बस्ती में रटे चाचा नेहरू के निबंध से उलटी दिखी पाकिस्तान सरहद पर हिंदुस्तानियों की पीड़ा

बस्ती जिले से पाकिस्तान सरहद पर पहुंचे पत्रकार को नेहरू के बारे में क्या-क्या सुनना पड़ा? जम्मू पहुंचने के बाद बात चौथे दिन की है। मीटिंग की चाय के बाद शाम तक आफिस लौट आने की संभावना देखने के बाद आरएसपुरा जाने का फैसला किया। बस पकडक़र आरएसपुरा बाजार पहुंचने के बाद शक्तेश्वरगढ़ बार्डर आउट पोस्ट पर जाने के लिए आटो में सवार हुआ। उसमे सवार लोगों से खेती-किसानी की चर्चा छिड़ी तो पहले परिचय का आदान-प्रदान हुआ। अखबार का नुमाइंदा जानने के बाद लोगों के दिल से आजादी पाने के बाद की पीड़ा ऐसी निकली जो आज भी उनके जेहन में रह-रह कर टीसती रहती है। साठ पार कर चुके सुलखान सिंह ने देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को इतनी भद्ïदी गाली देते हुए कहा कि वह चाचा नेहरू नहीं चालाक नेहरू था। चेहरे पर सफेद बाल संग झांकती झुर्रियों के मालिक सुलखान की तरफ देखा तो उनके आंखों से गुस्से की लालिमा साफ दिख रही थी। आजादी के जंग में सुलखान के पिता जी शहीद हो गए थे, उनका सपना था हिंदुस्तान की आजादी का। देश जब आजाद हुआ तो प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए पाकिस्तान को बांटने के कारण जम्मू-कश्मीर के लोगों को कितनी दिक्कत रोजाना होती है, इसकी पीड़ा जुबान पर गुस्से संग दिखी तो संसदीय मर्यादा कहां बह गयी पता नहीं चला। आधे धंटे के रास्ते में सुलखान की तरह आधा दर्जन से ज्यादा लोग थे तो नेहरू और कांग्रेस को कोसने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे थे। दिमाग में वह मंजर घूम गया, जब कक्षा आठ में पढऩे के दौरान चुनाव होने पर कांग्रेस का बिल्ला-पोस्टर लूटने के मोहल्ले के लडक़ों से मारपीट तक कर बैठता था। नेहरू के एडविना से प्रेमप्रसंग से लेकर पेरिस से कपड़ों की धुलाई सहित तमाम ऐसे किस्से आटो में सवार लोग सुना रहे थे, जैसे वह खुद चश्मदीद हो। सुलखान का कहना था कि आज आतंकवाद की समस्या के लिए नेहरू ही जिम्मेदार है। देश की आजादी के लिए जिन लोगों ने जान दी, उनकी कुर्बानी भूलकर नेहरू नामक नासपिट्ïटा पाकिस्तान की कीमत पर प्रधानमंत्री बना। आजादी के बंटवारे में सुलखान का आधा परिवार इधर था, सो वह अपनी संपत्ति छोडक़र इधर आ गए। ऐसा ही दर्द हर दूसरे शख्स के दिल से बाहर निकलकर अपनी बात कहने के लिए ऐसे-ऐसे शब्द सुनाई पडऩे लगा, जिसको लिखना ठीक नहीं है। चाचा नेहरू को लेकर देश के लोगों के दिलों में जो छवि बैठायी गयी है, उसके विपरीत निकली इस खबर को किस एंगिल से लिखा जाए कि छप सके। दिमाग में यह खिचड़ी पकने लगी थी, नेहरू को जितनी उपाधियों से नवाजा गया, उतनी किसी के मुंह से सुना नहीं था। ( रोमिंग जर्नलिस्ट के ब्लॉग से साभार) इस लिंक पर क्लिक करके पढ़े आगे और क्या क्या सुनने को मिला

https://www.roamingjournalist.com/2011/05/5.html?spref=tw

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