100 साल बाद चंद्रमा में मंगल, बुध एक साथ होंगे विराजमान

100 साल बाद चंद्रमा में मंगल, बुध एक साथ होंगे विराजमान
सिलीगुड़ी: आज यानी 01 नवंबर 2023, बुधवार के दिन सिलीगुड़ी समेत पूरे देश में यह व्रत रखा जा रहा है। आज के दिन भगवान शिव और माता पार्वती के साथ-साथ चंद्र देव की उपासना का भी विधान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आज के दिन चंद्र देव की उपासना करने से वैवाहिक जीवन में मधुरता आती है और सुख एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसके साथ आज के दिन व्रती महिलाओं को चंद्र देव के 108 नाम का जाप जरूर करना चाहिए। आज के दिन महिलाएं 16 श्रृंगार करके चंद्र देव के दर्शन करती हैं और सौभाग्यवती होने का वरदान मांगती हैं। इस बार का करवा चौथ बेहद खास रहने वाला है।
पंडित अभय झा के अनुसार करवा चौथ कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। इस दिन भगवान गणेश, चौथ माता और शिव- पार्वती की पूजा की जाती है। इस बार सुहागिन महिलाओं के लिए यह बेहद खास होने वाला है। करीब 100 साल बाद चंद्रमा में मंगल और बुध एक साथ विराजमान है, जिससे बुध, आदित्य, योग बन रहा है। इसके अलावा करवा चौथ के दिन शिवयोग या शिव वास और सर्वार्थ योग भी बन रहा है। जो महिलाएं व्रत रखकर चंद्रमा को अर्घ्य देंगी, उनकी मनोकामनाएं जरूर पूरी होंगी। करवा चौथ के दिन मां गौरी और भगवान शिव के साथ गणेश भगवान का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है। करवा चौथ पर रात्रि 08:15 बजे चंद्रोदय होगा। पूजा मुहूर्त का शाम 05: 36 मिनट से 06: 54 मिनट तक रहेगा। अमृत काल शाम 07: 34 मिनट से 09:13 मिनट तक रहेगा।पति पानी पिलाकर पत्नी का व्रत खुलवाते हैं, लेकिन लोगों के मन में एक सवाल जरूर उठता होगा कि आखिर छलनी से ही चांद और पति को क्यों देखा जाता है? इससे क्या होता है? क्या कोई खास वजह है या पति की लंबी उम्र से इसका कनेक्शन हैं? इस बारे में आइए विस्तार से बात करते हैं…
वीरवती की कहानी से छलनी का कनेक्शन
करवा चौथ 2 शब्दों से मिलकर बना है -‘करवा’ यानि ‘मिट्टी का बर्तन’ और ‘चौथ’ यानि ‘गणेश जी की पसंदीदा तारीख चतुर्थी’। वहीं बात करें छलनी से चांद और पति को देखने की तो इसके पीछे की कहानी पौराणिक है, लेकिन काफी दिलचस्प है। छलनी से चांद देखने की कहानी करवा चौथ के दिन सुनाई जाने वाली वीरवती की कहानी से जुड़ी है। बहन वीरवती को भूखा देख कर उसके भाइयों को अच्छा नहीं लगा। इसलिए उन्होंने चांद निकलने से पहले ही एक पेड़ की आड़ में छलनी में दीपक रखकर चांद बनाया और बहन का व्रत खुलवाया। उस दिन से छलनी से चांद देखने की प्रथा प्रचलित हो गई।
चंद्रमा को श्राप के कारण नहीं देखा जाता सीधे
दूसरी ओर, मान्यता है कि क्योंकि चंद्रमा को श्राप मिला है, इसलिए करवा चौथ के दिन चंद्रमा को सीधे नहीं देखना चाहिए। किसी चीज की आड़ में इसे देखना ठीक रहता है। छलनी से चांद देखने की एक वजह यह भी है कि छलनी में असंख्य छिद्र होते हैं, इसलिए माना जाता है कि इसके छिद्रों से पति को देखने पर उनकी उम्र भी लंबी हो जाएगी, इसलिए पहले पत्नियां छलनी की आड़ में चांद को देखती हैं और उसके बाद लंबी उम्र की कामना करते हुए पति को छलनी से देखती हैं। इस तरह छलनी की कहानी पौराणिक है, लेकिन काफी दिलचस्प है। वहीं छलनी के इस्तेमाल ने समय के साथ इसके रंग रूप भी बदले हैं।
चंद्रमा को महिलाएं करवा चौथ पर सीधा क्यों नहीं देखतीं?
करवा चौथ पर चांद के सीधे दर्शन क्यों नहीं करने चाहिएं? इसका उल्लेख पुराणों में भी हुआ है। पुराणों में इसे करक चतुर्दशी के नाम से जानते हैं। पुराणों के अनुसार, प्रजापति दक्ष ने चंद्रमा को श्राप दिया था। उन्होंने चंद्रमा के कमजोर पड़ने की कामना की तुम कमजोर पड़ जाओ, जो तुम्हारे दर्शन करेगा, वह कलंकित हो जाएगा। श्राप मिलने के बाद चंदा मामा रोते हुए भगवान के पास आए और कहानी सुनाई। इसके बाद शंकर भगवान ने उन्हें वरदान दिया कि जो भी करक चतुर्थी के दिन तुम्हारे दर्शन करेगा, उसकी सारी कामनाएं पूरी हो जाएंगी। रामायण के अनुसार, भगवान श्रीराम ने कहा था कि चंद्रमा का काला दाग जहर के समान है।रिपोर्ट अशोक झा

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