रक्षा बंधन: रक्षा सूत्र बांध अपनों की सुरक्षा का किया जाता है वादा
अशोक झा, सिलीगुड़ी: रक्षाबंधन का त्योहार बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। रक्षाबंधन का त्योहार सावन माह की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। प्राचीन काल में रक्षाबंधन के दिन गुरु अपने शिष्यों को रक्षा सूत्र बांधते थे। वहीं इस बार जहां रक्षाबंधन पर भद्रा और पंचक का साया है तो वहीं वहीं इस दिन कई शुभ योग भी बन रहे हैं। इस दिन सावन का अंतिम सोमवार, पूर्णिमा, सर्वार्थ सिद्धि योग, रवि योग, शोभन योग और श्रवण नक्षत्र का महासंयोग रहेगा। जिससे इस दिन का महत्व और भी बढ़ गया है। राखी बांधते समय बोले ये मंत्र येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल:।तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामि ,रक्षे माचल माचल:। आइए जानते हैं रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त और भद्राकाल का समय। कब है रक्षाबंधन 2024 तिथि : वैदिक पंचांग के मुताबिक श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि 19 अगस्त को सुबह 3 बजकर 3 मिनट से शुरू हो रही है, जिसका अंत रात 11 बजकर 54 मिनट पर हो है। ऐसे में उदयातिथि के अनुसार रक्षाबंधन का पर्व 19 अगस्त को ही मनाया जाना शुभ है।रक्षाबंधन 2024 भद्रा काल का समय: रक्षाबंधन भद्रा अंत समय : दोपहर 01 बजकर 31 मिनट
रक्षाबंधन भद्रा पूंछ : सुबह 09:51 – सुबह 10:53
रक्षाबंधन भद्रा मुख : सुबह 10:53 – दोपहर 12:37
ज्योतिष पंचांग के मुताबिक इस साल 19 अगस्त 2024, सोमवार को दोपहर 1 बजकर 31 मिनट तक भद्रा रहेगी जिसका निवास पाताल में है। धर्मशास्त्र अनुसार 19 अगस्त को दोपहर 1 बजकर 31 मिनट के बाद रक्षाबंधन का शुभ कार्य करना शुभ फलदायी रहेगा। मतलब भद्राकाल के बाद ही बहनें, भाई के हाथ पर राखी बांधे। विशेष स्थिति में रक्षाबंधन मनाने वाले भद्रा पुच्छ काल में भाई को राखी बांध सकते हैं। क्योंकि पुच्छ काल में भद्रा का अशुभ प्रभाव कम रहता है।रक्षाबंधन पर भद्रा और पंचक का साया: पंचांग के अनुसार, 19 अगस्त को शाम 7 बजकर 1 मिनट से पंचक आरंभ हो रहे हैं, जो 23 अगस्त रहेंगे। लेकिन यह राज पंंचक हैं, जिनको ज्योतिष में शुभ माना गया है।
बन रहे हैं ये महासंयोग: पंचांग के अनुसार रक्षाबंधन पर कई महासंयोग बन रहे हैं, जिसमें रवि और सर्वार्थ सिद्ध योग का भी नाम शामिल है। वहीं इस दिन ग्रहोंं के राजा सूर्य देव भी अपनी स्वराशि में संचरण कर रहे हैं। साथ ही शनि देव भी शश राजयोग बनाकर स्थित हैं। इसके साथ ही बुध और शुक्र भी इस राशि में होंगे, जिससे बुधादित्य और शुक्रादित्य राजयोग का बन रहा है। वहीं इस दिन श्रवण नक्षत्र भी है।राखी और मिठाई दुकानों पर लगी रही कतार: रक्षाबंधन को लेकर बाजारों में काफी चहल-पहल रही. शाम को हर चाैक-चौराहे पर लगी राखी दुकानों में भीड़ दिखी।बच्चों के लिए कार्टून कैरेक्टर से लेकर लाइटिंग राखी की काफी डिमांड रही मेहंदी लगाने के लिए रंगरेज गली के अलावा विभिन्न मॉल के बाहर, पार्लरों में मेहंदी लगवाने के लिए महिलाएं व युवतियां इंतजार करती दिखीं. मेहंदी आर्टिस्ट ने बताया कि 150 से 1500 रुपये तक की मेहंदी डिजाइन है। वहीं गिफ्ट पैक की भी खासा डिमांड दिखी. सबसे ज्यादा डिमांड चॉकलेट गिफ्ट पैक की रही। दुकानदारों के अनुसार रक्षाबंधन पर चॉकलेट गिफ्ट पैक की डिमांड सबसे ज्यादा रहती है, जिसकी रेंज 100 रुपये से शुरू है। साथ ही चॉकलेट बुके का भी क्रेज दिखा। इधर, बारिश के बीच लोगों ने मिठाइयों की खरीदारी की. देर रात तक भीड़ देख कारोबारियों के चेहरे पर खुशी दिखी।
रक्षा बंधन सिर्फ भाई बहन का पर्व नही है: प्राचीन ग्रंथों में विशेषतः इसका प्रमुख सूत्र मिलता है. स्कंद पुराण श्रावण माहात्म्य अध्याय क्रमांक 21, नारद पुराण और भविष्य पुराण (उत्तर पर्व अध्याय क्रमांक 137), जिसमें लिखा है कि जब देवासुर संग्राम में असुर पराजित हुए तब वे अपने गुरु शुक्राचार्य के पास इस हार का कारण जानने पहुंचे।
इंद्राणी शची ने इंद्र की कलाई पर बांधी थी रक्षासूत्र:
शुक्राचार्य ने बताया कि इंद्राणी शची ने इंद्र की कलाई पर एक रक्षा सूत्र उनकी सुरक्षा के लिए बांधा था. उसी रक्षा सूत्र ने उन्हें बचाया. यह कथा कृष्ण ने युधिष्ठिर को बताई थी और इसकी विधि भी बताई थी। रक्षाबंधन का त्योहार देशभर में बड़े ही उत्साह और जोश के साथ हर साल मनाया जाता है. इस त्योहार को हमेशा भाई-बहन के बीच गहरे प्यार और अटूट बंधन की भावना के साथ जोड़ा जाता है। लेकिन रक्षाबंधन पर राखी या रक्षासूत्र बांधने से अन्य कई तर्क छिपे हैं. कुछ कथाओं में द्रौपदी द्वारा कृष्ण की कलाई पर चोट लगने पर कपड़े के टुकडा बांधकर उनकी कृपा मिलने की बात कही जाती है या माता पार्वती द्वारा भगवान विष्णु को राखी बांधने की बात बताई जाती है।तो कुछ बली और पाताल लोक की कथा बताकर तो कोई यमुना और यमराज की कथा बताकर इसकी स्वीकृति पाते हैं. लेकिन ये मात्र किंवदंतियां हैं. क्योंकि ऐसा किसी प्राचीन ग्रंथ में उल्लिखित नहीं है. न तो व्यासजी ने महाभारत में इसका वर्णन किया है न तो वेद या पुराण में इसकी चर्चा है।
क्या रक्षाबंधन केवल भाई-बहन का पर्व: पहले के काल में पुरोहित एक पोटली को धागे से बांधकर, कलाई पर बांधते थे. उस पोटली में चावल, पीली सरसों, चंदन आदि ताम्र पत्र में बंधा रहता था जो मंत्रों के उच्चारण के बाद बांध जाता था (येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।भविष्य पुराण उत्तर पर्व 137.20). समय के साथ यह पर्व कई तरह से बदलता गया और विशाल स्तर पर भाई–बहन का त्योहार बन गया. जाति, धर्म इत्यादि सब छोड़कर बहन भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बांधती है और अपेक्षा रखती है केवल अनवरत स्नेह और दुलार मिले। यह एक तरह से सुरक्षा की शपथ है।
कौन किसको राखी बांध सकता है: माता अपने पुत्र को.
बेटी अपने पिता को।बहन-भाई को।विद्यार्थी अपने गुरु को।
ब्राह्मण किसी क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र को।
पोते-पोती अपने दादा-दादी को।मित्र अपने मित्र को ,पत्नी अपने पति को।फौजियों को (ये सबसे नेक काम है क्योंकि सेना को इस रक्षा सूत्र की आवश्यकता होती है), राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपने आप को रक्षा सूत्र बांधते हैं रक्षा के लिए। पालीवाल ब्राह्मण क्यों नहीं मनाते रक्षाबंधन का त्योहार: भविष्य पुराण में रक्षाबंधन यानी सावन पूर्णिमा के दिन पितरों को तर्पण देना भी अच्छा माना जाता है (भविष्य पुराण, उत्तर पर्व 137), तो केवल भाई बहन ही नहीं बल्कि राखी बांधना बड़ा व्यापक काम है. बारहवीं शताब्दी ब्राह्मण (पालीवाल) ने क्षत्रियों को राखी बांधी थी इसका उदाहरण है 1273 में पालीवाल ब्राह्मणों ने क्षत्रिय राजा राव राठौड़ की सुरक्षा के लिए राखी बांधी थी। राजा वीरता से लड़े पर पूरा गांव मारा गया था। इसलिए आज भी पालीवाल ब्राह्मण राखी नहीं बांधते।कैसे मनाएं रक्षाबंधन: रक्षाबंधन पर्व किस प्रकार मनाए, स्कंद पुराण श्रावण माहात्म्य अध्याय क्रमांक 21 से जानें-
सम्प्राप्ते श्रावणे मासि पौर्णमास्यां सन्ध्याजपादि सम्पाद्य दिनोदये। स्नानं कुर्वीत मतिमान् श्रुतिस्मृतिविधानतः
पितृन्देवानृषींस्तथा । तर्पयित्वा ततः कुर्यात्स्वर्णपात्रविनिर्मिताम् ॥
हेमसूत्रैश्च सम्बद्धां मौक्तिकादिविभूषिताम्। कौशेयतन्तुभिः कीर्णैर्विचित्रैर्मलवर्जितैः
विचित्रग्रन्थिसंयुक्तां पदगुच्छैश्च राजिताम्। सिद्धार्थैश्चाक्षतैश्चैव गर्भितां सुमनोहराम् ।।
संस्थाप्य कलशं तत्र पूर्णपात्रे तु तां न्यसेत्। उपविश्यासने रम्ये सुहद्भिः परिवारितः।।
वेश्यानर्तनगानादिकृतकौतुकमङ्गलः। ततः पुरोधसा कार्यों रक्षाबन्धः समन्त्रकः
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥
ब्राह्मणैः क्षत्रियैवैश्यैः शूद्रैश्चैवान्यमानवैः। रक्षाबन्धः प्रकर्तव्यो द्विजान्सम्पूज्य यत्नतः ॥
रक्षाबन्धनमाचरेत्। स सर्वदोषरहितः सुखी संवत्सरं भवेत् ॥
अनेन विधिना यस्तु यः श्रावणे विमलमासि विधानविज्ञो रक्षाविधानमिदमाचरते मनुष्यः।
आस्ते सुखेन परमेण स वर्षमेकं पुत्रैश्च पौत्रसहितः ससुहृज्जनश्च ।
अर्थ – बुद्धिमान् मनुष्य को चाहिए कि श्रावण का महीना आने पर पूर्णिमा तिथि को सूर्योदय के समय श्रुति-स्मृति के विधान से स्नान करें. इसके बाद संध्या में जप आदि करके देवताओं, ऋषियों तथा पितरों का तर्पण करने के बाद सुवर्णमय पात्र में बनाई गई, सूत्रों से बंधी हुई, मुक्ता आदि से विभूषित, विचित्र तथा स्वच्छ रेशमी तन्तुओं से निर्मित, विचित्र ग्रन्थियों से सुशोभित, पदगुच्छों से अलंकृत और सर्षप तथा अक्षतों से गर्भित एक अत्यन्त मनोहर रक्षा (राखी) बनाए. तदनन्तर कलश स्थापन करके उसके ऊपर पूर्णपात्र रखे और पुनः उसपर रक्षा को स्थापित कर दें. तत्पश्चात् रम्य आसनपर बैठकर मंगलकृत्य में संलग्न रहे. इसके बाद यह मंत्र पढ़कर रक्षाबन्धन करें।ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों, शूद्रों तथा अन्य मनुष्यों को चाहिए कि यत्नपूर्वक वेद पाठी ब्राह्मणों की पूजा करके रक्षाबन्धन करें. जो इस विधि से रक्षाबन्धन करता है, वह सभी दोषों से रहित होकर वर्षपर्यन्त सुखी रहता है. विधान को जानने वाला जो मनुष्य शुद्ध श्रावण मास में इस रक्षाबन्धन अनुष्ठान को करता है, वह पुत्रों, पौत्रों तथा सुहज्जनों के सहित एक वर्षभर अत्यन्त सुख से रहता है।