जुलाई जन विद्रोह में मारे गए लोगों के लिए न्याय की मांग को लेकर प्रदर्शन

कंट्रोल इस्लामाबाद से पूरी तरह से ब्रेन वॉश हो चुका है आंदोलन

 

 

बांग्लादेश बोर्डर से अशोक झा:
बांग्लादेश की राजधानी ढाका में हजारों प्रदर्शनकारी मंगलवार को इकट्ठा हुए, जहां उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद करते हुए जुलाई जन विद्रोह में मारे गए लोगों के लिए न्याय की मांग की।देश का नाम बदलने की मांग और संविधान को कब्र में दफ्नाने की कट्टर चाहत से यूनुस का सिंहासन भी डोलने लगा है।हम एक नया बांग्लादेश चाहते हैं :प्रदर्शनकारी: इस बीच, छात्रों और जातीय नागरिक समिति ने घोषणा की कि अगर सरकार 15 जनवरी तक जुलाई विद्रोह की घोषणा जारी करने में विफल रहती है तो वे आगे के प्रदर्शन करेंगे। प्रदर्शन के संयोजक हसनत अब्दुल्ला ने कहा कि हमारे पास अभी भी जुलाई के जन विद्रोह पर घोषणा का दस्तावेज़ नहीं है। इसे 15 जनवरी तक जारी किया जाना चाहिए। उस दिन हम घोषणा के साथ यहां फिर से जुड़ना चाहते हैं। उन्होंने आगे कहा कि फासीवाद और अवामी लीग के खिलाफ उनकी लड़ाई जारी रहेगी। अब्दुल्ला ने कहा कि फासीवाद और अवामी लीग के खिलाफ हमारा संघर्ष जारी रहेगा। कई लोग हमारे विद्रोह को स्वीकार नहीं कर सके और यही कारण है कि सचिवालय, पुलिस और यहां तक कि अदालतों में भी साजिशें चल रही हैं। जातीय नागरिक समिति के संयोजक नसीरुद्दीन पटवारी ने कहा कि हम एक नया बांग्लादेश चाहते हैं। ढाका में सेंट्रल शहीद मीनार पर हजारों छात्रों का हुजूम जुटा. इसी शहीद मीनार से शेख हसीना सरकार के खिलाफ बगावत करने वाले छात्रों के गुट ने इस बार मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार के खिलाफ आवाज उठाई है।वहां कट्टरता को बढ़ावा देने और इस्लामिक राज्य स्थापित कराने वाले ऐसे ऐसे नारे लगाए गए, जिन्होंने बांग्लादेश में थोड़े बहुत बचे बुद्धिजीवियों को भी अनलिमिटिड फिक्र में डाल दिया है।नारों में भारत विरोधी दुष्प्रचार की दुर्गंध: हालांकि जो नारे लगाए गए उनकी एक विशेष बात थी। ये नारे यूनुस के अलावा, शेख हसीना पर ज्यादा केंद्रित थे। इन नारों में भारत विरोधी दुष्प्रचार की दुर्गंध भी आ रही थी। एक नारा ये लगाया गया कि ‘मेरा भाई कब्र में है, हत्यारा आज़ाद क्यों है?’ ये नारा सीधे तौर पर शेख हसीना को आरोपी बनाए जाने से जुड़ा दिख रहा है. बांग्लादेश की सरकार लगातार शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग कर रही है।दूसरा नारा ये लगाया कि ‘दिल्ली या ढाका?’ मतलब, आपको ढाका बनना है या फिर दिल्ली के दिखाए रास्ते पर चलना है. साफ है कि ये नारा बांग्लादेश में जमात जैसे कट्टरपंथी संगठन पाकिस्तान के इशारे पर कथित छात्रों से लगवा रहे हैं, जिसमें एंटी इंडिया एजेंडे की पोल खुली है।तीसरा नारा ये लगाया कि ‘अन्याय खून की नदियों में डूब जाएगा’ यानी बांग्लादेश के कट्टरपंथी न्याय के नाम पर अब खून की नदियां बहा देना चाहते हैं. ये जानते हुए भी कथित शांतिदूत मोहम्मद यूनुस हमेशा की तरह चुप हैं. जानना ये भी जरूरी है कि इस छात्र आंदोलन की अगुआई कौन सा लीडर कर रहा है।अब्दुल हन्नान कर रहा आंदोलन का नेतृत्व: जमात ए इस्लामी एक बार फिर से इस आंदोलन के पीछे खड़ा दिख रहा है. इस छात्र आंदोलन पार्ट-2 में नई मांगें क्या हैं और इन मांगों से यूनुस की सत्ता खतरे में क्यों आ गई है? इस कथित आंदोलन का नेतृत्व एक बार फिर से छात्र आंदोलन का समन्वयक अब्दुल हन्नान कर रहा है। शेख हसीना के खिलाफ बगावत के समय भी ये नाम काफी हाइलाइट हुआ था। इसी हन्नान ने कल ढाका में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी और पूरे बांग्लादेश से छात्रों को शहीद मीनार पर जुटने की अपील की थी। कहा था कि ‘जुलाई क्रांति’ का ऐलान सरकार नहीं बल्कि बांग्लादेश के हजारों छात्र करेंगे।असल में मामला यहां से शुरू हुआ कि मोहम्मद यूनुस के प्रेस सचिव शफीकुल आलम ने दो दिन पहले घोषणा की थी कि सरकार जल्द ही जुलाई क्रांति का ऐलान करेगी। इससे पहले सभी राजनीतिक दलों और छात्रों की मदद से इसका मसौदा तैयार किया जाएगा. इस जुलाई क्रांति के तहत बांग्लादेश में नाम बदलने से लेकर संविधान तक में बड़े बदलावों की बात कही गई थी लेकिन जैसे ही सरकार की ये मंशा छात्रों को पता चली तो हन्नान ने इमरजेंसी मीटिंग बुलाकर सरकार के खिलाफ ही झंडा बुलंद कर दिया।
इतना बड़ा फैसला सरकार नहीं बल्कि छात्र लेंगे:
उसने कहा कि इतना बड़ा फैसला सरकार नहीं बल्कि छात्र लेंगे. दूसरा सवाल ये है कि कट्टरपंथी संगठन जमात इस आंदोलन के पीछे कैसे है, तो इसका जवाब बहुत आसान है. जमात पिछली बार भी फ्रंट फुट पर नहीं खेल रहा था और इस बार भी वो प्रदर्शनों में आगे नहीं है बल्कि बैकडोर से सपोर्ट दे रहा है।आर्थिक मदद के अलावा जमात प्रदर्शनों के वीडियो अपनी सोशल मीडिया टीम के जरिए वायरल करा रहा है। यूनुस के खिलाफ ही माहौल बनवा रहा है. ये जानना अब दिलचस्प है कि कल तक यूनुस पर जिस जमात के इशारे पर काम करने के आरोप लग रहे थे, वहीं यूनुस अचानक से जमात ए इस्लामी की आंखों में क्यों खटकने लगे?फिक्र का सबसे ज्यादा फोकस इस छात्र आंदोलन की मांगों पर ही है क्योंकि इन्हीं मांगों के जरिए बांग्लादेश को कट्टर देश बनाने का सारा खेल चल पड़ा है. एक मांग ये है कि बांग्लादेश का अब नाम बदला जाए. मुल्क का नया नाम इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ बांग्लादेश या फिर इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईस्ट पाकिस्तान रखा जा सकता है।बांग्लादेश को पटरी से उतारने वाली पाकिस्तान की साजिश:यहां ‘ईस्ट पाकिस्तान’ बनाने की मंशा पर ध्यान देना चाहिए. क्योंकि इसी नाम से बांग्लादेश को पटरी से उतारने वाली पाकिस्तान की पूरी साजिश डिकोड होती है. दूसरी मांग ये है कि बांग्लादेश में सुन्नत और शरिया लागू हो. यानी कट्टरता को कानून का जामा पहनाने की तैयारी है. ऐसा हुआ तो यहां अल्पसंख्यकों का हाल और भी ज्यादा बुरा होने वाला है।वैसे छात्रों का ये भी कहना है कि वो बांग्लादेश के 1972 वाले संविधान को दफना देंगे. उनके अनुसार, ये मुजीबिस्ट चार्टर है और इसके जरिए भारत को बांग्लादेश पर राज करने का मौका मिला था। यानी इन कथित छात्रों के दिमाग में भारत को लेकर नफरत कूट-कूटकर भर दी गई है। इनका पूरी तरह से ब्रेन वॉश हो चुका है और ये अब सिर्फ इस्लामाबाद के कंट्रोल में हैं।

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