शिकागो विश्वविद्यालय में बीएचयू के शोधार्थी ने प्रस्तुत किया अपना शोध कार्य

शिकागो विश्वविद्यालय में बीएचयू के शोधार्थी ने प्रस्तुत किया अपना शोध कार्य

वाराणसी। अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय में South Asia Graduate Student Conference का 20वां अधिवेशन हाल ही में संपन्न हुआ। इसमें कनाडा, अमेरिका एवं भारत, सिंगापुर, पाकिस्तान सहित विभिन्न देशों के शोध-छात्र शामिल हुए। इस वर्ष यह सम्मेलन ‘दक्षिण एशिया की कथा परंपरा एवं कहन-शैली’ विषय पर आयोजित था। इस सम्मलेन में भारत से काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोo प्रभाकर सिंह के निर्देशन में शोधरत् छात्र कुमुद रंजन मिश्र का शोध-पत्र चयनित हुआ एवं उन्हें वक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया। कुमुद ने ‘संगीत पर आधारित कथा- परंपरा एवं छत्तीसगढ़ के स्थानीय लोक- कला रूप’ विषय पर अपना शोध-पत्र प्रस्तुत किया। इस क्रम में उन्होंने बांसगीत पर विस्तृत चर्चा की। बाँसगीत छत्तीसगढ़ की एक सांगीतिक लोककथा शैली है, जिसका संबंध वहाँ की यादव/ ठेठवार/ राउत जाति से है। सामूहिक जीवन जीते हुए, श्रम की दुष्करता को सहज बनाने के क्रम में सृजित ये गीत समाज विशेष के जातीय संस्कारों का अभिन्न अंग हैं। छत्तीसगढ़ की यह सांस्कृतिक पहचान- बाँसगीत, आज भूमंडलीकृत एवं उदारीकृत विश्व के बीच अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है।

शिकागो विश्वविद्यालय की दक्षिण एशियाई अध्ययन समिति ने कुमुद रंजन मिश्र का स्कूल ऑफ डिविनिटी के स्विफ्ट हॉल में स्वागत किया। उन्होंने अपने व्याख्यान में जब बांसगीत के बारे में बताया तो कांफ्रेंस में शामिल अन्य छात्र-छात्राएं इसके बारे में जानने के लिए काफी उत्साहित थे। व्याख्यान के पश्चात शिकागो विश्वविद्यालय की संगीत विभाग की प्रमुख डॉ. एना शूट्ज ने बांसगीत को प्रत्यक्ष सुनने की भी इच्छा जाहिर की। इस सम्मेलन में श्री कुमुद रंजन मिश्रा की उपस्थिति ने विश्वविद्यालय के शिक्षकों एवं छात्रों के ज्ञान को समृद्ध किया और इस क्षेत्र में वर्तमान और भविष्य की संभावनाओं पर एक उपयोगी बातचीत में अधिक व्यापक रूप से योगदान दिया।

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