसाखी का पर्व आज धूमधाम से मनाया जा रहा है। सौर कैलेंडर के अनुसार, सिख समुदाय के लोग इसे नए साल के रूप में मनाते हैं। इसके साथ ही इसे रबी की अच्छी फसल के होने को लेकर उत्सव के रूप में मनाते हैं। इसके साथ ही इस दिन खालसा पंथ की स्थापना हुई थी। ये पर्व आमतौर पर पंजाब, हरियाणा, दिल्ली जैसे शहरों में बहुत ही धूमधाम से मनाते हैं। उत्तर बंगाल में सिख बिरादरी की ओर से इस दिन फसल कटकर घर आ जाने की खुशी पर लोग भगवान को धन्यवाद देते हैं और अनाज की पूजा करते हैं। वैसाखी को विभिन्न नामों से भी जाना जाता है। इसे असम में बिहू, बंगाल में नबा वर्षा, केरल में पूरम विशु कहते हैं। जानें मनाने का कारण और कैसे मनाते हैं….
बैसाखी का महत्व
इस महीने में रबी की फसल पककर पूरी तरह से तैयार हो जाती है और कटाई शुरू हो जाती है। इसी के कारण बैसाखी को फसल पकने और सिख धर्म की स्थापना के रूप में मनाते हैं। कहा जाता है कि इसी दिन सिख पंथ के 10वें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी।
कैसे पड़ा बैसाखी नाम?
बैसाखी के समय आकाश में विशाखा नक्षत्र होता है। पूर्णिमा के समय विशाखा नक्षत्र होने के कारण इसे वैशाख कहते हैं। वैशाख माह के पहले दिन को बैसाखी कहा जाता है। इसके अलावा इस दिन ग्रहों के राजा सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं। इसलिए इस दिन मेष संक्रांति भी कहा जाता है।
बैसाखी से जुड़ी मान्यता:पौराणिक मान्यताओं के अनुसार,सिखों के 9वें गुरु गुरु तेग बहादुर जी हिंदुओं के खिलाफ किए जा रहे अत्याचार के खिलाफ औरंगजेब से लड़ते हुए शहीद हो गए थे। युद्ध में उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र गुरु गोविंद सिंह जी अगले गुरु बनें। जिन्होंने सभी लोगों में अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने और साहस भरने का कार्य किया था। इसके बाद तलवार उठाकर आनंदपुर में सिखों के संगठन का निर्माण करने के लिए आवाहन किया। उन्होंने लोगों से कहा कि बहादुर योद्धा कौन है, जो बुराई के खिलाफ शहीद होने को तैयार है। उस समय सभा में से पांच योद्धा निकलकर सामने आए थे। बाद में इन्हीं योद्धाओं को पंच प्यारे कहा गया और जिन्हें खालसा पंथ का नाम दिया गया। कैसे मनाते हैं बैसाखी?: बैसाखी के दिन ढोल-नगाड़ों पर लोग नाचते हैं। इस दिन गुरुद्वारों में विशेष आयोजन किया जाता है। इस दिन सुबह उठकर गुरुद्वारे जाकर प्रार्थना की जाती है। इसके साथ ही गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ और भजन-कीर्तन किया जा है। इसके साथ ही श्रद्धालुओं के लिए विशेष प्रकार का अमृत तैयार किया जाता है, जो बाद में पंक्ति में लगकर पांच बार ग्रहण किया जाता है। इसके साथ ही लोग लंगर का सेवन करते हैं। रिपोर्ट अशोक झा