77 साल बाद रवि और वरियान योग में मनाया जा रहा मकर संक्रांति का पर्व
– आस्था के सागर में श्रद्धालु लगा रहे है डुबकी,किया जा रहा है दान – पुण्य
नई दिल्ली: मकर संक्रांति का त्योहार हिंदू धर्म में अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है, लेकिन इसका मुख्य उद्देश्य सूर्य भगवान की पूजा करना होता है। इस दिन लोग स्नान, दान, तिल-गुड़ खाना, पितरों को तर्पण, सूर्य देव की पूजा मेलों का आयोजन करते हैं. यह किसानों के लिए भी एक महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है, क्योंकि यह गन्ने की कटाई के साथ मेल खाता है नए कृषि मौसम की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है.
कई सालों बाद सोमवार को मकर संक्रांति मनाई जाने वाली है। सोमवार का दिन देवों के देव महादेव को समर्पित होता है। मकर संक्रांति के दिन पूजा, जप, तप और दान का महत्व होता है। भगवान शिव की कृपा पाने के लिए मकर संक्रांति पर गंगा जल युक्त पानी से स्नान करने के बाद भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करना चाहिए। साथ ही पूजा के दौरान भगवान शिव के नामों का जाप भी अवश्य करें। देश के अलग-अलग हिस्सों में मकर संक्रांति को अलग-अलग नामों और तरीकों से मनाया जाता है. उत्तर भारत में मकर संक्रांति को खिचड़ी, गुजरात और महाराष्ट्र में उत्तरायण पर्व, दक्षिण भारत में पोंगल, असम में बिहू पर्व और बंगाल में गंगासागर स्नान के रूप में मनाया जाता है। मकर संक्रांति पर पवित्र नदियों में स्नान करना विशेष तौर पर गंगा स्नान करने का बड़ा महत्व है। इसके अलावा मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव की पूजा और दान किया जाता है। मकर संक्रांति पर्व सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के मौके पर ही मनाया जाता है। हर साल इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनि के घर मकर में प्रवेश करते हैं।
मकर संक्रांति पर दुर्लभ संयोग : इस साल मकर संक्रांति पर विशेष शुभ योग बन रहा है। 5 साल बाद मकर संक्रांति सोमवार के दिन पड़ रही है। इससे मकर संक्रांति का दिन सूर्य देव, शनि देव के साथ भगवान शिव की भी कृपा पाने का विशेष मौका होता है. साथ ही मकर संक्रांति पर 77 साल बाद रवि योग और वरियान योग का संयोग बन रहा है। पंचांग के अनुसार रवियोग 15 जनवरी को सुबह 07 बजकर 15 मिनट से 08 बजकर 07 मिनट तक रहेगा। वहीं वरियान योग 14 जनवरी को रात 02 बजकर 40 मिनट से शुरू होकर 15 जनवरी की रात 11 बजकर 10 मिनट तक रहेगा। मकर सक्रांति 2024 शुभ समय : मकर संक्रांति पर गंगा स्नान और दान आदि कार्य पुण्य काल में करने का विशेष महत्व होता है. इस साल मकर संक्रांति पर स्नान-दान का महापुण्य काल सुबह 07 बजकर 15 मिनट से सुबह 09 बजकर 15 मिनट तक है। मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान या पवित्र नदी में स्नान ना कर पाएं तो घर पर ही गंगाजल मिले पानी से स्नान करें. फिर सूर्य देव को तांबे के लोटे में जल, लाल फूल, रोली, अक्षत, गंगाजल की कुछ बूंदें मिलाकर अर्घ्य दें. इस दौरान ऊं सूर्याय नम: मंत्र का जाप करें. फिर सूर्य चालीसा और आदित्य ह्रदय स्त्रोत का पाठ करें. इसके बाद तिल, गुड़, खिचड़ी, घी, गरम कपड़े आदि का दान करें. मकर संक्रांति के दिल काली उड़द दाल-चावल की खिचड़ी, तिल गुड़ खाने और दान करने का बड़ा महत्व है। गंगासागर में मकर संक्रांति के दिन स्नान करने का विशेष महत्व है। पौराणिक मान्यता है कि इस दिन गंगासागर में जो श्रद्धालु एक बार स्नान करता है उसे 10 अश्वमेध यज्ञ और एक हजार गाय दान करने का फल मिलता है। गंगासागर की तीर्थयात्रा सैकड़ों तीर्थयात्राओं के समान मानी जाती है। भारत में सबसे पवित्र गंगा नदी गंगोत्री से निकल कर पश्चिम बंगाल में सागर से मिलती है। गंगा का जहां सागर से मिलन होता है उस स्थान को गंगासागर कहते हैं। इस स्थान को सागरद्वीप के नाम से भी जाना जाता है। कुंभ मेले को छोड़कर देश में आयोजित होने वाले अन्य सभी मेलों में गंगासागर का मेला सबसे बड़ा मेला होता है। हिन्दू धर्मग्रन्थों में इसकी चर्चा मोक्षधाम के तौर पर की गई है। मकर संक्रांति पर लाखों श्रद्धालु मोक्ष की कामना लेकर आते हैं और सागर-संगम में डुबकी लगाते है। मान्यता के अनुसार साल की 12 संक्रांतियों में मकर संक्रांति का सबसे ज्यादा महत्व है। इस दिन सूर्य मकर राशि में आता हैं और इसके साथ देवताओं का दिन शुरू हो जाता है। गंगासागर के संगम पर श्रद्धालु समुद्र को नारियल और यज्ञोपवीत भेंट करते हैं। समुद्र में पूजन एवं पिण्डदान कर पितरों को जल अर्पित करते हैं। गंगासागर में स्नान-दान का महत्व शास्त्रों में विस्तार से बताया गया है। मान्यतानुसार जो युवतियां यहां पर स्नान करती हैं, उन्हें अपनी इच्छानुसार वर तथा युवकों को स्वेच्छित वधु प्राप्त होती है। मेले में आए लोग कपिल मुनि के आश्रम में उनकी मूर्ति की पूजा करते हैं। मंदिर में गंगा देवी, कपिल मुनि तथा भगीरथ की मूर्तियां स्थापित हैं। गंगासागर में मकर संक्रांति से 15 दिन पहले ही मेला शुरू हो जाता है। मेले में दुनियाभर से पंहुचे तीर्थयात्री, और साधु-संत संगम में स्नान कर सूर्यदेव को अर्घ्य देते हैं। इसे मिनी कुंभ मेला भी कहते हैं। मकर संक्रांति के पर यहां सूर्य पूजा के साथ विशेष तौर कपिल मुनि की पूजा की जाती है। मान्यता है कि ऋषि-मुनियों के लिए गृहस्थ आश्रम या पारिवारिक जीवन वर्जित होता है। भगवान विष्णु के कहने पर कपिल मुनि के पिता कर्दम ऋषि ने गृहस्थ आश्रम में प्रवेश किया। उन्होंने विष्णु भगवान से शर्त रखी कि भगवान विष्णु को उनके पुत्र रूप में जन्म लेना होगा। भगवान विष्णु ने शर्त मान ली फलस्वरूप कपिल मुनि का जन्म हुआ। उन्हें विष्णु का अवतार माना गया। आगे चल कर गंगा और सागर के मिलन स्थल पर कपिल मुनि आश्रम बना कर तप करने लगे। इस दौरान राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ आयोजित किया। इसके बाद यज्ञ के अश्वों को छोड़ा गया। परिपाटी है कि ये जहां से गुजरते हैं वे राज्य अधीनता स्वीकार करते हैं। अश्व को रोकने वाले राजा को युद्ध करना पड़ता है। राजा सगर ने यज्ञ अश्वों के रक्षा के लिए उनके साथ अपने 60 हजार पुत्रों को भेजा। अचानक यज्ञ अश्व गायब हो गया। खोजने पर यज्ञ का अश्व कपिल मुनि के आश्रम में मिला। फलतः सगर पुत्र साधनरत ऋषि से नाराज हो उन्हें अपशब्द कहने लगे। ऋषि ने नाराज हो कर उन्हें शापित करते हुए अपने नेत्रों के तेज से भस्म कर दिया। मुनि के श्राप के कारण उनकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिल सकी। काफी वर्ष बाद राजा सगर के पौत्र राजा भगीरथ कपिल मुनि से माफी मांगने पहुंचे। कपिल मुनि राजा भगीरथ के व्यवहार से प्रसन्न हुए। उन्होने कहा कि गंगाजल से ही राजा सगर के 60 हजार मृत पुत्रों का मोक्ष संभव है। राजा भगीरथ ने अपने अथक प्रयास और तप से गंगा को धरती पर उतारा। अपने पुरखों के भस्म स्थान पर गंगा को मकर संक्रांति के दिन लाकर उनकी आत्मा को मुक्ति और शांति दिलाई। यही स्थान गंगासागर कहलाया। इसलिए यहां स्नान का इतना महत्व है। पहले गंगासागर जाना हर किसी के लिये संभव नहीं होता था। तभी कहा जाता था कि सारे तीरथ बार-बार गंगासागर एक बार। हालांकि यह पुराने जमाने की बात है जब यहां सिर्फ जल मार्ग से ही पहुंचा जा सकता था। आधुनिक परिवहन साधनों से अब यहां आना सुगम हो गया है। पश्चिम बंगाल के दक्षिण चौबीस परगना जिले में स्थित इस तीर्थस्थल पर कपिल मुनि का मंदिर है। उन्होंने भगवान राम के पूर्वज और इक्ष्वाकु वंश के राजा सगर के 60 हजार पुत्रों का उद्धार किया था। मान्यता है कि यहां मकर संक्रांति पर पुण्य-स्नान करने से मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। सुंदर वन निकट होने के कारण गंगासागर मेले को कई विषम स्थितियों का सामना करना पड़ता है। तूफान और ऊंची लहरें हर वर्ष मेले में बाधा डालती हैं। इस द्वीप में ही रॉयल बंगाल टाइगर का प्राकृतिक आवास है। यहां दलदल, जलमार्ग, छोटी नदियां और नहरें भी हैं। बहुत पहले इस स्थान पर गंगा जी की धारा सागर में मिलती थी। किंतु अब इसका मुहाना पीछे हट गया है। अब इस द्वीप के पास गंगा की एक बहुत छोटी सी धारा सागर से मिलती है। यह मेला पांच दिन चलता है। इसमें स्नान मुहूर्त तीन दिनों का होता है। यहां अलग से गंगा जी का कोई मंदिर नहीं है। मेले के लिए एक स्थान निश्चित है। कहा जाता है कि यहां स्थित कपिल मुनि का प्राचीन मंदिर सागर की लहरें बहा ले गई थी। मंदिर की मूर्ति अब कोलकाता में है और मेले से कुछ सप्ताह पूर्व यहां के पुरोहितों को पूजा-अर्चना के लिए मिलती है।गंगासागर में कपिल मुनि का प्राचीन मंदिर समुद्र में समा चुका है। 1973 में यहां उनका नया मंदिर बना। इसी के श्रद्धालु दर्शन करते हैं। गंगासागर गंगा नदी का छोटा डेल्टा द्वीप है। यहां की आबादी करीब दो लाख है और इसका क्षेत्रफल 282 वर्ग किलोमीटर है। सागर द्वीप के एक ओर बंगाल की खाड़ी और दूसरी ओर बांग्लादेश है। इस सुंदर द्वीप के ज्यादातर क्षेत्र में घने जंगल है। कपिल मुनि के मंदिर, आश्रम के अलावा यहां महादेव मंदिर, शिव शक्ति-महानिर्वाण आश्रम, भारत सेवाश्रम संघ का मंदिर, धर्मशालायें भी हैं। अब पूरे वर्ष यहां लोगों का आवागमन लगा रहता है। कोलकाता से यहां तक के लिए सड़क बनी हुई है। मात्र पांच किलोमीटर नाव का सफर करना पड़ता है। गंगासागर में 14 और 15 जनवरी को मुख्य मेला लगता है।मुख्यमंत्री ममता बनर्जी गंगासागर के लिए मुरिगंगा में ब्रिज का निर्माण करवाने को प्रयासरत है। इस ब्रिज के बनने से श्रद्वालु सड़क मार्ग से कचुबेरिया तक आ सकेंगे। लोगों को यहां जल मार्ग से नहीं आना पड़ेगा। लोगों की मांग है कि गंगासागर मेले को भी कुंभ मेले जैसा दर्जा मिलना चाहिए। यहां के विकास के लिए कुंभ मेले की तरह अलग से बजट उपलब्ध हो। रिपोर्ट अशोक झा