ऑथर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया एवं सुलभ साहित्य अकादमी के संयुक्त तत्वधान में दो दिवसीय “46 वां वार्षिक अधिवेशन तथा अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी” का आयोजन

ऑथर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया एवं सुलभ साहित्य अकादमी के संयुक्त तत्वधान में दो दिवसीय “46 वां वार्षिक अधिवेशन तथा अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी” का आयोजन

दक्षिण भारत हिंदी का विरोधी नहीं, बल्कि उन्हें हिंदी से प्रेम हैं। – डॉ राजलक्ष्मी कृष्णन

वाराणसी : अंतर-विश्विद्यालय अध्यापक शिक्षा केंद्र, बीएचयू, सुन्दरपुर, वाराणसी में दो दिवसीय (2-3 सितम्बर) कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया। यह कार्यक्रम ऑथर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया, हिंदी विभाग, काशी हिन्दू विश्विद्यालय वाराणसी एवं सुलभ साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वधान में “46 वां वार्षिक अधिवेशन तथा अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी” का आयोजन किया गया। जिसमें देशभर से लगभग डेढ़ सौ से अधिक बुद्धिजीवी पधारें।

प्रथम दिवस ( 2 सितम्बर ) के आरम्भ में 15 मिनट के लिए सुलभ शौचालय के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक के लिए श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। ज्ञात हो कि सुलभ शौचालय के संस्थापक पद्म भूषण बिंदेश्वर पाठक का निधन बीते 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के दिन दिल्ली में हो गया था। बहुमुखी प्रतिभा के धनी बिंदेश्वर पाठक 15 वर्षों तक ऑथर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष रहे थे।

इस कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार पद्मश्री डॉ श्याम सिंह शशि की अध्यक्षता में प्रारम्भ हुआ। पहले सत्र के मुख्य अतिथि काशी हिन्दू विश्विद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर वशिष्ठ द्विवेदी अनूप थे और विशिष्ट अतिथि के तौर पर मंच पर डॉ उदय प्रताप सिंह (पूर्व अध्यक्ष, हिंदुस्तानी ऐकडमी, प्रयागराज) और डॉ सुनील बी कुलकर्णी (निदेशक, केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा) उपस्थित थे। डॉ उदय प्रताप सिंह ने राष्ट्र का महत्त्व बताते हुए कहा कि लेखनी को राष्ट्र के साथ जोड़कर देखना चाहिए। तो वहीं स्वतंत्रता संग्राम में साहित्यकारों के योगदान का महत्त्व बताते हुए, डॉ सुनील बी कुलकर्णी ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम में जितना योगदान क्रांतकारियों का रहा उतना ही साहित्यकारों का भी रहा हैं।

मौजूद अतिथियों का स्वागत काशी हिन्दू विश्विद्यालय के हिंदी विभाग के शिक्षक डॉ अशोक ज्योति ने किया। उन्होंने अपने विस्तृत स्वागत वक्तव्य में बनारस की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत की चर्चा करते हुए, कार्यक्रम का हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित अतिथियों का अभिनन्दन करते हुए हर्ष जताया। मंच संचालन ऑथर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया के महासचिव शिव शंकर अवस्थी ने किया। आयोजित संगोष्ठी का मुख्य विषय ‘भारतीय ज्ञान परम्परा और राष्ट्रीय चेतना’ है।

उद्घाटन सत्र के दौरान पुस्तकों का लोकार्पण किया गया। इस दौरान विभिन्न भाषाओं लेखक डॉ एस एस अवस्थी, नेहा विलास भंडारकर, चित्र जनार्दन चिंचगारे, मीना गुप्ता, अपराजिता शर्मा, डॉ राजेंद्र मिलन, गुरु प्रताप ‘आग’, दीपक दीक्षित, प्रभा मेहता, मीरा रैकवार, जमील अंसारी, जय बहादुर सिंह राणा, डॉ हरी सिंह पाल, किरण, अशोक अश्रु, रामा वर्मा श्याम, डॉ रमेश कटारिया पारस, डॉ राजलक्ष्मी कृषणन, आर कृष्णन, डॉ सलमा जमाल, डॉ जे के डागर, डॉ अशोक कुमार जैन, प्रोफेसर रचना शर्मा, पी के अग्रवाल, डॉ वासुदेवन शेष और पी वी रमादेवी
के पुस्तकों का लोकार्पण किया गया।

द्वितीय सत्र का उप विषय ‘भारतीय साहित्यकार एवं राष्ट्रीय चेतना’ की अध्यक्षता डॉ अहिल्या मिश्र और संचालन डॉ किरण पोपकार ने किया। इस सत्र के वक्तागण नेहा भंडारकर ने नेशनल कांशसनेस इन दि लिटरेचर ऑफ़ सुब्रह्मण्य भारती इन इंग्लिश पर चर्चा की। तो वहीं डॉ अशोक पंड्या ने महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय चेतना, डॉ अपराजिता शर्मा ने स्वतंत्रता संग्राम में महर्षि दयानन्द का योगदान, डॉ दीपक दीक्षित ने आचार्य चाणक्य और भारतीय एकता, डॉ लक्ष्मण प्रसाद डेहरिया ने महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय चेतना , डॉ राजलक्ष्मी कृष्णन ने स्वतंत्रता संग्राम में महाकवि सुब्रह्मण्य भारती की राष्ट्रीय एकता पर अपनी बात विस्तार से रखते हुए, कहा कि स्वतंत्रता संग्राम में सुब्रह्मण्य भारती ने साहित्य के माध्यम से ताउम्र राष्ट्रीय एकता स्थापित करने का प्रयास करते रहे। सत्र के अंत में श्रुति सिन्हा ने द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी के बाल साहित्य में राष्ट्रीय चेतना के स्वर विषय पर अपनी बात रखी।

दूसरे सत्र के दौरान उप विषय ‘बाल साहित्य, लोक साहित्य एवं धार्मिक पर्यटन : राष्ट्रीय चेतना’ की अध्यक्षता डॉ हरिसिंह पाल और मंच संचालन डॉ उषा रानी राव ने किया। इस सत्र के वक्तागणों में डॉ अनिल कुमार सिंह, प्रकाश काशिव, अरुण कुमार पासवान, डॉ सलमा जमाल, प्रो आश्वाना सक्सेना, शिखा सिंह और दीपिका दास ने बाल साहित्य, लोक साहित्य एवं धार्मिक पर्यटन से सम्बंधित विभिन्न विषयों पर अपनी बात रखी।

‘राष्ट्रीय चेतना’ उप विषय के अंतर्गत तीसरे सत्र की अध्यक्षता डॉ मुकेश अग्रवाल और संचालन डॉ युवराज सिंह ने किया। इस सत्र के वक्तागणों में डॉ नवलकिशोर भाभड़ा, प्रो V A Varghese , Dr Poornathrayee Jayprakash Sharma , डॉ चेल्लम, डॉ धीरेन्द्र कुमार राय, ब्यूटी यादव, डॉ देवी प्रसाद तिवारी, प्रजापति रेणुका कैलास और सर्वेश ओझा ने अपनी बात रखी।

तीसरे सत्र के पश्चात ‘बहुभाषी काव्यधारा’ के अंतर्गत विभिन्न भाषा का काव्य पाठ का आयोजन किया गया। जिसमें विभिन्न भाषा के कवि काव्य पाठ के लिए आमंत्रित किए गए।

 

बहुभाषी काव्यधारा

ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, सुलभ साहित्य अकादमी, नई दिल्ली एवं हिंदी विभाग, बीएचयू के संयुक्त तत्त्वावधान में अंतर-विश्विद्यालय अध्यापक शिक्षा केंद्र, बीएचयू, सुन्दरपुर, वाराणसी में दो दिवसीय (2-3 सितम्बर) कार्यक्रम के तहत ‘बहुभाषी काव्यधारा’ का आयोजन किया गया जिसमें बीएचयू, हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. वशिष्ठ अनूप ने अपनी गजल सुनाई –
*हमेशा रँग बदलने की कलाकारी नहीं आती, बदलते दौर की मुझको अदाकारी नहीं आती।*

दिल्ली के मोहन द्विवेदी ने अपनी कविता ‘तन का नाश तनाव से, खेती खरपतवार। कलह नष्ट करती सदा, अपना घर परिवार।’ के माध्यम से अपनी बातें रखीं। वहीं दिल्ली के ही सत्य पाल चावला ने अपनी कविता ‘दिल्ली शेष भी कुछ विशेष है’ के माध्यम से अपने दिल की बात कही। आगरा के डा. अशोक अश्रु ने अपनी कविता ‘चंदा मामा पास के’ डा. सुषमा सिंह ने ‘बात बनाइबौ’, रामवर्मा श्याम ने ‘जिया ले गयौ उधारो चतुर बलमा’ एवं ‘यशोधरा यादव’ यशो’ ने ‘सिसकते हैं दर्द’, केरल की संध्या ए के ने ‘वैकुन्ना कामनकल’ कविता सुनाई। नागपुर की सुधा काशिव ने ‘छतों में छेद है’, दिल्ली की मोना वर्मा ने ‘बढ़ती उम्र में छलांग’ हैदराबाद की डॉ. आशा मिश्रा ‘मुक्ता’ ने ‘फिर होगी सुबह’ एवं वाराणसी की प्रो. रचना शर्मा ने ‘मन के कोने में गौरैया’ के माध्यम से श्रोताओं के हृदय में अपनी छवि अंकित कर ली।आगरा के कवि डॉ. राजेन्द्र मिलन ने अपने अंदाज में ‘एक समन्दर तेरे अंदर, एक समन्दर मेरे अंदर’ कविता का पाठ किया।
सुशील सरित, डॉ कीर्ति वर्धन, डॉ. बालकृष्ण महाजन,
डॉ. कृष्ण कुमार द्विवेदी,
डॉ. रमेश कटारिया पारस,
डॉ. मनोज ताड़वी आदि कवियों ने अपनी कविताओं के माध्यम से श्रोताओं को मुग्ध कर दिया। लखनऊ की उपमा आर्य ने
‘ऐलान जारी है’, दीनबन्धु आर्य ने
‘झूठा जलवा दिखाने से क्या फायदा’, वाराणसी के
आर्यपुत्र दीपक ने ‘मणिकर्णिका की सीढ़ियों पर राख नहीं’
हैदराबाद के जी. परमेश्वर ने ‘तेलुगु-कौन बनेगा’, नागपुर की ‘प्रभा मेहता ने गुजराती भाषा में
तो मीरा रायकवार ने ‘गुलों का रंग गहरा सुर्ख हुआ’, श्रीमती मधु अरविंद पटोदिया ने राजस्थानी में काव्य पाठ किया। ‘तेजवीर सिंह ‘तेज़’, टीकाराम साहू ‘आजाद’, प्रदीप गौतम ‘सुमन’, शिल्पी भटनागर, डॉ एझिल वेंदन ने अपनी कविताओं के माध्यम से ‘बहुभाषी काव्यधारा’ को नए नए आयाम प्रदान किए।

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