नीतिश कुमार के दिल्ली दौरे पर टिकी सबकी नजर, बिहार के सियासी समीकरण बदल सकते है
पटना: हार की राजनीति में एक बार फिर से सीएम नीतीश कुमार के संभावित नए सियासी दांव की चर्चा है। दो दिन में बिहार के लिए यह तस्वीर साफ हो जाएगी। माना जा रहा है कि शुक्रवार को जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी और राष्ट्रीय परिषद की बैठक में नीतीश अपने करीबी और पार्टी में नंबर दो की हैसियत रखने वाले राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह से किनारा करेंगे। इस बीच गुरुवार यानि आज मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दिल्ली रवाना होनेवाले हैं। यहां वह पार्टी के बड़े नेताओं से मुलाकात कर सकते हैं। सभी की नजरें उनके अगले कदम पर टिकी हैं। इसके बाद तमाम सवाल भी उठ रहे हैं कि नीतीश कुमार क्या ऐलान करने वाले हैं और क्या इससे विपक्षी गठबंधन में बड़ी दरार पड़े जाएगी या फिर बिहार के सियासी समीकरण बदल सकते हैं?
सियासी गलियारों में इसकी चर्चा तेज है और अब इसके संकेत भी मिलने लगे हैं। आरएलजेडी सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा ने भी उनकी पैरवी करने की बात कही है। नीतीश कुमार गुरुवार को दिल्ली दौरे पर यहां वह बीजेपी के दिवंगत नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली की जयंती कार्यक्रम में भाग लेंगे। बिहार के सीएम नीतीश कंकड़बाग स्थित पीसी कॉलोनी में लगी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि देंगे। नीतीश कुमार सुबह करीब 11 बजे पटना से दिल्ली के लिए रवाना होंगे। इसके साथ ही वे दिल्ली में होने वाली जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में शामिल होंगे। इसका आयोजन 29 दिसंबर को होगा। दरअसल, जनता दल यूनाइटेड में मची सियासी उथल-पुथल के बीच चर्चा है कि ललन सिंह राष्ट्रीय परिषद की बैठक में राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे सकते हैं। नीतीश कुमार और ललन सिंह के बीच दूरी: बुधवार को नीतीश कुमार ने जेडीयू के करीब एक दर्जन विधायकों से मुलाकात की। ये मीटिंग पार्टी के वरिष्ठ नेता बिजेंद्र यादव के घर हुई। मंत्री ने सभी विधायकों को भरोसा दिया कि पार्टी में कोई बड़ा उलटफेर नहीं होने जा रहा है। इसके बाद जेडीयू ने एक तस्वीर साझा की, जिसमें ललन सिंह नहीं हैं। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि नीतीश कुमार और ललन सिंह के बीच दूरी बढ़ गई है। नीतीश कुमार के वर्किंग स्टाइल को देखें तो जब-जब पार्टी के नेताओं के किसी दूसरे दल की तरफ झुकाव की खबरें आईं, तब-तब उस नेता के पर नीतीश कुमार ने कतर दिए। जब पार्टी के अंदर आरसीपी सिंह के बीजेपी के साथ साठगांठ के आरोप लगे तो नीतीश कुमार ने एक झटके में उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया। अब पार्टी के अंदर और बाहर ललन सिंह पर आरजेडी के साथ ज्यादा हमदर्दी रखने की चर्चाएं हैं। ऐसे में चर्चा है कि ललन सिंह को हटाने का फैसला हो सकता है। अध्यक्ष पद से हटाए जाएंगे ललन सिंह? दिल्ली की बैठक में ललन सिंह का क्या होगा, ये अगले कुछ घंटों में साफ हो जाएगा। कारण, उनके पार्टी अध्यक्ष पद से हटाए जाने की सुगबुगाहट तेज है। हालांकि जेडीयू से जुड़े कुछ नेता बताते हैं कि पार्टी संविधान में अध्यक्ष को हटाने या इस्तीफा देने की एक प्रक्रिया है। पार्टी अध्यक्ष की तरफ से नीतीश कुमार को चिट्ठी के जरिए इस्तीफे की पेशकश की जा सकती है, लेकिन फैसला संगठन की कार्यकारिणी को करना होता है। ठीक ऐसे ही अध्यक्ष को हटाने का निर्णय लेने का अधिकार पार्टी की राष्ट्रीयकार्य कारिणी को है। लिहाजा 11 विधायकों की गुप्त बैठक के बाद बुलाई गई मीटिंग को कुछ लोग ललन सिंह की छुट्टी से जोड़कर देख रहे हैं। हालांकि जेडीयू की तरफ से यही दावा किया जा रहा है कि सबकुछ ठीक है। पार्टी में फूट बचाने को बड़ा ऐलान करेंगे नीतीश? मुमकिन है पार्टी को फूट से बचाने के लिए नीतीश कुमार बड़ा ऐलान दिल्ली में करें। ये मुमकिन है कि कार्यकारिणी बैठक में पार्टी नेताओं की राय लेकर नीतीश कुमार महागठबंधन से अलग होने का ऐलान करें। अगर नीतीश कुमार एक बार फिर पाला बदलने की सोच रहे हैं तो एनडीए की राह आसान नहीं होगी। कारण, सूत्रों का कहना है कि एनडीए में जेडीयू की वापसी नहीं होगी। बिहार में छोटी पार्टियों के साथ एनडीए का गठबंधन हो सकता है। नीतीश कुमार के विरोध में बीजेपी की बिहार ईकाई है और बीजेपी की टॉप लीडरशिप भी नीतीश से नाराज है।
कुछ ऐसा है बिहार का क्षेत्रवार सियासी समिकरण
बिहार के सियासी समिकरण को अलग-अलग क्षेत्र के हिसाब से समझने के लिए बीते कुछ चुनावों के परिणाम और वोट बैंक के पेर्टन को समझना होगा। अगर बात उत्तर बिहार की करें तो यहां महागठबंधन की तुलना में एनडीए का पलड़ा भारी है। यहां लोकसभा की कुल 12 सीटें हैं, मतलब यहां पर जेडीयू के बिना चुनाव लड़ने के बाद भी एनडीए को ज्यादा नुकसान नहीं होगा। ठीक ऐसे ही मिथिलांचल में महागठबंधन के मुकाबले एनडीए को बढ़त है। यहां कुल 9 लोकसभा सीटे हैं। मिथिलांचल में 2024 के चुनाव में एनडीए को ज्यादा सीटे मिल सकती है, लेकिन सीमांचल और पूर्वी बिहार रीजन के चुनावी मुकाबले में एनडीए पर महागठबंधन भारी पडेगा। यहां पर एनडीए को 2019 जैसे परिणाम नहीं आने वाले। सीमांचल में कुल 7 लोकसभा सीटे हैं। वहीं मगध के इलाके में मामला फिफ्टी-फिफ्टी का है। यहां 7 लोकसभा सीटे हैं यानी यहां पर एनडीए का भी जोर है और महागठबंधन का भी यानी यहां पर चुनावी मैच में कुछ भी हो सकता है, जबकि भोजपुर इलाके में 5 लोकसभा सीटें आती हैं। यहां पर महागठबंधन मजबूत है। पार्टी को मजबूत करने की भी चुनौती,अब कम हो गई है बारगेनिंग पावर : उन्होंने विपक्षी दलों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लेकिन इंडिया गठबंधन की 4 बैठकों के बाद भी उन्हें कुछ नही मिला। अब 19 दिसंबर की बैठक से काफी उम्मीदें थी, लेकिन ममता बनर्जी ने ऐसी चाल चली कि नीतीश कुमार संयोजक बनने की उम्मीदों पर पानी फिर गया। चुनौतियां तो बहुत हैं, लेकिन सवाल है कि उनके पास ऑप्शन क्या है? नीतीश कुमार की पार्टी अब पहले जैसी मजबूत नहीं रही, लेकिन आज भी दोनों महत्वपूर्ण गठबंधन I.N.D.I.A. हो या NDA उन्हें अपने साथ रखना चाहते हैं। मगर, अब ये भी बात है कि उनकी बारगेनिंग पवार जरूर कम हुई है। नीतीश के पास पहले दो ऑप्शन ये हैं… पहला ऑप्शन ये है कि नीतीश कुमार कांग्रेस से खुलकर बात करेंगे। 28 तारीख को उनकी मुलाकात कांग्रेस अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे से हो सकती है। इंडिया गठबंधन उनकी शर्तों को मान लेती है, तो फिर ठीक है। जहां तक दूसरे ऑप्शन की बात है, तो वह फिर से बीजेपी के साथ जा सकते हैं। पटना में ये चर्चा जोरों पर है कि बीजेपी उनकी वापसी चाहती है, लेकिन अपने शर्तों पर। चर्चा ये है कि बीजेपी अब अपना मुख्यमंत्री चाहती है और नीतीश कुमार के लिए प्रतिष्ठित एग्जिट। मगर, सवाल ये है कि यह होगा कैसे? पिछली बार उनके उपराष्ट्रपति बनने की चर्चा हुई थी, लेकिन ये हुआ नहीं और बिहार में सरकार बदल गई। मगर, ये भी सच है कि बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व किसी भी कीमत पर उनकी वापसी चाहता है, ताकि वो 2019 के लोकसभा चुनाव परिणाम को फिर से दोहरा सके। बीजेपी का प्रदेश यूनिट किसी भी कीमत पर मुख्यमंत्री पद पर उनकी मौजूदगी नहीं चाहता है। ऐसे में बीजेपी नीतीश कुमार को NDA का कन्वेनर बना सकती है जैसे जार्ज फर्नांडिस हुआ करते थे, लेकिन उस समय के NDA में 17 पार्टियां थीं। इस समय गिने चुने ही दल हैं।नीतीश के पास तीसरा ऑप्शन यह है… तीसरा ऑप्शन ये है कि नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव कराने के लिए बीजेपी को राजी कर लें। बीजेपी इसके लिए कहीं न कहीं तैयार हो सकती है। मगर, मुख्यमंत्री के तौर पर फिर नीतीश कुमार को स्वीकार करना बीजेपी के राज्य यूनिट को अच्छा न लगे। बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी कहते है उन्हें हम जीवनदान क्यों दे? मगर, सोचने की बात है कि केंद्रीय नेतृत्व के लिए अभी सबसे बड़ी प्रमुखता लोकसभा का चुनाव है। वैसे भी बीजेपी 2029 में वन नेशन वन इलेक्शन लागू करना चाहती है, तो ये इस बार से ही बिहार में लागू हो जाए। नीतीश कुमार इसके पहले से ही हिमायती रहे हैं। हालांकि, उनके विधायक इसके लिए कितने तैयार होंगे ये देखना होगा। नीतीश के लिए आरजेडी के साथ रहना भी मुश्किल चर्चा ये भी है कि आरजेडी के साथ गठबंधन में रहना भी उनके लिए मुश्किल हो गया है। तभी तो कभी जेडीयू में रहे और अब राष्ट्रीय लोक जनता दल अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा कहते हैं कि आरजेडी में जाना आत्मघाती कदम था। उनके बीजेपी में आने को लेकर मैं पैरवी भी कर दूंगा। वर्तमान में जो स्थिति है, उसमें सबसे ज्यादा जो परेशानी है वो है तेजस्वी यादव को सत्ता सौपने का दबाव और अब तो पार्टी में टूट की सुगबुगाहट ने तो उनकी परेशानी को और बढ़ा दिया होगा। ऐसे में पार्टी को इंटेक्ट रखना उनके लिए अभी की सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है। रिपोर्ट अशोक झा